आज हम भविष्य की और बढते बढते रूढ़िवादिता की तरफ भी झुकते जा रहे हैं, जिंदगी की इसी आपा धापी में सही और गलत का निर्णय कर पाना मुश्किल क्यूँ लगने लगा है? क्यूँ हम अपने भविष्य को लेकर इतने चिंतित हो जाते हैं की कुछ बचकाना बातें भी हमे जीवन परिवर्तक लगने लगती हैं? आजकल कोई भी हमें एक अच्छे और सुखद भविष्य का सपना दिखा कर ठग लेता है, और हम भी देखा देखी उनका अन्धानुकरण करने लगते हैं, क्या ये सही है ? आजकल कुछ बाबा लोग जो अपने आप को आलोकिक शक्तियों का स्वामी बताते हैं वो दावा करते हैं हमारी जिंदगी बदलने का और सभी दुखों और कष्टों से मुक्ति दिलाने का , तो क्या वो सही हैं?? नहीं ... जब कोई भी इंसान परेशान होता है तो वो कोई सहारा ढूँढता है और ये बाबा लोग और उनके चमचे ऐसे ही लोगों को ढूँढते रहते है और वो हमें आशा की एक किरण की तरह दिखते हैं, उनके पीछे लोगों का हुजूम और उनकी नौटंकी को हम भगवान् का एक रूप मान लेते हैं,,,
क्या हमारे जीवन की परेशानियां हम पर इतनी हावी हो चुकी हैं की हम उन से लडने के बजाये उनका समाधान ऐसे लोगों के पास चुनते हैं जिनके स्वयं के पास अपनी परेशानियों का कोई हल नहीं है..
चतरा (झारखंड) से सांसद और झारखंड विधानसभा के स्पीकर रह चुके इंदर सिंह नामधारी ने आज के निर्मल बाबा का अतीत बताया है।बाबा के बारे में कहीं कोई निजी जानकारी आम नहीं है। ऐसे में नामधारी के हवाले से निर्मल बाबा के सच को पूरी दुनिया जान सकती है। बाबा नामधारी के छोटे साले है। बुरे दिनों में नामधारी ने उनकी काफी मदद की है।
बकौल इंदर सिंह नामधारी, '1964 में जब मेरी शादी हुई थी, तो उस वक्त निर्मल 13-14 साल के थे। पहले ही पिता की हत्या हो गयी थी। इसलिए उनकी मां (मेरी सास) ने कहा था कि इसे उधर ही ले जाकर कुछ व्यवसाय करायें। 1970-71 में वह मेदिनीनगर (तब डालटनगंज) आये। 1981-82 तक रहे, उसके बाद रांची में 1984 तक रहे। उसी वर्ष रांची का मकान बेच कर दिल्ली लौट गये।' 1981-82 तक वह मेदिनीनगर में रह कर व्यवसाय करते थे। चैनपुर थाना क्षेत्र के कंकारी में उनका ईंट-भट्ठा भी हुआ करता था, जो निर्मल ईंट के नाम से चलता था। लेकिन आज जो उनका चमत्कारिक कायाकल्प हुआ, उस बारे में उनके करीबी भी ज्यादा बात करना नहीं चाहते।
नामधारी ने 'प्रभात खबर' को दिए एक इंटरव्यू में बताया कि निर्मल ने 1998-99 में बहरागोड़ा (झारखंड) में माइंस की ठेकेदारी ली थी। इसी क्रम में उन्हें कोई आत्मज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद वह अध्यात्म की तरफ मुड़ गये। नामधारी ने बाबा के 'चमत्कारिक कायाकल्प' के बारे में इससे ज्यादा कुछ बोलने से इनकार कर दिया।
आज निर्मल बाबा के दुनिया भर में लाखों भक्त हैं, लेकिन उनके जीजा नामधारी को उनका तरीका पसंद नहीं आता। उन्होंने बताया, 'मैं कहता हूं कि ईश्वरीय कृपा से यदि कोई शक्ति मिली है, तो उसका उपयोग जनकल्याण में होना चाहिए। बात अगर निर्मल बाबा की ही करें, तो आज जिस मुकाम पर वह हैं, वह अगर जंगल में भी रहें, तो श्रद्धालु पहुंचेंगे। फिर प्रचार क्यों? पैसा देकर ख्याति बटोर कर क्या करना है? जनकल्याण में अधिक लोगों का भला हो।' गौरतलब है कि निर्मल बाबा देश के लगभग हर प्रमुख टीवी चैनल पर अपना विज्ञापन कराते हैं।
निर्मल बाबा के परिवार के बारे में मिली जानकारी के मुताबिक वह दो भाई हैं। बड़े भाई मंजीत सिंह अभी लुधियाना में रहते हैं। निर्मल बाबा छोटे हैं। मेदिनीनगर (झारखंड) के दिलीप सिंह बग्गा की तीसरी बेटी से उनकी शादी हुई। उनके एक बेटा और एक बेटी है। 1947 में देश के बंटवारे के समय निर्मल बाबा का परिवार भारत आ गया था। यही निर्मल बाबा जो मीडिया और चैनल पर एक विज्ञापन की तरह प्रचार करते हैं और लोगों पर अपनी कृपा दृष्टि बनाने का दावा करते हैं, यहाँ तक की हमारा मीडिया भी सिर्फ चाँद रुपियों के लिए उनका कार्यक्रम प्रसारित करते हैं और लोगों को भ्रमित करते हैं, उनके बताये हुए उपाय बडे ही बचकाना तरीके से लोग पैसा देकर सुनते हैं और अपनाते हैं, ये सब क्या है ??
बकौल इंदर सिंह नामधारी, '1964 में जब मेरी शादी हुई थी, तो उस वक्त निर्मल 13-14 साल के थे। पहले ही पिता की हत्या हो गयी थी। इसलिए उनकी मां (मेरी सास) ने कहा था कि इसे उधर ही ले जाकर कुछ व्यवसाय करायें। 1970-71 में वह मेदिनीनगर (तब डालटनगंज) आये। 1981-82 तक रहे, उसके बाद रांची में 1984 तक रहे। उसी वर्ष रांची का मकान बेच कर दिल्ली लौट गये।' 1981-82 तक वह मेदिनीनगर में रह कर व्यवसाय करते थे। चैनपुर थाना क्षेत्र के कंकारी में उनका ईंट-भट्ठा भी हुआ करता था, जो निर्मल ईंट के नाम से चलता था। लेकिन आज जो उनका चमत्कारिक कायाकल्प हुआ, उस बारे में उनके करीबी भी ज्यादा बात करना नहीं चाहते।
नामधारी ने 'प्रभात खबर' को दिए एक इंटरव्यू में बताया कि निर्मल ने 1998-99 में बहरागोड़ा (झारखंड) में माइंस की ठेकेदारी ली थी। इसी क्रम में उन्हें कोई आत्मज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद वह अध्यात्म की तरफ मुड़ गये। नामधारी ने बाबा के 'चमत्कारिक कायाकल्प' के बारे में इससे ज्यादा कुछ बोलने से इनकार कर दिया।
आज निर्मल बाबा के दुनिया भर में लाखों भक्त हैं, लेकिन उनके जीजा नामधारी को उनका तरीका पसंद नहीं आता। उन्होंने बताया, 'मैं कहता हूं कि ईश्वरीय कृपा से यदि कोई शक्ति मिली है, तो उसका उपयोग जनकल्याण में होना चाहिए। बात अगर निर्मल बाबा की ही करें, तो आज जिस मुकाम पर वह हैं, वह अगर जंगल में भी रहें, तो श्रद्धालु पहुंचेंगे। फिर प्रचार क्यों? पैसा देकर ख्याति बटोर कर क्या करना है? जनकल्याण में अधिक लोगों का भला हो।' गौरतलब है कि निर्मल बाबा देश के लगभग हर प्रमुख टीवी चैनल पर अपना विज्ञापन कराते हैं।
निर्मल बाबा के परिवार के बारे में मिली जानकारी के मुताबिक वह दो भाई हैं। बड़े भाई मंजीत सिंह अभी लुधियाना में रहते हैं। निर्मल बाबा छोटे हैं। मेदिनीनगर (झारखंड) के दिलीप सिंह बग्गा की तीसरी बेटी से उनकी शादी हुई। उनके एक बेटा और एक बेटी है। 1947 में देश के बंटवारे के समय निर्मल बाबा का परिवार भारत आ गया था। यही निर्मल बाबा जो मीडिया और चैनल पर एक विज्ञापन की तरह प्रचार करते हैं और लोगों पर अपनी कृपा दृष्टि बनाने का दावा करते हैं, यहाँ तक की हमारा मीडिया भी सिर्फ चाँद रुपियों के लिए उनका कार्यक्रम प्रसारित करते हैं और लोगों को भ्रमित करते हैं, उनके बताये हुए उपाय बडे ही बचकाना तरीके से लोग पैसा देकर सुनते हैं और अपनाते हैं, ये सब क्या है ??
क्या ये उन लोगों की भावनाओं का मज़ाक नहीं या ये उनके साथ और उनकी आस्था और विश्वास के साथ खिलवाड़ नहीं है? वो एक उम्मीद के साथ आते हैं और एक चुटकुला सुन कर चले जाते हैं ..
पता नहीं हम कब जिंदगी की इस जद्दो जेहाद से निकल कर एक अच्छे भविष्य का निर्माण स्वयं कर सकेंगे , और इन बाबाओं और नेताओं के चुंगल से बच सकेंगे ...