11 दिसंबर, 2020

किसान आंदोलन या षड्यंत्र

 एक बहुत बड़ा खेल खेला जा रहा है, किसान आंदोलन से विपक्षी यानी सोनिया / केजरीवाल / और बाकी के ठगबंधन क्या चाहते हैं ? इसका उत्तर है कि सरकार को इतना दबाव बनाओ की वो सिर्फ एक गोली से एक सिख को मार दें... क्योंकि 2024 के चुनावों के लिए कांग्रेस के नियंत्रण से पंजाब फिसल रहा है, महाराष्ट्र तो पहले से ही विदूषक को रखने के बाद खो गया है.. वे एक उलटफेर चाहते हैं और यह केवल भारी भावनाओं के साथ आ सकता है.. वे सभी चाहते हैं कि सिख भाजपा के खिलाफ जाएं और इसे दूसरा सिख नरसंहार कहें.. याद रखिए खालिस्तानियों ने पहले ही 1984 के दंगों और सिख हत्याओं के लिए भाजपा, आरएसएस को दोषी ठहराया था.. खालिस्तानियों के पोस्टर देखलो, कि अगर कोई सिख विरोध में मारा जाता है, तो नरेंद्र मोदी अपने हाथों इंदिरा की किस्मत देखेंगे, इसका उदाहरण एक आंदोलनकारी के वीडियो में भी आपने देखा होगा, इरादा बहुत स्पष्ट है.. वे पूरे प्रकरण को भाजपा बनाम सिखों में बदलना चाहते हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस मुद्दे का पूरी तरह से ध्रुवीकरण करना चाहते हैं.. कौन उनका साथ दे रहा है? भारत और विदेश में खालिस्तानियों, जेएनयू झोलावालों और पूरे टुकडे टुकडे गैंग की तंत्र, सोनिया की राजदार पेशी, केजरीवाल की चालाकी, बाकी ठगबन्धन जो मोदी को हटाने से लाभान्वित होते हैं और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि 2024 के चुनावों में जिहादियों का क्या हश्र होना है ये मोदी ने इसे कितनी अच्छी तरह से निभाया है... शाहीन बाग के समान, उन्होंने आंदोलनकारी भीड़ को तितर-बितर करने के लिए किसी भी बल का उपयोग नहीं किया, जो अन्यथा एक बेकाबू दंगे में बदल सकता था.. इस बार, खतरे दो गुना हैं, क्योंकि जिहादी और खालिस्तान एक साथ हैं.. मोदी को खतरों का पता है और उन्होंने इन जिहादियों के इरादों का उनके दृष्टिकोण से आकलन किया है.. उसे बहुत सतर्क रहना होगा क्योंकि इस बात की अच्छी संभावना है कि कुछ सिखों को पुलिस से भिड़ने या आग लगाने के लिए भुगतान किया जाएगा (शाहीन बाग वाले सलमान को याद रखें ?) और पुलिस को स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कार्यवाही वापस करने के लिए मजबूर किया जाएगा.. क्या अब आप समझ गए हैं, कि दिल्ली पुलिस को केंद्र के गृह मंत्रालय के तहत रखना महत्वपूर्ण क्यों था? क्योंकि दिल्ली जमीन पर होने वाले सभी का उपकेंद्र है.. यह आंदोलन हो, विरोध हो या रैलियों का समर्थन.. ऐसी परिस्थितियों में केजरीवाल आंदोलनकारी किसानों को मारने का सबसे खतरनाक खेल (सिखों पर लक्षित) करके खेलेंगे और यह प्रकरण गृहयुद्ध में बदल जाएगा.. मोदी के लिए खेल खत्म हो जाएगा इसे 2-3 और सप्ताह दें.. क्योंकि विरोध प्रदर्शनों जितना भड़क रहा है, विरोधियों के लिए उतना पैसा है.. वैसे तो अनेक संगठन, राजनीतिक दल,और इनके नए नए यार बने हलाल छाप हर समय बिरयानी खिलाते रहते हैं.. अहमद पटेल के निधन के बाद कांग्रेस के लिए सबसे ज़्यादा कॉर्पोरेट लॉबिंग करने वाला भी गया, कांग्रेस का रेट कार्ड भी काफी नीचे आ चुका है, अब सोनिया गांधी अम्बानी पर पैसे के लिए दबाव बना रही है पर उसने नकार दिया तो आंदोलनकारी बेचारे जिओ की सिम जला रहे हैं, मोबाइल कंपनी ने किसान की फसल खरीदनी है क्या ? वामपंथी इस खिचड़ी के बीच मे अपना तड़का लगा रहे है कि लगे हाथों अपने आतंकियों को भी छुड़वा लो, आंदोलनकारी 45 दलों में से 37-38 तो पंजाब से ही हैं.. पर अपने कैप्टेन अम

26 नवंबर, 2020

विवाह समारोह

 कल देव उठनी एकादशी थी, विवाह एवं अन्य शुभ समारोह आरंभ हो गए... मैं आज तक जितनी शादियों में मैं गया हूँ, उनमें से करीब 90% में दूल्हा- दुल्हन की शक्ल तक नहीं देखी... उनका नाम तक नहीं जानता था... अक्सर तो विवाह समारोहों में जाना और वापस आना भी हो गया पर ख्याल तक नहीं आया और ना ही कभी देखने की कोशिश भी की, कि स्टेज कहाँ सजा है, युगल कहाँ बैठा है... भारत में लगभग हर विवाह में हम 75% फालतू जनता को invitation देते हैं... फालतू जनता वो है जिसे आपके विवाह में कोई रुचि नहीं.. जो आपका केवल नाम जानती है... जो केवल आपके घर की लोकेशन जानती है.. जो केवल आपकी पद- प्रतिष्ठा जानती है.. और जो केवल एक वक्त के स्वादिष्ट और विविधता पूर्ण व्यञ्जनों का स्वाद लेने आती है और गाहे बगाहे आपके लाखों रुपये के इंतजाम पर अपने स्वादानुसार नाक भौं सिकोड़ कर बुराई भी कर जाते हैं.. ये होती है फालतू जनता.. भाई विवाह कोई सत्यनारायण भगवान की कथा या लंगर का प्रसाद नहीं है कि हर आते जाते राह चलते को रोक रोक कर प्रसाद दिया जाए... केवल आपके रिश्तेदारों, कुछ बहुत नज़दीकी मित्रों के अलावा आपके विवाह में किसी को रुचि नहीं होती.. ये ताम झाम, पंडाल झालर, सजावट, सैकड़ों पकवान, आर्केस्ट्रा, DJ, दहेज का मंहगा सामान एक संक्रामक बीमारी का काम करता है.. लोग आते हैं इसे देखते हैं और "मैं भी ऐसा ही इंतजाम करूँगा, बल्कि इससे बेहतर".. और लोग करते हैं... चाहे उनकी चमड़ी बिक जाए.. लोग 75% फालतू की जनता को दिखावा करने में अपने जीवन भर की कमाई लुटा देते हैं.. लोन या उधार ले लेते हैं.. और उधर विवाह में आमंत्रित फालतू जनता, गेस्ट हाउस, पंडाल या बैंक्वेट के गेट से अंदर सीधे भोजन तक पहुंच कर, भोजन उदरस्थ करके, लिफाफा पकड़ा कर निकल लेती है.. आपके लाखों का ताम झाम उनकी आँखों में बस आधे घंटे के लिए पड़ता है, पर आप उसकी किश्तें जीवन भर चुकाते हो... इस कोरोना काल मे केवल 50 आमंत्रित मेहमानों एवं सीमित संसाधनों में ही विवाह प्रक्रिया को पूरा करने की मजबूरी को एक प्रचलन बनाया जा सकता है, कुछ लोग अभी भी इस पर आपत्ति कर रहे हैं क्योंकि उनके लिए विवाह समारोह मान प्रतिष्ठा एवं लोक लुभावन ज़्यादा है किन्तु इस भ्रामक दिखावे से बचा जा सकता है..इस अपव्यय और दिखावे को रोकना होगा.. विचार अवश्य करिये.....

19 नवंबर, 2020

कोरोना का डर

 दीपावली पर एक उच्च कोटि के अतिथि का आगमन हुआ.. शुभकामनाओं के सिलसिले के बाद भाईसाहब डाइबिटीज की शिकायत के बावजूद चाय के साथ काजू की बर्फी, ड्राई फ्रूट्स एवं पिन्नी पर हाथ साफ कर गए.. बातचीत में बताया कि वो पहले ही 2-3 संबंधियों एवं मित्रगणों के यहां चाय एवं जूस छान कर आ रहे हैं.. चलो खैर थोड़े डर के साथ बीवी की तरफ देखा और कनखियों से मैं सैनिटाइजर को निहारने लगा, तभी जनाब एक छलांग के साथ उठ खड़े हुए जैसे पिन्नी खा कर सारे कार्बोहायड्रेट ने एक साथ ऊर्जा का संचार कर दिया हो और हाथ झाड़ते हुए बोले, "भाई ये कोरोना हाथ से निकल गया है, बाहर मत निकलना.. घर मे ही रहो, माहौल खराब है.. किसी पर विश्वास मत करो, त्योहारों का क्या है बस आप जैसे भाइयों से मिलना हो जाता है, अच्छा चलता हूँ अभी 2-1 घर और होता चलूं"... समझ नही आया कि कोरोना से डर ज़्यादा है या डराने वाले ज़्यादा है...

11 नवंबर, 2020

मीडिया पर हमला या बोलने की आज़ादी का हनन

 अर्नब को बेल क्यों नहीं मिल रही है इसके पीछे का कारण समझिए, जो लोग मोदी जी को जानते हैं और समझते हैं उन लोगों को ही अच्छे से समझना चाहिए कि अगर कुछ ऐसा चल रहा है कि जो अप्रत्याशित है जो हमें समझ नहीं आ रहा है उसके पीछे का खास कारण या मकसद क्या है दरअसल हम लोग ने बहुत जल्दी विचलित हो जाते हैं..अर्नब को कुछ नहीं हुआ है वह एकदम स्वस्थ और सुरक्षित है, इसके लिए हम कभी सरकार, कभी न्यायपालिका को दोष देते है, इमोशनल हैं ना, हम लोग तो LED के ज़माने में भी लालटेन को चुन लेते हैं, चलो अब मैं इसको थोड़ा विस्तार से बताता हूं.. दरअसल मोदी जी की पॉलिसी आप लोग जानते ही हैं वह भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाना चाहते हैं अब हम यूं कह सकते हैं कि इसकी शुरुआत उन्होंने पहले राजनीति से की और फिर बॉलीवुड पर आ गए, अब बॉलीवुड को हम लोग काले धन, ड्रग्स, विदेशी फंडिंग का एक बहुत बड़ा केंद्र मानते हैं कहने को यह फिल्मी सितारे को हम आइडल मानते हैं वह दरअसल पर्दे की जिंदगी और असल जिंदगी में बहुत विपरीत है... इस बॉलीवुड को साफ करने के लिए सुशांत सिंह राजपूत एक बहाना बना, अब उसकी आड़ में बॉलीवुड के अंदर इतनी गहराई तक सफाई होगी कि हम लोग आश्चर्यचकित रह जाएंगे, बॉलीवुड की सफाई के बाद अगला नंबर क्रिकेट का आएगा.. क्रिकेट एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें हमारे राजनीति से और कॉरपोरेट हाउसेस से जुड़े बहुत बड़े बड़े नाम हैं यूं कहो कि कुछ राजनीतिक मजबूरियां हैं या फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक किसी बड़े कॉर्पोरेट पर या बड़े नेता पर हाथ डालना इतना आसान नहीं होगा और अब उसका सच भी अगर सामने लाना है, की कैसे वह ब्लैक को व्हाइट करते हैं, कैसे टीमों को मैनिपुलेट किया जाता है, कैसे खेल के साथ खेला जाता है, अब इसमें सट्टेबाजी भी है पैसा भी है ग्लैमर भी है और क्रिकेट और बॉलीवुड का लिंक भी है.. फिर उसके बाद तीसरा नंबर आता है मीडिया का अब यू कह सकते हैं कि इसकी शुरुआत अर्नब से हुई, पहले टीआरपी के खेल से और अब अर्नब की गिरफ्तारी से.. मीडिया के इस खेल में भी कुछ बहुत बड़े नाम शामिल है अब अगर मोदी जी सीधा उन पर हाथ डालते हैं तो बहुत फजीता वाला काम हो जाएगा, अब उससे बचने के लिए यू कह सकते हैं कि अर्नब जैसे एक राष्ट्रवादी छवि के व्यक्ति को चुना गया, जो आर्मी की बैकग्राउंड से है या फिर जिसको कहने को आज मोदी का समर्थक माना जाता है और वही अगर आज कानून की गिरफ्त में है तो सभी लोग इस की आस लगाए बैठे हैं कि मोदी जी कुछ क्यों नहीं करते.. अमित शाह कुछ क्यों नहीं करते.. भाजपा धरातल पर क्या कर रही है.. तो इसका सीधा सा जवाब है कि अर्नब बिल्कुल सुरक्षित है, उसके साथ कुछ बुरा नहीं हो रहा उसको एक खेल के तहत समझ लो कि उसको पकड़वाया गया है ताकि कल को जब असली भेड़ियों को मीडिया के पकड़ा जाए तो उस उनके समर्थन में जो हमारे लिब्रेंडू और पत्रकारिता के नाम पर कलंक लोग हैं उनकी बोलती बंद हो जाए और वह यह ना कह पाए कि मोदी जी ने बदले की भावना से कुछ किया है क्योंकि बात तो फिर यह यह बन जाएगी ना कि मोदी जी या भाजपा ने अपने राष्ट्रवादी पत्रकार के लिए कुछ नहीं किया तो उनके लिए क्या करेंगे.. इससे उस विपक्ष का, उन पत्रकारिता के दलालों का मुंह बंद हो जाएगा और फिर मीडिया का सफाई अभियान अच्छे से चल पाएगा.. आज मीडिया में कुछ ऐसे रसूखदार लोग बैठे हैं जो यह समझते हैं कि कानून देश प्रशासन और सरकार उनके हाथ में है.. वह सब भी बेनकाब होंगे बॉलीवुड के कुछ बड़े नाम जल्दी सामने आने वाले हैं और उसके बाद क्रिकेट के अंदर हड़कंप मच आएगा और फिर मीडिया अपना मुंह छुपाता घूमेगा.. आज देश को वाकई इस बहुत बड़े सफाई अभियान की जरूरत है.. यह वह दीमक है जो हमारे देश को अंदर ही अंदर खोखला कर रही है.. इसके लिए हमें कीटनाशक जड़ों तक डालना पड़ेगा तभी जाकर हम आने वाली अपनी पीढ़ियों को एक स्वच्छ सुंदर और सुरक्षित भारत दे पाएंगे.. इस सब के लिए हमें CAA NRC, धारा 370 इन सब का समर्थन करना होगा तभी हम देश को एक बड़े बदलाव की ओर लेकर जा सकते हैं.. भरोसा तो रखो... सब अच्छा ही होगा.. एक बदलाव की बयार है...बहने तो दो...

03 अक्तूबर, 2020

हाथरस की बलात्कारी राजनीती

 देश मे हर साल औसतन 32000 बलात्कार होते हैं किंतु विडंबना ये है कि केवल इक्का दुक्का ही उनमें से 'निर्भया" बन पाती है, बाकी केवल कागज़ों में दफन होकर रह जाती हैं.. बलात्कारी की घृणित मानसिकता जाति, धर्म, या उम्र नही देखती किन्तु उंस विक्षिप्त तार तार हो चुके शरीर मे कुछ राजनीतिक गिद्ध एवं भेड़िए अपने लिए जाति, धर्म एवं उम्र सबका आंकलन करके उसका सामाजिक, राजनीतिक एवं मानसिक बलात्कार करते हैं, रोज़ करते हैं... 'मेरा दलित तेरे दलित से भी घनघोर दलित है"... ये क्या है ? बलात्कारी हिन्दू है या मुसलमान ? क्यों ? बालिग है या नाबालिग ? कैसे ? क्या है ये सब, अरे बलात्कारी एक विकृत मानसिकता का अपराधी है, बस.. किन्तु हाथरस की घटना दोबारा सोचने पर मजबूर करती है, यहां मानसिकता उस लड़की के परिवार वालो की सोचनीय है, यहां मानसिक बलात्कार हुआ, मीडिया एवं राजनीतिक पार्टी ने सियासी बलात्कार किया, दुर्भावना है, द्वेष है, रंजिश है, वो सब दरकिनार करके परिवार भी उसी का शिकार हो रहा है, बच्ची जान से गयी तो चलो अब गयी तो गयी किन्तु उसके नाम पर दुकानदारी शुरू हो गयी, बोलियां लग रही है, 25 लाख, 50 लाख, पर मीडिया की टीआरपी करोड़ो की है और राजनीतिक नफा नुकसान अरबों का... कुछ दिन ये मंडी लगेगी, फिर सच सामने आएगा.. ये सियासी "प्रोडक्ट" किसके लिए फायदेमंद होगा... "पिपली लाइव" है.. देखते जाओ...


14 सितंबर, 2020

हिंदी दिवस

 हिंदी दुनिया की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली एवं सबसे उन्नत भाषा है। हमारे देश की संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी। सरकारी काम काज हिंदी भाषा में ही होगा । इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन् 1953 से संपूर्ण भारत में 14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है। अंग्रेजी भाषा के मूल शब्द लगभग 10,000 हैं, जबकि हिन्दी के मूल शब्दों की संख्या 2,50,000 से भी अधिक हैं। संसार की उन्नत भाषाओं में हिंदी सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है। हिंदी दुनिया की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। हिंदी दुनिया की सर्वाधिक तीव्रता से प्रसारित हो रही भाषाओं में से एक है। वह सच्चे अर्थों में विश्व भाषा बनने की पूर्ण अधिकारी है। हिंदी का शब्दकोष बहुत विशाल है और एक-एक भाव को व्यक्त करने के लिए सैकड़ों शब्द हैं जो अंग्रेजी भाषा में नहीं है। हिन्दी लिखने के लिये प्रयुक्त देवनागरी लिपि अत्यन्त वैज्ञानिक है। हिन्दी को संस्कृत शब्दसंपदा एवं नवीन शब्द-रचना-सामर्थ्य विरासत में मिली है। लेकिन अभी तक हम इसे संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा नहीं बना पाएं। आज मैकाले की वजह से ही हमने अपने आप को मानसिक गुलामी बना लिया है कि अंग्रेजी के बिना हमारा काम चल नहीं सकता। छोड़िए ना, अंग्रेज़ी हमारी कामवाली है, उसे रहने दो, हिंदी तो हमारी घर की है हमें हिंदी भाषा का महत्व समझकर उसका सर्वाधिक उपयोग करना चाहिए। जिस प्रकार बूँद-बूँद से घड़ा भरता है, उसी प्रकार समाज में कोई भी बड़ा परिवर्तन लाना हो तो किसी-न-किसीको तो पहला कदम उठाना ही पड़ता है और फिर धीरे-धीरे एक कारवा बन जाता है व उसके पीछे-पीछे पूरा समाज चल पड़ता है। हमें भी अपनी राष्ट्रभाषा को उसका खोया हुआ सम्मान और गौरव दिलाने के लिए व्यक्तिगत स्तर से पहल चालू करनी चाहिए। एक-एक मति के मेल से ही बहुमति और फिर सर्वजनमति बनती है। हमें अपने दैनिक जीवन में से अंग्रेजी को तिलांजलि देकर विशुद्ध रूप से मातृभाषा अथवा हिन्दी का प्रयोग करना चाहिए। राष्ट्रीय अभियानों, राष्ट्रीय नीतियों व अंतर्राष्ट्रीय आदान-प्रदान हेतु अंग्रेजी नहीं राष्ट्रभाषा हिन्दी ही साधन बननी चाहिए। आज सारे संसार की आशादृष्टि भारत पर टिकी है । हिन्दी की संस्कृति केवल देशीय नहीं सार्वलौकिक है क्योंकि अनेक राष्ट्र ऐसे हैं जिनकी भाषा हिन्दी के उतनी करीब है जितनी भारत के अनेक राज्यों की भी नहीं है। इसलिए हिन्दी की संस्कृति को विश्व को अपना अंशदान करना है। राष्ट्रभाषा राष्ट्र का गौरव है। इसे अपनाना और इसकी अभिवृद्धि करना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है। यह राष्ट्र की एकता और अखंडता की नींव है। आओ, इसे सुदृढ़ बनाकर राष्ट्ररूपी भवन की सुरक्षा करें। आजादी मिले 70 वर्ष से भी अधिक समय हो गया, बाहरी गुलामी की जंजीर तो छूटी लेकिन भीतरी गुलामी, दिमागी गुलामी अभी तक नहीं गया.. आइये हिंदी को अपनाएं, अनेक स्थानीय बोलियों की जननी को उसका सम्मान दें.. हिंदी दिवस की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं...

31 जुलाई, 2020

अच्छा व्यक्ति (You are very nice)

आज बैठे बैठे सोच ही रहा था कि आखिर अच्छा व्यक्ति कैसा होता है और अच्छा व्यक्ति बने रहने के क्या खतरे हैं, तभी आदरणीय बब्बर जी का इसी संदर्भ में एक लेख पढ़ा तो सोचा ऐसा अनुभव तो अपने को भी बहुत है, किन्तु ऐसे अनुभव से सीख अंततः क्या मिलती है वो मेरे लिए ढाक के तीन पात के समान ही है , चलो खैर, हम अक्सर सुनते हैं कि आप बहुत अच्छे व्यक्ति हैं या you are very nice..  अक्सर ही किसी से भी यह सुनकर मुझे बहुत ख़ुशी होती थी, मुझे लगता था कि यह किसी भी व्यक्ति से मिलने वाली सबसे बढ़िया प्रशंसोक्ति है.. फिर मुझे अपने और अन्य “अच्छे व्यक्तियों” के जीवन को ध्यान से देखने पर यह अनुभव होने लगा कि इस लेबल का लग जाना अमूमन ही कोई बहुत प्रतिष्ठा या महत्व की बात नहीं है.. अब तक कुछ अनदेखे रह गए पैटर्न मेरे सामने उभरकर आने लगे और मैं यह समझने लगा कि दूसरों की नज़रों में “अच्छा” बने रहना किसी आदमी के लिए कितना तकलीफदेह हो सकता है.. और फिर मैंने ये कोशिश की कि मेरे ऊपर चढ़ चुका अच्छाई का मुखौटा कुछ उतरे और मैं भी दूसरों की तरह बेफिक्री से सांस ले सकूं.. सच बताऊं तो अपने साथ मैंने कभी कोई बेहतरीन चीज़ की है तो वह यही है.. कम्युनिकेशन कोच के तौर पर मैंने दूसरों को भी यह सिखाना शुरू कर दिया कि बहुत अच्छे बने बिना कैसे जियें.. जब कभी हम किसी व्यक्ति को किसी और व्यक्ति से यह कहते हुए सुनते हैं कि आप बहुत अच्छे आदमी हैं या वह बड़ी सज्जन महिला हैं तो हम समझ जाते हैं कि जिस व्यक्ति के बारे में बात की जा रही है वह दूसरों की दृष्टि में भला और अच्छा बने रहने के लिए हर तरह की दिक्कतें झेलता है और दूसरे उसका जमकर फायदा उठाते हैं.. अच्छा आदमी बनने का क्या अर्थ है ? मुझे लगता है कि जब कभी कोई आपको “अच्छा आदमी”, “नाइस गर्ल”, या “सज्जन पुरुष” कहता है तो इसके दो मतलब होते हैं.. कभी-कभी यह होता है कि सामनेवाले व्यक्ति के पास आपको कहने के लिए कोई उपयुक्त और सटीक पौज़िटिव शब्द नहीं होता। वे आपसे यह कहना चाहते हैं कि आप रोचक, या मजाकिया, या दयालु, या प्रभावशाली वक्ता हैं, पर ऐसे बेहतर शब्द नहीं सोच पाने के कारण वे कामचलाऊ अभिव्यक्ति के तौर पर आपको अच्छा, बढ़िया, या ओके कहकर काम चला लेते हैं.. यदि ऐसी ही बात है तो आप इसमें कुछ ख़ास नहीं कर सकते और आपको परेशान होने की ज़रुरत भी नहीं है। आपके बारे में कुछ पौज़िटिव कहने के लिए अच्छा या नाइस बहुत ही साधारण विकल्प हैं.. इन्हें सुनकर यदि आप बहुत अधिक खुश नहीं होते तो इसमें कोई बुरा मानने वाली बात भी नहीं है.. अब मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि अच्छा या नाइस का लेबल ऐसी चीज़ को दिखता है जो बाहरी तौर पर तो आपके बारे में पौज़िटिव बात कहती है पर सही मायनों में यह आपके खिलाफ जाती है.. दूसरों की बात बड़ी आसानी से मान जानेवाले और दूसरों के लिए खुद को तकलीफ में डालने के लिए हमेशा तैयार बैठे हुए आदमी को सभी भला मानस और नाइस कहते हैं.. तो ये शब्द सुनने में भले ही अच्छे लगें पर ये आपको मनोवृत्तियों और स्वभाव को दर्शाते हैं जिनसे आपको आगे जाकर बहुत नुक्सान भी उठाना पड़ सकता है.. अब बताता हूँ कि अच्छा आदमी बने रहने के खतरे क्या हैं.. हम लोगों में से अधिकतर यह मानते हैं कि हमें भले बने रहना चाहिए, दूसरों की सहायता के लिए तत्पर होना चाहिए भले ही इसके कारण कभी कुछ कष्ट भी उठाना पड़ जाए.. इससे समाज में हमारी छवि भी बेहतर बनी रहती है.. लेकिन यदि आप दूसरों की नज़र में हमेशा ही हद से ज्यादा भले बने हुए हैं तो यह इस बात का संकेत है कि आपने स्वयं की इच्छाओं का सम्मान करना नहीं सीखा है.. मैं दूसरों के प्रति उदारता बरतने और किसी की सहायता करने का विरोधी नहीं हूँ.. लेकिन मैं यह भी मानता हूँ कि कुछ लोग इस नीति के पालन के चक्कर में अपनी सुख-शांति को हाशिये पर रख देते हैं, मैं भी करता था.. वे यह मानते हैं कि उनके इस व्यवहार से दूसरे उनसे हमेशा खुश रहेंगे और ऐसा करने से उनकी समस्याएँ भी सुलझ जायेंगीं.. दुर्भाग्यवश, इस बात में बहुत कम सच्चाई है.. मनोविज्ञान के क्षेत्र में इस विषय पर हाल में ही बहुत शोध हुआ है और इसे nice guy syndrome के नाम से जाना जाता है..भलामानस बने रहने के नुकसान धीरे-धीरे सामने आने लगे हैं। इनमें से कुछ ये हैं, जैसे कि दूसरों को खुश रखने के लिए खुद को हलकान कर लेना, या स्वयं को नज़रंदाज़ करना, क्योंकि यह स्पष्ट है कि यदि आप हमेशा दूसरों का ही ध्यान रखते रहेंगे तो आपको अपनी देखरेख और आराम के लिए समय नहीं मिलेगा। यही कारण है कि ज्यादातर भलेमानस थकेमांदे, तनावग्रस्त, और बुझे-बुझे से रहते हैं। उनमें से कई अवसाद के शिकार हो जाते हैं.. इसी तरह दूसरों द्वारा आपका अनुचित लाभ उठाना, एक बहुत खतरनाक झूठ है जिसमें हम लोगों में से ज्यादातर यकीन करते हैं और वह यह है कि यदि हम दूसरों के लिए अच्छे बने रहेंगे तो वे भी हमसे अच्छा बर्ताव करेंगे। व्यवहार में ऐसा कभी-कभार ही होता है.. अधिकांश मौकों पर आपकी अच्छाई के कारण आपका गलत फायदा उठाया जाता है.. लोग आपसे बिना पूछे या जबरदस्तीआपकी चीज़ें मांग लेते हैं आप संकोचवश ना नहीं कहते, यहाँ तक कि आपसे अपनी ही चीज़ें दोबारा मांगते नहीं बनता क्योंकि आप किसी को नाराज़ नहीं करना चाहते और फिर हम इसी छवि में सिमटकर रह जाते हैं.. किन्तु अच्छी बात यह है कि ‘सज्जन पुरुष’ की छवि से बाहर निकला जा सकता है.. इसका सबसे अच्छा तरीका यह है कि आप अपनी बेहद विनीत और मुलायम छवि में परिवर्तन लायें.. ऐसा करने के ये तीन तरीके हैं.. जैसे.. अपनी ज़रूरतों को पहचानें, उसके लिए यह ज़रूरी है कि आपको उनका पता चले.. दूसरों के प्रति हमेशा अच्छे बने रहने वाले व्यक्तियों की यह मानसिकता होती है कि हमेशा औरों के मनमुताबिक चलकर सबकी नज़रों में भले बने रहते हैं पर यह सच है कि उनकी भी बहुत सी भावनात्मक और दुनियावी ज़रूरतें होतीं हैं। उनके लिए यह बहुत ज़रूरी है कि वे अपनी ज़रूरतों की कद्र करें और खुद से बेहतर सम्बद्ध होकर जियें.. अपना आत्मविश्वास को जगाएं.. मेरे अनुभव में यह देखने में आया है कि बहुत ‘भलेमानुषों’ में आत्मसम्मान और आत्मविश्वास की कमी होती है.. उन्हें अपने बंधनकारी विचारों को तोड़कर संकोच और चिंताओं से उबरना चाहिए.. यदि आपके साथ ऐसा हो रहा हो अपने भीतर घट रहे परिवर्तनों का ध्यानपूर्वक अवलोकन करें और आत्मविश्वास जगाएं.. फिर अपने काम को प्राथमिकता दें, अपने काम में व्यस्त रहे,  आपको जो कुछ भी करना अच्छा लगता हो उसे करने में भरपूर समय लगायें और दूसरों के लिए समय नहीं होने पर उन्हें खुलकर मना कर दें.. ऐसे में यदि आपके और दूसरों के बीच संबंधों में खटास भी आती हो तो इसमें कोई हर्ज़ नहीं है क्योंकि आप दूसरों को हद से ज्यादा अपना फायदा नहीं उठाने दे सकते.. शुरू में यह सब करना आसान नहीं होगा लेकिन आपके बेहतर निजी जीवन के लिए यह सब करना ज़रूरी है.. हर समय लोगों को खुश रखने के बजाय जब आप ज्यादा निश्चयात्मक (assertive) रुख अख्तियार कर लेते हैं तो आपके आसपास मौजूद लोग आपके समय और काम की कद्र करना सीख जाते हैं और आपसे अपना काम निकलवाने के लिए सोचसमझकर ही प्रयास करते हैं.. अब हो सकता कि लोग आपको परोपकारी या देवता स्वरूप संबोधनों से नवाज़ना कम कर दें.. लोग आपको रूखा या स्वार्थी भी कह सकते हैं, पर यह तय है कि इन सभी लेबलों से अलगआपके औरों से संबंध अधिक परिपक्व व प्रोफेशनल होंगे और आपके जीवन में सुधार होगा.. वैसे मैं भी कोशिशें कर रहा हूँ, आप भी करके देखो, अब खुद को बेहतरीन बनाते हैं...

22 जुलाई, 2020

String of Flowers भारत की कूटनीति

कुछ लोगों को भारत चीन के रिश्ते को लेकर मतिभ्रम है तो उन्हें कुछ तथ्यात्मक बात बताना एवं समझाना चाहता हूँ, अब ये फिजिक्स है या जियोग्राफी ये आप स्वयं निर्णय करना.. कुछ लोग विशेषकर एक लुप्तप्राय प्रजाति के चमचे मोदी की काबिलियत को कमतर आंकते हैं, तो सुनो ये नरेन्द्र मोदी है, जिसके दिमाग को विश्व के चुनिन्दा, चतुर नेता भी नहीं समझ पा रहे हैं और देश में बैठी तथाकथित वामपंथियों और उनके साथियों की फ़ौज गरियाती डोल रही है.. ये ऐसी जगह ले जाकर छोड़ेगा, जहाँ से वापसी भी संभव नहीं होगी... अब सुनो, मोदी ने हिंद महासागर में बसाए हैं, भारत के दो '''सीक्रेट आइलैंड'''.. इस खबर के बारे में हमारे देश में, ज्यादातर लोगों को पता नहीं है, दरअसल यह भारत का एक सीक्रेट मिशन है, जिसने चीन और पाकिस्तान जैसे दुश्मन देशों की नींद उड़ा रखी है.. भारत की समुद्री सीमा से दूर हिंद महासागर में 2 फौजी अड्डे स्थापित किए जा चुके हैं, मतलब यह कि भारतीय सेना ने दो द्वीपों पर अपना मिलिट्री बेस बनाया है, दुनिया के नक्शे में, इन दोनों द्वीपों की लोकेशन इतनी ज़बर्दस्त है कि चीन और पाकिस्तान दोनों परेशान हैं.. इनके नाम हैं '''अगालेगा''' और '''अजंप्शन आइलैंड'''.. इन द्वीपों पर भारतीय सेना आधुनिक हथियारों और साज़ो-सामान के साथ मौजूद है, बेहद खुफ़िया तरीके से, यहां भारतीय सेना खुद को मजबूत बनाने में जुटी है.. अगालेगा आइलैंड पर तो भारत ने बाकायदा एयरपोर्ट भी बना लिया है, जबकि अज़ंप्शन आइलैंड पर आने जाने के लिए हवाई पट्टी बनाई गई है, इन दोनों आइलैंड्स को भारत को सौंपे जाने पर चीन और यहां तक कि भारत के वामपंथी पत्रकारों ने बहुत अड़ंगेबाजी की थी.. इस सैनिक समझौते के खिलाफ़ कई झूठी खबरें उड़वाई गईं, आज इन दोनों द्वीपों पर क्या चल रहा है, इसका बाकी दुनिया सिर्फ अंदाजा ही लगा सकती है, क्योंकि यहां भारतीय सेना के अलावा और किसी को जाने की परमिशन नहीं है.. नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद संभालने के फौरन बाद, जिन देशों की यात्रा की थी, उनमें मॉरीशस और सेशेल्स भी थे.. सरकार ने औपचारिक तौर पर बताया कि ये दौरा दोनों देशों के आपसी रिश्ते सुधारने और काले धन पर बातचीत के लिए है, लेकिन असली मकसद कुछ और ही था.. इस यात्रा में मोदी ने सेशल्स और मॉरीशस को इस बात के लिए मना लिया गया कि वो अपने 1-1 द्वीप भारत को लीज़ पर देंगे, इसी दौरे में शुरुआती समझौते पर, दस्तखत भी कर लिए गए.. अगालेगा आइलैंड, मॉरीशस में पड़ता है, जबकि अजंप्शन द्वीप सेशेल्स देश का हिस्सा है, हिंद महासागर में ये वो लोकेशन थी, जिसके महत्व की चीन को भी कल्पना नहीं थी, डील पर दस्तखत होने के कुछ दिन बाद जब मामला मीडिया में आया, तो भारत में चीन के लिए प्रोपेगेंडा करने वाले पत्रकार और खुद चीन सरकार बुरी तरह बौखला गए.. यही वो समय था, जब मीडिया ने पीएम मोदी की विदेश यात्राओं की खिल्ली उड़ानी शुरू कर दी थी, क्योंकि उन्हें लग गया था कि पीएम मोदी इन यात्राओं के जरिए कुछ ऐसा कर रहे हैं, जिसे वो नहीं चाहते कि मीडिया को पता चले.. इन दोनों द्वीपों के लिए की गई संधियों को रद्द कराने के लिए, वहां के विपक्षी दलों के ज़रिए भी दबाव बनाए गए, इन्हीं का नतीजा था कि अज़ंप्शन आइलैंड के लिए आखिरी समझौते पर दस्तख़त जनवरी 2018 में हो सका.. अगालेगा आइलैंड मॉरीशस के मुख्य द्वीप से 1100 किलोमीटर दूर उत्तर में यानि भारत की तरफ़ है, ये सिर्फ 70 वर्ग किलोमीटर दायरे में है, इसी तरह सेशल्स का अज़ंप्शन आइलैंड, वहां के 115 द्वीपों में से एक है, ये सिर्फ़ 11 वर्ग कि.मी. की जमीन है, जो कि मेडागास्कर के उत्तर में हिंद महासागर में है.. अब ये भी समझो कि भारत अरब देशों से कच्चा तेल खरीदता है, ये तेल हिंद महासागर के रास्ते ही आता है, कच्चा तेल जिस रूट से आता है, वो उन जगहों से काफ़ी क़रीब है, जहां पर चीन बीते कुछ साल में अपना दबदबा बना चुका है, वो इन जगहों पर बैठे-बैठे जब चाहे भारत की तेल की सप्लाई लाइन काट सकता है.. ऐसे में भारत को समंदर में एक ऐसी लोकेशन की जरूरत थी, जहां से वो न सिर्फ़ अपने जहाजों को सुरक्षा दे सके, बल्कि ज़रूरत पड़ने पर, चीन की सप्लाई लाइन पर भी वार कर सके, ये वो रणनीति थी, जिसकी कल्पना चीन भी नहीं कर सका था.. उसे भरोसा था कि भारत की सरकारें, हिंद महासागर पर कब्जे की चीन की रणनीति को कभी समझ नहीं पाएंगी, चीन के रणनीतिकार अपने इस प्लान को '''स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स''' (मोतियों की माला) कहते हैं.. ये वो रणनीति है, जिससे उसने एक तरफ़ भारत को घेर लिया था, साथ ही अमेरिका के लिए भी मुश्किल हालात पैदा कर दिए थे.. पीएम मोदी ने इस ख़तरे को भांपते हुए, चीन के जवाब में '''स्ट्रिंग ऑफ फ्लावर्स''' (फूलों की माला) नाम से रणनीति बनाई, इसी के तहत सबसे पहले अज़म्प्शन और अगलेगा आइलैंड को लीज़ पर लिया गया.. ये दोनों द्वीप, आज चीन की आंखों में किरकिरी बने हुए हैं, क्योंकि वहां से भारत ने पूरे हिंद महासागर पर घेरा बना लिया है, फ़िलहाल इन द्वीपों पर बुनियादी ढांचा विकसित करने का काम तेजी से चल रहा है, दोनों द्वीपों पर कुछ लोग रहते भी थे, जिन्हें भारतीय सेना ने ही दूसरी जगहों पर घर बनाकर बसा दिया है, अब इन दोनों द्वीपों पर भारतीयों के अलावा अन्य किसी को जाने की इजाज़त नहीं है.. पिछले दिनों अमेरिका ने भारत को 22 गार्जियन ड्रोन देने पर, रज़ामंदी जताई है, इन ड्रोन से इस पूरे इलाके के समुद्र पर निगरानी रखी जाएगी, अमेरिका भी चाहता है कि हिंद महासागर के इस इलाके में चीन को बहुत ताकतवर न होने दिया जाए, लिहाज़ा वो भारत के साथ सहयोग कर रहा है.. दरअसल भारत से दूर दुनिया भर में मिलिट्री बेस बनाने का आइडिया पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का था, उनकी सरकार के वक्त इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू भी किया गया था। लेकिन इसी दौरान 2004 में वो चुनाव हार गए, इसके बाद आई मनमोहन सरकार ने इस पूरे प्रोजेक्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया.. 10 साल तक इस पर एक क़दम भी काम आगे नहीं बढ़ा, 2014 में जब नरेंद्र मोदी की सरकार बनी, तो उन्होंने सबसे पहले जो फाइलें क्लियर कीं, उनमें से एक इसके बारे में भी थी, वाजपेयी की सोच थी कि दुनिया में ताकतवर मुल्क बनना है, तो कुछ ऐसा करना होगा, जिससे कोई दुश्मन आंख उठाकर देखने की भी हिम्मत न करे.. अमेरिका, रूस, ब्रिटेन जैसे देशों ने पूरी दुनिया में ऐसे द्वीपों पर मिलिट्री बेस बना रखे हैं, वाजपेयी के वक्त ही ताज़िकिस्तान के फारखोर में भारत ने अपना पहला एयरफोर्स बेस स्थापित किया था, लेकिन हिंद महासागर पर दबदबे का उनका सपना अधूरा ही रह गया था, जिसे अब मोदी जी ने पूरा किया है.. अगालेगा और अज़ंप्शन आइलैंड पर फ़िलहाल सिर्फ भारतीय सेना को जाने की छूट है, ये दोनों द्वीप बेहद खूबसूरत हैं, चारों तरफ नीले समुद्र से घिरे इन द्वीपों पर अब तक बहुत कम आबादी रही है। सेना की कोशिश है कि यहां की कुदरती खूबसूरती को बनाए रखते हुए, यहां के बुनियादी ढांचे का विकास किया जाए... अबभी कुछ समझ नही आया हो तो थोड़ा दिमाग लगाओ और गूगल करो, किंचित उसका कहा समझ आ जाये और हाँ व्हाट्सएप्प से या यहाँ वहाँ से कुछ कॉपी पेस्ट मत उठा लाना, राष्ट्रहित में लिए फैसलों के सम्मान करना सीखो, राष्ट्र को सम्मान दो.. दुश्मन पड़ोसी या अपने यहां के किसी अनारकिस्ट की गुलामी से कुछ नही मिलेगा...
जय भारत...

02 जुलाई, 2020

चीन पाकिस्तान और बुद्धिजीवी

देश आज अपने पड़ोसियों के कुकर्मो से त्रस्त है, एक तरफ आतंकवाद और एक तरफ ज़मीनी विवाद, सैकड़ों निर्दोष इसका शिकार हुए हैं, हमारी सेना ने सालों तक अपने हाथ बांध कर इसका सामना किया, आरोप झेले, शहादत दी पर उफ्फ तक नही की.. बड़े हमले हुए, आतंकी हमारे घरों तक घुस आए, लेकिन हमने सिर्फ अपने बचने की दुआ मांगी और सैनिकों की शहादत पर मोमबत्तियां जलायीं, पल भर की देशभक्ति जागी, वन्दे मातरम.. भारत माता की जय.. जय हिंद के नारे लगाए,चीनी समान का बहिष्कार किया, धरना प्रदर्शन किया फिर चाय समोसा खाये, हाथ झाड़े और अपने सुरक्षित घरों में वापस आ गए, पल भर के लिए हिन्दू, मुसलमान, जाट गुर्जर, सवर्ण दलित, उत्तर भारत दक्षिण भारत सब एक हो गया.. अच्छा लगा.. और फिर आया सबूत का कीड़ा, जो सब किये कराए पर पानी फेर देता है, जो काटता है, ज़हर उगलता है, पीड़ा देता है और फिर ज़ख्म का नासूर बना देता है.. ये राजनीति भी बड़ी कुत्ती चीज़ है, किसी की सगी नही होती, निहित स्वार्थ राष्ट्रहित से भी ऊपर और अवसरवादिता शहादत के सीने पर पैर रख कर सफलता की सीढ़ी बनती है, हमारे स्वाभिमान और अस्मिता को कुचलने वाले दुश्मन से भी गलबहियां की जाती है, अपनी ही सरकार, सेना और सुरक्षा प्रणाली से सवाल किया जाता है, उनकी गरिमा को चोट पहुंचाई जाती है, उनके सामर्थ्य पर प्रश्नचिन्ह लगाया जाता है.. और देश की जनता किंकर्तव्यविमूढ़ सी असमंजस की स्थिति में ठगी सी रह जाती है, एक विशेष नस्ल और भी है, अभी कुछ समय पहले जब देश के सैनिकों पर हमला किया जा रहा था.. तब ओ गॉड...ये क्या हो रहा था... नागरिकों का गुस्सा सातवें आसमान पर, सभी जगह सिर्फ बदला,पड़ोसी देश को सबक सिखाने और आतंकियों को जड़ से ख़त्म होने की चर्चा, पान और नाइ की दुकानों पर रक्षा नीति विशेषज्ञ अचानक उग आए थे, फेसबुक,ट्विटर और वाट्सएप अचानक युद्ध की मांग से गूंज उठा, ललकार, हूंकार,तलवार सब एक साथ खिंच गए नीली घाटी के मैदान में की अब पड़ोसी देश को सबक सिखाना होगा.. बहुत हुई शांति वार्ता, अब सिर्फ जंग ही उपाय है.. सेना...मोर्चा सम्भालो. टूट पड़ो दुश्मन पर, कर दो खात्मा एक एक का, हमें तुम पर गर्व है। मैंने कहा- "तुम लोग तो एक सैनिक के दुश्मन द्वारा पकड़े जाने या किसी सैनिक की शहादत पर भी इतने दुखी हो जाते हो, उनके परिवार की चिंता में तुमसे रोटी नहीं खाई जाती, उनके बच्चों के रोते चेहरे देखकर तुम्हें रातों को नींद नहीं आती युद्ध में तो हज़ारों सैनिक कुर्बान होंगे, तुम कैसे चैन से रह पाओगे?" "भगाओ साले को, देशद्रोही है कमीना, हमें जंग चाहिए, हम कुछ नहीं जानते।" क्योंकि वे सचमुच नहीं जानते कि यह वाक्य वे सत्य बोल रहे हैं, वे न सेना के बारे में कुछ जानते ,न आतंकवाद के बारे में और न रक्षा या विदेश नीति के बारे में, लेकिन ये हर विषय मे PhD हैं क्योंकि सोशल मीडिया विश्विद्यालय के पास-आउट हैं... युद्ध...युद्ध...युद्ध, बस युद्ध... आखिर जनता की चुनी हुई सरकार थी, जनता की आज्ञा शिरोधार्य, लेकिन अगर सरकार ने निर्णय लिया कि युद्ध किया जाएगा, औऱ साथ में आदेश निकाला कि- "सेना में सैनिकों की संख्या अपर्याप्त है और युद्ध में जीत हासिल हो इसके लिए अनिवार्य रूप से प्रत्येक घर से एक वयस्क व्यक्ति को सेना में सिर्फ युद्ध के लिए आना होगा, युद्ध के बाद उन्हें वापस घर भेज दिया जाएगा, अगर जीवित लौटे तो सबको मेडल मिलेंगे और मर गए तो शहीद का दर्जा, राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार भी होगा, सबको यह छूट होगी कि दुश्मनों के जितने सर काटकर लाना हो,ला सकते हैं। " आँयं... ये क्या ? लोगों ने आंखें मल-मल कर दोबारा आदेश को पढा, लेकिन दस बार आंखें रगड़ने पर भी इबारत नहीं बदली, अब हर घर से एक वयस्क सेना में अनिवार्य रूप से भर्ती होगा, एक साल के कठोर प्रशिक्षण के बाद युद्ध पर जाएगा, बस एक छोटी सी शर्त थी जो लोगों को घोर अंधेरे में आशा की किरण बनकर राह दिखा रही थी- सेना में उन्हीं लोगों को लिया जाएगा जो मेडिकली फिट होंगे, इसके लिए सरकारी डॉक्टर से फिटनेस सर्टिफिकेट लेना होगा । बस फिर तो अगले दिन से ही वीर जवानों का देश अचानक से लूलों, लंगड़ों, अपाहिजों, अंधों, रोगियों का देश बन गया, 18 साल के जिम जाते लड़के अचानक अस्थमा, दिल के रोग,हड्डी रोग,डायबिटीज,मिर्गी के पेशेंट बन गए, सरकारी डॉक्टरों के दिन एक दिन में फिर गए, हर एक को सी ए की आवश्यकता पड़ने लग गयी, प्राइवेट डॉक्टरों ने याचिका दायर की कि उन्हें इस नेक कार्य से वंचित न रखा जाए शांति का टापू कहलाने वाले परिवारों में भाई-भाई के झगड़े हो गए, "तू जा भाई सेना में ,अभी तेरी शादी नहीं हुई। मेरे बच्चे पढ़ रहे हैं।  "जा बे भाईसाब, तेरी @##$$$ ...शादी नहीं हुई तो मर जाऊं क्या ?'तू जाएगा, नहीं ,तू जाएगा खून खच्चर मच गया, लठ्मलट्ठी , चिल्लमचिल्ली हो गई , घमासान हो गया, फेसबुक हाथ मे पिस्तौल तमंचे और असलाह लिए वीरों से भरा पड़ा था और अभी अभी 18 पूरे कर समस्त एडल्टोचित कार्य करने का लाइसेंस पाए नौजवान कलेक्ट्रेट के चक्कर काटने लगे कि कैसे भी ले-देकर दूसरा बर्थ सर्टिफिकेट बन जाये, अचानक सब गांधी भक्त हो गए, तभी एक संकट मोचक फेसबुक पोस्ट और ट्विटर पोस्ट आयी- " युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं, #SayNoToWar शांति से बैठकर हल निकाला जाए तो ही जड़ से समस्या दूर होगी। " दस हज़ार लाइक,बीस हज़ार कमेंट और शेयर की संख्या लाखों में, जिव्हा वीर फुस्स हो गए, सोशल मीडिया पर सनाका खिंच गया, इस वीरता परीक्षण के तीसरे दिन सरकार ने आदेश वापस ले लिया और आतंकवाद से निपटने पर मंथन करने लगी... दरअसल युद्ध को लेकर सरकार की अपनी योजनायें है, सेना की अपनी, विपक्ष की अपनी, सोशल मीडिया के जांबाज़ वीरों की अपनी, और हमारी अपनी, क्योंकि हमें अपनी सरकार और सेना पर भरोसा है... देश नही झुकने दूंगा.. किन्तु जनता की भी अपनी मजबूरी है, भक्ति और चमचागिरी की भी अपनी एक मजबूरी है और वैसे भी जनता का क्या है उसे तो बस सब्ज़ी के साथ धनिया मुफ्त मिलना चाहिए..

22 जून, 2020

मीडिया का सरकस

विकट सी परिस्तिथि है, ज़िन्दगी क्षीण सी हो चली है, महामारी, दंगे, आगजनी, भूकंप, सीमा पर तनाव, आतंकवाद और आर्थिक मारामारी के बीच सोशल मीडिया की धमाचौकड़ी और ऊपर से न्यूज़ वालों का तड़का, कसम से लगता है कि बस आज ही विश्वयुद्ध होने वाला है, सेनाएं तैनात हो गयी हैं, मिसाइलें तन गयी हैं, लड़ाकू जहाज़ आकाश में गर्जन कर रहे हैं, और या फिर कोरोना मुझे ढूंढता हुआ मेरे घर के बाहर गाड़ी के पीछे छुपा हुआ है कि बाहर निकलते ही दबोच लेगा, मुझे ज़िन्दगी से हारना पड़ेगा क्योंकि सरकार निकम्मी है वो अलग बात है कि दिल्ली का मालिक रोज़ नए दावों के साथ छाती ठोकता है, इसी बीच तभी चैनलो पर ग्रहण की छाया मंडराने लगती है और सभी राशियों का बेड़ा गर्क हो जाता है, मन विचलित होता है तो योग करने की सोचता हूँ कि बची खुची कसर अचानक ब्रेक में पॉलिसी बाजार वाले श्री मान पूरी कर देते हैं जो डर के तारो को झनझना देते है ये कहकर की अब तो लेलो टर्म लाइफ इंश्योरेंस, तुम्हारे बाद बच्चो के स्कूल की फीस कौन भरेगा... और साथ बैठी बीवी लाचारी भारी नज़रों से मेरा मुँह ताकने लगती है... कसम से रूह कांप जाती है कि अभी तो सिर्फ जून का महीना है, आधा 2020 बाकी है, जाने क्या क्या देखना अभी नियति में लिखा है...

05 जून, 2020

विश्व पर्यावरण दिवस

एक एक सांस की कीमत क्या होती है ये उससे पूछो जो आज इस वैश्विक महामारी के चलते वेंटिलेटर पर कुछ दिन गुजार कर आया हो, लाखो रुपये खर्च करके चंद साँसों की लड़ाई लड़के हम सोचते हैं पैसे से जीवन खरीद लिया, कभी सोचा है सामान्य जीवन मे एक सामान्य इंसान लगभग 11000 लीटर ऑक्सीजन प्रतिदिन लेता है, "11000 लीटर प्रतिदिन", सोचा ? इसकी कीमत का अंदाज़ा लगाओ, एक सामान्य जीवन मे आप किंतनी ऑक्सीजन लेते हो, वो भी बिना पैसे, परंतु इस प्रकृति या ईश्वर के प्रति हम कितने कृतघ्न हैं, इंसानी फितरत है ना कि मुफ्त में मिली वस्तु का हम मूल्यांकन नही करते, फिर चाहे वो हवा हो या पानी, सोचो यदि ईश्वर ने या प्रकृति ने इसके लिए पैसा मांग लिया तो ? संभवतः हममें से कोई भी नही दे पाएगा, किन्तु प्रकृति तो माँ है तो इसके प्रति हमे भी समर्पण भाव रखना चाहिए, अपने आस पास हरियाली रखें, घर से ही शुरुआत करें, केवल एक पेड, पौधा या बीज, कुछ भी लगाएं, उसे पालें पोसें और प्रकृति को समर्पित करें.. पानी बचाएं, व्यर्थ ना बर्बाद करें, धरती पर 70% पानी है किंतु पीने योग्य पानी खत्म हो रहा है, सिंगल यूज़ प्लास्टिक का इस्तेमाल छोड़ें, ये हमें और हमारे समुद्रो को खा रही है, सोचो हमारी आज की लापरवाही हमारी आने वाली पीढ़ियों को क्या दे कर जाएगी, हमारी आज की दिन रात की मेहनत अपने बच्चो के उज्ज्वल भविष्य और हमारे सुरक्षित बुढ़ापे के लिए ही तो है, इतनी जद्दोजेहद के बाद भी यदि हम उन्हें साफ हवा और पीने योग्य पानी तक ना दे सकें तो क्या फायदा इस आपाधापी का ? विचार करें, सोचे, समझे, क्या ज़रूरी है, एक उन्नत भविष्य के साथ एक सुरक्षित और संगरक्षित भविष्य..आज विश्व पर्यावरण दिवस पर आइये प्रण करें एक हरे भरे फलते फूलते वातावरण को संगरक्षित करने का, मुश्किल नही है क्योंकि ये कितना आसान है ये हमने लॉकडाउन में अनुभव किया है, संभव भी है, फिर से खुली हवा में सांस लें, छत पर तारे गिने, बीमारियों को दूर भगाएं, औऱ बच्चो को एक सुरक्षित एवं संगरक्षित भविष्य दें, आओ एक पेड लगाएं...
#WorldEnvironmentDay
#विश्वपर्यावरणदिवस
#SaveTrees #PlantTrees #SaveWater #SayNoToPlastics

24 मई, 2020

चीन, सिक्किम और केजरीवाल

सिक्किम मुद्दे पर जो केजरीवाल ने किया है वो सिविल डिफेंस के किसी अधिकारी की गलती नही बल्कि इन दोनों चंगु मंगू की सोची समझी साजिश है, मैं हमेशा से कहता आया हूँ कि केजरीवाल केवल सत्ता ही नही चला रहा बल्कि उसके साथ साथ अपनी कम्युनिस्ट सोच का एजेंडा भी चला रहा है, ये इत्तेफाक नही हो सकता कि सिसोदिया स्वीडन जाए और एक खालिस्तानी आतंकवादी के यहां रुके, आशुतोष यूरोप जाए और खालिस्तानियों से फंडिंग के लिए मिले, केजरीवाल खुद पंजाब जाए और एक खालिस्तानी आतंकवादी के घर रुके, केवल यही नही डोकलकम में चीन से टकराव के समय आम आदमी पार्टी की आधिकारिक वेबसाइट पर दिखाए गए भारत के  नक्शे से कश्मीर, सिक्किम और कच्छ को गायब दिखाया था, तब भी वेब डिज़ाइनर की गलती थी, जब भारतीय सेना ने पाकिस्तान में घुस कर सर्जिकल स्ट्राइक की थी तो भी उसके शौर्य पर सवाल उठाए थे और पाकिस्तान में इस चपल चिंटू का डंका बजा था, किन्तु हर बार इनकी टाइमिंग परफेक्ट कैसे होती है, आज भी जब चीन लद्दाख और सिक्किम में भारतीय सेना के सामने डटी हुई है तभी इनको सिक्किम अलग देश लगा, दरअसल ये एक सोची समझी साजिश है, गर्मागर्मी के माहौल में ये विवाद उठाया, इसको मीडिया में और सोशल मीडिया में ट्रेंड किया, मुद्दा बनाया और फिर ठीकरा फोड़ दिया एक अधिकारी पर, केजरीवाल का कोई विज्ञापन इन दोनों चंगु मंगू की सहमति के बिना नही बनता, और पार्टी जिस ग्रह मंत्रालय के आदेश की आड़ लेने की कोशिश कर रही है उसका अमेंडमेंट भी 1975 में हो चुका है, ये देहद्रोही मानसिकता का व्यक्ति धीरे धीरे समाज और देश मे अर्बन जिहाद फैला रहा है जिससे समय रहते बचने की ज़रूरत है.. और हां सुन लो बे चमचों कश्मीर भी अक्साई चिन भी और सिक्किम भी हमारा अभिन्न अंग है औऱ किसी के बाप में दम नही है इनको अलग कर दे...

14 मई, 2020

आत्मनिर्भर भारत

कल से देख रहा हूँ कि कुछ नमूने जो मोदी जी के राष्ट्र के नाम संबोधन पर टीवी पर लार टपकाते बैठे थे उनको अब कुछ मरोड़ उठ रही है, पहली रात तो करवटों में इसलिए कट गई की समझ ही नही आया कि 20 लाख करोड़ में शून्य कितने होते हैं, यहां तक कि प्रोफेसर गौरव वल्लभ भी भावशून्य हो गए, फिर ये समझ नही आया कि भूरी काकी के राज में जब इतने घोटाले कर दिए थे तो इतना पैसा कहां से आया, विस्तार पूर्वक समझूंगा तो भी किंचित समझ नही आएगा, क्योंकि मोदी जी इनकी नज़र में कोई अर्थशास्त्री तो है नही, किन्तु मेरी नज़र में वो एक मंझे हुए राजनीतिक अर्थशास्त्री हैं, अब ये इस बात पर बहस कर रहे हैं कि "Make in India" और "आत्मनिर्भर भारत" मे क्या अंतर है, तो सुनो चमचागणो, मेक इन इंडिया विदेशों से बड़े उद्योगों एवं मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स को भारत मे सशर्त लाने की एक पहल थी, जिसमे 80% तक क्षेत्रीय रोजगार को बढ़ावा देने का प्रावधान है, जिसमे क्षेत्रीय निर्माण कंपनियों से खरीदी का प्रावधान है, जिससे MSME सेक्टर को बढ़ावा दिया जा सके, रोजगार पैदा किया जा सके और आर्थिक विकास हो, औऱ अब आत्मनिर्भर भारत की ज़िम्मेदारी हम नागरिकों पर इसीलिए है कि हम भी अपने देश मे बनने वाली स्वदेशी वस्तुओं को अपने रोजमर्रा के जीवन मे उपयोग होने वाली सामग्रियों को अपने क्षेत्रीय निर्माता से लें ताकि क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीट उद्योगों को नई ऊर्जा मिले, उन्हें बढ़ावा मिले, उनको आर्थिक संकट से उबार सके एवं देश की अर्थव्यवस्था में सुधार हो सके, यहां क्षेत्रीय उद्योग से मेरा तात्पर्य MSME सेक्टर से ही है जो हमारा सूक्ष्म, लघु, कुटीर एवं ग्रह उद्योग है, किन्तु नासमझ लोग इसे बड़ी गाड़ियों, मोबाइल फ़ोन, इम्पोर्टेड ब्रांड्स से जोड़ रहे हैं, वैसे इन सभी चीज़ों की एहमियत शायद आप सभी को इस लॉकडाउन के दैरान समझ आ गयी होगी, रोलेक्स पहनने से भी आपका टाइम बदला नही, मेरसीडीज़ या ऑडी आपकी खड़ी ही रह गयी, महंगे ब्रांडेड कपड़े जूते वार्डरोब में ही पड़े रहे, किन्तु जीवित रहने के लिए ज़रूरी चीज़े सीमित ही थी, वो सभी हमे हमारे आसपास ही मिली, इसे समझो, अपने जीवन मे थोड़ा सा बदलाव लाओ, ज़रूरत एवं विलासिता के फर्क को समझो, अपने देश मे बनी वस्तुएं भी उतनी ही अच्छी है, और वो और भी अच्छी हो सकती है यदि हम उन्हें अपने जीवन मे अपना लें, हम स्वयं भी आत्म निर्भर बने, अपने देशवासियों को भी बनायें एवं देश को स्वावलंबन की और ले चले... आओ कदम बढ़ाएं...

06 मई, 2020

दिल्ली की कोरोना राजनीती

दिल्ली पूरी तरह रेड ज़ोन में होते हुए भी लॉकडाउन में छूट के नाम पर जो मज़ाक दिल्ली वालों के साथ दिल्ली के मालिक अरविंद केजरीवाल ने किया है उसकी कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी ये समझना अभी मुश्किल है, केजरीवाल का कहना है कि दिल्ली वालों को कोरोना के साथ जीना सीखना होगा, किन्तु किंतनी जानो की कीमत पर इसका आंकलन किंचित उन्होंने नही किया.. सही भी है, पूर्व में भी अनेकों बड़ी महामारियों के खिलाफ हमने ज़िंदा रहने की लड़ाइयां लड़ी हैं, और उसकी बहुमूल्य कीमत भी चुकाई है... किन्तु ये महामारी अभी जाँच के दायरे में ही है, पूरी दुनिया इससे लड़ रही है.. किन्तु यहाँ राजनीति का अलग ही स्वाद एवं अलग ही स्तर है.. दिल्ली जैसे छोटा सा शहर आंकड़ो में अपने पड़ोसी प्रतिद्वंदियों से पिछड़ रहा है, बस किंचित यही बात केजरीवाल को खाये जा रही है... और फिर ऊपर से प्रधानमंत्री की अंतराष्ट्रीय बनती छवि उसके सीने पर ज़ख्म दे रही है, इसीलिए जनाब अब अपनी इटालियन ताई के कहने पर दिल्ली को आग में झोंकने को तैयार है, कीमत वो भूरी ताई स्वयं तय करेगी.. अब दिल्ली में काम काज, दुकानें, व्यवसाय एवं शराब के ठेके खोलने के बाद जो अफरा तफरी का माहौल बन गया है उसकी कीमत कौन चुकाएगा.. अब ये अपनी द्वेष की आग को बुझाने के लिए जल्दी ही यूपी एवं हरियाणा के मुख्यमंत्री को उनके राज्यों की सीमाएं खोलने को कहेगा ताकि दिल्ली में काम करने वाले सीमा पार से आ जा सकें.. और उसकी आड़ में ये इन दोनों राज्यों का कोरोना के आंकड़ों का गणित बिगाड़ सके.. दिल्ली में मुफ्त राशन एवं लाखो लोगो को मुफ्त भोजन के नाम पर करोड़ो का घोटाला कर चुके केजरीवाल को पैसे के लिए अब केंद्र सरकार पर दबाव बनाना है जिसके लिए उसने हर हथकंडे अपना लिए हैं... यहां तक कि बिजली कम्पनी को दी जा के वाली सब्सिडी का पैसा भी ये खा गया है जिसकी भरपाई अब वो bses लोगो को प्रोविजनल बिल भेज कर कर रही है, और इसकी आड़ में खुल कर धांधली हो रही है, ये दिल्ली की बिगड़ती हालात के लिए दोषारोपण की कहानियां भी तैयार कर चुका है, मरकज़ के खिलाफ खुल कर कुछ नही बोला, रमज़ान में नाम पर पुरानी दिल्ली में कानून व्यवस्था की धज्जियां खुद इसके विधायक उड़ा रहे हैं और तो और मौलाना साद को भी अमानतुल्ला के पास ज़ाकिर नगर या शाहीन बाग़ में ही छुपाया हुआ है, इसकी ओछी राजनीति की बलि दिल्ली वाले ही चढ़ेंगे... टीवी पर बोलते हुए इसकी उंस कुटिल मुस्कान को मुस्कान को महसूस करना और सोचना क्या ये सही है...

हंदवाड़ा और पुलवामा हमला

कश्मीर में हमारे अपने नौ जांबाज़ योद्धा वीरगति को प्राप्त हो गए, दिल दुखता है.. दिल और ज़्यादा दुःखता है जब कुछ लोग इस बलिदान को अन्यथा लेते हैं, अपनी ओछी राजनीति करते हैं, अपनी पत्रकारिता की दुकान चलाते हैं, कुछ तो मुठभेड़ में मारे गए आतंकियों की पैरवी करते हुए उन्हें गरीब मास्टर का भटका हुआ नौजवान बताते हैं.. करो जी भर के करो... पर इसका जवाब तुम्हारे आकाओं को दिया जाएगा, क्योंकि यदि चार दिन पहले तीनो सेनाध्यक्ष, CDS, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोवाल एवं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह मिलते हैं, विचार विमर्श करते हैं तो वो केवल तीनो सेनाओं द्वारा कोरोना वारियर्स को सम्मान देने के लिए फूल बरसाने, सेना द्वारा बैंड बजाने, नौसेना द्वारा आतिशबाजी करने के लिए ही नही होता, बल्कि इसके पीछे की रणनीति को समझने की ज़रूरत है... वायु सेना ने देशव्यापी फ्लाई पास्ट किया जो कि एक रिहर्सल थी, या फिर यूँ कहूँ की पड़ोसी सूअर से रिश्तों में जमी बर्फ तो नही पिघली किन्तु पहाड़ो की बर्फ पिघलने लगी है, अब लोहा भी गरम होने लगा है, बस सही समय, सही जगह, सही ताकत से सही प्रहार करना है... मार दो हथौड़ा... जय हिंद, जय भारत..

25 अप्रैल, 2020

राजनीति के मच्छर (World Malaria Day)

आज World Malaria Day है, मलेरिया एक आपदा से कम नही है, हर साल लाखों लोग आज भी मच्छरों द्वारा मारे जाते हैं, दुनिया भर में इन मच्छरों की अनेक प्रजातियां पाई जाती है जो विभिन्न प्रकार की समस्याओं की जड़ हैं.. उन प्रजातियों में एक प्रजाति राजनीतिक मच्छरों की भी है, ये भिनभिनाते भी है और काटते भी हैं, अक्सर इन मच्छरों से लड़ते लड़ते हम अपना ही नुकसान कर बैठते हैं, बॉलीवुड के एक मशहूर अभिनेता का एक डायलॉग भी है कि "एक मच्छर साला आदमी को हिजड़ा बना देता है".. इसका संदर्भ आपकी शारीरिक नपुंसकता से नही बल्कि उसको मारने के लिए किए गए आपके प्रयास के पीछे की मानसिक नपुंसकता के लिए है, केवल ताली बजाने, आल आउट या कछुआ अगरबत्ती जलाने से ये मच्छर नही मरता, इन मच्छरों को दरअसल हमने ही अपना खून पिला पिला कर इनकी इम्युनिटी इतनी बढ़ा दी है कि इनको कोई अस्त्र शस्त्र का कोई असर नही होता.. ये अक्सर भिनभिनाते है और मौका देखकर काट भी लेते है, आपको इनसे बचना होता है, शालीनता से, क्योंकि इसके काटने की क्रिया की प्रतिक्रिया में आप अंततः अपने को ही मार बैठते हैं.. ये मच्छर अपने पराए के भेद बिना उसी को अक्सर ज़्यादा काटते हैं जो इन्हें पानी पिलाता है, इन्हें अपने आस पास फलने फूलने का मौका देता है.. अब अगर खून पीना मच्छर का अधिकार है, भिनभिनाना उसकी अभिव्यक्ति की आज़ादी है तो उसको मारना यूँ तो मेरा भी नैतिक अधिकार है किंतु असहिष्णुता का हवाला देकर मुझसे लड़ने वाले बद्दुजीवी गैंग का क्या करूँगा, कहीं ये भी एक्सट्रीम देशद्रोह की श्रेणी में ना जाये, वैसे मच्छरों की भी अपनी मेहत्वकांगषाएँ है, सूक्ष्म जीवनकाल में ऊंची उड़ान के सपने हैं, हमारा क्या है हम तो एक सामान्य नागरिक है जिसको इन मच्छरों ने चूसना है, दरअसल इन पैरासाइट को पलने के लिए हमारे ही सहारे की ज़रूरत है, आम जनता आखिर कब तक सरकारों को उलाहना दे, अपने आस पास सफाई तो हमे ही रखनी है ना, इनको पालन पोसना नही है, नही तो मलेरिया देते देते ये कब डेंगू धारी बन जाते है पता नही चलता, फिर वो एक महामारी बन जाते हैं जिसका निदान शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक प्रताड़ना ही है... विश्व मलेरिया दिवस है, प्रण करते हैं साफ सफाई का, अपने क्षेत्र को, प्रदेश को, राज्य को और देश को मलेरिया मुक्त करने का...

18 अप्रैल, 2020

रामायण के वामपंथी असुर

अभी रामायण देखते हुए यकायक एक विचार आया, ये असुर शक्तियां प्राचीन काल से ही विपरीत एवं विध्वंसक वामपंथी मानसिकता एवं विचारधारा रखती थीं, इतनी वामपंथी की ना केवल राम रावण युद्ध मे बल्कि जितने भी असुर युद्ध मे आये सभी के तीर भी टीवी स्क्रीन पर लेफ्ट से ही आते थे, यूँ तो राइट विंग के राम लक्ष्मण उनके सभी वार प्रहारों को काट देते थे, किन्तु ये भी देखा कि कई बार यही आसुरी शक्तियां कुछ बाहरी शक्तियों का सहारा लेकर प्रबल होकर स्क्रीन के उसी लेफ्ट साइड से जोरदार प्रहार करने में भी सफल हो जाती हैं.. और यहां तक कि राम और लक्ष्मण सरीखे श्री जी अवतारों तक को आघात दे देती हैं... यही वामपंथी आसुरी शक्तियां चिरकाल से ही कुछ शरूपनखा एवं सुरसा रूपी राक्षसियों के अपने सायबर सेल की मदद से मायाजाल बुनती हैं.. यूँ तो ये वामपंथी असुर शिक्षा एवं अस्त्र शस्त्र विभाग में अक्सर प्रकांड पंडित होते है किंतु इनकी यही शिक्षा अक्सर इनको कंस्ट्रक्टिव माइंडसेट से डिस्ट्रक्टिव माइंडसेट की ओर ले जाती है, रावण ने सीता का हरण किया और बौद्धिक क्षीणता का शिकार हो गया, और उसी के चलते ये वामी राक्षस अपने निहित स्वार्थ एवं लोलुपता में अपने राष्ट्र के साथ साथ अपने कुल का भी विनाश करने पर आतुर हो जाता है... वर्तमान परिपेक्ष में भी यही वामपंथी राक्षस अपने साम दाम दंड भेद सभी का उपयोग करके राष्ट्र के अहित और अपनी कुंठित मानसिकता के चलते राष्ट्राध्यक्ष के विरुद्ध अपनी कुटिल चालो से आघात करने में लगे है, इन्हें आज कुछ और जिहादी शक्तियों का भी समर्थन प्राप्त है, कुछ विपक्षी आसुरी शक्तियां भी इस कोरोना युद्ध मे एकजुट होकर हमारा मनोबल तोड़ने में लगी है किंतु हम राष्ट्रवादी राइट विंग वाले भी कम नही है, हम अपने राष्ट्रधर्म के मार्ग पर चलते हुए घर बैठे ही इनके तीखे बाणों का रुख वापस मोड़ देंगे और अंततः विजय श्री प्राप्त करेंगे... यही तो नियति है, यही तो धर्मयुद्ध है...

04 अप्रैल, 2020

#9Baje9Minute आओ दीया जलायें

घर के मुखिया होने के नाते आप अपनी ज़िम्मेदारी के तहत अपनी संतान को केवल रहने के लिए घर, खाने के लिए खाना एवं पहनने के लिए कपड़े ही नही देते अपितु उन्हें जीवन जीने की कला भी सिखाते हैं, संस्कार भी देते हैं, एक दूसरे के प्रति मान सम्मान, आपसी प्रेम एवं भाईचारे के साथ सामुदायिक सौहार्द भी सिखाते हैं, और समय आने पर यदि परिवार में कोई संकट आता है तो उसका मिल जुल कर सामना करना एवं उससे लड़ना भी सिखाते हैं.. जब यही सामाजिक समरसता राष्ट्र के प्रति हो तो वो एक बड़े परिवार का निर्माण करती है, और उसी से "वसुधैव कुटुम्बकम" का सृजन होता है... आज राष्ट्र के मुखिया ने अपने परिवार से इसी सामाजिक समरसता का फिर एक बार आह्वान किया है, रविवार 5 अप्रैल को रात्रि में 9 बजे अपने द्वार, छत, छज्जों में या खिड़कियों में राष्ट्र के नाम, उन वीर #CoronaWarriors के नाम, जो इस आपदा के समय अपना सर्वस्व त्याग कर अपने राष्ट्रीय परिवार के लिए दिन रात अपनी जान की बाज़ी लगा कर लड़ रहे हैं, एवं अपनी राष्ट्रीय समरसता के नाम पर एक दीया, या एक मोमबत्ती या मोबाइल टोर्च की रोशनी जलायें, अनगिनत टिमटिमाती रोशनियों के बीच जो अनुभव होगा वो अकल्पनीय है, खुशियों के यही छोटे छोटे पल मिलकर एक बड़ी ख़ुशी का निर्माण करते हैं, छोटे छोटे दीयों से ही बड़ी दीवाली होती है...
#9Baje9Minute

19 मार्च, 2020

Conspiracy behind Corona Virus pandemic

*Operation Checkmate*

In recent days, China broke many records, and earned absolutely everything,
$ 20 billion in the first news and bought about 30% of the shares of companies that belong to the West in China.

President Xi Jinping has surpassed Europeans and intelligent American Democrats.

He played a wonderful game in front of the eyes of the entire world.

Due to the situation in Wuhan, the Chinese currency began to decline, but the Chinese Central Bank took no action to stop this collapse.

There were also many rumors that China didn't even have enough masks to fight the Corona Virus.

These rumors and Xi Jinping's statement that he is ready to protect Wuhan residents by blocking borders has led to a sharp decline in share prices (44%) in Chinese technology and the chemical industry.

Financial sharks began selling all Chinese stocks, but no one wanted to buy them and they were completely devalued.

Xi Jinping made a great move at this time, waiting for a whole week and smiling at the press conferences as if nothing special had happened.

And when the prices fell below the allowed limit,
he ordered to buy ALL the shares of Europeans and Americans at the same time!

Then, the "financial sharks" realized that they had been cheated and bankrupt.

But it was too late, because all the shares had passed to China, which at this time not only earned
$ 2000 Billion,
but thanks to the simulation,
once again becomes the majority shareholder of companies built by Europeans and Americans.

The shares now belong to their companies and have become owners of the heavy industry on which the EU, America and the entire world depend.

From now on, China will set the price and the income of its companies will not leave the Chinese borders, but remain at home and maintain all the Chinese gold reserves.

Therefore, the American and European "financial sharks" proved stupid and in a few minutes the Chinese collected most of their shares, which now produce billions of dollars in profits!

You don't remember such a bright movement in the history of the stock market!

The Chinese president at Wuhan Hospital without muzzle ..
 China officially announces victory over the Corona virus

 Did the Chinese deceive the world with the Corona Virus?  And they saved their economy ?!

 This is what the Americans and Europeans think, after they sold their shares in high-value-added technology companies for a minimal price to the Chinese government.

 According to them, the Chinese leadership used an "economic tactic" that made everyone swallow the bait easily, before they asserted that China did not resort to implementing a high political strategy to get rid of European investors, in support of China's economy, which would bypass the US economy with this step ..!

 And because it teaches the science of certainty that Europeans and Americans are looking for excuses to slow and bankrupt the Chinese economy, China has sacrificed some hundreds of its citizens, instead of sacrificing an entire people ..!

 Through this tactic, China succeeded in "deceiving all", as it reaped about $ 20 billion in two days, and the Chinese president succeeded in deceiving the European Union and the United States of America in the eyes of the world, and played an economic game of a tactical nature, which was unthinkable.  !

 Before the Corona virus, most of the stocks and stakes in investment projects at "Technology and Chemicals" production plants were owned by European and American investors ..!

 This means that more than half of the profits from the light and heavy technological and chemical industries went to the hands of foreign investors, not to the Chinese treasury, which led to a decline in the Chinese currency, the yuan, .. and the Chinese central bank could not  To do something against the continuous fall of the yuan ..!

 There was even widespread news that China was unable to purchase masks to prevent the spread of the deadly virus.  These rumors and the Chinese President’s statements that he is “not ready to save the country from the virus” have led to a sharp drop in the purchase prices of shares of technology companies in China, and the empires of “foreign” investors have raced to offer investment shares for sale at very low prices, and with attractive offers,  "Never seen before" in history ..!

 The Chinese government waited for foreign share prices to reach their "almost free" minimums, and then issued an order to purchase them.  And bought the shares of Americans and Europeans ..!

 And when European and American investment financiers realized that they had been deceived, it was too late, as the shares were in the hands of the Chinese government, which in this process nationalized most of the foreign companies erected on its soil in a near-free manner, without causing a political crisis or a single shot ..  !

 The same sources confirmed and pointed out that "Corona" is a "real" virus, but it is not a terrible danger that has been promoted across the world ..!

 China began to take out the anti-virus vaccine, this vaccine that it had owned from the beginning on the shelves of refrigerators after it had received its goal ....

16 मार्च, 2020

राजनीती की Horse Trading

देश मे कहने को तो "लोकतंत्र" है, कृपया शब्द पे गौर करना, लोकतंत्र मतलब लोगो द्वारा चुने हुए जनप्रतिनिधियों की सरकार, अब समझो ये की राजनीतिक पार्टियां खूब जांच परख के और छांट के (जैसा कि वो दावा करती हैं) चुनाव में अपना एक जन प्रतिनिधि देती है कि हम पार्टी की विचारधारा के अनुरूप उनका चुनाव करें, उन पर भरोसा करें, उन्हें सत्ता और देश की बागडोर सौंप दें.. किन्तु राजनीतिक उठापटक के बीच यही राजनीतिक पार्टियां अपने इन्ही भरोसेमंद जनप्रतिनिधियों पर भरोसा नही करतीं, उन्ही को गधे घोड़ों की तरह यहां वहां हांक देती हैं, जोड़तोड़ की राजनीति के चलते इन्ही गधे घोड़ो की बोलियां लगाई जाती हैं, इन्ही की आड़ में क्षेत्रीय दलों के टट्टुओं की भी चांदी हो जाती है, अब नेता हैं तो दो चार करोड़ की बात करना तो इन घोड़ो की नस्ल के अपमान करना ही है.. तो फिर राजनीति के बाजार में बोलियां भी बड़ी बड़ी लगती है, ऊंचे पद प्रतिष्ठा के प्रस्ताव दिए जाते हैं, गलत हाथों में बिकने के डर से इन टट्टुओं को भी बड़े बड़े रिसोर्ट और पांच सितारा होटलों में चना खिलाया जाता है और इनकी मालिश की जाती है, मुँह पर छकड़ा बांध दिया जाता है ताकि सिर तो हिला सकें किन्तु हिनहिना ना सकें.. किन्तु क्या हम आम जनता इनको अपने जन-प्रतिनिधि के रूप में इसीलिए चुनती है ? क्या जो ये करते हैं उसमें इन्ही आम जनता की सहमति होती है ? क्या इनकी अपनी व्यक्तिगत राजनीतिक महत्वकांगशा सर्वोपरि है ? हम उन पर भरोसा करने को बाध्य क्यों जिन पर स्वयं उनकी राजनीतिक पार्टियां भरोसा नही कर सकती.. चुनाव के समय हममें से कुछ पार्टी की विचारधारा से सहमत होकर उनके द्वारा खड़े किए गए किसी भी गधे घोड़े को उसकी व्यक्तिगत उपलब्धियों को नज़रंदाज़ करके चुनते हैं, किसी को पार्टी विचारधारा के विपरीत स्वतंत्र उसकी क्षमता के अनुरूप चुनते है। किन्तु अंततः राजनीति के हमाम में सब नंगे हो जाते हैं, पहले एक दूसरे पर कीचड़ उछालते है, दम घुटने के दावे करते हैं, कुछ अपनी बोली बढ़वा कर अपनी स्वामिभक्ति कायम रखते हैं, कुछ अपने मालिक को लात मार कर नए मालिक के तलवे चाटने लगते हैं, किन्तु कोई भी अपने शीर्ष नेतृत्व पर उंगली उठाने की धृष्टता नही करता, दरअसल क्षेत्रीय मालिक और राष्ट्रीय मालिक का दर्जा और रुतबा दोनो अलग अलग है, कल को ऊंट किस करवट बैठ जाते कौन जानता है... खैर छोड़ो यार, राजनीति कब किसकी सगी हुई है...

28 जनवरी, 2020

शाहीन बाग का सच

दिल्ली का शाहीन बाग इलाका है, जहां 40% मुसलमान रहते हैं और आजकल आम लोग व वाहन इस मार्ग से नहीं गुजर सकते, क्योंकि इस मार्ग पर वह CAA का विरोध करने हेतु धरनारत हैं । वहां के निवासी परेशान हो कर अब अपना घर बेचना चाह रहे हैं, पर रेट नहीं मिल रहे । नौकरी पर जाना, बच्चों को स्कूल जाना, रोजमर्रा की जरुरत और इमरजेंसी में डॉक्टर के पास जाने के भी लाले पड़े हुए हैं । सरकार और व्यापारी वर्ग को रोजाना करोड़ो का नुकसान हो रहा है, हाँ पर संविधान के बच्चे बीच सड़क पर स्टम्प गाड़कर क्रिकेट खेल सकते हैं, गुल्ली डंडा खेल सकते हैं और कानून व्यवस्था की खिल्ली उड़ा सकते हैं.. वह 15-20 प्रतिशत होकर भी देश की शेष 80 प्रतिशत जनसंख्या को बंधक बनाकर असह्य करके दिखा सकते हैं.. वह जिन्ना वाली आजादी लेने के नारे भी कैमरे के सामने लगा सकते हैं और आप उनके सर का एक बाल भी नहीं उखाड़ पाते । वह आपके प्रधानमंत्री को यहां नपुंसक कह सकते हैं, कातिल कह सकते हैं और कश्मीर की आजादी की भी बात कर सकते हैं, वह भी कैमरे के सामने । विपक्ष भी पहले खुल कर इनके समर्थन में दिन रात एक किये हुए था, अंतराष्ट्रीय मुद्दा बनाया गया, बड़े बड़े लेख लिखे गए किन्तु अब यही शाहीन बाग़ इनके गले की हड्डी बन चुका है, इनकी पकड़ भी अब उस बेकाबू भीड़ पर ढीली पड़ चुकी है, अब विपक्ष चाहता है कि मोदी सरकार इस पर कोई ठोस कार्यवाही करें, इसीलिए उन्होंने साजिशन बूढ़ों, महिलाओं और बच्चों को आगे रखा हुआ है, पीछे असलहे के साथ वो खुद हैं, मीडिया और बुद्धुजीवियो का एक वर्ग सरकार और समाज को भड़काने का काम कर रहा है ताकि ये चिंगारी सुलगे ओर कार्यवाही की आड़ में दंगा हो, फितरत ही यही है, कुछ लोग इस सब मे मरते भी है तो मरें वो भी उनके लिए अच्छा ही है, सरकार के खिलाफ एक और आंदोलन खड़ा करने का क्योंकि दिल्ली के बाद अब बिहार में भी चुनाव है.. ये तो एक सतत राजनीतिक प्रक्रिया है। CAA तो केवल एक बहाना भर रह गया है, जो समुदाय विशेष, मुसलमानों को भी इसमें जोड़ने की ज़िद करता है वही लोग एक पाकिस्तानी नागरिक अदनान सामी को नागरिकता देने का विरोध भी करते हैं, सेलेक्टिव एप्रोच से काम नही चलता जनाब। शाहीन बाग में फिर से इस्लाम के ही नाम पर हिन्दुस्तान की राजधानी की महत्वपूर्ण सड़क पर कब्जा करके हजारों लोगों को प्रतिदिन 25 किमी का अतिरिक्त चक्कर कटवाकर, धरने के नाम पर राष्ट्र विरोधी नारों की ट्रेनिंग और क्रिकेट व गुल्ली डंडा खेला जा रहा है । और ये पुराना कश्मीर का दृश्य नहीं है, यह उसी दिल्ली का दृश्य है, जहां दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मुखिया रहते हैं, जनतंत्र का मन्दिर कही जाने वाली संसद है और विश्व की चौथी सबसे शक्तिशाली कहे जाने वाली सेना के सभी अंगों के मुख्यालय हैं। न्याय का सर्वोच्च मन्दिर, सुप्रीम कोर्ट भी यहीं है । जानते हो ऐसा संभव कैसे हो पा रहा है ? क्योंकि कुछ छंटे हुए ज्ञानी, सेक्युलर बनकर इनका साथ निभा रहे हैं, इन ज्ञानीयों को ये खबर नहीं कि ऐसे शाहीनबाग उनके मोहल्लों में भी उग रहे हैं । केवल इस्लामिक पाकिस्तान द्वारा कश्मीर का आधे से अधिक भूभाग हड़प लिये जाने और बाद में बचे हिन्दुस्तानी कश्मीर से हिन्दुओं के कत्ल और उनकी बहिन-बेटियों के साथ सामूहिक बलात्कार करके और पति के खून से सने चावल पत्नियों को खिलाकर घाटी से उनके पूर्णतः सफाये पर आश्चर्यजनक चुप्पी साध लेने वाले लोग वोट के लालच में आज शाहीन बाग के अवैध धरने पर जाकर उनका समर्थन कर रहे हैं। जिस जाकिर नाइक को मलेशिया जैसा इस्लामिक देश एक साल भी नहीं झेल पाया, जो रोहिंग्या मात्र 2 किमी दूर चीन नहीं गया, उन्हें 3000 किमी दूर दिल्ली लाकर उनकी आरती उतारने को आतुर कांग्रेस की विदेशी मूल की माता और सदैव राष्ट्र विरोध में उटपटांग बोलते भाई- बहन की जोड़ी केवल वोट बैंक के लालच में देश की सुरक्षा से खेलने के लिये तैयार हैं । दिल्ली का मालिक कुछ समय के लिए ही सही, फ्री में वाई फाई दे, फ्री में बस/मैट्रो में सफर कराये और सस्ती बिजली दे तो हमें उस पर बलिहारी जाना ही चाहिए, भले ही वह निर्भया के बलात्कारी अफरोज को सिलाई मशीन और 10 हजार रूपये देकर उसे पुरुस्कृत करे या दुश्मन के घर में बालाकोट तक घुसकर मारने वाली सेना की सर्जिकल स्ट्राइक पर प्रश्न खड़े करे। देशद्रोही कन्हैया कुमार और उमर खालिद की ढाल बन कर खड़ा हो जाये, कट्टर इस्लाम के हाथों मारे गये ध्रुव त्यागी और डा. नारंग के हत्यारों पर कोर्ट में दिल्ली के सरकारी वकील ठीक से पैरवी ना करें तो हमें क्या ? कट्टरपंथीयों को टिकट दे दी है । छोड़ो अभी तो हमें सस्ती बिजली, फ्री वाई फाई और बिना भाड़े में बस का सफर करने दो भाई । 8 फरवरी को वोट भी देनी है.. कोई बात नही आप मुफ्तखोरी के लिए मोदी और शाह का विरोध करो, मौका है आपके पास मोदी और शाह से अपनी नाराजगी निकालने का, क्योंकि इन्होंने कश्मीर से एक झटके में 370 हटा दी, 35 A हटा दी, 5 सदियों से प्रतीक्षित राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया, अपने ही भाईयों को उनके पूर्वजों के अपने ही देश में नागरिकता दे दी और अब NRC, NPR व जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की तैयारी में हैं... अरे एक एक सीट कीमती है दिल्ली में.. जितनी कम सीट आप इन्हें देंगे उतना ही ये राज्यसभा में कमजोर होंगे और उतना ही देश मजबूत... वैसे कभी सुना है कि सपा, बसपा,आप या कांग्रेस से नाराज होकर मुसलमानों ने BJP प्रत्याशी जिता दिया हो ? सोचना ज़रूर और तर्कसंगत जवाब भी देना.. कुतर्क नही... और हां इससे ज़्यादा फिजिक्स और गणित मुझे नही आता क्योंकि मैं तो आर्ट्स का विद्यार्थी था...

10 जनवरी, 2020

दीपिका पादुकोण, लेफ्ट या राइट

बॉलीवुड, नाम भी चुराया हुआ है किंतु ये वो इंडस्ट्री है जो हमेशा लोगों के दिलो पर राज करती रही है, वैसे तो राजनीति और बॉलीवुड का संबंध वर्षों पुराना है, यूँ भी कह सकते हैं कि आजादी की लड़ाई दोनो ने मिल कर लड़ी, कौन भूल सकता है आनंदमठ सरीखी फ़िल्म को, किन्तु सच ये भी है कि बॉलीवुड केवल बिकाऊ है, यहाँ हर चीज़ की कीमत तय है, यहां कलाकार भी बिकते है और कलंकार भी, और फिर इन बेचारों की व्यक्तिगत मजबूरियां भी है और व्यावसायिक मजबूरियां भी, अब करोड़ो रूपये लगाकर एक फ़िल्म बनती है, फिर उस फिल्म में पैसा अंडरवर्ल्ड का लगा हो तो वो दबाव कई गुना बढ़ जाता है, तो लाज़मी है कि फ़िल्म को कैसे भी करके कमाऊ बनाना है, इससे कोई फर्क नही पड़ता कि फ़िल्म किस विषय वस्तु पर आधारित है, वैसे तो विडंबना ये है कि आज से नही बल्कि दशकों से राजनीति एवं बॉलीवुड एक दूसरे के पर्याय रहे है, अभिनेता नेता बन रहे हैं एवं नेता भी आजकल अच्छा अभिनय कर लेते हैं, दोनो का ही मकसद नाम शौहरत एवं दौलत है, चलो खैर अब इसी के चलते आजकल राजनीतिक घटनाक्रम से ये लोग भी अपने को अवसर अनुसार जोड़ कर अपनी दाल में तड़का लगा लेते हैं, फिर चाहे वो सर्जिकल स्ट्राइक हो, 26/11 मुम्बई हमले, 1993 बम ब्लास्ट, कारगिल युद्ध, गुजरात दंगे, देश का विभाजन या फिर कठुआ गैंग रेप से लेकर ये लक्ष्मी पर हुआ एसिड अटैक, ये विषय वस्तु की बात है, किन्तु अब बात आती है इनसे राष्ट्रीय स्तर पर सामंजस्य बिठाने की तो इसके लिए फ़िल्म से जुड़ी PR यानी पब्लिक रिलेशन और पब्लिसिटी टीम काम करती है, वो तय करते है कि किस अवसर पर क्या करना है, कहते हैं ना बदनाम होंगे तो क्या नाम ना होगा, यानी जैसे अपने अक्षय कुमार है वो कनाडा के नागरिक हो के भी अपने काम और आचरण के आवरण में देशभक्त है ओर उसके उलट उनकी अर्धांगिनी ट्विंकल खन्ना सिक-क्युलर यानी बीवी की तरफ से फिल्में मिलती रहेगी और अक्षय की तरफ से देश और दुनिया मे वाह वाही, यही दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह भी कर रहे हैं, अब देखो फ़िल्म का विरोध करने वालों ने फ़िल्म को ज़्यादा पब्लिसिटी दे दी, यानी जो मोदी विरोधी कभी फ़िल्म नही देखते वो भी अब इसे देखेंगे, या वो बेचारे गरीब JNU के छात्र जो अपनी 100 रु बढ़ी हुई फीस नही दे सकते क्योंकि उनका बाप महीने के सिर्फ 6000 रु कमाता है वो भी अब 600 रु ख़र्चके इसे देखेगा, चलो छोड़ो लेकिन एक चीज़ को तो समझ ही लो कि ये बॉलीवुड का पिछले 3 सालों में सरकार का विरोध।बढ़ने का प्रमुख कारण आज़ादी या अभिव्यक्ति की आज़ादी नही बल्कि नोटबन्दी से हुई काली कमाई पर रोक है, दूसरा जो यूपी की समाजवादी सरकार सैफई महोत्सव में इन भाँडो को नचवा के बदले में मोटी रकम के साथ साथ साहित्य कला परिषद के अंतर्गत अनेक भाँडो को 50000रु महीना पेंशन देती थी वो सब योगी सरकार ने आते ही बंद करवा दी तो बवासीर होना तो जायज़ है, कुछ कमर अब इन बड़े फ़िल्म निर्माताओं की इंटरनेट वेब सीरीज ने भी तोड़ दी है, तो भैया सब पैसे का खेल है, क्यों अपना खून फूंकते हो, वैसे दीपिका जी फ़िल्म में नदीम का नाम बदल कर राजेश रख देने से मेघना गुलज़ार को आत्मसंतुष्टि तो हो सकती है किंतु सच्चाई तो दुनिया जानती है कि लक्ष्मी को लूटने वाला कोई नदीम ही हो सकता है, राजेश नही...