29 अक्तूबर, 2018

बेचारे श्री राम

कभी कभी इस देश के न्यायप्रणाली और न्यायपालिका दोनो पर संदेह होता है, क्योंकि कुछ मुद्दों को हम तोड़ मरोड़ देते हैं। जब सुप्रीम कोर्ट आधी रात को उठ कर एक आतंकी के लिए भी सुनवाई करता है तो न्यायपालिका पर भरोसा बढ़ जाता है, यही न्यायपालिका कुछ महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दों को छोड़ कर दीवाली के पटाखे, सबरीमाला, दही हांडी, जैसे मुद्दों पर भी तुरंत फैंसले लेती है किंतु तीन तलाक, जनसंख्या नियंत्रण, कॉमन सिविल कोड जैसे मुद्दे पर अलग रुख अख्तियार करती है और फिर राम मंदिर जैसे अति संवेदनशील मुद्दे को धार्मिक आस्थाओं से ऊपर ले जाकर राजनीतिक रंग दे देती है तो दर्द होता है, जिस राम नाम ने सरकारें पलट दीं, जो राम दुनिया को चलाते है आज वो स्वयं हिंदुत्व की उंगली पकड़ कर चल रहे हैं। दरअसल इस मुद्दे को उलझने ओर गरमाये रखने का काम जितना मीडिया, न्यायपालिका और हमारी बाबूगिरी ने किया है ये उतना ज्यादा पेचीदा हो गया है, अब ये बड़ी चालाकी से राम के अस्तित्व और जन्म स्थान की लड़ाई ना होकर केवल एक ज़मीन की लड़ाई बना दिया गया है, इसको न्यायपालिका भी चाहती है कि ये आने वाले चुनाव में चुनावी मुद्दा ना बने और इसीलिए बड़ी चालाकी से इसको आगे खिसकने में लगी हुआ है, क्योंकि फैंसला यदि मंदिर के पक्ष में आया तो कोलोजियम सिस्टम के पुचकारे हुए माननीय न्यायाधीश अपने आकाओं के प्रति वफादारी नही रख पाएंगे और यदि मोदी सरकार ने अध्यादेश के तरीके से मंदिर निर्माण की कोशिश की तो मोदी के किये हुए सभी कामों और उनकी छवि पर दाग लग जायेगा, दरअसल राम मंदिर बनाने का एक आसान तरीका भी है वो ये की मोदी सरकार मीडिया, न्यायपालिका और बाबूगिरी में थोड़ा सख्त हो जाये और देश की जनता आने वाले चुनाव में विपक्ष को धराशायी कर दे , बस फिर सभी रास्ते खुले हैं, लेकिन उसके लिए जितना भरोसा प्रभु श्री राम पर किया है उतना ही भरोसा नरेन्द्र मोदी पर भी करना होगा... जय श्री राम

12 अक्तूबर, 2018

#MeToo की सच्चाई

मैं महिलाओं का विरोधी नहीं हूँ किन्तु महिला सशक्तिकरण के दौर में अपने को एक अबला नारी के तौर पर पेश करना, या फिर उम्र के एक पड़ाव पर आकर जब आप मानसिक और शारीरिक रूप से कमज़ोर होने लगते हो तब अपनी दबी हुई कुंठा को निकाल लेना और उसे सार्वजनिक करके चरित्र हनन करने का मैं समर्थक नहीं हूँ। "तुम मेरे लिए ये कर दो और मैं तुम्हारे लिए ये करती हूँ" और फिर अचानक 20-30 साल बाद आपका आत्मसम्मान आपको झझकोर देता है और आपकी अंतरात्मा चीत्कार कर उठती है और आप #MeToo #MeToo चिल्लाने लगती हो तो ये गलत है। एक शशक्त महिला अपने ऊपर हुए अत्याचार का तुरंत जवाब देती है, वो 10-20 साल इंतज़ार नहीं करती। अगर ऐसा है तो आप अपनी कमज़ोरी को छुपा रहे हो, गुड टच और बाद टच का फर्क अगर आपको नहीं पता तो आप अपने आप से धोखा कर रही हो, तब डर कर अगर आपने समझौता किया या अपना काम निकाला तो उसका रोना आज क्यों ? शायद अपने स्टेटस या काम से समझौता नहीं करना चाहती थी आप, बल्कि आपने अपने चरित्र से समझौता किया और वहां पहुंची जहाँ आप पहुंचना चाहती थीं, अपने को अबला नारी बनाना आसान है लेकिन शक्ति स्वरुप में आकर कठोर निर्णय के साथ अन्याय का विरोध करना शायद मुश्किल। वैसे इस #MeToo कैम्पेन को हलके में नहीं लेना चाहिए, अब इसके पीछे की राजनीती को समझिए, दरअसल ये आंदोलन 2006 में एक अश्वेत महिला तराना बुर्के ने शुरू किया था, और इस चिंगारी को आग का रूप हॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री अली मिलानो ने एक साल पहले अक्टूबर 2017 में दिया, लेकिन इसे भारत आते आते एक साल लग गया, अब आप समझो की देश में एक अस्थिरता का माहौल बनाया जा रहा है, आप इसके समर्थन में लिखिए तो आप महिला सशक्तिकरण में सहयोगी हैं अन्यथा आप पर राष्ट्रवादिता का लेबल लगा दिया जायेगा और ब्लैकमेल किया जायेगा। याद रखिये ''ताड़का, शूर्पणखा, पूतना '' भी नारियाँ ही थी, जिन्हे मारने मे ईश्वर ने भी देर न लगाई, हालीवुड और विदेशों का चलन #MeToo का भसड़ अब भारत भी आ गया ..लेकिन निशाने पर कौन है ये सोचिये.. एमजे अकबर अपनी पत्रकारिता के 13 सालो तक नरेन्द्र मोदी और बीजेपी के सबसे बड़े आलोचक थे, मोदी के खिलाफ खूब जहर उगलते थे तब उन पर किसी भी महिला ने कोई आरोप नही लगाय ... लेकिन जैसे ही वो मोटा भाई के आबे जमजम से पवित्र हो गए और केंद्रीय मंत्री बन गए तो अब चुनावी वर्ष में 5 महिला पत्रकार उनके ऊपर आरोप लगा रही हैं कि उन्होंने कई बार उन्हें गलत तरीके से छुआ था, मतलब जब इन महिलाओं को छुआ था तब उन्हें नहीं पता चला कि उन्हें सही तरीके से छुआ जा रहा है कि गलत तरीके से लेकिन 20 साल 25 साल बाद अचानक इन महिलाओं को याद आने लगा फलाने ने उन्हें गलत तरीके से छुआ था, अब नाना पाटेकर और विवेक अग्निहोत्री जैसे लोगों को देख लीजिए यह लोग ट्विटर पर और दूसरे माध्यमों में वामपंथियों को जमकर एक्सपोज़ करते हैं तो उनके खिलाफ अचानक दो तीन महिलाएं सामने आती हैं और कहती है 25 साल पहले मेरे साथ ही उन्होंने गलत व्यवहार किया था, क्या कोई विपक्षी पार्टी का कोई नेता या अभिनेता इसमें सम्मिलित है, जिन कोंग्रेसियों के चर्चे और वीडियो दुनिआ ने चटकारे लगा कर देखे वो सब भीष्म पितामह हो गए, न मायावती का गेस्ट हाउस कांड, ना राहुल का सुकन्या देवी कांड, बॉलीवुड के शीर्ष अभिनेताओं के खिलाफ कोई है क्या ? संजय दत्त ने खुद अपने इंटरव्यू में कबूला की वो इंडस्ट्री के 300 से अधिक महिलाओं के साथ सम्बन्ध रखता है, कोई आयी? सलमान, शाहरुख़, जैसे अभिनेता क्या दूध के धुले हैं ? अभिनेत्रियां जब तक पैसा मिलता है तो हर प्रकार के सीन करती हैं, और समझौते करती हैं, राजनीती, पत्रकारिता, व्यापार, खेल जगत कुछ भी तो अछूता नहीं है इन सब से, किन्तु सोचनीय ये है की आज आपका किया गया खेल किसी के घर परिवार को उजाड़ सकता है, किसी का करियर ख़त्म कर सकता है, और इस सबके लिए आपको जो प्रसिद्धि मिलेगी भी वो दो कौड़ी से ज़्यादा की नहीं होगी..... माफ़ी चाहूंगा अगर मैंने किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाई तो.... किन्तु मर्द हूँ सही को सही और गलत को गलत लिखूंगा....