27 जून, 2012

क़ानून की कीमत

कई बार लगता है की हम अपने आस पास के माहोल और लोगों को एहमियत नहीं देते या यूँ कह लो की सिर्फ कुछ औपचारिकता के लिए नमस्कार करना या मुस्कुरा देना काफी होता है, लेकिन अगर अचानक आपको लगे की एक सज्जन पुरुष जिनको आप पिछले 25-30 सालों से जानते हैं और उनका अचानक आपके सामने एक ऐसा घिनोने रूप दिखाई दे तो आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी. आज कुछ ऐसा लगा की इंसान और इंसानियत की कोई कीमत ही नहीं है, सिर्फ कुछ रुपयों में इंसान और उसका ज़मीर दोनों बिक जाते हैं, पैसों के लिए रिश्ते तार तार हो जाते हैं, और तो और कानून भी अपनी कीमत लगवा कर बोना हो जाता है, 
एक लड़की जिसकी शादी को 15 साल हो चुके हों और दो बच्चे भी हों, जो जीवन भर एक दर्द को सहती रही मगर उफ़ तक नहीं की और जब उसको बेशर्मी से धक्के मारकर बच्चों के साथ आधी रात में घर से निकाल दिया जाए तो क्या होगा? पुलिस भी इंसानी कीमत लगाकर अपना काम करती है, उनको तो शायद प्रशिक्षण मैं ही अपने ज़मीर को मारना सिखाया जाता है, क़ानून के ये रखवाले शायद क़ानून से जयादा उसको तोड़ मरोड़ करना ज़यादा जानते हैं, वो लड़की अपने हे घर से बेघर की जाती है और पुलिस बेबसी से कहती है की वो इस घरेलु हिंसा मैं कुछ नहीं कर सकते, लेकिन अगर समाज जात पात से ऊपर उठ कर एकजुट होकर खड़ा हो जाए तो सभी कुछ संभव है, इन्साफ दिलाना भी और इन्साफ के लिए लड़ना भी और क़ानून को क़ानून सिखाना भी...
अच्छा लगा आज एक ऐसे समाज का हिस्सा बनकर उस बेबस के लिए लड़कर उसका हक दिलवाने में, और ये सच भी है की अगर हम एकजुट हैं तो सभी समस्याओं का हल भी है, अपने हक के लिए लड़ना गलत नहीं है बस रास्ता सही होना चाहिए और सही रास्ते पर चलकर हम अपना हक पा सकते हैं....