28 जनवरी, 2020

शाहीन बाग का सच

दिल्ली का शाहीन बाग इलाका है, जहां 40% मुसलमान रहते हैं और आजकल आम लोग व वाहन इस मार्ग से नहीं गुजर सकते, क्योंकि इस मार्ग पर वह CAA का विरोध करने हेतु धरनारत हैं । वहां के निवासी परेशान हो कर अब अपना घर बेचना चाह रहे हैं, पर रेट नहीं मिल रहे । नौकरी पर जाना, बच्चों को स्कूल जाना, रोजमर्रा की जरुरत और इमरजेंसी में डॉक्टर के पास जाने के भी लाले पड़े हुए हैं । सरकार और व्यापारी वर्ग को रोजाना करोड़ो का नुकसान हो रहा है, हाँ पर संविधान के बच्चे बीच सड़क पर स्टम्प गाड़कर क्रिकेट खेल सकते हैं, गुल्ली डंडा खेल सकते हैं और कानून व्यवस्था की खिल्ली उड़ा सकते हैं.. वह 15-20 प्रतिशत होकर भी देश की शेष 80 प्रतिशत जनसंख्या को बंधक बनाकर असह्य करके दिखा सकते हैं.. वह जिन्ना वाली आजादी लेने के नारे भी कैमरे के सामने लगा सकते हैं और आप उनके सर का एक बाल भी नहीं उखाड़ पाते । वह आपके प्रधानमंत्री को यहां नपुंसक कह सकते हैं, कातिल कह सकते हैं और कश्मीर की आजादी की भी बात कर सकते हैं, वह भी कैमरे के सामने । विपक्ष भी पहले खुल कर इनके समर्थन में दिन रात एक किये हुए था, अंतराष्ट्रीय मुद्दा बनाया गया, बड़े बड़े लेख लिखे गए किन्तु अब यही शाहीन बाग़ इनके गले की हड्डी बन चुका है, इनकी पकड़ भी अब उस बेकाबू भीड़ पर ढीली पड़ चुकी है, अब विपक्ष चाहता है कि मोदी सरकार इस पर कोई ठोस कार्यवाही करें, इसीलिए उन्होंने साजिशन बूढ़ों, महिलाओं और बच्चों को आगे रखा हुआ है, पीछे असलहे के साथ वो खुद हैं, मीडिया और बुद्धुजीवियो का एक वर्ग सरकार और समाज को भड़काने का काम कर रहा है ताकि ये चिंगारी सुलगे ओर कार्यवाही की आड़ में दंगा हो, फितरत ही यही है, कुछ लोग इस सब मे मरते भी है तो मरें वो भी उनके लिए अच्छा ही है, सरकार के खिलाफ एक और आंदोलन खड़ा करने का क्योंकि दिल्ली के बाद अब बिहार में भी चुनाव है.. ये तो एक सतत राजनीतिक प्रक्रिया है। CAA तो केवल एक बहाना भर रह गया है, जो समुदाय विशेष, मुसलमानों को भी इसमें जोड़ने की ज़िद करता है वही लोग एक पाकिस्तानी नागरिक अदनान सामी को नागरिकता देने का विरोध भी करते हैं, सेलेक्टिव एप्रोच से काम नही चलता जनाब। शाहीन बाग में फिर से इस्लाम के ही नाम पर हिन्दुस्तान की राजधानी की महत्वपूर्ण सड़क पर कब्जा करके हजारों लोगों को प्रतिदिन 25 किमी का अतिरिक्त चक्कर कटवाकर, धरने के नाम पर राष्ट्र विरोधी नारों की ट्रेनिंग और क्रिकेट व गुल्ली डंडा खेला जा रहा है । और ये पुराना कश्मीर का दृश्य नहीं है, यह उसी दिल्ली का दृश्य है, जहां दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मुखिया रहते हैं, जनतंत्र का मन्दिर कही जाने वाली संसद है और विश्व की चौथी सबसे शक्तिशाली कहे जाने वाली सेना के सभी अंगों के मुख्यालय हैं। न्याय का सर्वोच्च मन्दिर, सुप्रीम कोर्ट भी यहीं है । जानते हो ऐसा संभव कैसे हो पा रहा है ? क्योंकि कुछ छंटे हुए ज्ञानी, सेक्युलर बनकर इनका साथ निभा रहे हैं, इन ज्ञानीयों को ये खबर नहीं कि ऐसे शाहीनबाग उनके मोहल्लों में भी उग रहे हैं । केवल इस्लामिक पाकिस्तान द्वारा कश्मीर का आधे से अधिक भूभाग हड़प लिये जाने और बाद में बचे हिन्दुस्तानी कश्मीर से हिन्दुओं के कत्ल और उनकी बहिन-बेटियों के साथ सामूहिक बलात्कार करके और पति के खून से सने चावल पत्नियों को खिलाकर घाटी से उनके पूर्णतः सफाये पर आश्चर्यजनक चुप्पी साध लेने वाले लोग वोट के लालच में आज शाहीन बाग के अवैध धरने पर जाकर उनका समर्थन कर रहे हैं। जिस जाकिर नाइक को मलेशिया जैसा इस्लामिक देश एक साल भी नहीं झेल पाया, जो रोहिंग्या मात्र 2 किमी दूर चीन नहीं गया, उन्हें 3000 किमी दूर दिल्ली लाकर उनकी आरती उतारने को आतुर कांग्रेस की विदेशी मूल की माता और सदैव राष्ट्र विरोध में उटपटांग बोलते भाई- बहन की जोड़ी केवल वोट बैंक के लालच में देश की सुरक्षा से खेलने के लिये तैयार हैं । दिल्ली का मालिक कुछ समय के लिए ही सही, फ्री में वाई फाई दे, फ्री में बस/मैट्रो में सफर कराये और सस्ती बिजली दे तो हमें उस पर बलिहारी जाना ही चाहिए, भले ही वह निर्भया के बलात्कारी अफरोज को सिलाई मशीन और 10 हजार रूपये देकर उसे पुरुस्कृत करे या दुश्मन के घर में बालाकोट तक घुसकर मारने वाली सेना की सर्जिकल स्ट्राइक पर प्रश्न खड़े करे। देशद्रोही कन्हैया कुमार और उमर खालिद की ढाल बन कर खड़ा हो जाये, कट्टर इस्लाम के हाथों मारे गये ध्रुव त्यागी और डा. नारंग के हत्यारों पर कोर्ट में दिल्ली के सरकारी वकील ठीक से पैरवी ना करें तो हमें क्या ? कट्टरपंथीयों को टिकट दे दी है । छोड़ो अभी तो हमें सस्ती बिजली, फ्री वाई फाई और बिना भाड़े में बस का सफर करने दो भाई । 8 फरवरी को वोट भी देनी है.. कोई बात नही आप मुफ्तखोरी के लिए मोदी और शाह का विरोध करो, मौका है आपके पास मोदी और शाह से अपनी नाराजगी निकालने का, क्योंकि इन्होंने कश्मीर से एक झटके में 370 हटा दी, 35 A हटा दी, 5 सदियों से प्रतीक्षित राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया, अपने ही भाईयों को उनके पूर्वजों के अपने ही देश में नागरिकता दे दी और अब NRC, NPR व जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की तैयारी में हैं... अरे एक एक सीट कीमती है दिल्ली में.. जितनी कम सीट आप इन्हें देंगे उतना ही ये राज्यसभा में कमजोर होंगे और उतना ही देश मजबूत... वैसे कभी सुना है कि सपा, बसपा,आप या कांग्रेस से नाराज होकर मुसलमानों ने BJP प्रत्याशी जिता दिया हो ? सोचना ज़रूर और तर्कसंगत जवाब भी देना.. कुतर्क नही... और हां इससे ज़्यादा फिजिक्स और गणित मुझे नही आता क्योंकि मैं तो आर्ट्स का विद्यार्थी था...

10 जनवरी, 2020

दीपिका पादुकोण, लेफ्ट या राइट

बॉलीवुड, नाम भी चुराया हुआ है किंतु ये वो इंडस्ट्री है जो हमेशा लोगों के दिलो पर राज करती रही है, वैसे तो राजनीति और बॉलीवुड का संबंध वर्षों पुराना है, यूँ भी कह सकते हैं कि आजादी की लड़ाई दोनो ने मिल कर लड़ी, कौन भूल सकता है आनंदमठ सरीखी फ़िल्म को, किन्तु सच ये भी है कि बॉलीवुड केवल बिकाऊ है, यहाँ हर चीज़ की कीमत तय है, यहां कलाकार भी बिकते है और कलंकार भी, और फिर इन बेचारों की व्यक्तिगत मजबूरियां भी है और व्यावसायिक मजबूरियां भी, अब करोड़ो रूपये लगाकर एक फ़िल्म बनती है, फिर उस फिल्म में पैसा अंडरवर्ल्ड का लगा हो तो वो दबाव कई गुना बढ़ जाता है, तो लाज़मी है कि फ़िल्म को कैसे भी करके कमाऊ बनाना है, इससे कोई फर्क नही पड़ता कि फ़िल्म किस विषय वस्तु पर आधारित है, वैसे तो विडंबना ये है कि आज से नही बल्कि दशकों से राजनीति एवं बॉलीवुड एक दूसरे के पर्याय रहे है, अभिनेता नेता बन रहे हैं एवं नेता भी आजकल अच्छा अभिनय कर लेते हैं, दोनो का ही मकसद नाम शौहरत एवं दौलत है, चलो खैर अब इसी के चलते आजकल राजनीतिक घटनाक्रम से ये लोग भी अपने को अवसर अनुसार जोड़ कर अपनी दाल में तड़का लगा लेते हैं, फिर चाहे वो सर्जिकल स्ट्राइक हो, 26/11 मुम्बई हमले, 1993 बम ब्लास्ट, कारगिल युद्ध, गुजरात दंगे, देश का विभाजन या फिर कठुआ गैंग रेप से लेकर ये लक्ष्मी पर हुआ एसिड अटैक, ये विषय वस्तु की बात है, किन्तु अब बात आती है इनसे राष्ट्रीय स्तर पर सामंजस्य बिठाने की तो इसके लिए फ़िल्म से जुड़ी PR यानी पब्लिक रिलेशन और पब्लिसिटी टीम काम करती है, वो तय करते है कि किस अवसर पर क्या करना है, कहते हैं ना बदनाम होंगे तो क्या नाम ना होगा, यानी जैसे अपने अक्षय कुमार है वो कनाडा के नागरिक हो के भी अपने काम और आचरण के आवरण में देशभक्त है ओर उसके उलट उनकी अर्धांगिनी ट्विंकल खन्ना सिक-क्युलर यानी बीवी की तरफ से फिल्में मिलती रहेगी और अक्षय की तरफ से देश और दुनिया मे वाह वाही, यही दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह भी कर रहे हैं, अब देखो फ़िल्म का विरोध करने वालों ने फ़िल्म को ज़्यादा पब्लिसिटी दे दी, यानी जो मोदी विरोधी कभी फ़िल्म नही देखते वो भी अब इसे देखेंगे, या वो बेचारे गरीब JNU के छात्र जो अपनी 100 रु बढ़ी हुई फीस नही दे सकते क्योंकि उनका बाप महीने के सिर्फ 6000 रु कमाता है वो भी अब 600 रु ख़र्चके इसे देखेगा, चलो छोड़ो लेकिन एक चीज़ को तो समझ ही लो कि ये बॉलीवुड का पिछले 3 सालों में सरकार का विरोध।बढ़ने का प्रमुख कारण आज़ादी या अभिव्यक्ति की आज़ादी नही बल्कि नोटबन्दी से हुई काली कमाई पर रोक है, दूसरा जो यूपी की समाजवादी सरकार सैफई महोत्सव में इन भाँडो को नचवा के बदले में मोटी रकम के साथ साथ साहित्य कला परिषद के अंतर्गत अनेक भाँडो को 50000रु महीना पेंशन देती थी वो सब योगी सरकार ने आते ही बंद करवा दी तो बवासीर होना तो जायज़ है, कुछ कमर अब इन बड़े फ़िल्म निर्माताओं की इंटरनेट वेब सीरीज ने भी तोड़ दी है, तो भैया सब पैसे का खेल है, क्यों अपना खून फूंकते हो, वैसे दीपिका जी फ़िल्म में नदीम का नाम बदल कर राजेश रख देने से मेघना गुलज़ार को आत्मसंतुष्टि तो हो सकती है किंतु सच्चाई तो दुनिया जानती है कि लक्ष्मी को लूटने वाला कोई नदीम ही हो सकता है, राजेश नही...