22 अप्रैल, 2013

समाज का बलात्कार

दिल्ली एक ऐसी जगह है जहां सभी धर्म, सम्प्रदाय, जाति, समाज, प्रान्त और प्रदेश के लोग आकर बसते हैं और दिल्ली इन सभी को सहर्ष अपना लेती है। लेकिन ये सभी लोग जो विभिन्न सम्प्रदाय और प्रान्त के होते हैं शायद इसको नहीं अपनाते और इसको अपनी कर्मभूमि न मान कर इसके साथ अन्याय करते हैं। आये दिन होने वाली घटनायें, अपराध, बलात्कार और कितने ही और जघन्य अपराध जो यहाँ आये दिन होते हैं उनका सूत्र हमेशा किसी दूसरे प्रान्त या प्रदेश से जुड़ता है और खासकर वो लोग जो अपने परिवार को छोड़ कर काम काज की तलाश में दिल्ली मे रहते हैं अपने घर परिवार से दूर और अपनी सेक्स के प्रति कुंठा के परिणामस्वरूप ऐसे किसी अपराध का हिस्सा बन जाते हैं और अपनी दबी हुई कुंठित भावनाओं को एक विभत्स रूप दे बैठते हैं जिसका शायद वो परिणाम नहीं जानते। अक्सर ये लोग समाज के उस वर्ग से आते हैं जिनको क़ानून या सामजिक सोच से कोई लेना देना नहीं होता और ये अपराध की वो श्रेणी होती है जिसमे कोई पढाई लिखाई या सज़ा का उनके लिए कोई महत्व भी नहीं रह जाता। यही हाल यहाँ की सुरक्षा व्यस्था और पुलिस का है, क्यूंकि इस महकमे के अधिकतर अफसर और कर्मचारी भी दूसरे प्रान्त प्रदेश के होते हैं और उनमे भी लोगों के प्रति और समाज के प्रति एक अलग दृष्टिकोण होता है। और विभिन्न प्रान्त के होने के कारण उनमे आपसी सामंजस्य की कमी रहती है जिसका खामियाजा एक आम इंसान को भुगतना पड़ता है। इस सबके लिए व्यस्था बदलाव की ज़रुरत है निचले और बडे दोनों स्तर पर लेकिन जो बदलाव करने बैठे हैं वो भी इसी मिश्रित व्यस्था का हिस्सा है जो अपने आप को एक भारतीय न मान कर विभिन्न जाती और धर्म मैं अपने को बांधे बैठे हैं और जब तक ये सिलसिला चलेगा तब तक रोज़ यूँ ही बलात्कार होते रहंगे। बलात्कार समाज का भी, कमज़ोर व्यस्था का भी, और इंसान का भी ....