04 जून, 2015

बेचारी मैग्गी

समयाभाव और आजकल की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में कुछ चीज़ें ऐसी भी होती हैं जो वक़्त पड़ने पर हमारा साथ देती हैं, मैग्गी भी उन्ही में से एक है। केवल 2 मिनट में पक कर हमारी तृष्णा को शांत करने वाली आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। मैं ये नहीं कहता की गुणवत्ता की दृष्टि से वो श्रेष्ठ है लेकिन काम समय में अपनी क्षुधा को शांत करने का और कोई सरल उपाय भी शायद नहीं है। आज जो उस बेचारी की गुणवत्ता का आंकलन किया जा रहा है और उसके निर्माताओं से लेकर उसके विज्ञापन करने वाले सितारों तक को नापने की तैयारी हो रही है और किस आधार पे की उसमे लेड की मात्र या ग्लूटोमेट सोडियम या सरल भाषा में अजिनोमोटो की मात्र अधिक है। 
अब आप बतायें की जो सब्ज़ियाँ आजकल नदियों के किनारे या ज़मीन के पानी से सींच कर उगाई जा रही हैं उनमे कितने खतरनाक तत्त्व पाये जाते हैं, वो फल जो कार्बाइड इस्तेमाल करके पकाये जाते हैं उनमे क्या है, वो डिब्बाबंद खाना जिनमे प्रिज़र्वेटीव मिलाये जाते हैं वो क्या हैं, डेरी उत्पाद किस तरह बनाये जाते हैं सभी को पता है, बाज़ार में मिलने वाली लगभग हर वस्तु मिलावटी है और ये सत्य सभी जांच एजेंसी जानती हैं, और मज़े की बात तो ये है की जिस जांच एजेंसी ने उत्तर प्रदेश में मांगी पर सवाल उठाया है उसने ये सैंपल फरवरी 2014 में लिए थे, जो सैंपल लिया गया था वो खुद ही अगस्त 2014 में एक्सपायर हो जाती है और उसकी जांच की रिपोर्ट 15 मई 2015 को आती है।  यानी की अगर ये मुद्दा लोगों के स्वस्थ्य से जुड़ा है तो इतने लचर तरीके से उसकी जांच करना और इतना समय लगाना क्या ये हमारे साथ खिलवाड़ नहीं है। 
अब बात विज्ञापन करने वालो की, तो कृपया ये बताएं की जो लोग शराब, सिगरेट और पान मसाला या गुटका का विज्ञापन करते हैं वो क्या अमृत बेच रहे हैं जबकि उन्हें तो सीधे सीधे पता है की वो ज़हर हैं और क्या विज्ञापन करने वाले के साथ विज्ञापन दिखाने वाले चैनल ज़िम्मेदार नहीं हैं। 
एक आम आदमी क्या ये समझता है की हमारे शरीर को किस चीज़ की कितनी ज़रुरत है, डॉक्टर कहते हैं कैल्शियम, पोटासियम, मैग्नीशियम, आयरन, जिंक, वगेरह ये सभी हमारे शरीर के लिए ज़रूरी तत्व हैं तो क्या हमारा शरीर एक अलॉय है जो इन सब के मिश्रण से बनता है।  आम आदमी को बस अपना पेट भरना है और उसकी ज़रुरत है खाना, अब उसमे क्या है और क्या नहीं ये उसकी ज़रुरत भी नहीं है और उसको जानकारी भी नहीं है। 
अब बारी आती है दिल्ली के लोगों के स्वस्थ्य की।  तो कृपया बताएं की दिल्ली का पॉलुशन का लेवल क्या है? क्या ये दिल्ली की आबो हवा सांस लेने के लायक है? क्या इस हवा में हम अपने बच्चों को वो सभी बीमारियां नहीं दे रहे हैं जो खतरनाक हैं। हम इस तरफ से क्यों आँख बंद कर लेते हैं। क्या इसको नियंत्रित करना किसी भी सरकारी विभाग की ज़िम्मेदारी नहीं है।  किस किस चीज़ से बचेंगे और किस किस चीज़ पर पाबंदी लगाएंगे।  
एक मित्र में बड़ा ही अच्छा व्यंग भेजा था वो शेयर कर रहा हूँ की एक हॉस्टल में रहने वाले लड़के ने जो चार दिन से बिना नहाये हुए उसी कच्छे में घुमते हुए, हाथ में सुबह के झूठे दूध के मग में वोडका मिलाते हुए और सिगरेट का कश लगाते हुए कहा  "यार ये मैग्गी तो मिलावटी निकली, साली में लेड का ज़हर ही और इससे कैंसर हो सकता है, पता है तुझको"