11 दिसंबर, 2017

मैक्स हॉस्पिटल का गोरखधंदा

दिल्ली जैसी राजधानी क्षेत्र का एक बेहतरीन और नामचीन हॉस्पिटल अगर इतनी बड़ी लापरवाही करता है तो ज़िम्मेदार कौन है ? वो डॉक्टर, उसका प्रशाशन या फिर पूरा हॉस्पिटल ? आनन फानन में दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने हॉस्पिटल ला लाइसेंस रद्द करके वाहवाही लूट ली। सरकार इस से बेहतर निर्णय ले सकती थी। अस्पताल का अधिग्रहण शायद बेहतर फैसला होता। मैक्स अस्पताल के जिस किसी भी डॉक्टर ने यह अक्षम्य अपराध किया, उसे बख्सा नहीं जाना चाहिये। मेरा तो मानना है कि ऐसे व्यक्ति को फांसी पर चढ़ा दिया जाना चाहिये। लेकिन सरकार ने क्या किया, मीडिया में नाम चमकाने की कोशिश में एक बड़े अस्पताल को बंद करवा दिया। एक अस्पताल में 500 से ज्यादा लोग काम करते हैं, और 1-2 लोगों की गलती की वजह से सबकी नौकरी चली गई। रही बात उन 'अपराधियों' की, तो उनके ऊपर कोई कार्यवाही नहीं हुई, वो डॉक्टर के तौर पर, एडमिनिस्ट्रेटर के तौर पर किसी और अस्पताल से जुड़ेंगे, और कई और जिंदगियों से खिलवाड़ करेंगे। उनके लाइसेंस कौन रद्द करेगा साहब? इनकी गलती की सजा बाकी सैकड़ों लोगों के परिवारों को क्यों दी जा रही है? रही बात मैसेज देने की, तो जिस ग्रुप का यह अस्पताल है, उसके कई अस्पताल हैं। एक अस्पताल के बंद होने से उन्हें क्या और कितना फर्क पड़ेगा? वैसे भी, शेयर मार्केट में लिस्टेड इन कंपनियों में सरकारी संस्थाओं, बैंकों और आम लोगों का ही पैसा लगा रहता है, तो नुकसान किसका हुआ? इस मामले में 1-2 लोगों की गलती की सजा सैकड़ों परिवारों को दी जा रही है, और अपराधियों को एक और अपराध करने का मौका दिया जा रहा है। जैसे दिल्ली सरकार के मंत्री ने बलात्कार किया तो क्या इनकी पूरी सरकार को बर्खास्त किया जाना चाहिए था ? इस से बेहतर होता कि सरकार अस्पताल का टेकओवर करती (जैसे केंद्र सरकार ने कल ही यूनिटेक का टेकओवर किया है), और इसके संसाधनों का इस्तेमाल कर के गरीबों को विश्वस्तरीय चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराती। 

03 नवंबर, 2017

हिन्दू आतंकवाद की राजनीती

अभिनेता कमल हासन दरअसल अपने राजनितिक जीवन में एक ब्लॉकबस्टर शुरुआत चाहते हैं, दरअसल वो असमंजस में हैं की इसको मसालेदार कैसे बनाया जाये, इसीलिए जब वो कांग्रेस के नेताओं से मिलते हैं तो "GST और नोटबंदी" के खिलाफ बोलते हैं, जब केजरीवाल से मिलते हैं तो "भ्रष्टाचार" के खिलाफ लड़ाई बताते हैं, और अब कम्युनिस्टों से मिले तो उन्हें "हिन्दू आतंकवाद" याद आ गया .... हासन साहब फ़िल्मी किरदार और असल जीवन में फर्क होता है, आप लोगों के लिए एक आइडियल हो, जो आप कहते हो उसका लोगों पर प्रत्यक्ष या परोक्ष असर होता है, तो अपने थोड़े से राजनितिक फायदे के लिए आप देश, जनता और धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ ना करें। तालमेल बैठा कर बयानबाज़ी करें, राजनीती करो किसने रोका है लेकिन घटिया राजनीति मत करो...
आपको हिन्दू आतंकवाद दीखता है तो दुनिया भर में फैले असल आतंकवाद का क्या धर्म है वो भी बताओ, औकात पता चल जाएगी ....

12 जुलाई, 2017

आस्था की राजनीति

हम लोग उस देश में राम मंदिर बनाने का सपना देखते हैं जिसमे बनाना तो दूर मंदिर जाना भी कठिन है .... सवा सौ करोड़ की आबादी में से सौ करोड़ लोगों की आस्था पर बीस करोड़ लोगों के लिए की जाने वाली राजनीति हावी है। बहुसंख्यक होते हुए भी इस देश में अल्पसंख्यकों से भी बदतर धार्मिक हालात है, आस्था की एक डुबकी से लेकर अमरनाथ यात्रा तक सब आतंक के साये में रहता है और वो भी उस आतंक के जिसका आजतक धर्म या मज़हब नहीं पता चल सका। धर्म के नाम पर राजनीतिकरण उन्माद की स्थिति पैदा कर देता है। गाय को लेकर राजनीति धर्म को गर्त में लेकर जा रही है। मंदिर मस्जिदों की राजनीति आस्था पर प्रश्न खड़ा कर देती है। क्यों देश के राजनेताओं को विकास और तरक्की के रस्ते छोड़ कर धर्म के नाम पर की गयी राजनीति फायदेमंद दिखाई देती है ? कभी दही हांड़ी, कभी जलीकट्टू, कभी लाउड स्पीकर, कभी मंदिरो में प्रवेश के अधिकारों को लेकर और तो और भगवान् के अस्तित्व को लेकर लड़ाइयां लड़ी जा रही हैं। ये सब हमारी आस्था को तोड़ती हैं, धर्म के प्रति भी और लोकतंत्र के प्रति भी। विभिन्न प्रकार की सैकड़ों हज़ारों मान्यताओं वाले इस देश में आतंकवाद से बड़ा खतरा धर्म को अधर्म में बदलने का है।

16 जून, 2017

आओ चलो भीगें

बारिशों का मौसम है, नाव बनाओ और निकल पदों खुद को ढूंढ़ने, किसने रोका है... थोड़ा सा भीगने का मज़ा लो, हिचकोले खाने दो ज़िंदगी को... बारिशों के मज़े भी लेना चाहते हो तो छाता लेकर क्यूँ निकलते हो... कुछ बूंदे गिरेंगी भी तो ये मिटटी की काया गाल नहीं जाएगी, ब्रांडेड कपड़ो की कीमत काम नहीं हो जाएगी ... कूदो पानी में छपाक ... छींक आएगी तो घर पर एक कप अदरक और तुलसी की चाय पी लेना ... क्यों चिंता करते हो ....मौज लो ना ....

09 जून, 2017

शिवराज सरकार की नाकामी

सरकार को ये समझना चाहिए की राज करने की निति ही राजनीती कहलाती है, अपने मेनिफेस्टो के हिसाब से मत चलो, कई बार आउट ऑफ़ सिलेबस भी पेपर आ जाता है, सबको पता था की कांग्रेस जिसको सत्ता का खून मुह लग चूका है वो सत्ता जाने पर कितना बिलबिलाएगी, और आजकल तो सोशल मीडिआ पर बैठे सारी जानकारी मिल जाती है पर आपने तो अपनी सोशल मीडिया टीम में जबरदस्त जासूस बैठा रखे हैं जो बस दिन भर नेता जी का गुणगान करते रहते हैं.... माना ये विपक्ष या कांग्रेस की साजिश है अरे भाई विपक्ष का तो काम ही साजिश करना है लेकिन आप क्या झुनझुना बजा रहे हो .... कम से कम विपक्ष की साजिश का प्रो एक्टिव जवाब तो सोचो, ये मोदी जी के नाम पर इधर उधर से लाइक लेने छोड़ो और उनसे कुछ सीख लो क्यूंकि उन्ही के नाम पर तुम्हारी सरकार और देश चल रहा है ....

07 जून, 2017

मंदसौर किसान आंदोलन

मेरे एक मित्र ने लिखा की 5 किसानो को गोली मार दी वो क्या कोई दैवीय प्रकोप है या सरकार की साजिश तो मैने कहा दैविक प्रकोप से तो केवल 45 ट्रको में आग लगी है, लोगों और दुकानदारों को पीटा गया है, सरकारी सम्पत्ति को नुक्सान पहुँचाया है और ये सब तो वो बेचारा गरीब किसान कर रहा है जिसके घर में खाने को भी नहीं है और वो अपना क़र्ज़ भी नहीं चूका पा रहा, हाँ फसल को दिन रात अपने हांथो से सींच कर खुद ही वो उसको सड़क पर फेंक रहा है, उसके बच्चो को दूध मिले न मिले लेकिन वो सड़को पर दूध बहा रहा है, वो गाड़ी में बैठ कर आता है और मीडिया चैनल्स को इंटरव्यू देता है ....ये सब दैवीय प्रकोप से होता है हाँ जो 6 (किसान) मरे हैं वो पुलिस की ही गोली से मरे हैं .... दरअसल ये सेना नहीं थी ना जो चुपचाप पत्थर खा कर आ जाती ...
दोस्त जिस गरीब किसान की बात कर रहे हो न वो हमारा अन्नदाता है और उस बेचारे को तो फुर्सत भी नहीं है की वो इन सब बातों को जान सके, वो तो आजतक भी सरकारी योजनाओं के बारे में नहीं जानता और इसीलिए वो अपने क़र्ज़ से परेशान है लेकिन ज़रा सोच कर देखो की अगर ये अन्नदाता रूठ गया तो क्या होगा ....
ये गरीब किसान है और इस किसान का नाम "अमिताभ बच्चन" नहीं है ....

23 जनवरी, 2017

समाज सेवक

समाज सेवक की विडम्बना 
समाज सेवक की पत्नी ने कहा ‘तुम भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में शामिल मत हो जाना, वरना पड़ेगा पछताना।
बंद हो जायेगा मिलना कमीशन, रद्द हो जायेगा बालक का स्कूल में हुआ नया एडमीशन,
हमारे घर का काम ऐसे ही लोगों से चलता है, जिनका कुनबा दो नंबर के धन पर पलता है,
काले धन की बात भी तुम नहीं उठाना, मुश्किल हो जायेगा अपना ही खर्च जुटाना,
यह सच है जो मैंने तुम्हें बताया, फिर न कहना पहले क्यों नहीं समझाया।’
सुनकर समाज सेवक हंसे और बोले ‘‘मुझे समाज में अनुभवी कहा जाता है, इसलिये हर कोई आंदोलन में बुलाता है,
अरे, तुम्हें मालुम नहीं है आजकल क्रिकेट हो या समाज सेवा हर कोई अनुभवी आदमी से जोड़ता नाता है,
क्योंकि आंदोलन हो या खेल परिणाम फिक्स करना उसी को आता है, भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में मेरा जाना जरूरी है, जिसकी ईमानदारी से बहुत दूरी है, इसमें जाकर भाषण करूंगा, अपने ही समर्थकों में नया जोशा भरूंगा,
अपने किसी दानदाता का नाम कोई थोडे ही वहां लूंगा, बस, हवा में ही खींचकर शब्द बम दूंगा,
इस आधुनिक लोकतंत्र में मेरे जैसे ही लोग पलते हैं, जो आंदोलन के पेशे में ढलते हैं, 
भ्रष्टाचार का विरोध सुनकर तुम क्यों घबड़ाती हो, इस बार मॉल में शापिंग के समय तुम्हारे पर्स मे ज्यादा रकम होगी
जो तुम साथ ले जाती हो, इस देश में भ्रष्टाचार बन गया है शिष्टाचार, जैसे वह बढ़ेगा, उसके विरोध के साथ ही
अपना कमीशन भी चढ़ेगा,
आधुनिक लोकतंत्र में आंदोलन होते मैच की तरह एक दूसरे को गिरायेगा, दूसरा उसको हिलायेगा, 
अपनी समाज सेवा का धंधा ऐसा है जिस पर रहेगी हमेशा दौलत की छाया।’’

आजकल यूँ देखने को मिलता है, जब चुनावी माहौल हो तो हल गली नुक्कड़ पर कोई फूल खिलता है,
कुछ स्वयंभू समाजसेवक पोस्टरों में दिखाई देते हैं किन्तु कोई नहीं जानता समाज में वो अपना स्थान कहाँ रखते हैं ,
बरसाती मेंढक की तरह फुदक फुदक कर आते हैं, चुनावी बदल छंटते ही गायब हो जाते हैं,
पोस्टरों से दीवारें पटी पड़ी हैं, हाथ जोड़े समाज सेवक और सेविकायें उनमे खड़ी हैं,
शुभकामनाओं और नारों से हैं दीवारें बुलंद, नेताओं की फोटो ज़्यादा चेहरे पे मुस्कान मंद,
यूँ कहैं नेताओं की फ़ौज खड़ी है न्यारी, जितना मोटा चंद उतनी टिकट पक्की तुम्हारी ....