22 सितंबर, 2021

श्राद्ध, आस्था एवं पर्यावरण संगरक्षण

 एक कहानी सुनी थी एक भटके हुए नौजवान के द्वारा कि एक पंडितजी को नदी में तर्पण करते देख एक फकीर अपनी बाल्टी से पानी गिराकर जाप करने लगा कि.. "मेरी प्यासी गाय को पानी मिले।" पंडितजी ने कहा कि ऐसा करने से क्या होगा, तब उस फकीर ने कहा कि... जब आपके चढाये जल और भोग आपके पुरखों को मिल जाते हैं तो मेरी गाय को भी मिल जाएगा... इस पर पंडितजी बहुत लज्जित हुए।"

यह मनगढंत कहानी सुनाकर वो इंजीनियर मित्र जोर से ठठाकर हँसने लगे और कहने लगा कि-.
"सब पाखण्ड है जी..!"
शायद मैं कुछ ज्यादा ही सहिष्णु हूँ... इसीलिए, लोग मुझसे ऐसी बकवास करने से पहले ज्यादा सोचते नहीं है क्योंकि, पहले मैं सामने वाली की पूरी बात सुन लेता हूँ... उसके बाद ही उसे जबाब देता हूँ... चलो खैर... मैने कुछ कहा नहीं... बस, सामने मेज पर से 'कैलकुलेटर' उठाकर एक नंबर डायल किया... और, अपने कान से लगा लिया. बात न हो सकी... तो, उस इंजीनियर साहब से शिकायत की.. इस पर वे इंजीनियर साहब भड़क गए. और, बोले- " ये क्या मज़ाक है...??? 'कैलकुलेटर' में मोबाइल का फंक्शन भला कैसे काम करेगा..???" ️तब मैंने कहा.... तुमने सही कहा... वही तो मैं भी कह रहा हूँ कि.... स्थूल शरीर छोड़ चुके लोगों के लिए बनी व्यवस्था जीवित प्राणियों पर कैसे काम करेगी ???
इस पर इंजीनियर साहब अपनी झेंप मिटाते हुए कहने लगे- "ये सब पाखण्ड है , अगर ये सच है... तो, इसे सिद्ध करके दिखाइए"... इस पर मैने कहा.... ये सब छोड़िए और, ये बताइए कि न्युक्लीअर पर न्युट्रान के बम्बारमेण्ट करने से क्या ऊर्जा निकलती है ?
वो बोले - " बिल्कुल ! इट्स कॉल्ड एटॉमिक एनर्जी।"
️फिर, मैने उन्हें एक चॉक और पेपरवेट देकर कहा, अब आपके हाथ में बहुत सारे न्युक्लीयर्स भी हैं और न्युट्रांस भी...! अब आप इसमें से एनर्जी निकाल के दिखाइए... साहब समझ गए और तनिक लजा भी गए एवं बोले- "जी , एक काम याद आ गया... बाद में बात करते हैं " और निकल लिए, कहने का मतलब है कि... यदि, हम किसी विषय/तथ्य को प्रत्यक्षतः सिद्ध नहीं कर सकते तो इसका अर्थ है कि हमारे पास समुचित ज्ञान, संसाधन वा अनुकूल परिस्थितियाँ नहीं है , परंतु इसका मतलब ये कतई नहीं कि वह तथ्य ही गलत है... अब क्योंकि, सिद्धांत रूप से तो हवा में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन दोनों मौजूद है.. फिर , हवा से ही पानी क्यों नहीं बना लेते ? वैसे ये भी संभव हुआ है.. पर यदि अब आप हवा से पानी नहीं बना रहे हैं तो... इसका मतलब ये थोड़े ना घोषित कर दोगे कि हवा में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन ही नहीं है... उसी तरह... हमारे द्वारा श्रद्धा से किए गए सभी कर्म दान आदि भी आध्यात्मिक ऊर्जा के रूप में हमारे पितरों तक अवश्य पहुँचते हैं...
सत्य और श्रद्धा से किए गए कर्म श्राद्ध और जिस कर्म से माता, पिता और आचार्य तृप्त हो वह तर्पण है। वेदों में श्राद्ध को पितृयज्ञ कहा गया है। यह श्राद्ध-तर्पण हमारे पूर्वजों, माता, पिता और आचार्य के प्रति सम्मान का भाव है। यह पितृयज्ञ सम्पन्न होता है सन्तानोत्पत्ति और सन्तान की सही शिक्षा-दीक्षा से.. इसी से 'पितृ ऋण' भी चुकता होता है...इसीलिए, व्यर्थ के कुतर्को मे फँसकर अपने धर्म व संस्कार के प्रति कुण्ठा न पालें..और हाँ.. जहाँ तक रह गई वैज्ञानिकता की बात तो.... क्या आपने किसी भी दिन पीपल और बरगद के पौधे लगाए हैं...या, किसी को लगाते हुए देखा है? क्या फिर पीपल या बरगद के बीज मिलते हैं ? इसका जवाब है नहीं... इसका कारण यह है कि प्रकृति ने यह दोनों उपयोगी वृक्षों को लगाने के लिए अलग ही व्यवस्था कर रखी है... जब कौए इन दोनों वृक्षों के फल को खाते हैं तो उनके पेट में ही बीज की प्रोसेसिंग होती है और तब जाकर बीज उगने लायक होते हैं... उसके पश्चात कौवे जहां-जहां बीट करते हैं, वहां वहां पर यह दोनों वृक्ष उगते हैं. और... किसी को भी बताने की आवश्यकता नहीं है कि पीपल जगत का एक ऐसा वृक्ष है जो round-the-clock ऑक्सीजन (O2) देता है और वहीं बरगद के औषधि गुण अपरम्पार है... अब हम श्राद्ध पक्ष में पीपल को भी सींचते हैं एवं साथ ही आप में से बहुत लोगों को यह मालूम ही होगा कि मादा कौआ भादो महीने में अंडा देती है और नवजात बच्चा पैदा होता है. तो, इस नयी पीढ़ी के उपयोगी पक्षी को पौष्टिक और भरपूर आहार मिलना जरूरी है.. शायद, इसलिए ऋषि मुनियों ने कौवों के नवजात बच्चों के लिए हर छत पर श्राघ्द के रूप मे पौष्टिक आहार की व्यवस्था कर दी होगी. जिससे कि कौवों की नई जनरेशन का पालन पोषण हो जाये...इसीलिए.. श्राघ्द का तर्पण करना न सिर्फ हमारी आस्था का विषय है बल्कि यह प्रकृति के रक्षण के लिए नितांत आवश्यक है.. साथ ही... जब आप पीपल के पेड़ को देखोगे तो अपने पूर्वज तो याद आएंगे ही क्योंकि उन्होंने श्राद्ध दिया था इसीलिए यह दोनों उपयोगी पेड़ हम देख रहे हैं... अतः.... सनातन धर्म और उसकी परंपराओं पे उंगली उठाने वालों से इतना ही कहना है कि.... उस समय भी हमारे ऋषि मुनियों को मालूम था कि धरती गोल है और हमारे सौरमंडल में 9 ग्रह हैं और उनका हमारे जीवन पर क्या प्रभाव है, साथ ही... हमें ये भी पता था कि किस बीमारी का इलाज क्या है... कौन सी चीज खाने लायक है और कौन सी नहीं...? आप आधुनिक बनिये अच्छी बात है परन्तु अपनी संस्कृति और आस्था को भी बनाये रखिये...

17 अगस्त, 2021

अटल बिहारी वाजपेयी "सदैव अटल"

 "अटल" सरीखे व्यक्तित्व मरा नही करते, वो अ-टल हैं, अमर हैं, अनंत हैं.. भारत की राजनीति के वो युग प्रवर्तक नेता जिन्होंने गुलामी से लेकर आज़ादी से होकर आज के नए भारत के सूर्योदय तक को देखा और इसके सृजन में अपना अतुलनीय योगदान दिया। अटल जी की राजनीति में विपक्ष तो था किंतु उनका विरोधी कोई नही था, उनके राजनीतिक मतभेद थे किंतु किसी से मनभेद नही थे, ऐसे विरले ही होते है जिनके व्यक्तित्व की सराहना उनके प्रतिद्वंदी भी करते थे, मेरे हिसाब से तो भारतीय राजनीति में केवल अटल बिहारी बाजपाई जी और लाल बहादुर शास्त्री जी, ये दो प्रखर नेता ही ऐसे हुए है जिनको दिल से सम्मान मिला, उनका अनुसरण किया गया और शायद चाह कर भी कोई उनका विरोध नही कर सका। विलक्षण प्रतिभा के धनी, जिनका हर शब्द अपने आप मे एक कविता होता था, थोड़े में बहुत कुछ कहने वाले ...

मैं भी लिखने बैठा तो जाने क्या क्या उमड़ा था मन मे किन्तु सब शून्य से हो गया है, स्तब्ध और निशब्द सा हो गया हूँ, अटल जैसी शख्शियत मरा नही करती, वो दिलो में जिंदा रहती है, एक विचारधारा बन कर मन मष्तिष्क पर सदियों राज करती है...

विनम्र श्रद्धांजलि ...

15 जुलाई, 2021

जी ले ज़रा...

 ज़रा सा ही फ़र्क़ होता है, लोगों के जिंदा रहने में और एक दिन ना रहने में... अभी कुछ ही दिनों में इतने सारे लोग जो गए हैं, क्या कभी इनको देखकर ऐसा लगा था कि ये यूंही चले जायेंगे, बिना कुछ कहे, बिना कुछ बताए.. उन सब से हमें कुछ ना कुछ लगाव था, कुछ शिकायतें थीं, कुछ नाराज़गी भी थी,जो कभी कही नहीं हमने और... कहा तो वो भी नहीं था जो इन सब इंसानों में बेहद पसंद था हमें.. फिर अचानक एक दिन खबर आती है, ये नहीं रहे, वो नहीं रहे... नहीं रहे मतलब, कैसे नहीं रहे ? कैसे एक पल में सब बदल जाता है.. वही सारे लोग जिनसे हम मिले थे अभी कुछ समय पहले, वे इतनी जल्दी गायब कैसे हो सकते हैं कि दोबारा मिलेंगे ही नहीं.. जैसे वे कभी कुछ बोले ही न थे, ना जिये,जैसे कोई बेजान खिलौना, जिसकी चाबी खत्म हो गयी हो.. कितना कुछ कहना रह गया उन सब को, कहीं घूमने फिरने जाना था उन सब के साथ, खाना भी खाना था, पार्टियां भी करनी थीं.. कुछ बताना था, कुछ कहना भी था उन सब को, बहुत सी बातें करनी थी फ़िज़ूल की ही सही, वो भी कहाँ हो पाया... सब रह गया,वो सब चले गए,न हम सब तैयार थे उन्हें रुख़सत करने के लिए, न वो सब तैयार थे रुख़्सती के लिए.. फिर ऐसे ही एक दिन हमारी भी खबर आनी है, एक सुबह कि वो फलाने नहीं रहे.. लोग अरे! कह के एक मिनिट खामोश होंगे फिर जीवन बढ़ जाएगा आगे.. इसलिए आओ तैयारी कर लेते हैं, सब नाराज़गी, शिकायतों और तारीफों का हिसाब चुका के रख लेते हैं... और ये आज ही कर लें क्योंकि कल भी कल के भरोसे और अनिश्चित है.. कल तक जाने और क्या क्या हो जाए.. ज़िंदगी हल्की हो जाएगी, तो आखिरी सांस पर मलाल का वज़न नहीं रहेगा... क्योंकि... ज़रा सा ही फ़र्क़ होता है, लोगों के जिंदा रहने में और एक दिन ना रहने में...

15 जून, 2021

श्री राम जी का मंदिर

 उत्तरप्रदेश में चुनाव का शंखनाद हो चुका है, और इस चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा बनाकर श्रीराम मंदिर और योगी आदियत्यनाथ की साख पर सबसे ज़्यादा प्रहार किए जाएंगे क्योंकि दोनों ही हिंदुत्व के गौरव का प्रतीक हैं, और विपक्षी भेड़िए इन पर हिंदुओ को बांटे बिना जीत नही सकता... ये राजनीति की बिसात है, इसमें साम दाम दंड भेद के अलावा धार्मिक तुष्टिकरण भी महत्वपूर्ण है, और किंचित विपक्ष के पास यही एक मुद्दा बचा है.. जातीय व धार्मिक वोटो की जोड़ तोड़.. अब इसे यूँ समझिए कि यदि आप राम मंदिर के लिए भूमि अधिग्रहण को लेकर आपियों और साँपियों के झूठ के 24 घंटे में नंगा होने पर खुश हो रहे हैं तो थोड़ा रुक जाइये.... और उनके अगले स्टेप को भी जानिए.. अब जल्दी ही इस मामले में एक आत्ममुग्ध वकील भी कूदने वाला है जो भाजपाई भी है.. नाम को ही सही.. साथ ही वामी टीम यानी योगेंद्र यादव व प्रशांत भूषण भी कूदेंगे... राजनीतिक ज़मीन तो ये भी तलाश रहे हैं.. ये मामले को जमीन का विवाद बना वक्फ बोर्ड बनाम कोई अन्य का मुकदमा खड़ा किया जाएगा और अधिग्रहण के काम रोकने का प्रयत्न होगा या ट्रस्ट द्वारा जमीन की खरीद को अवैध बताया जाएगा... और कोर्ट के जरिये निर्माण कार्य को रोकने का प्रयत्न होगा... याद रहे निर्माण उस जमीन से कहीं ज्यादा हिस्सों पर होना है जिसपर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है, क्योंकि अयोध्या में केवल मंदिर निर्माण ही नही हो रहा, पूरी अयोध्या नगरी को सजाया जा रहा है.. अब सैफई के टीपू सुल्तान, केजरी टीम और पूरा वामपंथी गैंग किसी भी तरह हर हाल में 2022 से पहले चाहे एक दिन को रुके मंदिर निर्माण रोकना चाहते हैं ताकि अपने वोट बैंक को यक़ीन दिला सकें के सरकार बनने पर वे मंदिर नहीं बनने देंगे... इसी क्रम में अयोध्या में कोई हिंसक घटना भी होती है तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा...परंतु आप केवल और केवल अपने प्रभु श्रीराम पर आस्था बनाये रखिये, उन्होंने सही लोगों को चुना है अयोध्या के जीर्णोद्धार के लिए.. बाकी विपक्ष जो करे वो करने दीजिए, ये उनके राजनीतिक अस्तित्व का सवाल है और उसके लिए ये किसी भी हद तक जाएंगे सत्ता के लिए.. लिख लीजिए... जय श्रीराम

26 मई, 2021

मोदी जी ने हमारे बच्चो की वैक्सीन विदेश क्यों भेजी ?

 वैक्सीन एक्सपोर्ट को लेकर देश मे एक भ्रम फैलाया जा रहा है, पोस्टरबाजी हो रही है कि मोदी ने हमारे बच्चो की वैक्सीन विदेश में भेज दी, या बेच दी या एक्सपोर्ट कर दी, वगेरा.. किन्तु इसका सच जानना और समझना भी ज़रूरी है, देश मे कुछ जिहादी और सेकुलर लगातार एक ही मुद्दा उठा रहे हैं कितनी वैक्सीन कहां भेजी गई और क्यों भेजी गई ? इसका पूरा हिसाब किताब कुछ इस तरह है, समझ लेना... 11 मई तक भारत ने कुल 6.6 करोड़ वैक्सीन के डोज विदेशों में निर्यात किए हैं । इसमें से 84 प्रतिशत यानी करीब 5 करोड़ वैक्सीन लाइसेंसिंग लाइबेलिटी के तहत बाहर भेजी गई है । लाइबेलिटी मतलब भारतीय कंपनी के द्वारा विदेशी कंपनी या दूसरे देश के साथ हुए समझौते के तहत वैक्सीन को बाहर भेजा गया है । अगर भारत की कंपनी वैक्सीन बाहर भेजने का समझौता स्वीकार नहीं करती तो भारतीय कंपनियों को वैक्सीन बनाने का कच्चा माल, टेक्नोलॉजी और फार्मूला ही नहीं मिलता... भारत में जो कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट वैक्सीन बनाती है वो वैक्सीन बनाने का कच्चा माल विदेशों से इम्पोर्ट करती है । जिन देशों ने भारत की कंपनियो को ये कच्चा माल दिया । उन देशों ने भारत की वैक्सीन निर्माता कंपनियों से करार किया कि हम आपको कच्चा माल तभी देंगे जब आप वैक्सीन बनाने के बाद कुछ प्रतिशत हमको भी बेचेंगे । इस वैक्सीन के लिए भारतीय कंपनियों को पेमेंट भी दी गई है । लगभग 5 करोड़ वैक्सीन ऐसे ही कुछ अनुबंधों के तहत विदेशों में भेजना भारत की कंपनियों की व्यवसायिक जिम्मेदारी थी । इसके अलावा एक करोड़ 7 लाख वैक्सीन मदद के रूप में भारत के पड़ोसी देशों को भेजी गई है । अब मज़े की बात, आपको ये बात जानकार आश्चर्य होगा कि आज बहुत सारे जिहादी और इस्लाम परस्त सेकुलर भी वैक्सीन एक्सपोर्ट को लेकर भारत सरकार को घेर रहे हैं.. लेकिन सच्चाई ये है कि भारत की कंपनियों ने कुल एक्सपोर्ट हुई वैक्सीन का 12.5 प्रतिशत सऊदी अरब को एक्सपोर्ट किया है.. सऊदी अरब में 15 लाख 40 हजार भारतीय रहते हैं और ये बताने की जरूरत नहीं है कि इनमें से 90 प्रतिशत मुसलमान हैं.. भारत ने यहां से जो वैक्सीन सऊदी अरब को एक्सपोर्ट की है वो सारी वैक्सीन सऊदी अरब में रहने वाले इन हिंदुस्तानी नागरिकों को मुफ्त में लगाई जा रही है.. फिर भी भारत में मौजूद जिहादी हल्ला हंगामा काट रहे हैं क्योंकि मकसद सिर्फ मोदी का विरोध है... भारत ने 2 लाख वैक्सीन डोज युनाइटेड नेशन पीस कीपिंग फोर्स को दिया है.. भारत के बाहर भी भारत के हजारों जवान संयुक्त राष्ट्र के मिशन के तहत शांति सेना के रूप में नियुक्त हैं.. इन हजारों जवानों को भी वैक्सीन लगाने के लिए वैक्सीन एक्सपोर्ट की गई है.. अब जिहादी जवाब दें कि क्या वैक्सीन भारत के सैनिकों और जवानो को लगे तो उन्हें कोई दिक्कत है ? इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक कोवैक्स फैसेलिटी का निर्माण किया है.. भारत सरकार को WHO के इस कोवैक्स फैसेलिटी को कुल एक्सपोर्ट वैक्सीन का 30 प्रतिशत भेजना पड़ा.. ये दुनिया में गरीब देशों की मदद के लिए किया गया एक समझौता था जिस पर हर देश के साइन हैं.. अगर आज मोदी के अलावा कांग्रेस का भी प्रधानमंत्री होता तो भी उसको ये वैक्सीन WHO को भेजना ही पड़ता.. कमर्शियल लाइसेंसिंग क्या होती है ? इस बात को आप ऑक्सफोर्ड और सीरम की वैक्सीन कोविशील्ड से भी समझ सकते हैं.. दरअसल सीरम भारत की कंपनी है जो वैक्सीन बनाती है.. लेकिन उसने लाइसेंस और फॉर्मूला ब्रिटेन की कंपनी एक्स्ट्राजेनेका (ऑक्सफोर्ड) का लिया हुआ है.. पहले ऑक्सफोर्ड ने भारतीय कंपनी सीरम से बिलकुल साफ कहा था कि हम आपको लाइसेंस तभी देंगे जब आप हर महीने हमें 50 लाख वैक्सीन बनाकर देंगे.. तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद ब्रिटेन की सरकार से बात करके इस रुकावट को दूर किया और सीरम को लाइसेंस मिला नहीं तो कोवीशील्ड वैक्सीन तो भारत में बन ही नहीं पाती.. इसके अलावा भारत सरकार ने 7 पड़ोसी देशों को भी वैक्सीन भेजी है.. ये सारे पड़ोसी देश लगातार चीन के प्रभाव में आते जा रहे हैं.. अगर यहां भारत ने वैक्सीन नहीं भेजी होती तो चीन इन देशों पर और ज्यादा प्रभाव जमा लेता.. इसलिए भारत ने बांग्लादेश भूटान श्रीलंका अफगानिस्तान वगैरह को वैक्सीन भेजी है.. अब इसे इस उदाहरण से समझिए... चीन ने बांग्लादेश को अपनी वैक्सीन ऑफर की लेकिन बांग्लादेश ने मना कर दिया और भारत का हाथ पकड़ा.. लेकिन अब जरा विचार कीजिए कि जो चीन पाकिस्तान से हर चीज की कीमत वसूल रहा है उसी चीन को आखिरकार मजबूरी में बांग्लादेश को फ्री वैक्सीन गिफ्ट के तौर पर भी ऑफर करनी पड़ी.. सोचिए वैक्सीन के नाम पर इतनी बडी कूटनीति चल रही है.. दरअसल भारत को भी ये कूटनीति करनी पड़ती है आप अपनी सीमा पर हर तरफ दुश्मनी मोल नहीं ले सकते हैं.. कुछ लोग ये अफवाह भी उड़ा रहे हैं कि भारत सरकार ने पाकिस्तान को वैक्सीन भेज दी है ये बात बिलकुल गलत है.. दरअसल सच्चाई ये है कि कोवीशील्ड बनाने वाली ब्रिटेन की कंपनी एक्सट्राजेनेका से पाकिस्तान सरकार का समझौता हुआ है उसी के तहत वैक्सीन डोज पाकिस्तान भी भेजे गए हैं.. लेकिन इसमें भारत सरकार और किसी भी भारतीय कंपनी का कोई रोल नहीं है.. और सबसे बड़ी बात ये है कि वैक्सीन का एक्सपोर्ट फर्स्ट वेव के बाद किया गया था जब हमारे देश में लोग वैक्सीन लगवाने के लिए तैयार ही नहीं थे और सारे के सारे केजरीवाल, राहुल, अखिलेश ब्रांड विपक्षी नेता वैक्सीन की क्वालिटी पर ही सवाल खड़े कर रहे थे... तो आप सभी लोगों से ये अपील है कि संकट के इस समय में भ्रम मत फैलने दीजिए और भ्रम फैलाने वाले चमचों, आपियो और सिक-क्युलर लिब्राण्डउओं को इस पोस्ट से करारा जवाब दीजिए...

05 अप्रैल, 2021

बीजापुर नक्सली हमला... साजिश ?

 छत्तीसगढ़ में हुए नक्सली हमले में 22 जवान शहीद हुए हैं, 30 घायल है एवं कुछ लापता भी हैं.. कुछ कहते हैं ये इंटेलीजेंस फेलियर है, कुछ राज्य सरकार को तो कुछ केंद्र को दोषारोपण कर रहे हैं.. अंततः कुछ समय के वाद विवाद के बाद ये भी इतिहास में दर्ज हो जाएगा और फिर इसे गाहे बगाहे किसी चुनावी रैली में सरकार की नाकामियों के संदर्भ में भुनाया जाएगा.. क्यों इन सुरसा रूपी समस्याओं का हल नही निकलता, नक्सलवाद आतंकवाद से भी विभत्स है, ये राजनीतिक संगरक्षण में पलने वाले मानवाधिकार की दुहाई देकर मानव की हत्या करने वाले क्रूर मानसिकता के लोग है, जंगली नक्सल एवं अर्बन नक्सल दोनों ही रूप में खतरनाक है, वरवरा राव अभी कुछ दिन पहले जेल से छुटा और ये उसने जश्न मनाया, एक पहलू और भी है, CRPF की 45 कंपनियां बंगाल में तैनात हैं, दीदी को चुभ रहा है, और काँग्रेस और लेफ्ट को भी, मोदी और अमित शाह ने बंगाल की हवा बदल रखीं है, तो क्या ये हमला साजिशन हुआ, या चुनावी रणनीति की भेंट चढ़ गए ये जवान.. क्यों निज स्वार्थ के लिए, किसी की राजनीतिक मेहत्वकांगशाओ के लिए, किसी गधे को घोड़ा बनाने के लिए ये बलि ली जाती है... हज़ारों लोग हर साल प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में राजनीतिक बलि चढ़ाए जाते हैं.. राजनीतिक स्थिरता के लिए देश मे अस्तिर्था बनाये रखी जाती है... नक्सलियो का समर्थन करने वाले उन्हें कमज़ोर दर्शाते हैं जिनके पास आधुनिक हथियार, राकेट लांचर, ड्रोन तक हैं... देश आतंकवाद से त्रस्त है, सैकड़ों निर्दोष इसका शिकार हुए हैं, हमारी सेना एवं अर्ध सैनिक बलों ने सालों तक अपने हाथ बांध कर इसका सामना किया, आरोप झेले, शहादत दी पर उफ्फ तक नही की। बड़े हमले हुए, आतंकी हमारे घरों तक घुस आए, लेकिन हमने सिर्फ अपने बचने की दुआ मांगी और सैनिकों की शहादत पर मोमबत्तियां जलायीं, पल भर की देशभक्ति जागी, वन्दे मातरम.. भारत माता की जय.. जय हिंद के नारे लगाए, चाय समोसा खाये, हाथ झाड़े और अपने सुरक्षित घरों में वापस आ गए, पल भर के लिए हिन्दू, मुसलमान, जाट गुर्जर, सवर्ण दलित, उत्तर भारत दक्षिण भारत सब एक हो गया। अच्छा लगा.. और फिर आता है सबूत का कीड़ा, जो सब किये कराए पर पानी फेर देता है, जो काटता है, ज़हर उगलता है, पीड़ा देता है और फिर ज़ख्म का नासूर बना देता है। ये राजनीति भी बड़ी कुत्ती चीज़ है, किसी की सगी नही होती, निहित स्वार्थ राष्ट्रहित से भी ऊपर और अवसरवादिता शहादत के सीने पर पैर रख कर सफलता की सीढ़ी बनती है, हमारे स्वाभिमान और अस्मिता को कुचलने वाले दुश्मन से भी गलबहियां की जाती है, अपनी ही सरकार, सेना और सुरक्षा प्रणाली से सवाल किया जाता है, उनकी गरिमा को चोट पहुंचाई जाती है, उनके सामर्थ्य पर प्रश्नचिन्ह लगाया जाता है। और देश की जनता किंकर्तव्यविमूढ़ सी असमंजस की स्थिति में ठगी सी रह जाती है, किन्तु जनता की भी अपनी मजबूरी है, भक्ति और चमचागिरी की भी अपनी एक मजबूरी है और वैसे भी जनता का क्या है उसे तो बस सब्ज़ी के साथ धनिया मुफ्त मिलना चाहिए...

27 मार्च, 2021

अरविन्द केजरीवाल, दिल्ली का मालिक या दिल्ली का किरायेदार

 अभी कुछ दिन पहले ही मैंने दिल्ली में लागू GNCTD एक्ट के संबंध में लिखा था जिसके अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट के द्वारा उपराज्यपाल की प्रशासनिक शक्तियों की नीतिगत व्याख्या की गई है.. इसका फायदा क्या होगा इसको कुछ ऐसे समझिए कि पहले दिल्ली पुलिस अगर किसी क्रिमिनल , दंगाई या आतंकवादी को गिरफ़्तार करती थी तो chargesheet कोर्ट में दायर करने के लिए दिल्ली सरकार की पर्मिशन अनिवार्य थी , दिल्ली सरकार जानबूझकर बड़े केस में पर्मिशन नहीं देती थी जिस कारण समय पर चार्जशीट दायर न होने के कारण आरोपी को बेल मिल जाता था.. इसका उदाहरण जैसे JNU प्रकरण में हुआ, शाहीन बाग और फिर अभी पिछले साल हुए दिल्ली दंगे में पकड़े गए ज़्यादातर दंगाई के ख़िलाफ़ केजरीवाल सरकार के पर्मिशन न मिलने के कारण पुलीस चार्जशीट दायर नहीं कर पायी है और दंगाई को बेल मिल रही है , आप समझ सकते है केजरीवाल के द्वारा किसी धर्मविशेष को इसमें फ़ायदा पहुँचाया जा रहा है.. GNCTD amendment Bill पास होने के बाद अब केजरीवाल सरकार ऐसा नहीं कर पाएगी, अब दिल्ली पुलिस को गुंडे , आतंकवादी और दंगाई के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर करने के लिए केजरीवाल सरकार से पर्मिशन नहीं लेनी पड़ेगी, इसलिए केजरीवाल जी को मिर्ची लगना स्वाभाविक है... एक और उदाहरण देता हूँ, जैसे ये जनाब काम कम और उसका ढोल ज़्यादा पीटते हैं तो अब यूँ समझो कि केजरीवाल दिल्ली में एक गली में सीवरेज डालने का विज्ञापन युगांडा के अखबारों में नहीं दे सकेगा... ये भाईसाहब अवसरवादिता के कीड़े के शिकार हैं, पहले जब इसने दिल्ली में मोहल्ला क्लीनिक खोले थे तो वो सभी इन्होंने अपने क्षेत्रीय नेताओ, पार्षदों या विधायको की प्रॉपर्टी किराए पर लेकर उन्हें ऊंचे किराए दे कर खोले थे, उसी तर्ज पर इसने अब दिल्ली के हर मंडल स्तर पर 3-3 प्राइवेट शराब के ठेके खोलने की अनुमति दी है पर शर्त ये है कि वो दुकान या प्रॉपर्टी भी किसी पार्षद, विधायक या मंत्री की होगी ताकि आने वाले चुनावों में इसका भरपूर फायदा भी उठाया जा सके.. ये अपने वोट बैंक के लिए दिल्ली की महिलाओं को मुफ्तखोरी की लत लगा रहा है, और जब दिल्ली का युवा अब इसके फ्री wifi के झांसे से निकल गया तो उसको शराब की लत लगाना चाहता है, इसने दिल्ली में महिलाओं के लिए भी प्राइवेट पिंक बार खुलवाए हैं.. ये नक्सली सोच का व्यक्ति देश की महिला शक्ति एवं युवाओं की जड़ो में मट्ठा डाल रहा है ताकि अपनी राजनीति की आड़ में विदेशी एजेंडा को चलाता रहे... पर अभी सिर्फ लगाम लगाई है, उसे कसना बाकी है.. जो अपने आप को दिल्ली का मालिक कहता था वो अब दिल्ली का किरायेदार बन कर रह गया...

25 मार्च, 2021

दिल्ली का असली मालिक

दिल्ली के स्वयंभू मालिक अरविंद केजरीवाल को समस्या केंद्र सरकार की नीतियों से नही बल्कि केंद्र सरकार से है, क्योंकि वो स्वयं भी जानता है कि नीति निर्माण पूर्णतया संवैधानिक तरीके से ही किया जाता है किंतु उसकी बेचारी मुफ्तखोर पलटन नही जानती और शायद जानना भी नही चाहती.. बेचारे अपने बिजली पानी मे पैसे बचा कर खुश हैं.. इसको अब ऐसे समझो कि ये जनाब जिस NCT_Act संशोधन बिल को लेकर शोर मचा रहे हैं कि हमारी शक्तियां छीन ली, LG को दिल्ली का मालिक बना दिया, वो बिल तो लोकसभा से और राज्यसभा से पास हो जाएगा और इस केजरीवाल को पता है कि ये संसोधन सुप्रीम कोर्ट में भी valid ही रहेगा क्योंकि इसमें संविधान की अवहेलना नही की गई है इसीलिए केजरीवाल परेशान है... अब इसको इस तरह से समझिए... तकनीकी रूप (संवैधानिक) से केंद्र में जो मोदी सरकार है वो राष्ट्रपति की ही सरकार है और उनके नाम से चलती है, इसीलिए तो संसद सत्र से पूर्व राष्ट्रपति जी का भाषण होता है जिसमे वो अपनी सरकार के काम काज के बारे में बताते है.. अब उसी तरह से सभी राज्य सरकार भी उंस प्रदेश के राज्यपाल के नाम से चलती हैं और विधान सभा का सत्र राज्यपाल के अभिभाषण से ही शुरू होता है.. इसी तरह केन्द्रशशित प्रदेशो में भी यही स्तिथि होती है.. वहां की सरकार उपराज्यपाल की सरकार कही जाती है.. दिल्ली की स्थिति देश की राजधानी भी होने के कारण थोड़ी से भिन्न है.. कुछ दिनों पूर्व सुप्रीमकोर्ट ने NCT एक्ट की धारा 239 AA में दिल्ली सरकार के अधिकार स्पष्ट कर दिए थे पर 239AA स्पष्ट ना होने के कारण उपराज्यपाल के अधिकारों की व्याख्या नही हुई थी जिसकी वजह से संवैधानिक भ्रम बना हुआ था.. जिसके परिणाम स्वरूप जो राज्यो और राज्यपालों के तथा केन्द्रशशित राज्यों में सरकार और उपराज्यपालो के सम्बंध थे वो दिल्ली में गायब हो गए थे.. इसी विसंगति को सरकार ने दूर किया है.. तकनीकी रूप से जैसे और केन्द्रशशित सरकार ,उपराज्यपाल की सरकार होती है अब दिल्ली में भी वो ही व्यवस्था लागू होगी... इसलिए केजरीवाल परेशान है, क्योंकि उसे अब वो सब करना होगा जो हर राज्य की विधानसभा गवर्नर के साथ करती है या उन सभी केन्द्रशासीत प्रदेशो में वहां की विधासभा उपराज्यपाल के साथ करती है... इसीलिए इन भाईसाहब के पेट मे मरोड़ उठ रही है कि अब इनकी मनमर्ज़ी की गुंडागर्दी, लूटखसोट, बंदरबाट और मुफ्तखोरी पर लगाम लगेगी... चमचों गुलाम मत बनो, थोड़ी समझदारी भी रखो...

12 मार्च, 2021

बंगाल में खेला होबे

आज सुबह 4-5 वामपंथी मच्छरों ने मेरे पैर पर हमला कर दिया, जिससे मेरे पैर में गंभीर सूजन आ गई है और मेरे सीने में भी दर्द हो गया है,अब मुझे भी पैर में टूटी हुई हड्डियों के माहिर सलीम पहलवान से पैर पर प्लास्टर चढ़वाना पड़ेगा तभी क्षेत्र के लोगों को मुझ से सहानुभूति होगी. ये विपक्ष की साजिश है क्योंकि मैं अपने मोहल्ले के RWA का चुनाव जीत रहा हूँ और विपक्ष मुझे मिलने वाले समर्थन से बौखला गया है.. इसीलिए ये उन्होंने मेरे खिलाफ साजिश की है.. . मेरी सुरक्षा में लगे आल आउट और काला हिट भी चुनाव आयोग ने बदल दिये.. मैं इसकी मलेरिया विभाग में शिकायत करूंगा... ई ना चोलबे...

09 मार्च, 2021

सोशल मीडिया की खेती

मैं भी सोशल मीडिया का किसान ही तो हूँ, मैं भी सारा दिन हल चलाता हूँ, अलग अलग विषयो पर सृजन के बीज बोता हूँ, सींचता हूँ... अपनी अभिव्यक्ति की, विचारों की फसल बोता हूँ.. मौका मिलते ही विपक्षियों की राष्ट्रवाद में घुन लगाने वाली फसलों में मट्ठा भी डाल आता हूँ.. लोग आते हैं मेरे विचारों की फसल देखने.. कोई ठेंगा दिखा जाता है, कोई मुस्कुरा के चला जाता है.. कोई कोई प्रेम भी बरसाता है.. पर कुछ विशिष्ट प्रजाति के प्राणी भी हैं जो नाक भों सिकोड़ कर जाते है, कुछ लोग बातें भी करते हैं, अपने विचार साझा करते हैं.. अच्छा लगता है.. मज़े की बात तो ये है कि मुझे मेरी फसल का MSP भी नही चाहिए, मैं इसके लिए लालकिले पर चढ़ाई नही करता, ना सड़क पर धरना देता हूँ..कभी कभी तो फसल चोरी भी हो जाती है, पर मैं अपनी फसल राजनीति की मंडियों में नही बेचता.. मैं विचारों की फसल बोता हूँ, सच कहता हूँ, कड़वा कसैला भी होता है, कुछ जानवर मुँह मारते हैं पर थूक कर चले जाते हैं.. मेरी फसल दरअसल बिकाऊ नही है.. मैं यूँ ही बांट देता हूँ.. जिसे चाहिए, जैसी चाहिए.. ले जाये..

20 फ़रवरी, 2021

पेट्रोल की राजनीती

 पेट्रोल की कीमतों को लेकर हमेशा से हो हल्ला मचता रहा है, चाहे सरकार किसी की भी रही हो किन्तु विपक्ष ने हमेशा इसकी बढ़ती कीमतों को मुद्दा बनाया है, और ये होना भी चाहिए क्योंकि इनकी कीमत बढ़ने का असर देश की अर्थव्यवस्था पर प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों रूप से पड़ता है.. इसी समस्या का हल करने के लिए केंद्र सरकार ने इसको GST के अंतर्गत लाने का प्रस्ताव रखा था जो विपक्ष द्वारा समर्थन नही किया गया, जैसा कि आप जानते ही हैं कि बिना विपक्ष या राज्य सरकारों की सहमति के ये संभव नही है.. अब इसको लेकर राज्य सरकारों की भी अपनी मजबूरियां हैं क्योंकि राजस्व का सबसे बड़ा हिस्सा उन्हें पेट्रोल, शराब एवं रेवेनुए डिपार्टमेंट से ही मिलता है जिसके दम पर ही वो अपने अपने राज्य में कोई तो विकास कार्यो पर खर्च करता है तो कोई मुफ्तखोरी के नाम पर सब्सिडी में देकर वाहवाही लूटता है और अपनी पीठ थपथपाता है.. अब वैसे वर्तमान परिस्तिथि में भी राज्य सरकार चाहे तो इस पर अपने हिस्से का वैट कम कर सकती है किंतु फिर अपने पोस्टर लगाने का खर्च कम हो जाएगा, इसका उदाहरण देकर समझाता हूँ.. जैसे..

पेट्रोल की कीमत 30.50 रु
केंद्र सरकार टैक्स 16.50 रु
राज्य सरकार टैक्स 38.50रु
डिस्ट्रीब्यूटर शेयर 06.50रु
टोटल हुआ 92.00 रु
अब मज़े की बात तो ये है कि केंद्र सरकार के इस हिस्से से भी राज्य सरकार को पैसा मिलता है.. तो अब केंद्र सरकार को रोने की बजाए या तो अपने जन प्रतिनिधि को पकड़ो और राज्य सरकार के हिस्से का टैक्स कम करने का दबाव बनाओ अथवा पेट्रोल को GST में लाने की सहमति बनवाओ.. ये किंचित तभी होगा जब इस सबके बदले मिलने वाली सब्सिडी भी छोड़ने को तैयार हो क्योंकि पेट्रोल तो 30 रु लीटर ही है बाकी के पैसे तो "सुब्सिडीजीवी" और उनके पालनहारो की जेब मे ही जा रहा है.. फैसला आपका.. क्योंकि सोच है आपकी.. अब वैसे भी पेट्रोल की कीमत बढ़ने पर हो हल्ला ज़्यादा वो ही मचाते हैं जिन्हें गाड़ी भी दहेज में मिली होती है... मचाओ.. इतना तो हक है आपका..

13 फ़रवरी, 2021

अंतराष्ट्रीय रेडियो दिवस

 विश्व मे मनोरंजन व संचार का सबसे पुराना माध्यम 'रेडियो' जन-जन तक अपनी बात पहुँचाने का सरल और किफायती माध्यम है। भले ही रेडियो एक शताब्दी पुराना हो लेकिन आज भी यह सामाजिक संपर्क का एक अहम स्रोत है। रेडियो ने संगीत और आपसी जुड़ाव के साथ-साथ हमें जागरुक करने का कार्य भी किया है, रेडियो के श्रोता व वो लोगो को जो रेडियो को मनोरंजक एवं उपयोगी बनाए रखने के लिए निरंतर नवाचार करते रहते हैं उनके प्रयास को प्रणाम करता हूँ, ये आज भी मेरी दिनचर्या का एक अहम हिस्सा है, सुबह की मॉर्निंग वॉक के साथ कभी कुछ पुराने नगमे और फिर RJ नावेद का मिर्ची मुर्गा ओर उंस पर पंजाबी तड़का.. लाजवाब है.. रौनक के बउवा का अलग ही टशन है.. जनसंचार के इस क्षेत्र से संबद्ध कलाकारों, तकनीशियनों तथा सुधी श्रोताओं सहित सभी हितधारकों को बधाई देता हूँ.. भारत जैसे सांस्कृतिक और भाषाई विविधता वाले देश में राष्ट्रीय एकता, सांस्कृतिक चेतना और सामाजिक जागरूकता बढ़ाने में रेडियो की महत्वपूर्ण भूमिका रही है... विश्व रेडियो दिवस पर सभी श्रोताओं को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं... 

#WorldRadioDay #विश्व_रेडियो_दिवस 

RJ Naved RJ Praveen Sayema RJ Raunac

13 जनवरी, 2021

किसान आंदोलन और नरेंद्र मोदी

 एक पुराने चिरपरिचित सज्जन जो कभी कट्टर कांग्रेसी हुआ करते थे और अब रजिस्टर्ड आपिये हैं मिले तो पूछ बैठे ये मोदी इस किसान आंदोलन से खत्म हो जाएगा, उसको बोलो है हिम्मत तो किसानों को हाथ लगा के दिखाए, मैंने कहा कुछ समय पहले तुमने यही सवाल सोनिया गांधी और राहुल के संदर्भ में भी पूछा था, सवाल वही है तो भाई जवाब भी वही है कि जो सड़ सड़ के खत्म होने वाला हो उसको लाठी से खत्म करके बदनामी क्यों लें.. मतलब किसानों के नाम पे नेतागिरी चमकाने वाले लोग लगभग तीन महिने से जनजीवन को अस्त व्यस्त किये हुए हैं, इसमें से सिर्फ एक महिना दिल्ली बॉर्डर पे हुआ है इसके पहले ये ही लोग पंजाब के रेल्वे मार्गों पे धरना दे के दो महिने से जाम किये हुए थे, आंदोलन में कोई जनता की भावना की कोई बात होती है तो वो अपने आप जंगल की आग की तरह फैलता है, ऐसा कुछ नहीं हो रहा है, जितने लोग जोश से जुड़े थे पंजाब से उनको भी रोकना मुश्किल हो रहा है और वो खुद ही वापस जाने लगे हैं, दूसरे राज्यों में आग फैल नहीं रही है बल्कि उसको उकसा के फैलाने की कोशिश की जा रही है इस 130 करोड़ लोगों के देश को जाम करने के लिये 1% मतलब डेढ़ करोड़ लोगों की भी जरूरत नहीं है उस 1% का सौवां हिस्सा मतलब डेढ़ लाख लोग भी काफी है, शर्तिया कह सकता हूं की पूरे हिन्दुस्तान के सब तथाकथित किसान आंदोलनकारियों की गणना कर लो तो भी डेढ़ लाख नहीं होंगे, इसका मतलब 10000 लोगों में से अगर एक आदमी चाहे तो 9999 लोगों को उनकी मर्जी के खिलाफ भी रोक सकता है और ये ही कमजोरी है हमारे लोकतंत्र में, क्योंकि Violent minority overpowers silent majority... यहाँ हिंसक अल्पसंख्यक मूक बहुमत को मात देते हैं, क्या तरीका है एक पूर्ण बहुमत चुनी हुई सरकार के पास जिसको 20 करोड़ से ज्यादा वोट मिलें हों.. जो एक के बाद एक चुनाव जीत के अपनी लोकप्रियता साबित किये जा रही हो उसके पास इस तरह के आंदोलन से निपटने का एक तरीका लाठी का है.. बॉर्डर खाली कराना कोई इतना बड़ा काम नहीं है, 24 घंटे के अंदर सब साफ हो सकता है.. मुश्किल ये है की इस तरीके का फायदा आज होगा लेकिन उस जोर जबरदस्ती के फोटो दशकों तक दिखाये जाएंगे किसानों को भड़काने के लिये, लोग भूल जाएंगे की सिर्फ कुछ हज़ार किसान या अड़ियल धरने बाज लोगों को सरकार ने हटाया ताकि करोड़ों लोगों को होने वाली असुविधा से बचाया जा सके.. पर क्या सरकार का ये तरीका सही है? सही गलत तय करने के कई पैमाने होते हैं.. पर मोदी का ये ही तरीका है की सड़ा सड़ा के मारो ताकि वो खत्म भी हो जाये और कोई उसको याद भी ना रखे.. उसने शाहीन बाग के साथ ये ही किया था, याद है भाजपा के जो नेता बागी हो के अनर्गल बोलना चालू करते हैं उसके साथ भी भाजपा ये ही करती है.. शत्रुघ्न सिन्हा उसका अच्छा नमूना है.. बजाय पार्टी छोड़ने के उसने एक दो साल बकवास पार्टी के अंदर रह के चालू रखी, किसी ने ना उसको निकाला ना कुछ किया, थक के वो कॉंग्रेस, आरजेडी, समाजवादी सब पार्टियों मे भटका और आज राजनैतिक रूप से सड़ के खत्म हो गया.. खुद भी हारा, पत्नी भी हारी और बेटा एमएलए का चुनाव तक हार गया, अब उसको कोई नहीं पूछता है उसका भोंकना रिरियाना में और अब सब बिल्कुल बंद हो गया है.. ऐसा ही अरुण शोरी के साथ किया और ये ही जसवंत सिंह के साथ किया.. और तो और मोदी पाकिस्तान के साथ भी यही कर रहा है.. बजाय कोई सीधी कारवाई करने के जब तक की पाकिस्तान कोई गलत हरकत ना करे उसको अंतर्राष्ट्रीय रूप से सड़ा रहा है.. पाकिस्तानी चैनल देखो तो पता लगेगा रोज का ये ही रोना है की भारत ने हमसे हमारे दोस्त छीन लिये, OIC उनकी सुनता नहीं है सऊदी अरब, UAE ने पाकिस्तानियों का घुसना बंद सा कर दिया है, अरबों डॉलर अब अरब से नहीं आयेंगे, कर्जा मिलना अब नहीं मिल रहा है,भारत के आर्मी प्रमुख का सऊदी दौरा तो जैसे जले पे नमक छिड़कने का काम था, पता लग गया आगे आगे क्या होने वाला है, पाकिस्तान को सड़ा सड़ा के खत्म किया जाएगा... भारत जबरदस्त रूप से हथियार खरीदेगा और बनायेगा जिसको मैच करने के लिये दिवालिए पाकिस्तान को बर्बादी की कगार पे जाना पड़ेगा या चुपचाप बैठना पड़ेगा.. देश बहुत बड़ा है तो कहीं ना कहीं तो कोई ना कोई आंदोलन चलता रहेगा.. और फिर विपक्ष झुंझलाहट में खुद ही नंगा हो जाएगा, जो इस आंदोलन की आड़ में खालिस्तान और चीन की नाजायज़ औलाद कम्युनिस्टों का एजेंडा है वो ख़ुद देश के सामने होगा, ना सरकार की गति रुकेगी ना सरकार विचलित होगी.. और जहां भाजपा की सरकार है वहां ठुकाई कुटाई और दिल्ली में आप पार्टी के सरकार का आनंद वहां की जनता को तो मिलना ही चाहिए.. अभी हाल ही में जीएसटी का रिकॉर्ड आंकड़ा आया है 1,15,000 करोड़ का जो पिछले दिसम्बर, जब सब कुछ सामान्य था उससे 12% ज्यादा है.. और ये तो हालात तब है जबकि टूरीज्म, जेम, ज्वेलरी, होटल, एन्टरटेनमेन्ट, शादी, हवाई यात्रा, रेलवे आदि कई सेक्टर ऐसे हैं जिनपे अभी भी रोक लगी हुई है.. वो रोक हटने पे 10-20% और उछाल आएगा.. साफ साफ दिखता है की भारत प्रगति के रास्ते पे निर्बाध रूप से आगे बढ़ रहा है तो फिर क्यों जो सड़ सड़ के खत्म होने वाला है उसको लाठी मार के खत्म करने की बदनामी मोल लें... भाई साहब सिर खुजाते हुए झुंझला कर निकाल लिए.. बेचारे चमचों को क्या क्या सहना पड़ता है...

08 जनवरी, 2021

भाजपा की वैक्सीन

 मैंने अक्सर अपनी बातचीत में और लेख में अनेकों बार आपको बताया कि दुनिया भर के देश केवल ओर केवल व्यापार और पैसे के लिए एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, कोई किसी का सैद्धांतिक दोस्त या दुश्मन नही है,वैश्विक तीन मौलिक व्यवसाय हैं.. हथियार, फार्मा सेक्टर और तेल.. आज हम जो देखते हैं वह फार्मा युद्ध है.. भारत बायोटेक पर हमला इसी की कड़ी है, यह दूसरों की तुलना में और अधिक सस्ती कीमत पर बेहतर समाधान दे रही है। इसके कारण 187 देशों ने बुकिंग के लिए लाइन लगा दी है, दूसरा मुख्य बिंदु है कि यूपीए के समय में, भारत ने चीन को दवा बनाने की अपनी क्षमता बेच दी थी, हम चीन से 95% जीवन रक्षक दवाओं के आयात का उपयोग करते थे, मोदी सरकार के बाद, यह उलट है.. यदि भारत बायोटेक वैक्सीन सफल है और दुनिया के हर कोने में पहुँचती है, तो पूरी चीनी फार्मा योजना बर्बाद होकर जमीन पर गिर जाएगी इसलिए हो सकता है देश मे बैठे उनके सूत्रधार आने वाले दिनों में कुछ मुद्दों को इससे जोड़ कर देखें जैसे टीकाकरण के बाद एक आदमी की मौत हो गई, या फिर किसी पुरुष के शुक्राणुओं में कमी आ गयी या फिर किसी महिला का गर्भपात हो गया, तो अपना खुद का दिमाग़ लगाइये, आमतौर पर किसी भी दवाई को बनने की पूरी प्रक्रिया कुछ साल ले लेती है, उसके पीछे गहन परीक्षण एवं अनुसंधान होते है, यहाँ वो सब सीमित समय मे किया गया है.. दुनिया में कुल 190 से अधिक देश हैं.. कुल 50 के लगभग विकसित देश हैं.. करीब 20 देश अति विकसित श्रेणी में हैं.. उनमें भी 7 देश अति-अति विकसित है.. भारत एक विकासशील देश हैं.. अब ये सोचो कि कोरोना वैक्सीन मात्र 5 देशों ने बनाई उनमें से एक हमारा देश हैं.. अर्थात हमनें विकासशील देश होकर भी अति-अति विकसित देशों को पछाड़ दिया.. वह भी कोई साधारण वैक्सीन निर्माण में नही बल्कि सदी की सबसे बड़ी महामारी के वैक्सीन निर्माण में.. सभी 5 देशों की वैक्सीन में भारत की वेक्सीन सबसे अधिक प्रभावी बतायी जा रही हैं क्योंकि ये कोविड के नये स्ट्रेन पर भी कार्य करेगी.. ब्रिटेन जैसे अति-अति विकसित देश जहाँ नया स्ट्रेन हाहाकार मचा रहा हैं, वह भी भारत की वैक्सीन का बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा हैं। कुल 32 छोटे-बड़े देश भारत को वैक्सीन के लिए प्री ऑर्डर का प्रस्ताव रख चुके हैं। पर कुछ लोगो को हर चीज़ में विदेशी सर्टिफिकेट चाहिए होता है, यदि वैक्सीन विदेशी होगी तो अच्छी है, कोई वैक्सीन में धर्म ढूंढ रहा है तो कोई राजनीतिक पार्टी, कोई सूअर की चर्बी तो कोई गाय का खून, अबे छोड़ो दकियानूसी बकवास, अब पूरी दुनिया में भारत और हमारे वैज्ञानिकों की उपलब्धि के नाम का डंका बज रहा है.. दुनिया भारत की और आशा भरी नजरों से टक-टकी लगाए देख रही हैं... गर्व करना सीखिए अपने देश पर.. अपने देश के नेतृत्व पर...अपने वैज्ञानिकों पर..