मैं भी सोशल मीडिया का किसान ही तो हूँ, मैं भी सारा दिन हल चलाता हूँ, अलग अलग विषयो पर सृजन के बीज बोता हूँ, सींचता हूँ... अपनी अभिव्यक्ति की, विचारों की फसल बोता हूँ.. मौका मिलते ही विपक्षियों की राष्ट्रवाद में घुन लगाने वाली फसलों में मट्ठा भी डाल आता हूँ.. लोग आते हैं मेरे विचारों की फसल देखने.. कोई ठेंगा दिखा जाता है, कोई मुस्कुरा के चला जाता है.. कोई कोई प्रेम भी बरसाता है.. पर कुछ विशिष्ट प्रजाति के प्राणी भी हैं जो नाक भों सिकोड़ कर जाते है, कुछ लोग बातें भी करते हैं, अपने विचार साझा करते हैं.. अच्छा लगता है.. मज़े की बात तो ये है कि मुझे मेरी फसल का MSP भी नही चाहिए, मैं इसके लिए लालकिले पर चढ़ाई नही करता, ना सड़क पर धरना देता हूँ..कभी कभी तो फसल चोरी भी हो जाती है, पर मैं अपनी फसल राजनीति की मंडियों में नही बेचता.. मैं विचारों की फसल बोता हूँ, सच कहता हूँ, कड़वा कसैला भी होता है, कुछ जानवर मुँह मारते हैं पर थूक कर चले जाते हैं.. मेरी फसल दरअसल बिकाऊ नही है.. मैं यूँ ही बांट देता हूँ.. जिसे चाहिए, जैसी चाहिए.. ले जाये..