25 नवंबर, 2011

थप्पड़ की गूँज ...

कल एक नेताजी को थप्पड़ क्या पड़ गया की उसकी गूँज सारे देश मैं सुनाई दे रही है. सभी "अभि-नेताओं" की बयानबाजी शुरू हो गयी और तो और हमारे प्रधान मंत्री जी को भी ये चिंता का विषय लगा और उन्होने स्वयं फ़ोन पर पवार साहब से हाल चाल पुछा, कमाल है ये तो वही थप्पड़ हो गया जो विश्वप्रताप ने डॉक्टर डैंग को मारा था और फिर उसका अंजाम भी उन्होने भुगता था, मैं यहाँ एक फिल्म करमा की बात कर रहा हूँ, अब देखना ये है की इस थप्पड़ की गूँज कब तक और किस किस को सुनाई देती है, वैसे तो कल "अभि नेता जी"  ने कह दिया है की कृपया सभी एन सी पी कार्यकर्ता शांत रहें और कोई उपद्रव न करें जैसे की हम लोगों को इसका पता नहीं है, अरे पवार साहब आप लोगों को भुगत ते हुए इतना समय हो चूका है की अब हम लोग भी आप जैसे "अभि नेताओं" की भाषा समझने लगे हैं और जानते हैं की इस का मतलब क्या होता है, अस्पष्ट शब्दों मैं आप अपने कार्यकर्ताओं को भड़का रहें है और वो क्या क़ानून के दायरे मैं है?
सबसे से बड़ी बात तो ये की प्रणब दा को भी गुस्सा आता है और वो उन्होने कल दिखाया भी, सभी ने अपनी अपनी बयानबाजी की और सबसे ज़यादा उन्होने ही की जिनको ये डर था की अगला नंबर उनका भी हो सकता है , इस देश मैं विरोध प्रदर्शन पर रोक है ये तो अभी कुछ समय पहले हुए रामदेव और अन्ना हजारे के आन्दोलन पर सरकार की प्रतिक्रिया से ही स्पष्ट हो गया है, और नयी नीति ये है की अगर कोई किसी "अभि नेता" को अगर कला झंडा भी दिखता है तो उसको तो हमारे देश के और उस "अभिनेता" के भक्त नेता लोग सरे आम लात और घूंसों से पीट देंगे और पोलिसे भी उनका साथ देगी ,
आज महंगाई ने एक आम आदमी के बर्दाश्त और संयम की सीमा को लांघ दिया है और ये उसका एक छोटा सा उदहारण है, जिस व्यक्ति ने ये साहस किया , मैं तो उसे साहसी हे कहूँगा क्यूंकि शायद ये साहस मुझ मैं नहीं है, उसको मानसिक रूप से पागल घोषित किया जा रहा है और यही होता भी है क्यूंकि आज जो आवाज उठता  है वो पागल ही तो है, वर्ना इस देश का क़ानून कहता है की चुप रहो और और बर्दाश्त करो, हमारा सविधान कहता है की   हमे बोलने की आज़ादी नहीं है, हमे अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं है, हमें विरोध प्रकट करने की आज़ादी नहीं है, हमें जीना भी अगर है तो वो देश की सरकार और इन नेताओं के रहमो करम पर जीना है, रोज़ के संसद मैं करोड़ों रूपए इसकी कार्यवाही को चलाने पर खर्च हो जाते हैं पर ये "अभि नेता" लोग वहाँ पर जो नौटंकी दिखाते हैं उसके लिए नहीं बल्कि इसी दुर्भाग्य पूर्ण देश को चलानी के लिए होते है जो अब चलना छोड़ कर घिसटना शुरू हो गया है , वो १८ करोड़ रूपए जो तीन दिन संसद न चलने पर भी खर्च हुए वो किसी गिनती मैं नहीं हैं, पक्ष और विपक्ष की दलील दी जाती है पर दोनों भाइयों की लड़ाई में हम पिस रहे हैं ...
पर फिर वही बात मैं ये सब यहाँ क्यूँ और किसलिए लिख रहा हूँ , उन पर तो असर होना नहीं और हम तो पागल हैं ही ...