22 जून, 2020

मीडिया का सरकस

विकट सी परिस्तिथि है, ज़िन्दगी क्षीण सी हो चली है, महामारी, दंगे, आगजनी, भूकंप, सीमा पर तनाव, आतंकवाद और आर्थिक मारामारी के बीच सोशल मीडिया की धमाचौकड़ी और ऊपर से न्यूज़ वालों का तड़का, कसम से लगता है कि बस आज ही विश्वयुद्ध होने वाला है, सेनाएं तैनात हो गयी हैं, मिसाइलें तन गयी हैं, लड़ाकू जहाज़ आकाश में गर्जन कर रहे हैं, और या फिर कोरोना मुझे ढूंढता हुआ मेरे घर के बाहर गाड़ी के पीछे छुपा हुआ है कि बाहर निकलते ही दबोच लेगा, मुझे ज़िन्दगी से हारना पड़ेगा क्योंकि सरकार निकम्मी है वो अलग बात है कि दिल्ली का मालिक रोज़ नए दावों के साथ छाती ठोकता है, इसी बीच तभी चैनलो पर ग्रहण की छाया मंडराने लगती है और सभी राशियों का बेड़ा गर्क हो जाता है, मन विचलित होता है तो योग करने की सोचता हूँ कि बची खुची कसर अचानक ब्रेक में पॉलिसी बाजार वाले श्री मान पूरी कर देते हैं जो डर के तारो को झनझना देते है ये कहकर की अब तो लेलो टर्म लाइफ इंश्योरेंस, तुम्हारे बाद बच्चो के स्कूल की फीस कौन भरेगा... और साथ बैठी बीवी लाचारी भारी नज़रों से मेरा मुँह ताकने लगती है... कसम से रूह कांप जाती है कि अभी तो सिर्फ जून का महीना है, आधा 2020 बाकी है, जाने क्या क्या देखना अभी नियति में लिखा है...

05 जून, 2020

विश्व पर्यावरण दिवस

एक एक सांस की कीमत क्या होती है ये उससे पूछो जो आज इस वैश्विक महामारी के चलते वेंटिलेटर पर कुछ दिन गुजार कर आया हो, लाखो रुपये खर्च करके चंद साँसों की लड़ाई लड़के हम सोचते हैं पैसे से जीवन खरीद लिया, कभी सोचा है सामान्य जीवन मे एक सामान्य इंसान लगभग 11000 लीटर ऑक्सीजन प्रतिदिन लेता है, "11000 लीटर प्रतिदिन", सोचा ? इसकी कीमत का अंदाज़ा लगाओ, एक सामान्य जीवन मे आप किंतनी ऑक्सीजन लेते हो, वो भी बिना पैसे, परंतु इस प्रकृति या ईश्वर के प्रति हम कितने कृतघ्न हैं, इंसानी फितरत है ना कि मुफ्त में मिली वस्तु का हम मूल्यांकन नही करते, फिर चाहे वो हवा हो या पानी, सोचो यदि ईश्वर ने या प्रकृति ने इसके लिए पैसा मांग लिया तो ? संभवतः हममें से कोई भी नही दे पाएगा, किन्तु प्रकृति तो माँ है तो इसके प्रति हमे भी समर्पण भाव रखना चाहिए, अपने आस पास हरियाली रखें, घर से ही शुरुआत करें, केवल एक पेड, पौधा या बीज, कुछ भी लगाएं, उसे पालें पोसें और प्रकृति को समर्पित करें.. पानी बचाएं, व्यर्थ ना बर्बाद करें, धरती पर 70% पानी है किंतु पीने योग्य पानी खत्म हो रहा है, सिंगल यूज़ प्लास्टिक का इस्तेमाल छोड़ें, ये हमें और हमारे समुद्रो को खा रही है, सोचो हमारी आज की लापरवाही हमारी आने वाली पीढ़ियों को क्या दे कर जाएगी, हमारी आज की दिन रात की मेहनत अपने बच्चो के उज्ज्वल भविष्य और हमारे सुरक्षित बुढ़ापे के लिए ही तो है, इतनी जद्दोजेहद के बाद भी यदि हम उन्हें साफ हवा और पीने योग्य पानी तक ना दे सकें तो क्या फायदा इस आपाधापी का ? विचार करें, सोचे, समझे, क्या ज़रूरी है, एक उन्नत भविष्य के साथ एक सुरक्षित और संगरक्षित भविष्य..आज विश्व पर्यावरण दिवस पर आइये प्रण करें एक हरे भरे फलते फूलते वातावरण को संगरक्षित करने का, मुश्किल नही है क्योंकि ये कितना आसान है ये हमने लॉकडाउन में अनुभव किया है, संभव भी है, फिर से खुली हवा में सांस लें, छत पर तारे गिने, बीमारियों को दूर भगाएं, औऱ बच्चो को एक सुरक्षित एवं संगरक्षित भविष्य दें, आओ एक पेड लगाएं...
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#विश्वपर्यावरणदिवस
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