12 जुलाई, 2017

आस्था की राजनीति

हम लोग उस देश में राम मंदिर बनाने का सपना देखते हैं जिसमे बनाना तो दूर मंदिर जाना भी कठिन है .... सवा सौ करोड़ की आबादी में से सौ करोड़ लोगों की आस्था पर बीस करोड़ लोगों के लिए की जाने वाली राजनीति हावी है। बहुसंख्यक होते हुए भी इस देश में अल्पसंख्यकों से भी बदतर धार्मिक हालात है, आस्था की एक डुबकी से लेकर अमरनाथ यात्रा तक सब आतंक के साये में रहता है और वो भी उस आतंक के जिसका आजतक धर्म या मज़हब नहीं पता चल सका। धर्म के नाम पर राजनीतिकरण उन्माद की स्थिति पैदा कर देता है। गाय को लेकर राजनीति धर्म को गर्त में लेकर जा रही है। मंदिर मस्जिदों की राजनीति आस्था पर प्रश्न खड़ा कर देती है। क्यों देश के राजनेताओं को विकास और तरक्की के रस्ते छोड़ कर धर्म के नाम पर की गयी राजनीति फायदेमंद दिखाई देती है ? कभी दही हांड़ी, कभी जलीकट्टू, कभी लाउड स्पीकर, कभी मंदिरो में प्रवेश के अधिकारों को लेकर और तो और भगवान् के अस्तित्व को लेकर लड़ाइयां लड़ी जा रही हैं। ये सब हमारी आस्था को तोड़ती हैं, धर्म के प्रति भी और लोकतंत्र के प्रति भी। विभिन्न प्रकार की सैकड़ों हज़ारों मान्यताओं वाले इस देश में आतंकवाद से बड़ा खतरा धर्म को अधर्म में बदलने का है।