20 फ़रवरी, 2021

पेट्रोल की राजनीती

 पेट्रोल की कीमतों को लेकर हमेशा से हो हल्ला मचता रहा है, चाहे सरकार किसी की भी रही हो किन्तु विपक्ष ने हमेशा इसकी बढ़ती कीमतों को मुद्दा बनाया है, और ये होना भी चाहिए क्योंकि इनकी कीमत बढ़ने का असर देश की अर्थव्यवस्था पर प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों रूप से पड़ता है.. इसी समस्या का हल करने के लिए केंद्र सरकार ने इसको GST के अंतर्गत लाने का प्रस्ताव रखा था जो विपक्ष द्वारा समर्थन नही किया गया, जैसा कि आप जानते ही हैं कि बिना विपक्ष या राज्य सरकारों की सहमति के ये संभव नही है.. अब इसको लेकर राज्य सरकारों की भी अपनी मजबूरियां हैं क्योंकि राजस्व का सबसे बड़ा हिस्सा उन्हें पेट्रोल, शराब एवं रेवेनुए डिपार्टमेंट से ही मिलता है जिसके दम पर ही वो अपने अपने राज्य में कोई तो विकास कार्यो पर खर्च करता है तो कोई मुफ्तखोरी के नाम पर सब्सिडी में देकर वाहवाही लूटता है और अपनी पीठ थपथपाता है.. अब वैसे वर्तमान परिस्तिथि में भी राज्य सरकार चाहे तो इस पर अपने हिस्से का वैट कम कर सकती है किंतु फिर अपने पोस्टर लगाने का खर्च कम हो जाएगा, इसका उदाहरण देकर समझाता हूँ.. जैसे..

पेट्रोल की कीमत 30.50 रु
केंद्र सरकार टैक्स 16.50 रु
राज्य सरकार टैक्स 38.50रु
डिस्ट्रीब्यूटर शेयर 06.50रु
टोटल हुआ 92.00 रु
अब मज़े की बात तो ये है कि केंद्र सरकार के इस हिस्से से भी राज्य सरकार को पैसा मिलता है.. तो अब केंद्र सरकार को रोने की बजाए या तो अपने जन प्रतिनिधि को पकड़ो और राज्य सरकार के हिस्से का टैक्स कम करने का दबाव बनाओ अथवा पेट्रोल को GST में लाने की सहमति बनवाओ.. ये किंचित तभी होगा जब इस सबके बदले मिलने वाली सब्सिडी भी छोड़ने को तैयार हो क्योंकि पेट्रोल तो 30 रु लीटर ही है बाकी के पैसे तो "सुब्सिडीजीवी" और उनके पालनहारो की जेब मे ही जा रहा है.. फैसला आपका.. क्योंकि सोच है आपकी.. अब वैसे भी पेट्रोल की कीमत बढ़ने पर हो हल्ला ज़्यादा वो ही मचाते हैं जिन्हें गाड़ी भी दहेज में मिली होती है... मचाओ.. इतना तो हक है आपका..