कभी कभी इस देश के न्यायप्रणाली और न्यायपालिका दोनो पर संदेह होता है, क्योंकि कुछ मुद्दों को हम तोड़ मरोड़ देते हैं। जब सुप्रीम कोर्ट आधी रात को उठ कर एक आतंकी के लिए भी सुनवाई करता है तो न्यायपालिका पर भरोसा बढ़ जाता है, यही न्यायपालिका कुछ महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दों को छोड़ कर दीवाली के पटाखे, सबरीमाला, दही हांडी, जैसे मुद्दों पर भी तुरंत फैंसले लेती है किंतु तीन तलाक, जनसंख्या नियंत्रण, कॉमन सिविल कोड जैसे मुद्दे पर अलग रुख अख्तियार करती है और फिर राम मंदिर जैसे अति संवेदनशील मुद्दे को धार्मिक आस्थाओं से ऊपर ले जाकर राजनीतिक रंग दे देती है तो दर्द होता है, जिस राम नाम ने सरकारें पलट दीं, जो राम दुनिया को चलाते है आज वो स्वयं हिंदुत्व की उंगली पकड़ कर चल रहे हैं। दरअसल इस मुद्दे को उलझने ओर गरमाये रखने का काम जितना मीडिया, न्यायपालिका और हमारी बाबूगिरी ने किया है ये उतना ज्यादा पेचीदा हो गया है, अब ये बड़ी चालाकी से राम के अस्तित्व और जन्म स्थान की लड़ाई ना होकर केवल एक ज़मीन की लड़ाई बना दिया गया है, इसको न्यायपालिका भी चाहती है कि ये आने वाले चुनाव में चुनावी मुद्दा ना बने और इसीलिए बड़ी चालाकी से इसको आगे खिसकने में लगी हुआ है, क्योंकि फैंसला यदि मंदिर के पक्ष में आया तो कोलोजियम सिस्टम के पुचकारे हुए माननीय न्यायाधीश अपने आकाओं के प्रति वफादारी नही रख पाएंगे और यदि मोदी सरकार ने अध्यादेश के तरीके से मंदिर निर्माण की कोशिश की तो मोदी के किये हुए सभी कामों और उनकी छवि पर दाग लग जायेगा, दरअसल राम मंदिर बनाने का एक आसान तरीका भी है वो ये की मोदी सरकार मीडिया, न्यायपालिका और बाबूगिरी में थोड़ा सख्त हो जाये और देश की जनता आने वाले चुनाव में विपक्ष को धराशायी कर दे , बस फिर सभी रास्ते खुले हैं, लेकिन उसके लिए जितना भरोसा प्रभु श्री राम पर किया है उतना ही भरोसा नरेन्द्र मोदी पर भी करना होगा... जय श्री राम