16 मार्च, 2020

राजनीती की Horse Trading

देश मे कहने को तो "लोकतंत्र" है, कृपया शब्द पे गौर करना, लोकतंत्र मतलब लोगो द्वारा चुने हुए जनप्रतिनिधियों की सरकार, अब समझो ये की राजनीतिक पार्टियां खूब जांच परख के और छांट के (जैसा कि वो दावा करती हैं) चुनाव में अपना एक जन प्रतिनिधि देती है कि हम पार्टी की विचारधारा के अनुरूप उनका चुनाव करें, उन पर भरोसा करें, उन्हें सत्ता और देश की बागडोर सौंप दें.. किन्तु राजनीतिक उठापटक के बीच यही राजनीतिक पार्टियां अपने इन्ही भरोसेमंद जनप्रतिनिधियों पर भरोसा नही करतीं, उन्ही को गधे घोड़ों की तरह यहां वहां हांक देती हैं, जोड़तोड़ की राजनीति के चलते इन्ही गधे घोड़ो की बोलियां लगाई जाती हैं, इन्ही की आड़ में क्षेत्रीय दलों के टट्टुओं की भी चांदी हो जाती है, अब नेता हैं तो दो चार करोड़ की बात करना तो इन घोड़ो की नस्ल के अपमान करना ही है.. तो फिर राजनीति के बाजार में बोलियां भी बड़ी बड़ी लगती है, ऊंचे पद प्रतिष्ठा के प्रस्ताव दिए जाते हैं, गलत हाथों में बिकने के डर से इन टट्टुओं को भी बड़े बड़े रिसोर्ट और पांच सितारा होटलों में चना खिलाया जाता है और इनकी मालिश की जाती है, मुँह पर छकड़ा बांध दिया जाता है ताकि सिर तो हिला सकें किन्तु हिनहिना ना सकें.. किन्तु क्या हम आम जनता इनको अपने जन-प्रतिनिधि के रूप में इसीलिए चुनती है ? क्या जो ये करते हैं उसमें इन्ही आम जनता की सहमति होती है ? क्या इनकी अपनी व्यक्तिगत राजनीतिक महत्वकांगशा सर्वोपरि है ? हम उन पर भरोसा करने को बाध्य क्यों जिन पर स्वयं उनकी राजनीतिक पार्टियां भरोसा नही कर सकती.. चुनाव के समय हममें से कुछ पार्टी की विचारधारा से सहमत होकर उनके द्वारा खड़े किए गए किसी भी गधे घोड़े को उसकी व्यक्तिगत उपलब्धियों को नज़रंदाज़ करके चुनते हैं, किसी को पार्टी विचारधारा के विपरीत स्वतंत्र उसकी क्षमता के अनुरूप चुनते है। किन्तु अंततः राजनीति के हमाम में सब नंगे हो जाते हैं, पहले एक दूसरे पर कीचड़ उछालते है, दम घुटने के दावे करते हैं, कुछ अपनी बोली बढ़वा कर अपनी स्वामिभक्ति कायम रखते हैं, कुछ अपने मालिक को लात मार कर नए मालिक के तलवे चाटने लगते हैं, किन्तु कोई भी अपने शीर्ष नेतृत्व पर उंगली उठाने की धृष्टता नही करता, दरअसल क्षेत्रीय मालिक और राष्ट्रीय मालिक का दर्जा और रुतबा दोनो अलग अलग है, कल को ऊंट किस करवट बैठ जाते कौन जानता है... खैर छोड़ो यार, राजनीति कब किसकी सगी हुई है...