एक बहुत बड़ा खेल खेला जा रहा है, किसान आंदोलन से विपक्षी यानी सोनिया / केजरीवाल / और बाकी के ठगबंधन क्या चाहते हैं ? इसका उत्तर है कि सरकार को इतना दबाव बनाओ की वो सिर्फ एक गोली से एक सिख को मार दें... क्योंकि 2024 के चुनावों के लिए कांग्रेस के नियंत्रण से पंजाब फिसल रहा है, महाराष्ट्र तो पहले से ही विदूषक को रखने के बाद खो गया है.. वे एक उलटफेर चाहते हैं और यह केवल भारी भावनाओं के साथ आ सकता है.. वे सभी चाहते हैं कि सिख भाजपा के खिलाफ जाएं और इसे दूसरा सिख नरसंहार कहें.. याद रखिए खालिस्तानियों ने पहले ही 1984 के दंगों और सिख हत्याओं के लिए भाजपा, आरएसएस को दोषी ठहराया था.. खालिस्तानियों के पोस्टर देखलो, कि अगर कोई सिख विरोध में मारा जाता है, तो नरेंद्र मोदी अपने हाथों इंदिरा की किस्मत देखेंगे, इसका उदाहरण एक आंदोलनकारी के वीडियो में भी आपने देखा होगा, इरादा बहुत स्पष्ट है.. वे पूरे प्रकरण को भाजपा बनाम सिखों में बदलना चाहते हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस मुद्दे का पूरी तरह से ध्रुवीकरण करना चाहते हैं.. कौन उनका साथ दे रहा है? भारत और विदेश में खालिस्तानियों, जेएनयू झोलावालों और पूरे टुकडे टुकडे गैंग की तंत्र, सोनिया की राजदार पेशी, केजरीवाल की चालाकी, बाकी ठगबन्धन जो मोदी को हटाने से लाभान्वित होते हैं और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि 2024 के चुनावों में जिहादियों का क्या हश्र होना है ये मोदी ने इसे कितनी अच्छी तरह से निभाया है... शाहीन बाग के समान, उन्होंने आंदोलनकारी भीड़ को तितर-बितर करने के लिए किसी भी बल का उपयोग नहीं किया, जो अन्यथा एक बेकाबू दंगे में बदल सकता था.. इस बार, खतरे दो गुना हैं, क्योंकि जिहादी और खालिस्तान एक साथ हैं.. मोदी को खतरों का पता है और उन्होंने इन जिहादियों के इरादों का उनके दृष्टिकोण से आकलन किया है.. उसे बहुत सतर्क रहना होगा क्योंकि इस बात की अच्छी संभावना है कि कुछ सिखों को पुलिस से भिड़ने या आग लगाने के लिए भुगतान किया जाएगा (शाहीन बाग वाले सलमान को याद रखें ?) और पुलिस को स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कार्यवाही वापस करने के लिए मजबूर किया जाएगा.. क्या अब आप समझ गए हैं, कि दिल्ली पुलिस को केंद्र के गृह मंत्रालय के तहत रखना महत्वपूर्ण क्यों था? क्योंकि दिल्ली जमीन पर होने वाले सभी का उपकेंद्र है.. यह आंदोलन हो, विरोध हो या रैलियों का समर्थन.. ऐसी परिस्थितियों में केजरीवाल आंदोलनकारी किसानों को मारने का सबसे खतरनाक खेल (सिखों पर लक्षित) करके खेलेंगे और यह प्रकरण गृहयुद्ध में बदल जाएगा.. मोदी के लिए खेल खत्म हो जाएगा इसे 2-3 और सप्ताह दें.. क्योंकि विरोध प्रदर्शनों जितना भड़क रहा है, विरोधियों के लिए उतना पैसा है.. वैसे तो अनेक संगठन, राजनीतिक दल,और इनके नए नए यार बने हलाल छाप हर समय बिरयानी खिलाते रहते हैं.. अहमद पटेल के निधन के बाद कांग्रेस के लिए सबसे ज़्यादा कॉर्पोरेट लॉबिंग करने वाला भी गया, कांग्रेस का रेट कार्ड भी काफी नीचे आ चुका है, अब सोनिया गांधी अम्बानी पर पैसे के लिए दबाव बना रही है पर उसने नकार दिया तो आंदोलनकारी बेचारे जिओ की सिम जला रहे हैं, मोबाइल कंपनी ने किसान की फसल खरीदनी है क्या ? वामपंथी इस खिचड़ी के बीच मे अपना तड़का लगा रहे है कि लगे हाथों अपने आतंकियों को भी छुड़वा लो, आंदोलनकारी 45 दलों में से 37-38 तो पंजाब से ही हैं.. पर अपने कैप्टेन अम