देश मे हर साल औसतन 32000 बलात्कार होते हैं किंतु विडंबना ये है कि केवल इक्का दुक्का ही उनमें से 'निर्भया" बन पाती है, बाकी केवल कागज़ों में दफन होकर रह जाती हैं.. बलात्कारी की घृणित मानसिकता जाति, धर्म, या उम्र नही देखती किन्तु उंस विक्षिप्त तार तार हो चुके शरीर मे कुछ राजनीतिक गिद्ध एवं भेड़िए अपने लिए जाति, धर्म एवं उम्र सबका आंकलन करके उसका सामाजिक, राजनीतिक एवं मानसिक बलात्कार करते हैं, रोज़ करते हैं... 'मेरा दलित तेरे दलित से भी घनघोर दलित है"... ये क्या है ? बलात्कारी हिन्दू है या मुसलमान ? क्यों ? बालिग है या नाबालिग ? कैसे ? क्या है ये सब, अरे बलात्कारी एक विकृत मानसिकता का अपराधी है, बस.. किन्तु हाथरस की घटना दोबारा सोचने पर मजबूर करती है, यहां मानसिकता उस लड़की के परिवार वालो की सोचनीय है, यहां मानसिक बलात्कार हुआ, मीडिया एवं राजनीतिक पार्टी ने सियासी बलात्कार किया, दुर्भावना है, द्वेष है, रंजिश है, वो सब दरकिनार करके परिवार भी उसी का शिकार हो रहा है, बच्ची जान से गयी तो चलो अब गयी तो गयी किन्तु उसके नाम पर दुकानदारी शुरू हो गयी, बोलियां लग रही है, 25 लाख, 50 लाख, पर मीडिया की टीआरपी करोड़ो की है और राजनीतिक नफा नुकसान अरबों का... कुछ दिन ये मंडी लगेगी, फिर सच सामने आएगा.. ये सियासी "प्रोडक्ट" किसके लिए फायदेमंद होगा... "पिपली लाइव" है.. देखते जाओ...