दिल्ली एक ऐसी जगह है जहां सभी धर्म, सम्प्रदाय, जाति, समाज, प्रान्त और प्रदेश के लोग आकर बसते हैं और दिल्ली इन सभी को सहर्ष अपना लेती है। लेकिन ये सभी लोग जो विभिन्न सम्प्रदाय और प्रान्त के होते हैं शायद इसको नहीं अपनाते और इसको अपनी कर्मभूमि न मान कर इसके साथ अन्याय करते हैं। आये दिन होने वाली घटनायें, अपराध, बलात्कार और कितने ही और जघन्य अपराध जो यहाँ आये दिन होते हैं उनका सूत्र हमेशा किसी दूसरे प्रान्त या प्रदेश से जुड़ता है और खासकर वो लोग जो अपने परिवार को छोड़ कर काम काज की तलाश में दिल्ली मे रहते हैं अपने घर परिवार से दूर और अपनी सेक्स के प्रति कुंठा के परिणामस्वरूप ऐसे किसी अपराध का हिस्सा बन जाते हैं और अपनी दबी हुई कुंठित भावनाओं को एक विभत्स रूप दे बैठते हैं जिसका शायद वो परिणाम नहीं जानते। अक्सर ये लोग समाज के उस वर्ग से आते हैं जिनको क़ानून या सामजिक सोच से कोई लेना देना नहीं होता और ये अपराध की वो श्रेणी होती है जिसमे कोई पढाई लिखाई या सज़ा का उनके लिए कोई महत्व भी नहीं रह जाता। यही हाल यहाँ की सुरक्षा व्यस्था और पुलिस का है, क्यूंकि इस महकमे के अधिकतर अफसर और कर्मचारी भी दूसरे प्रान्त प्रदेश के होते हैं और उनमे भी लोगों के प्रति और समाज के प्रति एक अलग दृष्टिकोण होता है। और विभिन्न प्रान्त के होने के कारण उनमे आपसी सामंजस्य की कमी रहती है जिसका खामियाजा एक आम इंसान को भुगतना पड़ता है। इस सबके लिए व्यस्था बदलाव की ज़रुरत है निचले और बडे दोनों स्तर पर लेकिन जो बदलाव करने बैठे हैं वो भी इसी मिश्रित व्यस्था का हिस्सा है जो अपने आप को एक भारतीय न मान कर विभिन्न जाती और धर्म मैं अपने को बांधे बैठे हैं और जब तक ये सिलसिला चलेगा तब तक रोज़ यूँ ही बलात्कार होते रहंगे। बलात्कार समाज का भी, कमज़ोर व्यस्था का भी, और इंसान का भी ....
22 अप्रैल, 2013
16 मार्च, 2013
सरकार की प्रतिक्रिया
कितने कमाल की बात है की भारत सरकार ने एक बार फिर पाकिस्तान की कडे शब्दों मैं निंदा की है संसद में भी सर्वदलीय पाकिस्तान को कडे शब्दों में जवाब दिया गया है और लोक सभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने तो ये भी कहा है की कश्मीर पूरा हमारा है पाक अधिकृत कश्मीर भी, कमाल की बात है न की हम बातें तो करते हैं, दावे भी करते हैं लेकिन अन्तराष्ट्रीय नक्शों में कश्मीर आज भी पाकिस्तान के पास है और इसका कोई विरोध नहीं करता, यहाँ तक की अरुणाचल भी चीन के अधीन दिखाया जाता है लेकिन हम सिर्फ कागजों में ही विरोध कर सकते हैं क्यूंकि हम असल में कागज़ी शेर ही हैं। पाकिस्तानी हम पर बार बार हमला करते हैं, हमारे सैनिकों के सर काट कर ले जाते हैं, हमारे घर मैं बैठे हुए उनके चमचे उनका खुल कर साथ देते हैं लेकिन हमारे नेता उन सैनिकों की शहादतों की चाँद रुपियों में कीमत लगा कर बात को दबा देते हैं और येही इस देश की विडम्बना है की एक चूहा सा देश जिसका अपना कोई अस्तित्व नहीं है वो भी हमारे कंधे पैर हाथ रख कर हमारे कान मैं मूत जाता है और हम न्यूज़ चैनलों पर बैठ कर बड़ी बड़ी बातें कर लेते हैं और बयां दे देते हैं और घर बैठ कर अपने कश्मीर को अपने नक्शों मैं देख कर खुश हो लेते हैं घर बैठ कर और खुद नक्शा बना कर तो मैं पूरी दिल्ली का मालिक हूँ पर दरअसल मैं कश्मीर वो त्रिशंकु बन गया है जो कहीं का भी नहीं रहा है ...
15 मार्च, 2013
16 की उम्र मैं सेक्स
ये भी बदनसीबी है इस देश मैं की आपको वोट डालने का अधिकार, ड्राइविंग करने का अधिकार, शादी करने का अधिकार ,शराब पीने का अधिकार और यहाँ तक की एक वयस्क फिल्म देखने का अधिकार भी 18 साल की उम्र के बाद मिलता है लेकिन सरकार ये समझती है की इन सभी से ज़याद जल्दी और ज़रूरी सेक्स करना है जिसके लिए आप सिर्फ 16 साल के होने चाहियें ... यानी एक 16 साल के बच्चे को सेक्स की समझ और ज़रूरत बाकी सभी चीज़ों से पहले है, सरकार के पास ये रोज़ रोज़ के बलात्कारों का ये जवाब है। अब ये समझ नहीं आता की हम लोग किस भारत मैं रहते हैं और इसकी सभ्यता और संस्कृति का बेडा गर्क क्यूँ होता जा रहा है ..
10 मार्च, 2013
बॉक्सर विजेन्द्र की वाह वाही
नाम और शोहरत होना अच्छी बात है लेकिन उसे कायम रखना एक काबिलियत और समझदारी है। कुछ लोग ये समझते हैं की उस शोहरत की आड़ में वो कुछ भी ऐसा कर सकते हैं जो समाज या क़ानून की नज़र में अपराध हो लेकिन वो उसकी परवाह नहीं करते। ऐसे लोग जो समाज के और भविष्य के लिए एक आदर्श हो सकते हैं वो अगर किसी अपराधिक साज़िश का हिस्सा हो सकते हैं उन्हे सख्त सज़ा मिलनी चाहिए। देश के एक नामी खिलाड़ी का नाम मादक पदार्थों की स्मगलिंग मैं आना एक साज़िश भी हो सकता है लेकिन सिर्फ ये सोच कर इस बात को छोड़ा नहीं जा सकता की इसके पीछे एक बड़ा नाम है। पहले भी हुआ है की अर्जुन पुरूस्कार विजेता खिलाडी इस तंत्र का हिस्सा पाया गया था। और इस मामले मैं भी जो सबूत मिले हैं वो अपने आप मैं किसी दिशा की तरफ हे इंगित करते हैं लेकिन शायद ये भ्रष्ट तंत्र हे है की किसी भी रसूकदार और बडे नेता, अभिनेता, या खिलाडी का इतनी जल्दी कुछ नहीं होता, वर्ना आम आदमी तो चोरी बाद मैं होती है पकड़ा पहले जाता है।
29 जनवरी, 2013
हमारी न्याय व्यस्था
न्याय करते समय किये गए जुर्म की विभत्सता को देखना चाहिए, करने वाले की मानसिकता को देखना चाहिए, उसको करने का मकसद देखना चाहिए, और उस जुर्म को देखना चाहिए जो हुआ है। अपराधी किसी भी उम्र का हो सकता है, क्या अगर कोई 17 साल और 6 महीने का होने पर बलात्कार जैसे जघन्य अपराध और वो भी इतनी विभत्सता के साथ किया गया हो एक बच्चे की मानसिकता का हो सकता है? ये प्रश्न है न्याय प्रणाली से की क्या सिर्फ अगर कोई 6 महीने छोटा है तो क्या 6 महीने बाद उसको अचानक अक्ल आ जाएगी और वो बालिग़ हो जाएगा या फिर हमे ये देखना चाहिए की वो किस विकृत मानसिकता वाला है की उसने वो कृत्य किया जो एक वयस्क भी इतने घिनोने तरीके से न करे। अब अगर वो केवल 3 साल की सज़ा पाकर 3 साल बाद और भी विकृत मानसिकता को लेकर इसी समाज मैं फिर से लौट कर आएगा और फिर किसी दामिनी को लूटेगा और भी ना जाने क्या कर बैठे जिसका खामियाजा हम लोगों को भुघतना पड़ेगा। शायद न्यायालय का ये फैसला किसी और को भी ये शह दे की क़ानून आखिर क्या बिगाड़ सकता है और जाने कितने और अपराध और अपराधी खुलकर सामने आयें ...
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