11 अगस्त, 2011

पैरों के निशाँ

एक आदमी ने एक बार एक सपना देखा की वो समुन्द्र के किनारे रेत पर चला जा रहा है और भगवान् उसके साथ चल रहे हैं, उसकी जिंदगी के अध्याय आसमान पर लिखे हुए हैं, हर अध्याय मैं उसने देखा की रेत पर दो पैरों के निशाँ बनते हैं एक उसके और दूसरे भगवान् के, जब आखिरी अध्याय पर पहुंचा तो पलट केर देखा की पीछे कभी कभी तो दो पैरों के निशाँ बनते हैं और कभी केवल एक हे होते हैं, उसने भगवान् से पुछा की प्रभु मैं जब भी जीवन में बुरा समय आया या सबसे मुश्किल वक़्त से गुज़रा, परेशान हुआ और अपना संयम खोया तब तब मैं अकेला था , लेकिन प्रभु आपने तो कहा था की तुम मेरा अनुसरण करो मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा और जब भी मेरा बुरा वक़्त आया आपने साथ छोड़ दिया, जब मुझे आपकी सबसे जयादा ज़रुरत थी तब रेत पैर सिर्फ मेरे हे पैरों के निशाँ थे तब प्रभु ने कहा मेरे बच्चे मैं हमेशा हे तुम्हारे साथ था अच्छे वक़्त में भी और बुरे वक़्त में भी लेकिन जब जब तुम्हे मेरे पैरों के निशाँ नहीं मिले तब तब मैने तुम्हारा हाथ पकड़ा हुआ था पर में हमेशा तुम्हारे साथ ही था.....