21 सितंबर, 2011

मैं रोज़ 32 रूपए कमाता हूँ

हिंदुस्तान मैं जहां ४० करोड़ से भी जयादा लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं और जो रोज़ का सिर्फ ३२ रूपए रोज़ कमा पाते हैं वो लोगों की ज़रुरत इस ३२ रूपए से पूरी हो जाती है ये कहना है हमारी planning commission का.वो कहते हैं की शहरी और ग्रामीण शेत्रों मैं रहने वाले २२ रूपए और ३२ रूपए मैं अपनी सभी ज़रूरतों को पूरा कर सकते हैं जो की महीने का लगभग ७८१ रूपए और ९६५ रूपए बनता है .
आज भारत के किसी भी हिस्से मैं रहने वाला कोई भी नागरिक अगर अपना और केवल अपना ही पेट इस ९६५ रूपए मैं एक महीने भर सकता है तो कृपया कर के बतायें की वो कहाँ रहता है और क्या खाता है, वो कहाँ रहता है,  और क्या काम करता है ? सरकार शायद किसी ऐसे इंसान को लाकर हमारे सामने खड़ा भी कर दे पर ऐसे कितने है जो लाखों करोडो खा जाते हैं और फिर भी उनकी भूक नहीं मिटती, सरकार ने अपने नुमाइंदों को महंगाई भत्ता भी बढ़ा दिया और वो भी उनका जो कुछ काम न करने का भी १.५ लाख रूपए महीने के लेते हैं, वो नेता जी जिनके लिए ये महीने की तनख्वा तो कोई मायने भी नहीं रखती क्यूंकि उनकी ज़रूरतें तो वैसे भी पूरी हो जाती हैं और उनको तो इस बात की भी चिंता नहीं करनी होती की रसोई गैस सिर्फ ६ सिलेंडर  मिलेगी और ७०० रूपए की मिलेगी या पेट्रोल ७२ रूपए लीटर है या बाज़ार मैं सब्जियों के क्या दाम हैं और दालों का क्या हाल है, उनके बच्चे तो दूध भी नहीं पीते इसीलिए उनको दूध का दाम भी नहीं पता, ३२ रूपए लीटर कमाने वाला तो दूध का सपना हे देखेगा, देश की शाशन प्रणाली तो चलाने वाली संसद की रसोई मैं जहां चिक्केन भी १५ रूपए मैं मिल जाता है उनको इस बात की क्या चिंता की किसी को रोटी भी नसीब नहीं होती...
पर अब सोचता हूँ की ये सब सोचने से ही क्या होगा , न जाने इस जीवन मैं कोई दिन ऐसा देख पाऊंगा की लगे की वाकई हिन्दुस्तान बदल गया है, हेर आदमी के सर पर छत है , कोई भूखा  नहीं है, कोई अनपढ़ नहीं है, और कोई भी गरीब नहीं है, हर किसी को उसका हक मिलता है, हर कोई खुश है और एक नेता भी  एक आम आदमी की तरह  ही जीता है.....
वैसे तो सपना देखना कोई बुरी बात नहीं है और मैंने भी देखा तो शायद कोई बुरा नहीं किया, लेकिन आज सपने देखने वालों को या तो पोलिसे डंडे मारकर भगा देती है या जेल मैं डाल देती है , कोई भी आम आदमी बाबा रामदेव या अन्ना हजारे जैसी हिम्मत नहीं जुटा पाता, क्यूंकि हम डरते हैं और हालात से समझोता कर लेते हैं, कोई चीज़ महंगी होने पर विपक्ष भी धरना प्रदर्शन करता है लेकिन वो भी हम लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए क्यूंकि जानती तो वो भी हैं की इसका हल तो उनके पास भी नहीं है, हम सब जानती भी हैं लेकिन कुछ कर नहीं सकते क्यूंकि यहाँ प्रजातंत्र है जहां कहा जाता है की government of the people, by the people and for the people लेकिन यहाँ तो और ही तरह का प्रजातंत्र है जो कहता है government off the people, bye the people and far the people .....