09 नवंबर, 2012

Deepawali ki Hardik Shubhkaamnayain

Diwali marks the end of the harvest season in most of India. Farmers are thankful for the plentiful bounty of the year gone by, and pray for a good harvest for the year to come. Traditionally this marked the closing of accounts for businesses dependent on the agrarian cycle, and the last major celebration before winter. The deity of Lakshmi symbolizes wealth and prosperity, and her blessings are invoked for a good year ahead. There are two legends that associate the worship of Goddess Lakshmi on this day. According to first one, on this day, Goddess Lakshmi emerged from Kshira Sagar, the Ocean of Milk, during the great churning of the oceans, Samudra manthan. The second legend(more popular in western India) relates to the Vamana avatar of Vishnu, the incarnation he took to kill the demon king Bali, thereafter it was on this day, that Vishnu came back to his abode, the Vaikuntha, so those who worship Lakshmi (Vishnu's consort) on this day, get the benefit of her benevolent mood, and are blessed with mental, physical and material well-being. As per spiritual references, on this day "Lakshmi-panchayatan" enters the Universe. Sri Vishnu, Sri Indra, Sri Kuber, Sri Gajendra and Sri Lakshmi are elements of this "panchayatan" (a group of five). and the most common of all is that Bhagwaan Shree Ram along with Sita and Lakshman came back to ayodhya after completing their 14 years long vanvaas and killing ravan and people celebrate the coming back of their king with lights and crackers. 
So, everybody has their own stories about the festivals and their celebrations but to me enjoy everyday as a festival and bring peace and harmony in the life of others as well your own. Keep smiling and enjoying the festival season and share and spread love and smiles..
Shubh Deepawali to all of you.

20 सितंबर, 2012

आज भारत बंद है

पता नहीं क्यूँ कुछ लोग, लोगों के लिए भारत बंद करते हैं? इस भारत बंद से किन लोगों को फायदा होता है यही समझ नहीं आता। आम आदमी तो दोनों तरफ से मरता और दबता ही है सरकार की नीतियों से भी और उसका विरोध करने वालों से भी।इस महंगाई का दर्द वो नेता क्या जाने जो सरकारी खर्चे पर पलता हो। जो ये ही नहीं जानता की महीने का राशन क्या होता है और कैसे खरीदा जाता है। एक सिलेंडर लेने के लिए कैसे घंटो चक्कर लगाने पड़ते हैं, शौक मैं खरीदी गयी गाडी भी खडी हुई एक नासूर की तरह चुभती है, जब महीने के 10000 कमाने वाला भी ये सोचते हुए रो पड़ता है की इस बार किस चीज़ मैं कटोती करूं बच्चे की पढाई से समझोता करूँ या माँ बाप की दवा से या फिर खाने से, महीने का दूध कम कर दूं , इस बार त्यौहार पर क्या करूँगा, कैसे बच्चों को समझाऊंगा, इतने पैसों मैं बिजली पानी का बिल भी भरना है, स्कूल की फीस भी देनी है, और अगर घर अपना नहीं है तो फिर तो किराया भी देना है। क्या ये भारत बंद से  ये सभी मुश्किलें हल हो जाएंगी? और उसका क्या जिसने रोज़ ही कमा कर खाना है जो मजदूरी करता है और फिर अपना और अपने परिवार का पेट  पालता है, सड़क पर हमारे फैंके हुए कागज़ चुगने वाले उस बच्चे का भारत बंद से क्या फायदा हाँ शायद वो धरने के बाद वहाँ पडे कागज़ बेनर समेत कर अपना गुज़ारा चला ले मगर उस बीमार का क्या जो आज समय पर हॉस्पिटल न पहुँच पाने की वजह से सड़क पर दम तोड़ देगा। उस नुक्सान का क्या जो किसी नेता के कहने पर उसके चमचे सरकारी अमले पर हमला करके तोड़फोड़ देंगे, रेल गाड़ियां रोक दी जाएंगी, बसें तोड़ी जाएंगी, दुकाने लूट ली जाएंगी, और आम आदमी से मारपीट की जाएगी।
ये वो आम आदमी ही है जो इस सबको भुगतेगा। सरकारी तंत्र की मार को भी और उसके विरोधियों को भी। ये आम आदमी तो उस खिलोने की तरह है जिसको हर कोई अपने लिए चाबी भरकर उससे खेलता है और काम होने पर उसे ही तोड़ देता है। ये वो टुटा हुआ आम आदमी ही है जो रोज़ मर रहा है। लाखों करोडो के घोटाले करने वाली सरकार सिर्फ चंद रुपयों की सब्सिडी के नाम पर आम आदमी को अपने पैरों के  नीचे  दबा कर मार रही है। दूसरी तरफ सरकार अपने सरकारी करमचारियों को महंगाई भत्ता भी बढ़ा रही है यानी अब एक आम आदमी और एक आम सरकारी आदमी मैं भी फर्क होगा। एक 30000 रूपए महीने कमाने वाले नेता के पास 30 हज़ार करोड़ की संपत्ति है लेकिन वो फिर भी सभी सरकारी सुख सुविधाओं पर ऐश करता है और एक आम आदमी ऐश के नाम पर 10 रूपए के गोल गप्पे भी नहीं खा सकता। सरकार उन 4 करोड़ विस्थापित पाकिस्तानियों और बांग्लादेशियों को तो सुविधाएँ दे सकती हैं लेकिन अपने देशवासियों का गला घोंट कर। चलो छोडो ये सब मैं भी क्या लेकर बैठ गया आज तो भारत बंद है और मैं ये सब लिख रहा हूँ किसी नेता को पता चल गया तो जबरदस्ती पकडवा देगा की बंद के दोरान मैने ये लेख कैसे लिखा। और यहाँ नेताओं की ही सुनवाई होती है हम तो आम आदमी हैं हमारा क्या है ...

09 सितंबर, 2012

हमारी उपलब्धियां

हमारी एक और महान उपलब्धि की आज भारत ने अपना 100वा मिशन अन्तरिक्ष मैं भेजा, हम ने तो चाँद पर भी पानी ढून्ढ लिया है, मंगल पर जाने की तयारी भी जारी है लेकिन हम स्वयं आज भी गटर का मिला हुआ पानी ही पीते हैं, चाँद पर घर बनाने का सपना है लेकिन हमारे देश में सडकें आज भी नहीं हैं, परमाणु उर्जा से बिजली बन रही है पर वो बिजली जा कहाँ रही है पता ही नहीं क्यूंकि आज भी सैकड़ों गाँव हैं जिन्हे बिजली क्या होती है पता ही नहीं, आज जब हम अपनी मूलभूत सुविधाओं को ही नहीं पूरा कर सकते तो ऐसी उपलब्धियों का फायदा किसको मिल रहा है, हम दुनिया के नक्शे पर तो चमकना चाहते हैं लेकिन अपनी बुनियादी ज़रूरतें भी पूरी नहीं कर सकते तो इस सब का क्या फायदा... ? लाखों करोडो के घोटाले हो रहे हैं, सीबीआई और पुलिस अगर पकडती भी है तो ठीक लेकिन वो पैसा कहाँ चला जाता है ये किसी को नहीं पता, घोटाले बाज़ पकडने के बाद उस पैसे को कहाँ और क्या कर देते हैं पता भी नहीं चलता, एक आम आदमी घर पर 10-20,000 भी रखे तो परेशां रहता है की कहाँ रखे लेकिन ये लोग उन लाखों करोडो को कहाँ दबा देते हैं की उसको सीबीआई और पुलिस भी ढून्ढ नहीं पाती।। अजीब है न ये सब कुछ , लेकिन यही सब कुछ तो हो रहा है, हमारी उपलब्धियां दरअसल क्या हैं ..?
एक ऐसा प्रधानमंत्री जो सब कुछ जानते हुए भी अनजान बना रहता है।
एक मायावती जैसी नेता जो सिर्फ आरक्षण और दलित वर्ग के अलावा इस देश में किसी को रहने देना नहीं चाहती।
एक भारतीय जनता पार्टी जैसी पार्टी जो केवल हिंदुत्व के दम पर जीती है। 
एक राज ठाकरे जैसा गुंडा जो महाराष्ट्र को अपनी जागीर समझता है और चाहता है लोग उसकी शर्तों पर जीयें।
एक केजरीवाल और सहयोगी जैसे लोग जो जनता को बडे हे प्यार से मूर्ख बना देते हैं।
एक कर्नाटका सरकार के मंत्रियों जैसे लोग जो राज्य मैं सूखे के नाम पर केंद्र से पैसा मांगते हैं और फिर उस पैसे से परिवार सहित विदेश में यात्रा करते हैं।
एक वो समुदाय विशेष जो आज भी अल्पसंख्यक कहलाता है और उसी की आड़ में वो सभी कुछ कर जाता है जो इस देश के सविंधान के विरुद्ध है और उनका कोई कुछ नहीं कर सकता।
एक हमारे देश के वो नेता जो संसद नहीं चलने देते क्यूंकि उनको उनके हक का वो मोटा खाने को नहीं मिला जो सरकार के मंत्रियों ने अकले अकले ही खा लिया।
एक वो महान आम आदमी जो सब कुछ सह सकता है लेकिन इस सबके विरुद्ध आवाज़ नहीं उठा सकता क्यूंकि उसको इस देश मैं रहने की कीमत चुकानी है जो वो किश्तों में चुका  रहा है।
एक वो व्यापारी वर्ग भी है जो बड़ी बड़ी कम्पनियां चलते हैं और सरकार से अपने दिए हुए चंदे के बदले बडे बडे घोटालों में स्वयं भी खाते हैं और सरकार को उसका हिस्सा भी देते हैं।
एक वो युवा है जो अचानक जागता है फिर शोर मचाता है और अत्याचार से लडने की बात करता है और फिर शांत होकर अपने काम मैं लग जाता है।
एक वो बाबा है जो योग सिखाते हुए भोग के लालच में आकर अपने अस्तित्वा पर ही सवाल खडे कर देता है।
और अंत मैं एक ऐसा अन्ना है जो सभी सोये हुए लोगों को जगाता है और पूरे देश को झिंझोड़ देता है लेकिन अपनों के हाथों दबा दिया जाता है, कुचल दिया जाता है, और वो बेचारा भी शांत होकर अपने घर बैठ जाता है।
दरअसल ये हमारे इस देश की कुछ महान उपलब्धियां है, ये रोकेट वोकैट तो बेकार की चीजें है, हमारी असली पहचान तो इन सब से है,   और हमारा देश और देशवासी इतने महान है की इन उपलब्धियों को नगण्य समझते हैं ...


15 अगस्त, 2012

क्या हम सचमुच आज़ाद हैं?

स्वतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें , आज़ादी के 65 वर्षों के उपरान्त आज क्या हम सचमुच आज़ाद हैं? क्या हमे आज़ादी है अपनी अभिव्यक्ति की? क्या हमे आज़ादी है अपने देश मैं कहीं भी रहने और जीने की? क्या हमे आज़ादी है अपने हक के लिए आवाज़ उठाने की? क्या हमे आज़ादी है आज़ादी से जीने की ... ?अगर नहीं तो फिर इस आज़ादी के मायने क्या हैं? हमारे लिए 15 अगस्त मतलब क्या सिर्फ राश्ट्रीय छुट्टी होना ही है ? ये आज़ादी हमे तोहफे मैं नहीं मिली, ये हमे उन लाखों शहीदों की कुर्बानियों के बाद मिली है जिन्होने अपनी जान दी सिर्फ और सिर्फ हमे आज़ाद देखने के लिए, जिनमे से कई तो गुमनामी की मौत मारे गए और कुछ जो आज भी स्वतंत्रता सेनानी प्रमाणित करने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं ताकि सरकार उनकी दी हुई कुर्बानियों के एवज  मैं उन्हे पेंशन दे  सकें और वो अपनी जिंदगी गुज़ार सके और गर्व से कह सकें की हाँ उन्होने आज़ादी की लड़ाई लड़ी थी, लेकिन आज उनको भी गर्व की जगह शर्मिंदगी महसूस होती होगी की आखिर हम लडे भी तो किन लोगों के लिए जिनको न तो आज़ादी का मतलब मालुम है और न ही  उसकी कीमत का अंदाजा हैं.  पर ये इस देश की विडम्बना है की हम आज़ाद तो हुए पर अपनों के हाथों ही फिर गुलाम हो गए और आज हम अपनों की ही गुलामी झेल रहे हैं , लेकिन इस गुलामी में  जीने मैं वो दर्द नहीं है एक मजबूरी है और एक लाचारी है शायाद इसीलिए हमे उस दर्द का एहसास नहीं हैं और हम उसी लाचारी और मजबूरी मैं जीए जा रहे हैं, हम सोचते हैं सिर्फ बर्दाश्त करो मगर आवाज़ मत उठाओ क्यूंकि हमारा क्या जा रहा है , सब चल रहा है ना , हम सब चाहते हैं की भगत सिंह, चंदर शेखर आज़ाद जैसे बच्चे फिर से पैदा तो हों लेकिन वो हमारे यहाँ न हों किसी पडोसी के यहाँ हो जायें, हम कुर्बानियां देना नहीं चाहते लेकिन चाहते हैं की कोई तो कुर्बानी दे , दरअसल हम सब मर चुके हैं और हमारी आत्मायें भी मर चुकी हैं और हम सिर्फ खाने और पहनने के लिए जी रहे हैं, हमारी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है न देश के प्रति और न ही समाज के प्रति, और जो लोग अन्ना या रामदेव की तरह कुछ साहस भी करते हैं तो हम उनको भी स्वार्थी कह कर उनका मज़ाक उड़ाते हैं क्यूंकि हम खुद अक्षम हैं और हममे वो साहस और जज्बा नहीं है , हम डरते हैं और इसी तरह जीना चाहते हैं क्यूंकि आदत पड़ चुकी है और जब हम अपनी आदत ही नहीं बदल सकते तो इस देश को बदलने की बात कहाँ से करंगे ... ज़रा सोचिये 

13 अगस्त, 2012

India At Olympics

After spending more then $60 millions overall on the preparation of the 83 participants who took part in 13 different games, India this time improved its medal tally to 2 silver and 4 bronze medals and which is a record this time of highest medals tally at olympics so far. our sports minister immediately responded to the media that by 2020 olympics India's medal tally will improve to about 25 medals.
Isn't it ironical that out of the country of more than 1.2 billion people we can produce just a countable athletes and most of them cant even perform at the international levels. Our athletes just looks like they are there just to be the part of the game. winning six medals can be a big achievement for the individuals but as a country its a very poor performance where billions of rupees are spend annually on the name of sports which actually is not used to the potential and wasted by the authorities or is been used by our respected politicians who feel very proud to be associated to the sports arena just to be a part of an international contingent or they just wanted to improve their portfolio without actually having any concerns about the sports they are concerned to. Their motive behind all this is not to improve the quality of trainning or sports. Many of the concerned authorities are not even aware of the technicalities of the game they are heading. Problem is that its not like that we dont have the talent, we actually have lots n lots of talent and potential in our country but either the lack of infrastructure or facilities and then the politics behind the screen just damages the whole process. the money spent is not used with proper channel rather its been misused by the authorities for their own sake. many of our athletes are living their life with adversity. India is a country where cricket is considered as a national game and even the 14th player of the team being an extra still has an identity but we dont even know the name of other games played in india. every parent wants that if their child will be in sports then it should be cricket, nothing less. we have enormous talent but all we need is that we should promote them from the grass roots level and help them shine on the international levels so that India can prove its worth  at every part of the game.