मैं महिलाओं का विरोधी नहीं हूँ किन्तु महिला सशक्तिकरण के दौर में अपने को एक अबला नारी के तौर पर पेश करना, या फिर उम्र के एक पड़ाव पर आकर जब आप मानसिक और शारीरिक रूप से कमज़ोर होने लगते हो तब अपनी दबी हुई कुंठा को निकाल लेना और उसे सार्वजनिक करके चरित्र हनन करने का मैं समर्थक नहीं हूँ। "तुम मेरे लिए ये कर दो और मैं तुम्हारे लिए ये करती हूँ" और फिर अचानक 20-30 साल बाद आपका आत्मसम्मान आपको झझकोर देता है और आपकी अंतरात्मा चीत्कार कर उठती है और आप #MeToo #MeToo चिल्लाने लगती हो तो ये गलत है। एक शशक्त महिला अपने ऊपर हुए अत्याचार का तुरंत जवाब देती है, वो 10-20 साल इंतज़ार नहीं करती। अगर ऐसा है तो आप अपनी कमज़ोरी को छुपा रहे हो, गुड टच और बाद टच का फर्क अगर आपको नहीं पता तो आप अपने आप से धोखा कर रही हो, तब डर कर अगर आपने समझौता किया या अपना काम निकाला तो उसका रोना आज क्यों ? शायद अपने स्टेटस या काम से समझौता नहीं करना चाहती थी आप, बल्कि आपने अपने चरित्र से समझौता किया और वहां पहुंची जहाँ आप पहुंचना चाहती थीं, अपने को अबला नारी बनाना आसान है लेकिन शक्ति स्वरुप में आकर कठोर निर्णय के साथ अन्याय का विरोध करना शायद मुश्किल। वैसे इस #MeToo कैम्पेन को हलके में नहीं लेना चाहिए, अब इसके पीछे की राजनीती को समझिए, दरअसल ये आंदोलन 2006 में एक अश्वेत महिला तराना बुर्के ने शुरू किया था, और इस चिंगारी को आग का रूप हॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री अली मिलानो ने एक साल पहले अक्टूबर 2017 में दिया, लेकिन इसे भारत आते आते एक साल लग गया, अब आप समझो की देश में एक अस्थिरता का माहौल बनाया जा रहा है, आप इसके समर्थन में लिखिए तो आप महिला सशक्तिकरण में सहयोगी हैं अन्यथा आप पर राष्ट्रवादिता का लेबल लगा दिया जायेगा और ब्लैकमेल किया जायेगा। याद रखिये ''ताड़का, शूर्पणखा, पूतना '' भी नारियाँ ही थी, जिन्हे मारने मे ईश्वर ने भी देर न लगाई, हालीवुड और विदेशों का चलन #MeToo का भसड़ अब भारत भी आ गया ..लेकिन निशाने पर कौन है ये सोचिये.. एमजे अकबर अपनी पत्रकारिता के 13 सालो तक नरेन्द्र मोदी और बीजेपी के सबसे बड़े आलोचक थे, मोदी के खिलाफ खूब जहर उगलते थे तब उन पर किसी भी महिला ने कोई आरोप नही लगाय ... लेकिन जैसे ही वो मोटा भाई के आबे जमजम से पवित्र हो गए और केंद्रीय मंत्री बन गए तो अब चुनावी वर्ष में 5 महिला पत्रकार उनके ऊपर आरोप लगा रही हैं कि उन्होंने कई बार उन्हें गलत तरीके से छुआ था, मतलब जब इन महिलाओं को छुआ था तब उन्हें नहीं पता चला कि उन्हें सही तरीके से छुआ जा रहा है कि गलत तरीके से लेकिन 20 साल 25 साल बाद अचानक इन महिलाओं को याद आने लगा फलाने ने उन्हें गलत तरीके से छुआ था, अब नाना पाटेकर और विवेक अग्निहोत्री जैसे लोगों को देख लीजिए यह लोग ट्विटर पर और दूसरे माध्यमों में वामपंथियों को जमकर एक्सपोज़ करते हैं तो उनके खिलाफ अचानक दो तीन महिलाएं सामने आती हैं और कहती है 25 साल पहले मेरे साथ ही उन्होंने गलत व्यवहार किया था, क्या कोई विपक्षी पार्टी का कोई नेता या अभिनेता इसमें सम्मिलित है, जिन कोंग्रेसियों के चर्चे और वीडियो दुनिआ ने चटकारे लगा कर देखे वो सब भीष्म पितामह हो गए, न मायावती का गेस्ट हाउस कांड, ना राहुल का सुकन्या देवी कांड, बॉलीवुड के शीर्ष अभिनेताओं के खिलाफ कोई है क्या ? संजय दत्त ने खुद अपने इंटरव्यू में कबूला की वो इंडस्ट्री के 300 से अधिक महिलाओं के साथ सम्बन्ध रखता है, कोई आयी? सलमान, शाहरुख़, जैसे अभिनेता क्या दूध के धुले हैं ? अभिनेत्रियां जब तक पैसा मिलता है तो हर प्रकार के सीन करती हैं, और समझौते करती हैं, राजनीती, पत्रकारिता, व्यापार, खेल जगत कुछ भी तो अछूता नहीं है इन सब से, किन्तु सोचनीय ये है की आज आपका किया गया खेल किसी के घर परिवार को उजाड़ सकता है, किसी का करियर ख़त्म कर सकता है, और इस सबके लिए आपको जो प्रसिद्धि मिलेगी भी वो दो कौड़ी से ज़्यादा की नहीं होगी..... माफ़ी चाहूंगा अगर मैंने किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाई तो.... किन्तु मर्द हूँ सही को सही और गलत को गलत लिखूंगा....
12 अक्टूबर, 2018
01 अक्टूबर, 2018
अरविन्द केजरीवाल: मानसिक रोगी
अरविंद केजरीवाल को अगर विवेक तिवारी हत्याकांड पर राजनीति ही करनी थी तो उन्हें 1करोड़ रुपए का चेक लेकर मृतक के घर जाकर उनके परिजनों की बात सुनते हुए उनके साथ सहानुभूति प्रदर्शित करनी चाहिए थी... किन्तु उन्होंने इस मामले में भी अपनी गरिमा के प्रतिकूल प्रतिक्रिया की है। दिल्ली में अंकित सक्सेना और डॉ नारंग का भी कत्ल हुआ तब भी जनाब चयनित राजनीति कर रहे थे, उनको घोषित मुआवजा आज तक नही मिला है, किन्तु उसको धर्म का एंगल देकर अपनी व्यक्तिगत राजनीतिक मेहत्वकांगशा के लिए अपने स्तर से गिर कर ओछी बयानबाज़ी करके ये आखिर साबित क्या करना चाहते है, या तो अब ये अपने राजनीतिक तिरस्कार को समझ रहे है और बौखलाहट में मानसिक संतुलन गवां बैठे है, या फिर अपने मरणासन राजनीतिक अस्तित्व को ज़िंदा रखने की जद्दो जहद में जल बिन मछली की तरह छटपटा रहे हैं। धर्म और जातिगत राजनीति को बदलने का दावा करने वाले आज उसी की गर्त में समा चुके है, धीरे धीरे करके झाड़ू की तीलियाँ बिखर रही हैं, जो ठूंठ बचा है वो शोर कर रहा है, बस कुछ समय और, फिर जो झाड़ू जिस राजनीतिक कचरे को साफ करने का दम दिखा रही थी, आखिरकार उसी कचरे में तिल्ली तिल्ली करके बिखर जाएगी...
14 अगस्त, 2018
#WeAreWithArmedForces
हमारे देश की न्यायपालिका आज लगभग हर मुद्दे पर निर्णय ले रही है, कुछ सही तो कुछ गलत, कुछ राज हित मे तो कुछ राष्ट्र हित मे, सही है किंतु बात जब राष्ट्र की सुरक्षा की आती है तो क्या सेना की कार्यप्रणाली को जाने और समझे बिना उस पर भी उंगली उठाना सही है ? सेना अपनी कार्यवाही करते समय किसी राजनीतिक दल, धर्म, सम्प्रदाय या दुश्मन को नही देखती बल्कि अपने पीछे खड़े देशवासियों के प्रति समर्पित होती है। तो क्या अब ये निर्णय भी हमारी न्यायपालिका लेगी की किसको गोली मारनी है, किसको डंडा मारना है, किसको पत्थरबाजी करने देनी है या किसके हाथों पिटना है ? हर वो व्यक्ति जो देशद्रोही है वो इस देश का ओर इस सेना का दुश्मन है, और वो परिणाम भुगतेगा, ये न्यायपालिका नही बताएगी की कौन "भटके हुए नौजवान" है और कौन "आतंकवादी" , आज देश के इतिहास में पहली बार सेना के 300 कार्यरत अधिकारी न्यायपालिका से ये सवाल पूछेंगे की उनका अधिकार क्षेत्र क्या है ? वो किसके कहने पर कार्यवाही करेंगे ? वो मासूम पत्थरबाजों की और आतंकियों की पहचान कैसे करेंगे ? क्यों वो अपने ही देश मे विरोधाभास झेलते है , क्यों उनको कुछ दो कौड़ी के कश्मीरियों के हाथों बेइज़्ज़त होना पड़ता है, आज हो सके तो जज साहब को भी एक बार बा-इज़्ज़त किसी जीप में बैठा कर एक चक्कर लगवा ही देना और पूछना की क्या कार्यवाही होनी चाहिए ...
तिरंगे ने भी मायूस होकर सियासत से पूछा - ये क्या हाल हो रहा है....
मेरा लहराने में कम और कफन में ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है...
तिरंगे ने भी मायूस होकर सियासत से पूछा - ये क्या हाल हो रहा है....
मेरा लहराने में कम और कफन में ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है...
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