17 अगस्त, 2021

अटल बिहारी वाजपेयी "सदैव अटल"

 "अटल" सरीखे व्यक्तित्व मरा नही करते, वो अ-टल हैं, अमर हैं, अनंत हैं.. भारत की राजनीति के वो युग प्रवर्तक नेता जिन्होंने गुलामी से लेकर आज़ादी से होकर आज के नए भारत के सूर्योदय तक को देखा और इसके सृजन में अपना अतुलनीय योगदान दिया। अटल जी की राजनीति में विपक्ष तो था किंतु उनका विरोधी कोई नही था, उनके राजनीतिक मतभेद थे किंतु किसी से मनभेद नही थे, ऐसे विरले ही होते है जिनके व्यक्तित्व की सराहना उनके प्रतिद्वंदी भी करते थे, मेरे हिसाब से तो भारतीय राजनीति में केवल अटल बिहारी बाजपाई जी और लाल बहादुर शास्त्री जी, ये दो प्रखर नेता ही ऐसे हुए है जिनको दिल से सम्मान मिला, उनका अनुसरण किया गया और शायद चाह कर भी कोई उनका विरोध नही कर सका। विलक्षण प्रतिभा के धनी, जिनका हर शब्द अपने आप मे एक कविता होता था, थोड़े में बहुत कुछ कहने वाले ...

मैं भी लिखने बैठा तो जाने क्या क्या उमड़ा था मन मे किन्तु सब शून्य से हो गया है, स्तब्ध और निशब्द सा हो गया हूँ, अटल जैसी शख्शियत मरा नही करती, वो दिलो में जिंदा रहती है, एक विचारधारा बन कर मन मष्तिष्क पर सदियों राज करती है...

विनम्र श्रद्धांजलि ...

15 जुलाई, 2021

जी ले ज़रा...

 ज़रा सा ही फ़र्क़ होता है, लोगों के जिंदा रहने में और एक दिन ना रहने में... अभी कुछ ही दिनों में इतने सारे लोग जो गए हैं, क्या कभी इनको देखकर ऐसा लगा था कि ये यूंही चले जायेंगे, बिना कुछ कहे, बिना कुछ बताए.. उन सब से हमें कुछ ना कुछ लगाव था, कुछ शिकायतें थीं, कुछ नाराज़गी भी थी,जो कभी कही नहीं हमने और... कहा तो वो भी नहीं था जो इन सब इंसानों में बेहद पसंद था हमें.. फिर अचानक एक दिन खबर आती है, ये नहीं रहे, वो नहीं रहे... नहीं रहे मतलब, कैसे नहीं रहे ? कैसे एक पल में सब बदल जाता है.. वही सारे लोग जिनसे हम मिले थे अभी कुछ समय पहले, वे इतनी जल्दी गायब कैसे हो सकते हैं कि दोबारा मिलेंगे ही नहीं.. जैसे वे कभी कुछ बोले ही न थे, ना जिये,जैसे कोई बेजान खिलौना, जिसकी चाबी खत्म हो गयी हो.. कितना कुछ कहना रह गया उन सब को, कहीं घूमने फिरने जाना था उन सब के साथ, खाना भी खाना था, पार्टियां भी करनी थीं.. कुछ बताना था, कुछ कहना भी था उन सब को, बहुत सी बातें करनी थी फ़िज़ूल की ही सही, वो भी कहाँ हो पाया... सब रह गया,वो सब चले गए,न हम सब तैयार थे उन्हें रुख़सत करने के लिए, न वो सब तैयार थे रुख़्सती के लिए.. फिर ऐसे ही एक दिन हमारी भी खबर आनी है, एक सुबह कि वो फलाने नहीं रहे.. लोग अरे! कह के एक मिनिट खामोश होंगे फिर जीवन बढ़ जाएगा आगे.. इसलिए आओ तैयारी कर लेते हैं, सब नाराज़गी, शिकायतों और तारीफों का हिसाब चुका के रख लेते हैं... और ये आज ही कर लें क्योंकि कल भी कल के भरोसे और अनिश्चित है.. कल तक जाने और क्या क्या हो जाए.. ज़िंदगी हल्की हो जाएगी, तो आखिरी सांस पर मलाल का वज़न नहीं रहेगा... क्योंकि... ज़रा सा ही फ़र्क़ होता है, लोगों के जिंदा रहने में और एक दिन ना रहने में...

15 जून, 2021

श्री राम जी का मंदिर

 उत्तरप्रदेश में चुनाव का शंखनाद हो चुका है, और इस चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा बनाकर श्रीराम मंदिर और योगी आदियत्यनाथ की साख पर सबसे ज़्यादा प्रहार किए जाएंगे क्योंकि दोनों ही हिंदुत्व के गौरव का प्रतीक हैं, और विपक्षी भेड़िए इन पर हिंदुओ को बांटे बिना जीत नही सकता... ये राजनीति की बिसात है, इसमें साम दाम दंड भेद के अलावा धार्मिक तुष्टिकरण भी महत्वपूर्ण है, और किंचित विपक्ष के पास यही एक मुद्दा बचा है.. जातीय व धार्मिक वोटो की जोड़ तोड़.. अब इसे यूँ समझिए कि यदि आप राम मंदिर के लिए भूमि अधिग्रहण को लेकर आपियों और साँपियों के झूठ के 24 घंटे में नंगा होने पर खुश हो रहे हैं तो थोड़ा रुक जाइये.... और उनके अगले स्टेप को भी जानिए.. अब जल्दी ही इस मामले में एक आत्ममुग्ध वकील भी कूदने वाला है जो भाजपाई भी है.. नाम को ही सही.. साथ ही वामी टीम यानी योगेंद्र यादव व प्रशांत भूषण भी कूदेंगे... राजनीतिक ज़मीन तो ये भी तलाश रहे हैं.. ये मामले को जमीन का विवाद बना वक्फ बोर्ड बनाम कोई अन्य का मुकदमा खड़ा किया जाएगा और अधिग्रहण के काम रोकने का प्रयत्न होगा या ट्रस्ट द्वारा जमीन की खरीद को अवैध बताया जाएगा... और कोर्ट के जरिये निर्माण कार्य को रोकने का प्रयत्न होगा... याद रहे निर्माण उस जमीन से कहीं ज्यादा हिस्सों पर होना है जिसपर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है, क्योंकि अयोध्या में केवल मंदिर निर्माण ही नही हो रहा, पूरी अयोध्या नगरी को सजाया जा रहा है.. अब सैफई के टीपू सुल्तान, केजरी टीम और पूरा वामपंथी गैंग किसी भी तरह हर हाल में 2022 से पहले चाहे एक दिन को रुके मंदिर निर्माण रोकना चाहते हैं ताकि अपने वोट बैंक को यक़ीन दिला सकें के सरकार बनने पर वे मंदिर नहीं बनने देंगे... इसी क्रम में अयोध्या में कोई हिंसक घटना भी होती है तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा...परंतु आप केवल और केवल अपने प्रभु श्रीराम पर आस्था बनाये रखिये, उन्होंने सही लोगों को चुना है अयोध्या के जीर्णोद्धार के लिए.. बाकी विपक्ष जो करे वो करने दीजिए, ये उनके राजनीतिक अस्तित्व का सवाल है और उसके लिए ये किसी भी हद तक जाएंगे सत्ता के लिए.. लिख लीजिए... जय श्रीराम

26 मई, 2021

मोदी जी ने हमारे बच्चो की वैक्सीन विदेश क्यों भेजी ?

 वैक्सीन एक्सपोर्ट को लेकर देश मे एक भ्रम फैलाया जा रहा है, पोस्टरबाजी हो रही है कि मोदी ने हमारे बच्चो की वैक्सीन विदेश में भेज दी, या बेच दी या एक्सपोर्ट कर दी, वगेरा.. किन्तु इसका सच जानना और समझना भी ज़रूरी है, देश मे कुछ जिहादी और सेकुलर लगातार एक ही मुद्दा उठा रहे हैं कितनी वैक्सीन कहां भेजी गई और क्यों भेजी गई ? इसका पूरा हिसाब किताब कुछ इस तरह है, समझ लेना... 11 मई तक भारत ने कुल 6.6 करोड़ वैक्सीन के डोज विदेशों में निर्यात किए हैं । इसमें से 84 प्रतिशत यानी करीब 5 करोड़ वैक्सीन लाइसेंसिंग लाइबेलिटी के तहत बाहर भेजी गई है । लाइबेलिटी मतलब भारतीय कंपनी के द्वारा विदेशी कंपनी या दूसरे देश के साथ हुए समझौते के तहत वैक्सीन को बाहर भेजा गया है । अगर भारत की कंपनी वैक्सीन बाहर भेजने का समझौता स्वीकार नहीं करती तो भारतीय कंपनियों को वैक्सीन बनाने का कच्चा माल, टेक्नोलॉजी और फार्मूला ही नहीं मिलता... भारत में जो कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट वैक्सीन बनाती है वो वैक्सीन बनाने का कच्चा माल विदेशों से इम्पोर्ट करती है । जिन देशों ने भारत की कंपनियो को ये कच्चा माल दिया । उन देशों ने भारत की वैक्सीन निर्माता कंपनियों से करार किया कि हम आपको कच्चा माल तभी देंगे जब आप वैक्सीन बनाने के बाद कुछ प्रतिशत हमको भी बेचेंगे । इस वैक्सीन के लिए भारतीय कंपनियों को पेमेंट भी दी गई है । लगभग 5 करोड़ वैक्सीन ऐसे ही कुछ अनुबंधों के तहत विदेशों में भेजना भारत की कंपनियों की व्यवसायिक जिम्मेदारी थी । इसके अलावा एक करोड़ 7 लाख वैक्सीन मदद के रूप में भारत के पड़ोसी देशों को भेजी गई है । अब मज़े की बात, आपको ये बात जानकार आश्चर्य होगा कि आज बहुत सारे जिहादी और इस्लाम परस्त सेकुलर भी वैक्सीन एक्सपोर्ट को लेकर भारत सरकार को घेर रहे हैं.. लेकिन सच्चाई ये है कि भारत की कंपनियों ने कुल एक्सपोर्ट हुई वैक्सीन का 12.5 प्रतिशत सऊदी अरब को एक्सपोर्ट किया है.. सऊदी अरब में 15 लाख 40 हजार भारतीय रहते हैं और ये बताने की जरूरत नहीं है कि इनमें से 90 प्रतिशत मुसलमान हैं.. भारत ने यहां से जो वैक्सीन सऊदी अरब को एक्सपोर्ट की है वो सारी वैक्सीन सऊदी अरब में रहने वाले इन हिंदुस्तानी नागरिकों को मुफ्त में लगाई जा रही है.. फिर भी भारत में मौजूद जिहादी हल्ला हंगामा काट रहे हैं क्योंकि मकसद सिर्फ मोदी का विरोध है... भारत ने 2 लाख वैक्सीन डोज युनाइटेड नेशन पीस कीपिंग फोर्स को दिया है.. भारत के बाहर भी भारत के हजारों जवान संयुक्त राष्ट्र के मिशन के तहत शांति सेना के रूप में नियुक्त हैं.. इन हजारों जवानों को भी वैक्सीन लगाने के लिए वैक्सीन एक्सपोर्ट की गई है.. अब जिहादी जवाब दें कि क्या वैक्सीन भारत के सैनिकों और जवानो को लगे तो उन्हें कोई दिक्कत है ? इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक कोवैक्स फैसेलिटी का निर्माण किया है.. भारत सरकार को WHO के इस कोवैक्स फैसेलिटी को कुल एक्सपोर्ट वैक्सीन का 30 प्रतिशत भेजना पड़ा.. ये दुनिया में गरीब देशों की मदद के लिए किया गया एक समझौता था जिस पर हर देश के साइन हैं.. अगर आज मोदी के अलावा कांग्रेस का भी प्रधानमंत्री होता तो भी उसको ये वैक्सीन WHO को भेजना ही पड़ता.. कमर्शियल लाइसेंसिंग क्या होती है ? इस बात को आप ऑक्सफोर्ड और सीरम की वैक्सीन कोविशील्ड से भी समझ सकते हैं.. दरअसल सीरम भारत की कंपनी है जो वैक्सीन बनाती है.. लेकिन उसने लाइसेंस और फॉर्मूला ब्रिटेन की कंपनी एक्स्ट्राजेनेका (ऑक्सफोर्ड) का लिया हुआ है.. पहले ऑक्सफोर्ड ने भारतीय कंपनी सीरम से बिलकुल साफ कहा था कि हम आपको लाइसेंस तभी देंगे जब आप हर महीने हमें 50 लाख वैक्सीन बनाकर देंगे.. तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद ब्रिटेन की सरकार से बात करके इस रुकावट को दूर किया और सीरम को लाइसेंस मिला नहीं तो कोवीशील्ड वैक्सीन तो भारत में बन ही नहीं पाती.. इसके अलावा भारत सरकार ने 7 पड़ोसी देशों को भी वैक्सीन भेजी है.. ये सारे पड़ोसी देश लगातार चीन के प्रभाव में आते जा रहे हैं.. अगर यहां भारत ने वैक्सीन नहीं भेजी होती तो चीन इन देशों पर और ज्यादा प्रभाव जमा लेता.. इसलिए भारत ने बांग्लादेश भूटान श्रीलंका अफगानिस्तान वगैरह को वैक्सीन भेजी है.. अब इसे इस उदाहरण से समझिए... चीन ने बांग्लादेश को अपनी वैक्सीन ऑफर की लेकिन बांग्लादेश ने मना कर दिया और भारत का हाथ पकड़ा.. लेकिन अब जरा विचार कीजिए कि जो चीन पाकिस्तान से हर चीज की कीमत वसूल रहा है उसी चीन को आखिरकार मजबूरी में बांग्लादेश को फ्री वैक्सीन गिफ्ट के तौर पर भी ऑफर करनी पड़ी.. सोचिए वैक्सीन के नाम पर इतनी बडी कूटनीति चल रही है.. दरअसल भारत को भी ये कूटनीति करनी पड़ती है आप अपनी सीमा पर हर तरफ दुश्मनी मोल नहीं ले सकते हैं.. कुछ लोग ये अफवाह भी उड़ा रहे हैं कि भारत सरकार ने पाकिस्तान को वैक्सीन भेज दी है ये बात बिलकुल गलत है.. दरअसल सच्चाई ये है कि कोवीशील्ड बनाने वाली ब्रिटेन की कंपनी एक्सट्राजेनेका से पाकिस्तान सरकार का समझौता हुआ है उसी के तहत वैक्सीन डोज पाकिस्तान भी भेजे गए हैं.. लेकिन इसमें भारत सरकार और किसी भी भारतीय कंपनी का कोई रोल नहीं है.. और सबसे बड़ी बात ये है कि वैक्सीन का एक्सपोर्ट फर्स्ट वेव के बाद किया गया था जब हमारे देश में लोग वैक्सीन लगवाने के लिए तैयार ही नहीं थे और सारे के सारे केजरीवाल, राहुल, अखिलेश ब्रांड विपक्षी नेता वैक्सीन की क्वालिटी पर ही सवाल खड़े कर रहे थे... तो आप सभी लोगों से ये अपील है कि संकट के इस समय में भ्रम मत फैलने दीजिए और भ्रम फैलाने वाले चमचों, आपियो और सिक-क्युलर लिब्राण्डउओं को इस पोस्ट से करारा जवाब दीजिए...

05 अप्रैल, 2021

बीजापुर नक्सली हमला... साजिश ?

 छत्तीसगढ़ में हुए नक्सली हमले में 22 जवान शहीद हुए हैं, 30 घायल है एवं कुछ लापता भी हैं.. कुछ कहते हैं ये इंटेलीजेंस फेलियर है, कुछ राज्य सरकार को तो कुछ केंद्र को दोषारोपण कर रहे हैं.. अंततः कुछ समय के वाद विवाद के बाद ये भी इतिहास में दर्ज हो जाएगा और फिर इसे गाहे बगाहे किसी चुनावी रैली में सरकार की नाकामियों के संदर्भ में भुनाया जाएगा.. क्यों इन सुरसा रूपी समस्याओं का हल नही निकलता, नक्सलवाद आतंकवाद से भी विभत्स है, ये राजनीतिक संगरक्षण में पलने वाले मानवाधिकार की दुहाई देकर मानव की हत्या करने वाले क्रूर मानसिकता के लोग है, जंगली नक्सल एवं अर्बन नक्सल दोनों ही रूप में खतरनाक है, वरवरा राव अभी कुछ दिन पहले जेल से छुटा और ये उसने जश्न मनाया, एक पहलू और भी है, CRPF की 45 कंपनियां बंगाल में तैनात हैं, दीदी को चुभ रहा है, और काँग्रेस और लेफ्ट को भी, मोदी और अमित शाह ने बंगाल की हवा बदल रखीं है, तो क्या ये हमला साजिशन हुआ, या चुनावी रणनीति की भेंट चढ़ गए ये जवान.. क्यों निज स्वार्थ के लिए, किसी की राजनीतिक मेहत्वकांगशाओ के लिए, किसी गधे को घोड़ा बनाने के लिए ये बलि ली जाती है... हज़ारों लोग हर साल प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में राजनीतिक बलि चढ़ाए जाते हैं.. राजनीतिक स्थिरता के लिए देश मे अस्तिर्था बनाये रखी जाती है... नक्सलियो का समर्थन करने वाले उन्हें कमज़ोर दर्शाते हैं जिनके पास आधुनिक हथियार, राकेट लांचर, ड्रोन तक हैं... देश आतंकवाद से त्रस्त है, सैकड़ों निर्दोष इसका शिकार हुए हैं, हमारी सेना एवं अर्ध सैनिक बलों ने सालों तक अपने हाथ बांध कर इसका सामना किया, आरोप झेले, शहादत दी पर उफ्फ तक नही की। बड़े हमले हुए, आतंकी हमारे घरों तक घुस आए, लेकिन हमने सिर्फ अपने बचने की दुआ मांगी और सैनिकों की शहादत पर मोमबत्तियां जलायीं, पल भर की देशभक्ति जागी, वन्दे मातरम.. भारत माता की जय.. जय हिंद के नारे लगाए, चाय समोसा खाये, हाथ झाड़े और अपने सुरक्षित घरों में वापस आ गए, पल भर के लिए हिन्दू, मुसलमान, जाट गुर्जर, सवर्ण दलित, उत्तर भारत दक्षिण भारत सब एक हो गया। अच्छा लगा.. और फिर आता है सबूत का कीड़ा, जो सब किये कराए पर पानी फेर देता है, जो काटता है, ज़हर उगलता है, पीड़ा देता है और फिर ज़ख्म का नासूर बना देता है। ये राजनीति भी बड़ी कुत्ती चीज़ है, किसी की सगी नही होती, निहित स्वार्थ राष्ट्रहित से भी ऊपर और अवसरवादिता शहादत के सीने पर पैर रख कर सफलता की सीढ़ी बनती है, हमारे स्वाभिमान और अस्मिता को कुचलने वाले दुश्मन से भी गलबहियां की जाती है, अपनी ही सरकार, सेना और सुरक्षा प्रणाली से सवाल किया जाता है, उनकी गरिमा को चोट पहुंचाई जाती है, उनके सामर्थ्य पर प्रश्नचिन्ह लगाया जाता है। और देश की जनता किंकर्तव्यविमूढ़ सी असमंजस की स्थिति में ठगी सी रह जाती है, किन्तु जनता की भी अपनी मजबूरी है, भक्ति और चमचागिरी की भी अपनी एक मजबूरी है और वैसे भी जनता का क्या है उसे तो बस सब्ज़ी के साथ धनिया मुफ्त मिलना चाहिए...