02 अगस्त, 2018

घुसपैठ का दर्द

मेहमान नवाज़ी में एक बुनियादी फर्क है, एक होते हैं मेहमान, जिनके लिए हम आज भी "अतिथि देवो भवः" कहते हैं.. फिर एक होते हैं शरणार्थी जो परिस्तिथि वश अपना सब कुछ खो कर शरण मांगते है और मानवता के नाते हम उन्हें अपनाते हैं.. और फिर होते है घुसपैठिये, जो गैर कानूनी तरीके से बॉर्डर पार करके या फिर तारों के नीचे से चोरी छुपे आकर हमारे बीच बस जाते हैं, उनकी मानसिकता मांगने की ना होकर छीनने की होती है, जो हम पर और हमारे संसाधनों पर कब्ज़ा करना चाहते हैं, उनका देश के प्रति देश वासियों के प्रति कोई लगाव या कृतज्ञता नही होती, वो हमारे देश की ओछी राजनीति के चलते हमारे भूभाग, संसाधनों एवं सरकारी योजनाओं तक का लाभ लेते है किन्तु राष्ट्र निर्माण में उनका योगदान केवल एक फर्जी वोटर के तौर पर होता है, वो भली भांति अपनी इस एहमियत को समझते है, ये इतना बड़ा राजनीतिक मुद्दा है जिसको हल करने के बजाए सालों तक पाला पोसा जाता है। यूँ भी कह सकते हैं कि ये एक बहुत बड़ी राजनीतिक इंडस्ट्री है, लेकिन क्या ये देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा नही हैं, इसी तरह के घुसपैठियों ने जो केवल 10% से शुरू हुए थे, कालांतर में पर्शिया जैसे देश को 100% इस्लामिक देश ईरान बना दिया, हमारे कुछ नेता राजनीतिक द्वेष के चलते सुरक्षा को ताक पर रख कर इन घुसपैठियों के समर्थन में गृहयुद्ध की धमकी देते है ताकि उनका वोट बैंक कायम रहे, राजनीतिक रोटियां सिकती रहे, ओर बंदरबांट चलती रहे...