26 जुलाई, 2018

दिल्ली और भुखमरी

भूख से तीन मासूम बच्चियों की मौत, ये सुन कर ओर सोच कर भी मन सिहर उठता है.. मतलब, ये समझ ही नही आता कि दुनिया की छटी सबसे बड़ी अर्थव्यस्था की राजधानी दिल्ली में भूख और कुपोषण से मौत हो रही है, आंकड़ो के अनुसार दिल्ली में 31% बच्चे कुपोषण का शिकार है, यानी लगभग 20 लाख बच्चे, लेकिन वो शायद किसी का वोट बैंक नही होते, तभी दिल्ली की सरकार जो वर्ल्ड क्लास सुविधाओं के दावे करते नही थकती, चिकित्सा और शिक्षा को लेकर बड़े बड़े दावे करती है उसी की नाक के नीचे दिल्ली का बचपन भूख से दम तोड़ रहा है, सिसोदिया का विधानसभा क्षेत्र, घटनास्थल उसके घर से केवल 4 किलोमीटर दूर, क्या वो 2 रु की रोटी से लेकर 20 लाख रु तक कि गाड़ी से इस दूरी को पाट पाएंगे, केंद्र सरकार जो 1रु किलो चावल, 2 रु किलो गेंहू देती है वो किसके गोदाम में जाता है वो ढूंढ पाएगी, दिल्ली को पेरिस तो बना दोगे, लेकिन पेरिस की इन गलियों में दम तोड़ती राजनीति का क्या करोगे? ऐसी दूर-घटनायें सोचने पर मजबूर करती है कि हम आखिर किस और जा रहे हैं, कहाँ है अन्नपूर्णा योजनायें, फ़ूड सिक्योरिटी, आम आदमी किचन, शर्म आती है कि हम क्या सपने देखते है और हकीकत से मुँह छुपाते है, रोज़ दिल्ली शर्मसार होती है, राजनीतिक बयानबाज़ी होती है, मेरे जैसे लिख कर रोष प्रकट करते है, लेकिन फिर से दिल्ली उसी ढर्रे पर लौट आती है, क्यों दिल्ली की चुनी हुई सरकार और दिल्ली का मालिक आरोप प्रत्यारोप व द्वेष की राजनीति छोड़ करअपनी जिम्मेदारियों का सही ढंग से वहन नही करता? या फिर मौत की ज़िम्मेदारी भी उसकी कीमत ओर राजनीतिक हैसियत से तय होती है..#HungerDeathsInDelhi