19 अक्टूबर, 2019

वीर सावरकर का माफीनामा

वीर #सावरकर के बारे में देश के कुछ #कुशिक्षित और #असभ्य राजनीतिक व्यवसायी उन्हें #गांधी जी की हत्या और 1921 में उन्हें अंग्रेजों द्वारा कारामुक्ति के आदेश को दुष्प्रचारित कर रहे हैं... इन लोगों को यह शायद ही ज्ञात हो कि वीर सावरकर को किस कारण 2 आजीवन कारावासों का तानाशाही आदेश सुनाया गया था, वीर सावरकर की पुस्तक "भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम" ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रतिबंधित की गई और उन्हें #ब्रिटेन में सक्रिय इंडिया हॉउस की #क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने के आरोप में 2 आजीवन कारावासों का तानाशाही आदेश सुनाकर 1910 में #अंडमान के #सेल्युलर जेल में रखा गया और 1920-21 के आते आते वहां की यातनाओं से कारावासित #स्वतंत्रता सेनानियों की मृत्यु होने लगी... इसी अवधि में पूरे देश में व्यापक जन #आंदोलन, मजदूरों की हड़ताल हो रही थी... #रौलेट एक्ट के विरोध में पूरे देश में आक्रोश और आंदोलन सशक्त हो चुका था... 1919 में #जलियांवालाबाग में हज़ारों लोगों के नरसंहार से पूरा देश उबल रहा था... सिर्फ 1921 में ही 400 हड़ताले हो चुकी थीं, तब अंग्रजों की सरकार ने अपनी जान बचाने के चक्कर में और #भारत में व्यापक विद्रोह से बचने के लिए सेल्युलर जेल में बंद स्वतंत्रता सेनानियों से उन्हें बिना साक्ष्य दंडित करने की अपनी गलती स्वीकार करते हुए #clemency के एक ऐसे औपचारिक फॉर्म पर हस्ताक्षर लिया जो यह साबित करने के लिए किसी कैदी से लिया जाता था कि उसे गलती से दंड दे दिया गया था... clemency को समझने के लिए #न्यायशास्त्र का इतिहास पढ़िए कि clemency की कितनी परिभाषाएं हैं..... क्योंकि, clemency एक शब्द नहीं न्यायशास्त्र का एक पारिभाषिक शब्द है... देश कुशिक्षित राजनीतिक व्यवसायियों को यह जानना चाहिए कि सेल्युलर जेल में कारावासित क्रांतिकारियों के अपराध को अंग्रेज़ सरकार साबित ही नहीं कर पाई थी इसलिए एक बहाने से #वीरसावरकर और अन्य क्रांतिकारियों को स्वयं क्षमा मांगते हुए मुक्त कर दिया क्योंकि यही ऐसा नहीं होता तो 1921 के आंदोलन क्रम #चौरीचौरा ही नही भारतीय वीरों ने वायसरॉय के घर को भस्म कर दिया होता, इसलिए वीर सावरकर पर बोलते हुए बकिए मत, अपनी औकात देख लीजिए कि आप हैं कौन और आपके आराध्यों ने देश के साथ क्या क्या किया था...