सिक्किम मुद्दे पर जो केजरीवाल ने किया है वो सिविल डिफेंस के किसी अधिकारी की गलती नही बल्कि इन दोनों चंगु मंगू की सोची समझी साजिश है, मैं हमेशा से कहता आया हूँ कि केजरीवाल केवल सत्ता ही नही चला रहा बल्कि उसके साथ साथ अपनी कम्युनिस्ट सोच का एजेंडा भी चला रहा है, ये इत्तेफाक नही हो सकता कि सिसोदिया स्वीडन जाए और एक खालिस्तानी आतंकवादी के यहां रुके, आशुतोष यूरोप जाए और खालिस्तानियों से फंडिंग के लिए मिले, केजरीवाल खुद पंजाब जाए और एक खालिस्तानी आतंकवादी के घर रुके, केवल यही नही डोकलकम में चीन से टकराव के समय आम आदमी पार्टी की आधिकारिक वेबसाइट पर दिखाए गए भारत के नक्शे से कश्मीर, सिक्किम और कच्छ को गायब दिखाया था, तब भी वेब डिज़ाइनर की गलती थी, जब भारतीय सेना ने पाकिस्तान में घुस कर सर्जिकल स्ट्राइक की थी तो भी उसके शौर्य पर सवाल उठाए थे और पाकिस्तान में इस चपल चिंटू का डंका बजा था, किन्तु हर बार इनकी टाइमिंग परफेक्ट कैसे होती है, आज भी जब चीन लद्दाख और सिक्किम में भारतीय सेना के सामने डटी हुई है तभी इनको सिक्किम अलग देश लगा, दरअसल ये एक सोची समझी साजिश है, गर्मागर्मी के माहौल में ये विवाद उठाया, इसको मीडिया में और सोशल मीडिया में ट्रेंड किया, मुद्दा बनाया और फिर ठीकरा फोड़ दिया एक अधिकारी पर, केजरीवाल का कोई विज्ञापन इन दोनों चंगु मंगू की सहमति के बिना नही बनता, और पार्टी जिस ग्रह मंत्रालय के आदेश की आड़ लेने की कोशिश कर रही है उसका अमेंडमेंट भी 1975 में हो चुका है, ये देहद्रोही मानसिकता का व्यक्ति धीरे धीरे समाज और देश मे अर्बन जिहाद फैला रहा है जिससे समय रहते बचने की ज़रूरत है.. और हां सुन लो बे चमचों कश्मीर भी अक्साई चिन भी और सिक्किम भी हमारा अभिन्न अंग है औऱ किसी के बाप में दम नही है इनको अलग कर दे...
24 मई, 2020
14 मई, 2020
आत्मनिर्भर भारत
कल से देख रहा हूँ कि कुछ नमूने जो मोदी जी के राष्ट्र के नाम संबोधन पर टीवी पर लार टपकाते बैठे थे उनको अब कुछ मरोड़ उठ रही है, पहली रात तो करवटों में इसलिए कट गई की समझ ही नही आया कि 20 लाख करोड़ में शून्य कितने होते हैं, यहां तक कि प्रोफेसर गौरव वल्लभ भी भावशून्य हो गए, फिर ये समझ नही आया कि भूरी काकी के राज में जब इतने घोटाले कर दिए थे तो इतना पैसा कहां से आया, विस्तार पूर्वक समझूंगा तो भी किंचित समझ नही आएगा, क्योंकि मोदी जी इनकी नज़र में कोई अर्थशास्त्री तो है नही, किन्तु मेरी नज़र में वो एक मंझे हुए राजनीतिक अर्थशास्त्री हैं, अब ये इस बात पर बहस कर रहे हैं कि "Make in India" और "आत्मनिर्भर भारत" मे क्या अंतर है, तो सुनो चमचागणो, मेक इन इंडिया विदेशों से बड़े उद्योगों एवं मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स को भारत मे सशर्त लाने की एक पहल थी, जिसमे 80% तक क्षेत्रीय रोजगार को बढ़ावा देने का प्रावधान है, जिसमे क्षेत्रीय निर्माण कंपनियों से खरीदी का प्रावधान है, जिससे MSME सेक्टर को बढ़ावा दिया जा सके, रोजगार पैदा किया जा सके और आर्थिक विकास हो, औऱ अब आत्मनिर्भर भारत की ज़िम्मेदारी हम नागरिकों पर इसीलिए है कि हम भी अपने देश मे बनने वाली स्वदेशी वस्तुओं को अपने रोजमर्रा के जीवन मे उपयोग होने वाली सामग्रियों को अपने क्षेत्रीय निर्माता से लें ताकि क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीट उद्योगों को नई ऊर्जा मिले, उन्हें बढ़ावा मिले, उनको आर्थिक संकट से उबार सके एवं देश की अर्थव्यवस्था में सुधार हो सके, यहां क्षेत्रीय उद्योग से मेरा तात्पर्य MSME सेक्टर से ही है जो हमारा सूक्ष्म, लघु, कुटीर एवं ग्रह उद्योग है, किन्तु नासमझ लोग इसे बड़ी गाड़ियों, मोबाइल फ़ोन, इम्पोर्टेड ब्रांड्स से जोड़ रहे हैं, वैसे इन सभी चीज़ों की एहमियत शायद आप सभी को इस लॉकडाउन के दैरान समझ आ गयी होगी, रोलेक्स पहनने से भी आपका टाइम बदला नही, मेरसीडीज़ या ऑडी आपकी खड़ी ही रह गयी, महंगे ब्रांडेड कपड़े जूते वार्डरोब में ही पड़े रहे, किन्तु जीवित रहने के लिए ज़रूरी चीज़े सीमित ही थी, वो सभी हमे हमारे आसपास ही मिली, इसे समझो, अपने जीवन मे थोड़ा सा बदलाव लाओ, ज़रूरत एवं विलासिता के फर्क को समझो, अपने देश मे बनी वस्तुएं भी उतनी ही अच्छी है, और वो और भी अच्छी हो सकती है यदि हम उन्हें अपने जीवन मे अपना लें, हम स्वयं भी आत्म निर्भर बने, अपने देशवासियों को भी बनायें एवं देश को स्वावलंबन की और ले चले... आओ कदम बढ़ाएं...
06 मई, 2020
दिल्ली की कोरोना राजनीती
दिल्ली पूरी तरह रेड ज़ोन में होते हुए भी लॉकडाउन में छूट के नाम पर जो मज़ाक दिल्ली वालों के साथ दिल्ली के मालिक अरविंद केजरीवाल ने किया है उसकी कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी ये समझना अभी मुश्किल है, केजरीवाल का कहना है कि दिल्ली वालों को कोरोना के साथ जीना सीखना होगा, किन्तु किंतनी जानो की कीमत पर इसका आंकलन किंचित उन्होंने नही किया.. सही भी है, पूर्व में भी अनेकों बड़ी महामारियों के खिलाफ हमने ज़िंदा रहने की लड़ाइयां लड़ी हैं, और उसकी बहुमूल्य कीमत भी चुकाई है... किन्तु ये महामारी अभी जाँच के दायरे में ही है, पूरी दुनिया इससे लड़ रही है.. किन्तु यहाँ राजनीति का अलग ही स्वाद एवं अलग ही स्तर है.. दिल्ली जैसे छोटा सा शहर आंकड़ो में अपने पड़ोसी प्रतिद्वंदियों से पिछड़ रहा है, बस किंचित यही बात केजरीवाल को खाये जा रही है... और फिर ऊपर से प्रधानमंत्री की अंतराष्ट्रीय बनती छवि उसके सीने पर ज़ख्म दे रही है, इसीलिए जनाब अब अपनी इटालियन ताई के कहने पर दिल्ली को आग में झोंकने को तैयार है, कीमत वो भूरी ताई स्वयं तय करेगी.. अब दिल्ली में काम काज, दुकानें, व्यवसाय एवं शराब के ठेके खोलने के बाद जो अफरा तफरी का माहौल बन गया है उसकी कीमत कौन चुकाएगा.. अब ये अपनी द्वेष की आग को बुझाने के लिए जल्दी ही यूपी एवं हरियाणा के मुख्यमंत्री को उनके राज्यों की सीमाएं खोलने को कहेगा ताकि दिल्ली में काम करने वाले सीमा पार से आ जा सकें.. और उसकी आड़ में ये इन दोनों राज्यों का कोरोना के आंकड़ों का गणित बिगाड़ सके.. दिल्ली में मुफ्त राशन एवं लाखो लोगो को मुफ्त भोजन के नाम पर करोड़ो का घोटाला कर चुके केजरीवाल को पैसे के लिए अब केंद्र सरकार पर दबाव बनाना है जिसके लिए उसने हर हथकंडे अपना लिए हैं... यहां तक कि बिजली कम्पनी को दी जा के वाली सब्सिडी का पैसा भी ये खा गया है जिसकी भरपाई अब वो bses लोगो को प्रोविजनल बिल भेज कर कर रही है, और इसकी आड़ में खुल कर धांधली हो रही है, ये दिल्ली की बिगड़ती हालात के लिए दोषारोपण की कहानियां भी तैयार कर चुका है, मरकज़ के खिलाफ खुल कर कुछ नही बोला, रमज़ान में नाम पर पुरानी दिल्ली में कानून व्यवस्था की धज्जियां खुद इसके विधायक उड़ा रहे हैं और तो और मौलाना साद को भी अमानतुल्ला के पास ज़ाकिर नगर या शाहीन बाग़ में ही छुपाया हुआ है, इसकी ओछी राजनीति की बलि दिल्ली वाले ही चढ़ेंगे... टीवी पर बोलते हुए इसकी उंस कुटिल मुस्कान को मुस्कान को महसूस करना और सोचना क्या ये सही है...
हंदवाड़ा और पुलवामा हमला
कश्मीर में हमारे अपने नौ जांबाज़ योद्धा वीरगति को प्राप्त हो गए, दिल दुखता है.. दिल और ज़्यादा दुःखता है जब कुछ लोग इस बलिदान को अन्यथा लेते हैं, अपनी ओछी राजनीति करते हैं, अपनी पत्रकारिता की दुकान चलाते हैं, कुछ तो मुठभेड़ में मारे गए आतंकियों की पैरवी करते हुए उन्हें गरीब मास्टर का भटका हुआ नौजवान बताते हैं.. करो जी भर के करो... पर इसका जवाब तुम्हारे आकाओं को दिया जाएगा, क्योंकि यदि चार दिन पहले तीनो सेनाध्यक्ष, CDS, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोवाल एवं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह मिलते हैं, विचार विमर्श करते हैं तो वो केवल तीनो सेनाओं द्वारा कोरोना वारियर्स को सम्मान देने के लिए फूल बरसाने, सेना द्वारा बैंड बजाने, नौसेना द्वारा आतिशबाजी करने के लिए ही नही होता, बल्कि इसके पीछे की रणनीति को समझने की ज़रूरत है... वायु सेना ने देशव्यापी फ्लाई पास्ट किया जो कि एक रिहर्सल थी, या फिर यूँ कहूँ की पड़ोसी सूअर से रिश्तों में जमी बर्फ तो नही पिघली किन्तु पहाड़ो की बर्फ पिघलने लगी है, अब लोहा भी गरम होने लगा है, बस सही समय, सही जगह, सही ताकत से सही प्रहार करना है... मार दो हथौड़ा... जय हिंद, जय भारत..
सदस्यता लें
संदेश (Atom)