14 अगस्त, 2024

वामपंथी राजनीति की साज़िशें

वामपन्थी राजनीति (left-wing politics या leftist politics) राजनीति में उस पक्ष या विचारधारा को कहते हैं जो समाज को बदलकर उसमें अधिक आर्थिक और जातीय समानता लाना चाहते हैं.. इस विचारधारा में समाज के उन लोगों के लिए सहानुभूति जतलाई जाती है जो किसी भी कारण से अन्य लोगों की तुलना में पिछड़ गए हों या शक्तिहीन हों। राजनीति के सन्दर्भ में 'बाएँ' और 'दाएँ' शब्दों का प्रयोग फ़्रान्सीसी क्रान्ति के दौरान शुरू हुआ। वो संसद में सम्राट को हटाकर गणतन्त्र लाना चाहने वाले और धर्मनिरपेक्षता चाहने वाले अक्सर बाई तरफ़ बैठते थे..आधुनिक काल में समाजवाद और साम्यवाद से सम्बन्धित विचारधाराओं को बाईं राजनीति में डाला जाता है.. अब आते हैं वामपंथ की छुक छुक गाड़ी पर जो भारत मे चलती है वो वामपंथ की ट्रेन किस किस स्टेशन पर रुकती आई है...शॉर्ट फॉर्म मे बताऊंगा.. लंबी पोस्ट होने पर कोई पढ़ता नही है.. तो ये पहले उद्योग और व्यवसाय पर रुकी. वहां ट्रेड यूनियन लीडर्स उतरे, संपन्नता और समृद्धि का नाश किया... फिर कृषि पर रुकी... वहां नक्सली उतरे, कृषि का नाश किया और साथ में गांव गांव तक हिंसा फैलाई... फिर अर्थव्यवस्था के जंक्शन पर रुकी. उसमें से वेलफेयर और सब्सिडी वाला माल उतारा गया... फिर शिक्षा और कला के स्टेशन पर रुकी. वहां झोला छाप कॉमरेड उतरे, कलाकार और प्राध्यापक बन कर, समाज की सोचने समझने की क्षमता का नाश किया... फिर न्याय के स्टेशन पर रुकी... वामपंथी उतर कर न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठ गया और समाज को न्याय के स्थान पर संघर्ष का नैरेटिव परोस दिया... फिर परिवार के स्टेशन पर रुकी... वहां फेमिनिस्ट दीदी उतरी और परिवार को तोड़ा, स्त्रियों को असुरक्षित और बच्चों को अनाथ किया.. युवाओं को समलैंगिक और बच्चों को ट्रांस बनने को प्रेरित किया... सबकुछ जिससे सभ्यता बनी है, समाज खड़ा हुआ है... एक एक ईंट तोड़ कर हटा रहे हैं.. पर अभी भी कुछ है जो देश को जोड़ता है... एक है सेना, दूसरा है खेल.. पूरा देश या तो भारत की सेना के साथ खड़ा होता है या फिर भारत की टीम के साथ.. अभी वामपंथियों के प्रयोग इन दोनों पर जारी हैं.. सेना के संगठन को सरकारी नौकरी का मुद्दा बना कर, अग्निवीर पर अफवाहें फैलाकर सेना का मनोबल तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है और अब क्षेत्र के नाम पर, जाति के नाम पर खेलों को निशाना बनाया जा रहा है...तो इस षड्यंत्र को पहचानें, सावधान रहें. ना सेना में बगावत की जगह है, ना खेल में.. हर सिपाही अपना है, हर खिलाड़ी अपना है... सोच को संकीर्ण मत करो.. दोयाम् दर्जे की मानसीकट से उपर उठ कर धर्म हित मे सोचो.. राष्ट्र हित मे सोचो.. 

जय हिंद  🇮🇳

11 अगस्त, 2024

सावन एवं शिव

 भगवान शिव का एक नाम नीलकंठ भी है.. समुद्र मंथन के समय निकले विष को लोक कल्याणार्थ भगवान शंकर पान कर गए। यहाँ पर एक बात बड़ी विचारणीय है कि भगवान शिव ने विष को न अपने भीतर जाने दिया और न ही मुख में रखा अपितु अपने कंठ में रख लिया। जीवन को आनन्दपूर्ण बनाने के लिए आवश्यक है कि जो बातें आपके लिए अहितकर हों आप उन्हें न अपने मुख में रखें और न अपने भीतर जाने दें अपितु भगवान नीलकण्ठ महादेव की तरह पचाना सीखें... यदि विषमता रुपी विष आपके भीतर प्रवेश कर गया है तो यह आपके जीवन की सारी सुख-शांति एवं खुशियों को जलाकर भस्म कर देगा.. यह विष आपके जीवन के सारे आनंद को नष्ट कर देगा। इसलिए जीवन में विषमता रूपी अथवा विषय रूपी जो भी विष है, इसे कंठ तक ही रहने देना, चित्त तक मत ले जाना,यही नीलकण्ठ महादेव प्रभु के आनंदमय स्वरूप का रहस्य है...  हर हर महादेव..

29 जुलाई, 2024

दिल्ली के बदनसीब UPSC छात्र

 माँ बाप जाने कितने सपने संजोये और कितने अरमानो के साथ अपने बच्चे के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए उसे बड़ा अफसर बनाने के लिए अपने से सकड़ों हज़ारो मील दूर भेजते हैं वो बच्चा अपना भरा पूरा आंगन छोड़ कर दिल्ली जैसे शहर मे आकर 10×10 फुट के कमरे का 12-15 हज़ार किराया भरते हैं, जहां मकान मालिकों का कार्टेल किराया बढ़ाए रखता है और फिर चाहे वहां पढ़ते रूम पर बैठकर ऑनलाइन वीडियो से ही हैं.. जिनके बच्चे आईएएस बनने आए थे वो आज लाश बन गए.. उन माता पिता का दर्द ये नेता क्या समझेंगे .. दिल्ली में सरकार आम आदमी पार्टी की.. एमसीडी आम आदमी पार्टी के पास.. दिल्ली को पेरिस और वेनिस ना जाने क्या क्या बना देने का वादा इनका, न्यूयॉर्क टाइम्स में छपे फर्जी आर्टिकल के जरिए क्रेडिट सारा इनका लेकिन जब आम आदमी के बच्चे मर गए...तो जिम्मेदारी इनकी नहीं है।  राहुल गांधी मुश्किल से एक ट्वीट कर पाए लेकिन आम आदमी पार्टी की सरकार या नेताओं से एक सवाल नहीं पूछ पाए.. अभी यही घटना किसी बीजेपी शासित राज्य में हो जाती तो इंडी और उनकी चिंदी मीडिया दोनों छाती पीट लेते.. और कितने उदाहरण चाहिए आपको ये समझने के लिए कि इनके लिए किसी की मौत, किसी के साथ हुआ बलात्कार, किसी के साथ हुई दुर्घटना तब तक मायने नहीं रखती जब तक ये इन नेताओं के काम ना आ सके। दो दिन बाद सब भूल जाएंगे.. केजरीवाल जी जेल से दिल्ली वालों का बेटा होने का सर्टिफिकेट खुद को दे देंगे... प्रेस कॉंफ़्रेंस मिनिस्टर फिर से मीडिया के सामने टेढ़ा मुँह बना कर पल्ला झाड़ देगी, उनकी चिंता आपका बच्चा नही केजरीवाल की शुगर है.. दिल्ली वाले तो फिर से फ्री पानी, फ्री बिजली के चक्कर में फिर उनकी सरकार बना देंगे.. सब फ्री फ्री में मस्त हो जाएंगे लेकिन जिनके बच्चे चले गए वो ना लौटने वाले... ऐसे ही कितने बच्चे ऐसी ही हालत में पढ़ने को मजबूर हैं.. दिल्ली की सरकार कुछ नहीं करती तो दिल्ली के एलजी ही करें, वो क्यों नहीं कुछ करते.. अगर सरकार निकम्मी है तो कोई तो कुछ करे.. सरकारें आएंगी जाएंगी.. जिनका बच्चा चला गया वो आएगा क्या..? इसे आपदा भी तो नही कह सकते, कुछ ही दिन पहले दिल्ली की मेयर ने छाती ठोक कर कहा था की हज़ारो मेट्रिक टन स्लिट निकाल दी है, दिल्ली वाले मॉनसून एंजॉय करेंगे.. लेकिन दिल्ली वालों के भाग्य मे तो रोना ही लिखा है, आरोप प्रत्यारोप के चलते कहीं किसी विभाग में लोग नहीं हैं, साधन नहीं है, शिकायत के बाद भी तीन घंटे तक कोई नहीं आया..इसीलिए नहीं आया होगा कि सूचना मिलने पर रिएक्ट करने की व्यवस्था और लोग नहीं होंगे.. बैसेमेंट् अवैध है तो भी विभाग को पता तो है किंतु एक दो को निलंबित कर दिया जाएगा उससे क्या होगा.. जिसका काम लाइसेंस देना है, निरीक्षण करना है, पूछ लीजिए दिल्ली या कहीं के लोगों से, बिना घूस के काम नहीं होता.. देश ने केवल फ़र्ज़ी बहस में एक दशक गुज़ार दिया.. किसी भी शहर का यही हाल है.. यह नागरिक को भी पता है कि उसके जीवन की क्या हालत है। करंट लग गया, छात्र की मौत हो गई। नाला भर गया तो छात्र मर गए। क्या बीत रही होगी परिवारों पर.. आप आवाज़ भी नही उठा सकते, आप तभी तक सुरक्षित हैं जब तक फ़र्ज़ी केस न हो,अस्पताल की नौबत न आए। जाँच होगी तो क्या हो जाएगा? ये हुआ कैसे? इसी का जवाब मिलने में मुख्यमंत्री बनाम एलजी होता रहेगा। इस मामले में भी किसी की ज़िम्मेदारी तय नहीं होगी। कोचिंग सेंटर में पहली बार दुर्घटना नहीं हुई है.. और आगे भी होती रहेंगी.. किंतु चिंता का विषय ये नही केजरीवाल की शुगर है...