भगवान शिव का एक नाम नीलकंठ भी है.. समुद्र मंथन के समय निकले विष को लोक कल्याणार्थ भगवान शंकर पान कर गए। यहाँ पर एक बात बड़ी विचारणीय है कि भगवान शिव ने विष को न अपने भीतर जाने दिया और न ही मुख में रखा अपितु अपने कंठ में रख लिया। जीवन को आनन्दपूर्ण बनाने के लिए आवश्यक है कि जो बातें आपके लिए अहितकर हों आप उन्हें न अपने मुख में रखें और न अपने भीतर जाने दें अपितु भगवान नीलकण्ठ महादेव की तरह पचाना सीखें... यदि विषमता रुपी विष आपके भीतर प्रवेश कर गया है तो यह आपके जीवन की सारी सुख-शांति एवं खुशियों को जलाकर भस्म कर देगा.. यह विष आपके जीवन के सारे आनंद को नष्ट कर देगा। इसलिए जीवन में विषमता रूपी अथवा विषय रूपी जो भी विष है, इसे कंठ तक ही रहने देना, चित्त तक मत ले जाना,यही नीलकण्ठ महादेव प्रभु के आनंदमय स्वरूप का रहस्य है... हर हर महादेव..