20 अक्टूबर, 2011

15 Laws Of life by Swami Vivekanand



1. Love Is The Law Of Life: All love is expansion, all selfishness is contraction. Love is therefore the only law of life. He who loves lives, he who is selfish is dying. Therefore, love for love's sake, because it is law of life, just as you breathe to live.


2. It's Your Outlook That Matters: It is our own mental attitude, which makes the world what it is for us. Our thoughts make things beautiful, our thoughts make things ugly. The whole world is in our own minds. Learn to see things in the proper light.

3. Life is Beautiful: First, believe in this world - that there is meaning behind everything. Everything in the world is good, is holy and beautiful. If you see something evil, think that you do not understand it in the right light. Throw the burden on yourselves!

4. It's The Way You Feel: Feel like Christ and you will be a Christ; feel like Buddha and you will be a Buddha. It is feeling that is the life, the strength, the vitality, without which no amount of intellectual activity can reach God.

5. Set Yourself Free: The moment I have realised God sitting in the temple of every human body, the moment I stand in reverence before every human being and see God in him - that moment I am free from bondage, everything that binds vanishes, and I am free.

6. Don't Play The Blame Game: Condemn none: if you can stretch out a helping hand, do so. If you cannot, fold your hands, bless your brothers, and let them go their own way.

7. Help Others: If money helps a man to do good to others, it is of some value; but if not, it is simply a mass of evil, and the sooner it is got rid of, the better.

8. Uphold Your Ideals: Our duty is to encourage every one in his struggle to live up to his own highest idea, and strive at the same time to make the ideal as near as possible to the Truth.

9. Listen To Your Soul: You have to grow from the inside out. None can teach you, none can make you spiritual. There is no other teacher but your own soul.

10. Be Yourself: The greatest religion is to be true to your own nature. Have faith in yourselves!

11. Nothing Is Impossible: Never think there is anything impossible for the soul. It is the greatest heresy to think so. If there is sin, this is the only sin - to say that you are weak, or others are weak.

12. You Have The Power: All the powers in the universe are already ours. It is we who have put our hands before our eyes and cry that it is dark.

13. Learn Everyday: The goal of mankind is knowledge... now this knowledge is inherent in man. No knowledge comes from outside: it is all inside. What we say a man 'knows', should, in strict psychological language, be what he 'discovers' or 'unveils'; what man 'learns' is really what he discovers by taking the cover off his own soul, which is a mine of infinite knowledge.

14. Be Truthful: Everything can be sacrificed for truth, but truth cannot be sacrificed for anything.

15. Think Different: All differences in this world are of degree, and not of kind, because oneness is the secret of everything.

13 अक्टूबर, 2011

भगवान् के नाम पर .....

बड़ा ही अजीब सा लोकतंत्र है हमारा देश भी, हम इस देश के संविधान के अनुसार और इस देश के नागरिक होने के अनुसार अधिकार तो सभी पाते हैं परन्तु उन्हे कब और कैसे इस्तमाल करना है वो नहीं जानते, अब आज ही
 का वाक्य ले लो, एक वकील साहब हैं प्रशांत भूषण जी वो कहते हैं की कश्मीर को पाकिस्तान को दे दो या जो भी वो कहते हैं वो उनकी अपनी एक राय है पर अब कुछ लोग और भी हैं जो इस देश और इस देश के सविधान और क़ानून से भी बढ़ कर हैं और जो अपने आप निर्णय करते हैं की क्या और कोन सही है और क्या और कोन गलत. कुछ लोग उनमे से राम सेना वाले हैं तो कोई श्याम सेना वाले, कोई भगत सिंह सेना के हैं और कोई बजरंग दल  के और भी अनेक दल बल हैं क्यूंकि न तो हमारे देश मैं भगवान् की कमी है और न ही  शहीदों  की और न हे उनके नाम पर बनने वाले दलों की, अब एक ऐसे हे दल के कुछ सैनिकों ने उन वकील साहब पर इसी बात को लेकर हमला कर दिया और कर दी सारे आम उनकी पिटाई, कहते हैं की भगत सिंह ने उन्हे ये सिखाया है, उनसे पूछो की क्या कभी भगत सिंह ने गाँधी जी पर हमला किया था? उनका भी तो विचारों का मतभेद था या भगत सिंह ने ये सोचा था की उनके नाम पर कुछ लोग बदमाशी भी करंगे और उनके नाम पर भी दाग लगा देंगे, आम लोगों से मार पिटाई करना, लड़कियों से बदतमीजी करना, तोड़फोड़ करना ये सब हमारे क्रांतिकारियों ने और हमारे देवताओं ने ही सिखाया है क्या ??
अगर राम सेना बनानी है तो उनके आदर्शों को समझो और उन पर चलो पहले खुद मर्यादा मैं रहो और फिर दूसरों को सिखाओ, अगर भगत सिंह की सेना बनानी है तो पहले क्रांति के मतलब को समझो और बदलाव को समझो फिर उस क्रांति की मशाल को लोगों के दिलों मैं जलाओ पर भगवान् के लिए उन्हे और उनके आदर्शों को बदनाम मत करो, वैसे तो ये राजनीति भी बड़ी ही गन्दी चीज़ है क्यूंकि ये अपने स्वार्थ के लिए उन शहीदों और भगवान् तक का सौदा कर डालती है, 
ये सब जो छोटे मोटे दल रोज़ कुकुरमुत्ते की तरह उग जाते हैं ये उगते तो उन बडे राजनीतिक दलों की खोकली और गल चुकी लकड़ी पर ही हैं ना जो खुद उन्हे अपनी शाखाओं पर अपने आप पालती हैं और किसी किसी मैं तो इतना ज़हर भर देती हैं की वो एक सांप से भी जयादा ज़हरीली हो जाते हैं, 
एक आम आदमी जिंदगी जीने की जद्दोजेहद में रोज़ संघर्ष करता है, वो भूल चूका है अपने अधिकारों की लड़ाई, अपने हक की लड़ाई, बस वो तो जिंदगी से ही लड़ता है और उसी भगवान् से रोज़ प्रार्थना करता है जीवन में बदलाव की जो भगवान् अपने नाम पर होने वाले अत्याचार और अत्याचारियों का कुछ नहीं बिगाड़ पाता, वो इंसान कोसता है उन क्रांतिकारियों को की इस देश को आज़ाद क्यूँ करवाया जिस देश को विदेशियों से जयादा अपनों ने गुलाम बना रखा है पर वो लाचार है ......
अब ज़रा सोचें अगर आप लोग भी किसी ऐसे ही  दल से जुडे हैं तो आप भी धोका दे रहे हैं, अपने आप को , अपने भगवान् को और अपने देश के उन शहीदों और क्रांतिकारियों को और शायद अपनी आने वाली नस्ल को भी ..
ज़रा सोच कर देखें और अपने आप से कुछ सवाल करैं और अपने आप से ही  उनका जवाब भी मांग कर देखें की आप स्वम को क्या जवाब देते हैं....
बस अब कुछ नहीं लिखना...
मन भर गया आज...



21 सितंबर, 2011

मैं रोज़ 32 रूपए कमाता हूँ

हिंदुस्तान मैं जहां ४० करोड़ से भी जयादा लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं और जो रोज़ का सिर्फ ३२ रूपए रोज़ कमा पाते हैं वो लोगों की ज़रुरत इस ३२ रूपए से पूरी हो जाती है ये कहना है हमारी planning commission का.वो कहते हैं की शहरी और ग्रामीण शेत्रों मैं रहने वाले २२ रूपए और ३२ रूपए मैं अपनी सभी ज़रूरतों को पूरा कर सकते हैं जो की महीने का लगभग ७८१ रूपए और ९६५ रूपए बनता है .
आज भारत के किसी भी हिस्से मैं रहने वाला कोई भी नागरिक अगर अपना और केवल अपना ही पेट इस ९६५ रूपए मैं एक महीने भर सकता है तो कृपया कर के बतायें की वो कहाँ रहता है और क्या खाता है, वो कहाँ रहता है,  और क्या काम करता है ? सरकार शायद किसी ऐसे इंसान को लाकर हमारे सामने खड़ा भी कर दे पर ऐसे कितने है जो लाखों करोडो खा जाते हैं और फिर भी उनकी भूक नहीं मिटती, सरकार ने अपने नुमाइंदों को महंगाई भत्ता भी बढ़ा दिया और वो भी उनका जो कुछ काम न करने का भी १.५ लाख रूपए महीने के लेते हैं, वो नेता जी जिनके लिए ये महीने की तनख्वा तो कोई मायने भी नहीं रखती क्यूंकि उनकी ज़रूरतें तो वैसे भी पूरी हो जाती हैं और उनको तो इस बात की भी चिंता नहीं करनी होती की रसोई गैस सिर्फ ६ सिलेंडर  मिलेगी और ७०० रूपए की मिलेगी या पेट्रोल ७२ रूपए लीटर है या बाज़ार मैं सब्जियों के क्या दाम हैं और दालों का क्या हाल है, उनके बच्चे तो दूध भी नहीं पीते इसीलिए उनको दूध का दाम भी नहीं पता, ३२ रूपए लीटर कमाने वाला तो दूध का सपना हे देखेगा, देश की शाशन प्रणाली तो चलाने वाली संसद की रसोई मैं जहां चिक्केन भी १५ रूपए मैं मिल जाता है उनको इस बात की क्या चिंता की किसी को रोटी भी नसीब नहीं होती...
पर अब सोचता हूँ की ये सब सोचने से ही क्या होगा , न जाने इस जीवन मैं कोई दिन ऐसा देख पाऊंगा की लगे की वाकई हिन्दुस्तान बदल गया है, हेर आदमी के सर पर छत है , कोई भूखा  नहीं है, कोई अनपढ़ नहीं है, और कोई भी गरीब नहीं है, हर किसी को उसका हक मिलता है, हर कोई खुश है और एक नेता भी  एक आम आदमी की तरह  ही जीता है.....
वैसे तो सपना देखना कोई बुरी बात नहीं है और मैंने भी देखा तो शायद कोई बुरा नहीं किया, लेकिन आज सपने देखने वालों को या तो पोलिसे डंडे मारकर भगा देती है या जेल मैं डाल देती है , कोई भी आम आदमी बाबा रामदेव या अन्ना हजारे जैसी हिम्मत नहीं जुटा पाता, क्यूंकि हम डरते हैं और हालात से समझोता कर लेते हैं, कोई चीज़ महंगी होने पर विपक्ष भी धरना प्रदर्शन करता है लेकिन वो भी हम लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए क्यूंकि जानती तो वो भी हैं की इसका हल तो उनके पास भी नहीं है, हम सब जानती भी हैं लेकिन कुछ कर नहीं सकते क्यूंकि यहाँ प्रजातंत्र है जहां कहा जाता है की government of the people, by the people and for the people लेकिन यहाँ तो और ही तरह का प्रजातंत्र है जो कहता है government off the people, bye the people and far the people .....



16 सितंबर, 2011

ज़माने के रंग


हमने भी ज़माने के कई रंग देखे है
कभी धूप, कभी छाव, कभी बारिशों के संग देखे है

जैसे जैसे मौसम बदला लोगों के बदलते रंग देखे है

ये उन दिनों की बात है जब हम मायूस हो जाया करते थे
और अपनी मायूसियत का गीत लोगों को सुनाया करते थे

और कभी कभार तो ज़ज्बात मैं आकर आँसू भी बहाया करते थे
और लोग अक्सर हमारे आसुओं को देखकर हमारी हँसी उड़ाया करते थे

"अचानक ज़िन्दगी ने एक नया मोड़ लिया
और हमने अपनी परेशानियों को बताना ही छोड़ दिया"

अब तो दूसरों की जिंदगी मैं भी उम्मीद का बीज बो देते है
और खुद को कभी अगर रोना भी पड़े तो हस्ते हस्ते रो देते है...