ये भी बदनसीबी है इस देश मैं की आपको वोट डालने का अधिकार, ड्राइविंग करने का अधिकार, शादी करने का अधिकार ,शराब पीने का अधिकार और यहाँ तक की एक वयस्क फिल्म देखने का अधिकार भी 18 साल की उम्र के बाद मिलता है लेकिन सरकार ये समझती है की इन सभी से ज़याद जल्दी और ज़रूरी सेक्स करना है जिसके लिए आप सिर्फ 16 साल के होने चाहियें ... यानी एक 16 साल के बच्चे को सेक्स की समझ और ज़रूरत बाकी सभी चीज़ों से पहले है, सरकार के पास ये रोज़ रोज़ के बलात्कारों का ये जवाब है। अब ये समझ नहीं आता की हम लोग किस भारत मैं रहते हैं और इसकी सभ्यता और संस्कृति का बेडा गर्क क्यूँ होता जा रहा है ..
15 मार्च, 2013
10 मार्च, 2013
बॉक्सर विजेन्द्र की वाह वाही
नाम और शोहरत होना अच्छी बात है लेकिन उसे कायम रखना एक काबिलियत और समझदारी है। कुछ लोग ये समझते हैं की उस शोहरत की आड़ में वो कुछ भी ऐसा कर सकते हैं जो समाज या क़ानून की नज़र में अपराध हो लेकिन वो उसकी परवाह नहीं करते। ऐसे लोग जो समाज के और भविष्य के लिए एक आदर्श हो सकते हैं वो अगर किसी अपराधिक साज़िश का हिस्सा हो सकते हैं उन्हे सख्त सज़ा मिलनी चाहिए। देश के एक नामी खिलाड़ी का नाम मादक पदार्थों की स्मगलिंग मैं आना एक साज़िश भी हो सकता है लेकिन सिर्फ ये सोच कर इस बात को छोड़ा नहीं जा सकता की इसके पीछे एक बड़ा नाम है। पहले भी हुआ है की अर्जुन पुरूस्कार विजेता खिलाडी इस तंत्र का हिस्सा पाया गया था। और इस मामले मैं भी जो सबूत मिले हैं वो अपने आप मैं किसी दिशा की तरफ हे इंगित करते हैं लेकिन शायद ये भ्रष्ट तंत्र हे है की किसी भी रसूकदार और बडे नेता, अभिनेता, या खिलाडी का इतनी जल्दी कुछ नहीं होता, वर्ना आम आदमी तो चोरी बाद मैं होती है पकड़ा पहले जाता है।
29 जनवरी, 2013
हमारी न्याय व्यस्था
न्याय करते समय किये गए जुर्म की विभत्सता को देखना चाहिए, करने वाले की मानसिकता को देखना चाहिए, उसको करने का मकसद देखना चाहिए, और उस जुर्म को देखना चाहिए जो हुआ है। अपराधी किसी भी उम्र का हो सकता है, क्या अगर कोई 17 साल और 6 महीने का होने पर बलात्कार जैसे जघन्य अपराध और वो भी इतनी विभत्सता के साथ किया गया हो एक बच्चे की मानसिकता का हो सकता है? ये प्रश्न है न्याय प्रणाली से की क्या सिर्फ अगर कोई 6 महीने छोटा है तो क्या 6 महीने बाद उसको अचानक अक्ल आ जाएगी और वो बालिग़ हो जाएगा या फिर हमे ये देखना चाहिए की वो किस विकृत मानसिकता वाला है की उसने वो कृत्य किया जो एक वयस्क भी इतने घिनोने तरीके से न करे। अब अगर वो केवल 3 साल की सज़ा पाकर 3 साल बाद और भी विकृत मानसिकता को लेकर इसी समाज मैं फिर से लौट कर आएगा और फिर किसी दामिनी को लूटेगा और भी ना जाने क्या कर बैठे जिसका खामियाजा हम लोगों को भुघतना पड़ेगा। शायद न्यायालय का ये फैसला किसी और को भी ये शह दे की क़ानून आखिर क्या बिगाड़ सकता है और जाने कितने और अपराध और अपराधी खुलकर सामने आयें ...
09 जनवरी, 2013
हमारी इज्ज़त का कत्लेआम
एक कहावत है की सांप कभी अपनी फितरत नहीं छोड़ता चाहे उसे कितना भी दूध पिला लो, अब ये सब पढ़ और देख सुन कर बड़ा ही दुःख होता है की न तो इस देश में नागरिको की और न हे देश के रक्षको की कोई भी कीमत है। अगर कोई कीमती है तो सिर्फ इस देश के स्वयंभू नेता, अभिनेता, संत और उनके परिवारजन जो आम नागरिको की श्रेणी मैं नहीं आते। देश की सुरक्षा मैं तैनात भारतीय सेना की एक पेट्रोलिंग पार्टी पर पाकिस्तानी सेना के द्वारा घात लगा कर हमला करना और बर्बरतापूर्वक उनका सर काट कर साथ ले जाना इंसानियत और हवानियत की हद है। हमारे देश की सभी राजनैतिक पार्टियां चाहे वो कांग्रेस ,SP,BSP,JDU,NCP,DMK,TMC,RJD जेसी सभी पार्टी के नेताओं को बधाई जो पुरजोर कोशिश करते हैं की वो पाकिस्तान जैसे अपने बिच्च्ड़े हुए भाई के साथ मेल मिलाप रखें, BCCI,राजीव शुक्ला ,भारत की क्रिकेट टीम को भी वहुत वहुत वधाई जो ये सोचते हैं की अगर हिन्दुस्तान में क्रिकेट का भविष्य है तो वो सिर्फ पाकिस्तान के साथ ही है और वो उनको बुलाकर जीत भी तोहफे के रूफ मैं परोस कर देते हैं। यहाँ तक की दिल्ली में हो रहे मैच के दोरान भी पाकिस्तानी सेना की बॉर्डर पर गोलीबारी जारी थी और हम उनके साथ खेलकर खुश हो रहे थे। देश का मीडिया भी दोगले पने से खिलाडियों को स्टार बना रहा था परन्तु देश के असली स्टार उसी दुश्मन से लोहा ले रहे थे।
आखिर हम किस देश मैं जी रहे हैं, जहां आज भी अकबरुद्दीन ओवैसी जैसे कट्टरपंथी नेता बन कर जहर उगल रहे हैं और देश को बांटने की सोच रखते हैं और सरेआम धमकी देते हैं। हम तो घिरे हुए हैं दुश्मनों से घर मैं भी और बाहर भी। और जब अपने ही रक्षंहार और पालन हार दुश्मन हो जायें तो बहार वालों से क्या गिला? आखिर ऐसी वो कोन सी चीज़ है या सत्ता का वो कोन सा नशा है जो इंसान और इंसानियत की कीमत हे ख़तम कर देता है। जब हमे मालूम है की ये एक ऐसा दुश्मन है जो कभी नहीं सुधर सकता फिर भी हम उसके लिए पलक पावडे बिछा कर रखते हैं, आखिर ऐसा कोन सा काम है हमारा जो उसके बिना नहीं चल सकता। सरकार की ऐसी ही बेरुखी की वजह से आज देश का युवा सेना मैं भर्ती नहीं होता और देश प्रेम और सेवा को वो जस्बा आज भटक गया है। सेना की ये मजबूरी हो जाती है की भारत एक ऐसा देश है जिसने अपने इतिहास मैं कभी किसी देश पर अतिक्रमण नहीं किया और सेना इसका पालन करने के लिए मजबूर है वर्ना अपने साथियों को यूँ बर्बरतापूर्वक कत्ले आम देख कर क्या उनका खून नहीं खोलता और क्या वो नहीं चाहते की उनके घर मैं घूस कर मार जाए, पर हमारी अंतर्राष्ट्रीय राजनीति हमे ये करने की इजाज़त नहीं देती लेकिन वो कहती है की मेहमाननवाज़ी मैं लगे रहो , सहो और चुप रहो घर के अन्दर भी और घर के बाहर भी ...
आखिर हम किस देश मैं जी रहे हैं, जहां आज भी अकबरुद्दीन ओवैसी जैसे कट्टरपंथी नेता बन कर जहर उगल रहे हैं और देश को बांटने की सोच रखते हैं और सरेआम धमकी देते हैं। हम तो घिरे हुए हैं दुश्मनों से घर मैं भी और बाहर भी। और जब अपने ही रक्षंहार और पालन हार दुश्मन हो जायें तो बहार वालों से क्या गिला? आखिर ऐसी वो कोन सी चीज़ है या सत्ता का वो कोन सा नशा है जो इंसान और इंसानियत की कीमत हे ख़तम कर देता है। जब हमे मालूम है की ये एक ऐसा दुश्मन है जो कभी नहीं सुधर सकता फिर भी हम उसके लिए पलक पावडे बिछा कर रखते हैं, आखिर ऐसा कोन सा काम है हमारा जो उसके बिना नहीं चल सकता। सरकार की ऐसी ही बेरुखी की वजह से आज देश का युवा सेना मैं भर्ती नहीं होता और देश प्रेम और सेवा को वो जस्बा आज भटक गया है। सेना की ये मजबूरी हो जाती है की भारत एक ऐसा देश है जिसने अपने इतिहास मैं कभी किसी देश पर अतिक्रमण नहीं किया और सेना इसका पालन करने के लिए मजबूर है वर्ना अपने साथियों को यूँ बर्बरतापूर्वक कत्ले आम देख कर क्या उनका खून नहीं खोलता और क्या वो नहीं चाहते की उनके घर मैं घूस कर मार जाए, पर हमारी अंतर्राष्ट्रीय राजनीति हमे ये करने की इजाज़त नहीं देती लेकिन वो कहती है की मेहमाननवाज़ी मैं लगे रहो , सहो और चुप रहो घर के अन्दर भी और घर के बाहर भी ...
23 दिसंबर, 2012
देश का बलात्कार
बलात्कार करना एक अपने आप में ही घिनोना कृत्य है और उसको झेलना एक बहुत बड़ी त्रासदी, क्यूंकि जो बर्बरता और क्रूरता इंसान करता है वो तो शायद जानवर भी न करे। और इन सब के बाद एक जिंदगी ख़तम हो जाती है, जीने की आरज़ू ख़तम हो जाती है, इंसान अन्दर से मर जाता है।
कुछ ऐसे भी हादसे होते हैं जिंदगी में ..
इंसान बच तो जाता है लेकिन जिंदा नहीं रहता ..
आज इस हादसे ने पूरे देश मैं ये आवाज़ उठाई है की बलात्कार के खिलाफ सख्त क़ानून बने, मगर सिर्फ क़ानून बनाने से कुछ नहीं होगा बल्कि उसको सख्ती से लागू किया जाए और उसके लिए किसी की जवाबदेही भी हो। अगर सरकार और पुलिस चाहे तो ये सब पर रोक लगे जा सकती है। सिर्फ अपनी जिम्मेदारियों को समझ कर उन पर सख्ती से पालन करना होगा। मुख्यमंत्री कहती हैं की वो नज़रें मिलने के लायक नहीं हैं क्यूंकि वो इस राज्य की सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार हैं, और गृहमंत्री कहते हैं की उनकी भी 3 बेटियाँ हैं और वो ये दर्द समझते हैं, लेकिन उनसे कोई ये पूछे की क्या आप मैं ये हिम्मत हैं की आप अपनी 3 मैं से 1 भी बेटी को आधी रात बिना सुरक्षा के सड़क पर भेज सकते हैं? है क्या आपमे इतनी हिम्मत ? सुरक्षा मैं रहने वाले नहीं समझते डर क्या होता है और डर कर जीना किसे कहते हैं ...
आज देश का युवा एक बार फिर से एकजुट होकर खड़ा है, वही युवा जो इस त्रासदी का हिस्सा है और जो रोज़ डर कर जीता है, हम अपने देश में अपने आप को सुरक्षित नहीं महसूस करते, जबकि ये हमारा बुनियादी अधिकार है, लेकिन ये सब मैं क्या बकवास लिख रहा हूँ , यहाँ अधिकारों की बात करने वालों की सुनता कोन है, ये देश गणतंत्र की और से दूर होता हुआ तानाशाही और तालिबानी होता जा रहा है जहाँ के शाशक अपनी मर्ज़ी से क़ानून को तोड़ मरोड़ देते हैं, हम सब यहाँ बेचारों सी जिंदगी जी रहे हैं। छोडो यार सब बकवास है ये लिखना लिखना और क़ानून या देश की बात करना, अब कुछ ही देर मैं ये आन्दोलन भी किसी राजनातिक पार्टी का हिस्सा बन जाएगा और हम आम आदमी , नहीं अब तो आम आदमी भी नहीं रहे हम ये हक भी एक पार्टी को मिल गया बल्कि हम इस देश की मजबूर और लाचार जनता कुछ देर चिल्ला कर चुप बैठ जाएगी और फिर किसी बलात्कार का इंतज़ार करेगी ...
कुछ ऐसे भी हादसे होते हैं जिंदगी में ..
इंसान बच तो जाता है लेकिन जिंदा नहीं रहता ..
आज इस हादसे ने पूरे देश मैं ये आवाज़ उठाई है की बलात्कार के खिलाफ सख्त क़ानून बने, मगर सिर्फ क़ानून बनाने से कुछ नहीं होगा बल्कि उसको सख्ती से लागू किया जाए और उसके लिए किसी की जवाबदेही भी हो। अगर सरकार और पुलिस चाहे तो ये सब पर रोक लगे जा सकती है। सिर्फ अपनी जिम्मेदारियों को समझ कर उन पर सख्ती से पालन करना होगा। मुख्यमंत्री कहती हैं की वो नज़रें मिलने के लायक नहीं हैं क्यूंकि वो इस राज्य की सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार हैं, और गृहमंत्री कहते हैं की उनकी भी 3 बेटियाँ हैं और वो ये दर्द समझते हैं, लेकिन उनसे कोई ये पूछे की क्या आप मैं ये हिम्मत हैं की आप अपनी 3 मैं से 1 भी बेटी को आधी रात बिना सुरक्षा के सड़क पर भेज सकते हैं? है क्या आपमे इतनी हिम्मत ? सुरक्षा मैं रहने वाले नहीं समझते डर क्या होता है और डर कर जीना किसे कहते हैं ...
आज देश का युवा एक बार फिर से एकजुट होकर खड़ा है, वही युवा जो इस त्रासदी का हिस्सा है और जो रोज़ डर कर जीता है, हम अपने देश में अपने आप को सुरक्षित नहीं महसूस करते, जबकि ये हमारा बुनियादी अधिकार है, लेकिन ये सब मैं क्या बकवास लिख रहा हूँ , यहाँ अधिकारों की बात करने वालों की सुनता कोन है, ये देश गणतंत्र की और से दूर होता हुआ तानाशाही और तालिबानी होता जा रहा है जहाँ के शाशक अपनी मर्ज़ी से क़ानून को तोड़ मरोड़ देते हैं, हम सब यहाँ बेचारों सी जिंदगी जी रहे हैं। छोडो यार सब बकवास है ये लिखना लिखना और क़ानून या देश की बात करना, अब कुछ ही देर मैं ये आन्दोलन भी किसी राजनातिक पार्टी का हिस्सा बन जाएगा और हम आम आदमी , नहीं अब तो आम आदमी भी नहीं रहे हम ये हक भी एक पार्टी को मिल गया बल्कि हम इस देश की मजबूर और लाचार जनता कुछ देर चिल्ला कर चुप बैठ जाएगी और फिर किसी बलात्कार का इंतज़ार करेगी ...
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