बारिशों का मौसम है, नाव बनाओ और निकल पदों खुद को ढूंढ़ने, किसने रोका है... थोड़ा सा भीगने का मज़ा लो, हिचकोले खाने दो ज़िंदगी को... बारिशों के मज़े भी लेना चाहते हो तो छाता लेकर क्यूँ निकलते हो... कुछ बूंदे गिरेंगी भी तो ये मिटटी की काया गाल नहीं जाएगी, ब्रांडेड कपड़ो की कीमत काम नहीं हो जाएगी ... कूदो पानी में छपाक ... छींक आएगी तो घर पर एक कप अदरक और तुलसी की चाय पी लेना ... क्यों चिंता करते हो ....मौज लो ना ....
16 जून, 2017
09 जून, 2017
शिवराज सरकार की नाकामी
सरकार को ये समझना चाहिए की राज करने की निति ही राजनीती कहलाती है, अपने मेनिफेस्टो के हिसाब से मत चलो, कई बार आउट ऑफ़ सिलेबस भी पेपर आ जाता है, सबको पता था की कांग्रेस जिसको सत्ता का खून मुह लग चूका है वो सत्ता जाने पर कितना बिलबिलाएगी, और आजकल तो सोशल मीडिआ पर बैठे सारी जानकारी मिल जाती है पर आपने तो अपनी सोशल मीडिया टीम में जबरदस्त जासूस बैठा रखे हैं जो बस दिन भर नेता जी का गुणगान करते रहते हैं.... माना ये विपक्ष या कांग्रेस की साजिश है अरे भाई विपक्ष का तो काम ही साजिश करना है लेकिन आप क्या झुनझुना बजा रहे हो .... कम से कम विपक्ष की साजिश का प्रो एक्टिव जवाब तो सोचो, ये मोदी जी के नाम पर इधर उधर से लाइक लेने छोड़ो और उनसे कुछ सीख लो क्यूंकि उन्ही के नाम पर तुम्हारी सरकार और देश चल रहा है ....
07 जून, 2017
मंदसौर किसान आंदोलन
मेरे एक मित्र ने लिखा की 5 किसानो को गोली मार दी वो क्या कोई दैवीय प्रकोप है या सरकार की साजिश तो मैने कहा दैविक प्रकोप से तो केवल 45 ट्रको में आग लगी है, लोगों और दुकानदारों को पीटा गया है, सरकारी सम्पत्ति को नुक्सान पहुँचाया है और ये सब तो वो बेचारा गरीब किसान कर रहा है जिसके घर में खाने को भी नहीं है और वो अपना क़र्ज़ भी नहीं चूका पा रहा, हाँ फसल को दिन रात अपने हांथो से सींच कर खुद ही वो उसको सड़क पर फेंक रहा है, उसके बच्चो को दूध मिले न मिले लेकिन वो सड़को पर दूध बहा रहा है, वो गाड़ी में बैठ कर आता है और मीडिया चैनल्स को इंटरव्यू देता है ....ये सब दैवीय प्रकोप से होता है हाँ जो 6 (किसान) मरे हैं वो पुलिस की ही गोली से मरे हैं .... दरअसल ये सेना नहीं थी ना जो चुपचाप पत्थर खा कर आ जाती ...
दोस्त जिस गरीब किसान की बात कर रहे हो न वो हमारा अन्नदाता है और उस बेचारे को तो फुर्सत भी नहीं है की वो इन सब बातों को जान सके, वो तो आजतक भी सरकारी योजनाओं के बारे में नहीं जानता और इसीलिए वो अपने क़र्ज़ से परेशान है लेकिन ज़रा सोच कर देखो की अगर ये अन्नदाता रूठ गया तो क्या होगा ....
ये गरीब किसान है और इस किसान का नाम "अमिताभ बच्चन" नहीं है ....
23 जनवरी, 2017
समाज सेवक
समाज सेवक की विडम्बना
समाज सेवक की पत्नी ने कहा ‘तुम भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में शामिल मत हो जाना, वरना पड़ेगा पछताना।
बंद हो जायेगा मिलना कमीशन, रद्द हो जायेगा बालक का स्कूल में हुआ नया एडमीशन,
हमारे घर का काम ऐसे ही लोगों से चलता है, जिनका कुनबा दो नंबर के धन पर पलता है,
काले धन की बात भी तुम नहीं उठाना, मुश्किल हो जायेगा अपना ही खर्च जुटाना,
यह सच है जो मैंने तुम्हें बताया, फिर न कहना पहले क्यों नहीं समझाया।’
सुनकर समाज सेवक हंसे और बोले ‘‘मुझे समाज में अनुभवी कहा जाता है, इसलिये हर कोई आंदोलन में बुलाता है,
अरे, तुम्हें मालुम नहीं है आजकल क्रिकेट हो या समाज सेवा हर कोई अनुभवी आदमी से जोड़ता नाता है,
क्योंकि आंदोलन हो या खेल परिणाम फिक्स करना उसी को आता है, भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में मेरा जाना जरूरी है, जिसकी ईमानदारी से बहुत दूरी है, इसमें जाकर भाषण करूंगा, अपने ही समर्थकों में नया जोशा भरूंगा,
अपने किसी दानदाता का नाम कोई थोडे ही वहां लूंगा, बस, हवा में ही खींचकर शब्द बम दूंगा,
इस आधुनिक लोकतंत्र में मेरे जैसे ही लोग पलते हैं, जो आंदोलन के पेशे में ढलते हैं,
भ्रष्टाचार का विरोध सुनकर तुम क्यों घबड़ाती हो, इस बार मॉल में शापिंग के समय तुम्हारे पर्स मे ज्यादा रकम होगी
जो तुम साथ ले जाती हो, इस देश में भ्रष्टाचार बन गया है शिष्टाचार, जैसे वह बढ़ेगा, उसके विरोध के साथ ही
अपना कमीशन भी चढ़ेगा,
आधुनिक लोकतंत्र में आंदोलन होते मैच की तरह एक दूसरे को गिरायेगा, दूसरा उसको हिलायेगा,
आधुनिक लोकतंत्र में आंदोलन होते मैच की तरह एक दूसरे को गिरायेगा, दूसरा उसको हिलायेगा,
अपनी समाज सेवा का धंधा ऐसा है जिस पर रहेगी हमेशा दौलत की छाया।’’
आजकल यूँ देखने को मिलता है, जब चुनावी माहौल हो तो हल गली नुक्कड़ पर कोई फूल खिलता है,
कुछ स्वयंभू समाजसेवक पोस्टरों में दिखाई देते हैं किन्तु कोई नहीं जानता समाज में वो अपना स्थान कहाँ रखते हैं ,
बरसाती मेंढक की तरह फुदक फुदक कर आते हैं, चुनावी बदल छंटते ही गायब हो जाते हैं,
पोस्टरों से दीवारें पटी पड़ी हैं, हाथ जोड़े समाज सेवक और सेविकायें उनमे खड़ी हैं,
शुभकामनाओं और नारों से हैं दीवारें बुलंद, नेताओं की फोटो ज़्यादा चेहरे पे मुस्कान मंद,
यूँ कहैं नेताओं की फ़ौज खड़ी है न्यारी, जितना मोटा चंद उतनी टिकट पक्की तुम्हारी ....
आजकल यूँ देखने को मिलता है, जब चुनावी माहौल हो तो हल गली नुक्कड़ पर कोई फूल खिलता है,
कुछ स्वयंभू समाजसेवक पोस्टरों में दिखाई देते हैं किन्तु कोई नहीं जानता समाज में वो अपना स्थान कहाँ रखते हैं ,
बरसाती मेंढक की तरह फुदक फुदक कर आते हैं, चुनावी बदल छंटते ही गायब हो जाते हैं,
पोस्टरों से दीवारें पटी पड़ी हैं, हाथ जोड़े समाज सेवक और सेविकायें उनमे खड़ी हैं,
शुभकामनाओं और नारों से हैं दीवारें बुलंद, नेताओं की फोटो ज़्यादा चेहरे पे मुस्कान मंद,
यूँ कहैं नेताओं की फ़ौज खड़ी है न्यारी, जितना मोटा चंद उतनी टिकट पक्की तुम्हारी ....
04 जून, 2015
बेचारी मैग्गी
समयाभाव और आजकल की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में कुछ चीज़ें ऐसी भी होती हैं जो वक़्त पड़ने पर हमारा साथ देती हैं, मैग्गी भी उन्ही में से एक है। केवल 2 मिनट में पक कर हमारी तृष्णा को शांत करने वाली आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। मैं ये नहीं कहता की गुणवत्ता की दृष्टि से वो श्रेष्ठ है लेकिन काम समय में अपनी क्षुधा को शांत करने का और कोई सरल उपाय भी शायद नहीं है। आज जो उस बेचारी की गुणवत्ता का आंकलन किया जा रहा है और उसके निर्माताओं से लेकर उसके विज्ञापन करने वाले सितारों तक को नापने की तैयारी हो रही है और किस आधार पे की उसमे लेड की मात्र या ग्लूटोमेट सोडियम या सरल भाषा में अजिनोमोटो की मात्र अधिक है।
अब आप बतायें की जो सब्ज़ियाँ आजकल नदियों के किनारे या ज़मीन के पानी से सींच कर उगाई जा रही हैं उनमे कितने खतरनाक तत्त्व पाये जाते हैं, वो फल जो कार्बाइड इस्तेमाल करके पकाये जाते हैं उनमे क्या है, वो डिब्बाबंद खाना जिनमे प्रिज़र्वेटीव मिलाये जाते हैं वो क्या हैं, डेरी उत्पाद किस तरह बनाये जाते हैं सभी को पता है, बाज़ार में मिलने वाली लगभग हर वस्तु मिलावटी है और ये सत्य सभी जांच एजेंसी जानती हैं, और मज़े की बात तो ये है की जिस जांच एजेंसी ने उत्तर प्रदेश में मांगी पर सवाल उठाया है उसने ये सैंपल फरवरी 2014 में लिए थे, जो सैंपल लिया गया था वो खुद ही अगस्त 2014 में एक्सपायर हो जाती है और उसकी जांच की रिपोर्ट 15 मई 2015 को आती है। यानी की अगर ये मुद्दा लोगों के स्वस्थ्य से जुड़ा है तो इतने लचर तरीके से उसकी जांच करना और इतना समय लगाना क्या ये हमारे साथ खिलवाड़ नहीं है।
अब बात विज्ञापन करने वालो की, तो कृपया ये बताएं की जो लोग शराब, सिगरेट और पान मसाला या गुटका का विज्ञापन करते हैं वो क्या अमृत बेच रहे हैं जबकि उन्हें तो सीधे सीधे पता है की वो ज़हर हैं और क्या विज्ञापन करने वाले के साथ विज्ञापन दिखाने वाले चैनल ज़िम्मेदार नहीं हैं।
एक आम आदमी क्या ये समझता है की हमारे शरीर को किस चीज़ की कितनी ज़रुरत है, डॉक्टर कहते हैं कैल्शियम, पोटासियम, मैग्नीशियम, आयरन, जिंक, वगेरह ये सभी हमारे शरीर के लिए ज़रूरी तत्व हैं तो क्या हमारा शरीर एक अलॉय है जो इन सब के मिश्रण से बनता है। आम आदमी को बस अपना पेट भरना है और उसकी ज़रुरत है खाना, अब उसमे क्या है और क्या नहीं ये उसकी ज़रुरत भी नहीं है और उसको जानकारी भी नहीं है।
अब बारी आती है दिल्ली के लोगों के स्वस्थ्य की। तो कृपया बताएं की दिल्ली का पॉलुशन का लेवल क्या है? क्या ये दिल्ली की आबो हवा सांस लेने के लायक है? क्या इस हवा में हम अपने बच्चों को वो सभी बीमारियां नहीं दे रहे हैं जो खतरनाक हैं। हम इस तरफ से क्यों आँख बंद कर लेते हैं। क्या इसको नियंत्रित करना किसी भी सरकारी विभाग की ज़िम्मेदारी नहीं है। किस किस चीज़ से बचेंगे और किस किस चीज़ पर पाबंदी लगाएंगे।
एक मित्र में बड़ा ही अच्छा व्यंग भेजा था वो शेयर कर रहा हूँ की एक हॉस्टल में रहने वाले लड़के ने जो चार दिन से बिना नहाये हुए उसी कच्छे में घुमते हुए, हाथ में सुबह के झूठे दूध के मग में वोडका मिलाते हुए और सिगरेट का कश लगाते हुए कहा "यार ये मैग्गी तो मिलावटी निकली, साली में लेड का ज़हर ही और इससे कैंसर हो सकता है, पता है तुझको"
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