देश आज अपने पड़ोसियों के कुकर्मो से त्रस्त है, एक तरफ आतंकवाद और एक तरफ ज़मीनी विवाद, सैकड़ों निर्दोष इसका शिकार हुए हैं, हमारी सेना ने सालों तक अपने हाथ बांध कर इसका सामना किया, आरोप झेले, शहादत दी पर उफ्फ तक नही की.. बड़े हमले हुए, आतंकी हमारे घरों तक घुस आए, लेकिन हमने सिर्फ अपने बचने की दुआ मांगी और सैनिकों की शहादत पर मोमबत्तियां जलायीं, पल भर की देशभक्ति जागी, वन्दे मातरम.. भारत माता की जय.. जय हिंद के नारे लगाए,चीनी समान का बहिष्कार किया, धरना प्रदर्शन किया फिर चाय समोसा खाये, हाथ झाड़े और अपने सुरक्षित घरों में वापस आ गए, पल भर के लिए हिन्दू, मुसलमान, जाट गुर्जर, सवर्ण दलित, उत्तर भारत दक्षिण भारत सब एक हो गया.. अच्छा लगा.. और फिर आया सबूत का कीड़ा, जो सब किये कराए पर पानी फेर देता है, जो काटता है, ज़हर उगलता है, पीड़ा देता है और फिर ज़ख्म का नासूर बना देता है.. ये राजनीति भी बड़ी कुत्ती चीज़ है, किसी की सगी नही होती, निहित स्वार्थ राष्ट्रहित से भी ऊपर और अवसरवादिता शहादत के सीने पर पैर रख कर सफलता की सीढ़ी बनती है, हमारे स्वाभिमान और अस्मिता को कुचलने वाले दुश्मन से भी गलबहियां की जाती है, अपनी ही सरकार, सेना और सुरक्षा प्रणाली से सवाल किया जाता है, उनकी गरिमा को चोट पहुंचाई जाती है, उनके सामर्थ्य पर प्रश्नचिन्ह लगाया जाता है.. और देश की जनता किंकर्तव्यविमूढ़ सी असमंजस की स्थिति में ठगी सी रह जाती है, एक विशेष नस्ल और भी है, अभी कुछ समय पहले जब देश के सैनिकों पर हमला किया जा रहा था.. तब ओ गॉड...ये क्या हो रहा था... नागरिकों का गुस्सा सातवें आसमान पर, सभी जगह सिर्फ बदला,पड़ोसी देश को सबक सिखाने और आतंकियों को जड़ से ख़त्म होने की चर्चा, पान और नाइ की दुकानों पर रक्षा नीति विशेषज्ञ अचानक उग आए थे, फेसबुक,ट्विटर और वाट्सएप अचानक युद्ध की मांग से गूंज उठा, ललकार, हूंकार,तलवार सब एक साथ खिंच गए नीली घाटी के मैदान में की अब पड़ोसी देश को सबक सिखाना होगा.. बहुत हुई शांति वार्ता, अब सिर्फ जंग ही उपाय है.. सेना...मोर्चा सम्भालो. टूट पड़ो दुश्मन पर, कर दो खात्मा एक एक का, हमें तुम पर गर्व है। मैंने कहा- "तुम लोग तो एक सैनिक के दुश्मन द्वारा पकड़े जाने या किसी सैनिक की शहादत पर भी इतने दुखी हो जाते हो, उनके परिवार की चिंता में तुमसे रोटी नहीं खाई जाती, उनके बच्चों के रोते चेहरे देखकर तुम्हें रातों को नींद नहीं आती युद्ध में तो हज़ारों सैनिक कुर्बान होंगे, तुम कैसे चैन से रह पाओगे?" "भगाओ साले को, देशद्रोही है कमीना, हमें जंग चाहिए, हम कुछ नहीं जानते।" क्योंकि वे सचमुच नहीं जानते कि यह वाक्य वे सत्य बोल रहे हैं, वे न सेना के बारे में कुछ जानते ,न आतंकवाद के बारे में और न रक्षा या विदेश नीति के बारे में, लेकिन ये हर विषय मे PhD हैं क्योंकि सोशल मीडिया विश्विद्यालय के पास-आउट हैं... युद्ध...युद्ध...युद्ध, बस युद्ध... आखिर जनता की चुनी हुई सरकार थी, जनता की आज्ञा शिरोधार्य, लेकिन अगर सरकार ने निर्णय लिया कि युद्ध किया जाएगा, औऱ साथ में आदेश निकाला कि- "सेना में सैनिकों की संख्या अपर्याप्त है और युद्ध में जीत हासिल हो इसके लिए अनिवार्य रूप से प्रत्येक घर से एक वयस्क व्यक्ति को सेना में सिर्फ युद्ध के लिए आना होगा, युद्ध के बाद उन्हें वापस घर भेज दिया जाएगा, अगर जीवित लौटे तो सबको मेडल मिलेंगे और मर गए तो शहीद का दर्जा, राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार भी होगा, सबको यह छूट होगी कि दुश्मनों के जितने सर काटकर लाना हो,ला सकते हैं। " आँयं... ये क्या ? लोगों ने आंखें मल-मल कर दोबारा आदेश को पढा, लेकिन दस बार आंखें रगड़ने पर भी इबारत नहीं बदली, अब हर घर से एक वयस्क सेना में अनिवार्य रूप से भर्ती होगा, एक साल के कठोर प्रशिक्षण के बाद युद्ध पर जाएगा, बस एक छोटी सी शर्त थी जो लोगों को घोर अंधेरे में आशा की किरण बनकर राह दिखा रही थी- सेना में उन्हीं लोगों को लिया जाएगा जो मेडिकली फिट होंगे, इसके लिए सरकारी डॉक्टर से फिटनेस सर्टिफिकेट लेना होगा । बस फिर तो अगले दिन से ही वीर जवानों का देश अचानक से लूलों, लंगड़ों, अपाहिजों, अंधों, रोगियों का देश बन गया, 18 साल के जिम जाते लड़के अचानक अस्थमा, दिल के रोग,हड्डी रोग,डायबिटीज,मिर्गी के पेशेंट बन गए, सरकारी डॉक्टरों के दिन एक दिन में फिर गए, हर एक को सी ए की आवश्यकता पड़ने लग गयी, प्राइवेट डॉक्टरों ने याचिका दायर की कि उन्हें इस नेक कार्य से वंचित न रखा जाए शांति का टापू कहलाने वाले परिवारों में भाई-भाई के झगड़े हो गए, "तू जा भाई सेना में ,अभी तेरी शादी नहीं हुई। मेरे बच्चे पढ़ रहे हैं। "जा बे भाईसाब, तेरी @##$$$ ...शादी नहीं हुई तो मर जाऊं क्या ?'तू जाएगा, नहीं ,तू जाएगा खून खच्चर मच गया, लठ्मलट्ठी , चिल्लमचिल्ली हो गई , घमासान हो गया, फेसबुक हाथ मे पिस्तौल तमंचे और असलाह लिए वीरों से भरा पड़ा था और अभी अभी 18 पूरे कर समस्त एडल्टोचित कार्य करने का लाइसेंस पाए नौजवान कलेक्ट्रेट के चक्कर काटने लगे कि कैसे भी ले-देकर दूसरा बर्थ सर्टिफिकेट बन जाये, अचानक सब गांधी भक्त हो गए, तभी एक संकट मोचक फेसबुक पोस्ट और ट्विटर पोस्ट आयी- " युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं, #SayNoToWar शांति से बैठकर हल निकाला जाए तो ही जड़ से समस्या दूर होगी। " दस हज़ार लाइक,बीस हज़ार कमेंट और शेयर की संख्या लाखों में, जिव्हा वीर फुस्स हो गए, सोशल मीडिया पर सनाका खिंच गया, इस वीरता परीक्षण के तीसरे दिन सरकार ने आदेश वापस ले लिया और आतंकवाद से निपटने पर मंथन करने लगी... दरअसल युद्ध को लेकर सरकार की अपनी योजनायें है, सेना की अपनी, विपक्ष की अपनी, सोशल मीडिया के जांबाज़ वीरों की अपनी, और हमारी अपनी, क्योंकि हमें अपनी सरकार और सेना पर भरोसा है... देश नही झुकने दूंगा.. किन्तु जनता की भी अपनी मजबूरी है, भक्ति और चमचागिरी की भी अपनी एक मजबूरी है और वैसे भी जनता का क्या है उसे तो बस सब्ज़ी के साथ धनिया मुफ्त मिलना चाहिए..
02 जुलाई, 2020
22 जून, 2020
मीडिया का सरकस
विकट सी परिस्तिथि है, ज़िन्दगी क्षीण सी हो चली है, महामारी, दंगे, आगजनी, भूकंप, सीमा पर तनाव, आतंकवाद और आर्थिक मारामारी के बीच सोशल मीडिया की धमाचौकड़ी और ऊपर से न्यूज़ वालों का तड़का, कसम से लगता है कि बस आज ही विश्वयुद्ध होने वाला है, सेनाएं तैनात हो गयी हैं, मिसाइलें तन गयी हैं, लड़ाकू जहाज़ आकाश में गर्जन कर रहे हैं, और या फिर कोरोना मुझे ढूंढता हुआ मेरे घर के बाहर गाड़ी के पीछे छुपा हुआ है कि बाहर निकलते ही दबोच लेगा, मुझे ज़िन्दगी से हारना पड़ेगा क्योंकि सरकार निकम्मी है वो अलग बात है कि दिल्ली का मालिक रोज़ नए दावों के साथ छाती ठोकता है, इसी बीच तभी चैनलो पर ग्रहण की छाया मंडराने लगती है और सभी राशियों का बेड़ा गर्क हो जाता है, मन विचलित होता है तो योग करने की सोचता हूँ कि बची खुची कसर अचानक ब्रेक में पॉलिसी बाजार वाले श्री मान पूरी कर देते हैं जो डर के तारो को झनझना देते है ये कहकर की अब तो लेलो टर्म लाइफ इंश्योरेंस, तुम्हारे बाद बच्चो के स्कूल की फीस कौन भरेगा... और साथ बैठी बीवी लाचारी भारी नज़रों से मेरा मुँह ताकने लगती है... कसम से रूह कांप जाती है कि अभी तो सिर्फ जून का महीना है, आधा 2020 बाकी है, जाने क्या क्या देखना अभी नियति में लिखा है...
05 जून, 2020
विश्व पर्यावरण दिवस
एक एक सांस की कीमत क्या होती है ये उससे पूछो जो आज इस वैश्विक महामारी के चलते वेंटिलेटर पर कुछ दिन गुजार कर आया हो, लाखो रुपये खर्च करके चंद साँसों की लड़ाई लड़के हम सोचते हैं पैसे से जीवन खरीद लिया, कभी सोचा है सामान्य जीवन मे एक सामान्य इंसान लगभग 11000 लीटर ऑक्सीजन प्रतिदिन लेता है, "11000 लीटर प्रतिदिन", सोचा ? इसकी कीमत का अंदाज़ा लगाओ, एक सामान्य जीवन मे आप किंतनी ऑक्सीजन लेते हो, वो भी बिना पैसे, परंतु इस प्रकृति या ईश्वर के प्रति हम कितने कृतघ्न हैं, इंसानी फितरत है ना कि मुफ्त में मिली वस्तु का हम मूल्यांकन नही करते, फिर चाहे वो हवा हो या पानी, सोचो यदि ईश्वर ने या प्रकृति ने इसके लिए पैसा मांग लिया तो ? संभवतः हममें से कोई भी नही दे पाएगा, किन्तु प्रकृति तो माँ है तो इसके प्रति हमे भी समर्पण भाव रखना चाहिए, अपने आस पास हरियाली रखें, घर से ही शुरुआत करें, केवल एक पेड, पौधा या बीज, कुछ भी लगाएं, उसे पालें पोसें और प्रकृति को समर्पित करें.. पानी बचाएं, व्यर्थ ना बर्बाद करें, धरती पर 70% पानी है किंतु पीने योग्य पानी खत्म हो रहा है, सिंगल यूज़ प्लास्टिक का इस्तेमाल छोड़ें, ये हमें और हमारे समुद्रो को खा रही है, सोचो हमारी आज की लापरवाही हमारी आने वाली पीढ़ियों को क्या दे कर जाएगी, हमारी आज की दिन रात की मेहनत अपने बच्चो के उज्ज्वल भविष्य और हमारे सुरक्षित बुढ़ापे के लिए ही तो है, इतनी जद्दोजेहद के बाद भी यदि हम उन्हें साफ हवा और पीने योग्य पानी तक ना दे सकें तो क्या फायदा इस आपाधापी का ? विचार करें, सोचे, समझे, क्या ज़रूरी है, एक उन्नत भविष्य के साथ एक सुरक्षित और संगरक्षित भविष्य..आज विश्व पर्यावरण दिवस पर आइये प्रण करें एक हरे भरे फलते फूलते वातावरण को संगरक्षित करने का, मुश्किल नही है क्योंकि ये कितना आसान है ये हमने लॉकडाउन में अनुभव किया है, संभव भी है, फिर से खुली हवा में सांस लें, छत पर तारे गिने, बीमारियों को दूर भगाएं, औऱ बच्चो को एक सुरक्षित एवं संगरक्षित भविष्य दें, आओ एक पेड लगाएं...
#WorldEnvironmentDay
#विश्वपर्यावरणदिवस
#SaveTrees #PlantTrees #SaveWater #SayNoToPlastics
#WorldEnvironmentDay
#विश्वपर्यावरणदिवस
#SaveTrees #PlantTrees #SaveWater #SayNoToPlastics
24 मई, 2020
चीन, सिक्किम और केजरीवाल
सिक्किम मुद्दे पर जो केजरीवाल ने किया है वो सिविल डिफेंस के किसी अधिकारी की गलती नही बल्कि इन दोनों चंगु मंगू की सोची समझी साजिश है, मैं हमेशा से कहता आया हूँ कि केजरीवाल केवल सत्ता ही नही चला रहा बल्कि उसके साथ साथ अपनी कम्युनिस्ट सोच का एजेंडा भी चला रहा है, ये इत्तेफाक नही हो सकता कि सिसोदिया स्वीडन जाए और एक खालिस्तानी आतंकवादी के यहां रुके, आशुतोष यूरोप जाए और खालिस्तानियों से फंडिंग के लिए मिले, केजरीवाल खुद पंजाब जाए और एक खालिस्तानी आतंकवादी के घर रुके, केवल यही नही डोकलकम में चीन से टकराव के समय आम आदमी पार्टी की आधिकारिक वेबसाइट पर दिखाए गए भारत के नक्शे से कश्मीर, सिक्किम और कच्छ को गायब दिखाया था, तब भी वेब डिज़ाइनर की गलती थी, जब भारतीय सेना ने पाकिस्तान में घुस कर सर्जिकल स्ट्राइक की थी तो भी उसके शौर्य पर सवाल उठाए थे और पाकिस्तान में इस चपल चिंटू का डंका बजा था, किन्तु हर बार इनकी टाइमिंग परफेक्ट कैसे होती है, आज भी जब चीन लद्दाख और सिक्किम में भारतीय सेना के सामने डटी हुई है तभी इनको सिक्किम अलग देश लगा, दरअसल ये एक सोची समझी साजिश है, गर्मागर्मी के माहौल में ये विवाद उठाया, इसको मीडिया में और सोशल मीडिया में ट्रेंड किया, मुद्दा बनाया और फिर ठीकरा फोड़ दिया एक अधिकारी पर, केजरीवाल का कोई विज्ञापन इन दोनों चंगु मंगू की सहमति के बिना नही बनता, और पार्टी जिस ग्रह मंत्रालय के आदेश की आड़ लेने की कोशिश कर रही है उसका अमेंडमेंट भी 1975 में हो चुका है, ये देहद्रोही मानसिकता का व्यक्ति धीरे धीरे समाज और देश मे अर्बन जिहाद फैला रहा है जिससे समय रहते बचने की ज़रूरत है.. और हां सुन लो बे चमचों कश्मीर भी अक्साई चिन भी और सिक्किम भी हमारा अभिन्न अंग है औऱ किसी के बाप में दम नही है इनको अलग कर दे...
14 मई, 2020
आत्मनिर्भर भारत
कल से देख रहा हूँ कि कुछ नमूने जो मोदी जी के राष्ट्र के नाम संबोधन पर टीवी पर लार टपकाते बैठे थे उनको अब कुछ मरोड़ उठ रही है, पहली रात तो करवटों में इसलिए कट गई की समझ ही नही आया कि 20 लाख करोड़ में शून्य कितने होते हैं, यहां तक कि प्रोफेसर गौरव वल्लभ भी भावशून्य हो गए, फिर ये समझ नही आया कि भूरी काकी के राज में जब इतने घोटाले कर दिए थे तो इतना पैसा कहां से आया, विस्तार पूर्वक समझूंगा तो भी किंचित समझ नही आएगा, क्योंकि मोदी जी इनकी नज़र में कोई अर्थशास्त्री तो है नही, किन्तु मेरी नज़र में वो एक मंझे हुए राजनीतिक अर्थशास्त्री हैं, अब ये इस बात पर बहस कर रहे हैं कि "Make in India" और "आत्मनिर्भर भारत" मे क्या अंतर है, तो सुनो चमचागणो, मेक इन इंडिया विदेशों से बड़े उद्योगों एवं मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स को भारत मे सशर्त लाने की एक पहल थी, जिसमे 80% तक क्षेत्रीय रोजगार को बढ़ावा देने का प्रावधान है, जिसमे क्षेत्रीय निर्माण कंपनियों से खरीदी का प्रावधान है, जिससे MSME सेक्टर को बढ़ावा दिया जा सके, रोजगार पैदा किया जा सके और आर्थिक विकास हो, औऱ अब आत्मनिर्भर भारत की ज़िम्मेदारी हम नागरिकों पर इसीलिए है कि हम भी अपने देश मे बनने वाली स्वदेशी वस्तुओं को अपने रोजमर्रा के जीवन मे उपयोग होने वाली सामग्रियों को अपने क्षेत्रीय निर्माता से लें ताकि क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीट उद्योगों को नई ऊर्जा मिले, उन्हें बढ़ावा मिले, उनको आर्थिक संकट से उबार सके एवं देश की अर्थव्यवस्था में सुधार हो सके, यहां क्षेत्रीय उद्योग से मेरा तात्पर्य MSME सेक्टर से ही है जो हमारा सूक्ष्म, लघु, कुटीर एवं ग्रह उद्योग है, किन्तु नासमझ लोग इसे बड़ी गाड़ियों, मोबाइल फ़ोन, इम्पोर्टेड ब्रांड्स से जोड़ रहे हैं, वैसे इन सभी चीज़ों की एहमियत शायद आप सभी को इस लॉकडाउन के दैरान समझ आ गयी होगी, रोलेक्स पहनने से भी आपका टाइम बदला नही, मेरसीडीज़ या ऑडी आपकी खड़ी ही रह गयी, महंगे ब्रांडेड कपड़े जूते वार्डरोब में ही पड़े रहे, किन्तु जीवित रहने के लिए ज़रूरी चीज़े सीमित ही थी, वो सभी हमे हमारे आसपास ही मिली, इसे समझो, अपने जीवन मे थोड़ा सा बदलाव लाओ, ज़रूरत एवं विलासिता के फर्क को समझो, अपने देश मे बनी वस्तुएं भी उतनी ही अच्छी है, और वो और भी अच्छी हो सकती है यदि हम उन्हें अपने जीवन मे अपना लें, हम स्वयं भी आत्म निर्भर बने, अपने देशवासियों को भी बनायें एवं देश को स्वावलंबन की और ले चले... आओ कदम बढ़ाएं...
सदस्यता लें
संदेश (Atom)