11 नवंबर, 2020

मीडिया पर हमला या बोलने की आज़ादी का हनन

 अर्नब को बेल क्यों नहीं मिल रही है इसके पीछे का कारण समझिए, जो लोग मोदी जी को जानते हैं और समझते हैं उन लोगों को ही अच्छे से समझना चाहिए कि अगर कुछ ऐसा चल रहा है कि जो अप्रत्याशित है जो हमें समझ नहीं आ रहा है उसके पीछे का खास कारण या मकसद क्या है दरअसल हम लोग ने बहुत जल्दी विचलित हो जाते हैं..अर्नब को कुछ नहीं हुआ है वह एकदम स्वस्थ और सुरक्षित है, इसके लिए हम कभी सरकार, कभी न्यायपालिका को दोष देते है, इमोशनल हैं ना, हम लोग तो LED के ज़माने में भी लालटेन को चुन लेते हैं, चलो अब मैं इसको थोड़ा विस्तार से बताता हूं.. दरअसल मोदी जी की पॉलिसी आप लोग जानते ही हैं वह भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाना चाहते हैं अब हम यूं कह सकते हैं कि इसकी शुरुआत उन्होंने पहले राजनीति से की और फिर बॉलीवुड पर आ गए, अब बॉलीवुड को हम लोग काले धन, ड्रग्स, विदेशी फंडिंग का एक बहुत बड़ा केंद्र मानते हैं कहने को यह फिल्मी सितारे को हम आइडल मानते हैं वह दरअसल पर्दे की जिंदगी और असल जिंदगी में बहुत विपरीत है... इस बॉलीवुड को साफ करने के लिए सुशांत सिंह राजपूत एक बहाना बना, अब उसकी आड़ में बॉलीवुड के अंदर इतनी गहराई तक सफाई होगी कि हम लोग आश्चर्यचकित रह जाएंगे, बॉलीवुड की सफाई के बाद अगला नंबर क्रिकेट का आएगा.. क्रिकेट एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें हमारे राजनीति से और कॉरपोरेट हाउसेस से जुड़े बहुत बड़े बड़े नाम हैं यूं कहो कि कुछ राजनीतिक मजबूरियां हैं या फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक किसी बड़े कॉर्पोरेट पर या बड़े नेता पर हाथ डालना इतना आसान नहीं होगा और अब उसका सच भी अगर सामने लाना है, की कैसे वह ब्लैक को व्हाइट करते हैं, कैसे टीमों को मैनिपुलेट किया जाता है, कैसे खेल के साथ खेला जाता है, अब इसमें सट्टेबाजी भी है पैसा भी है ग्लैमर भी है और क्रिकेट और बॉलीवुड का लिंक भी है.. फिर उसके बाद तीसरा नंबर आता है मीडिया का अब यू कह सकते हैं कि इसकी शुरुआत अर्नब से हुई, पहले टीआरपी के खेल से और अब अर्नब की गिरफ्तारी से.. मीडिया के इस खेल में भी कुछ बहुत बड़े नाम शामिल है अब अगर मोदी जी सीधा उन पर हाथ डालते हैं तो बहुत फजीता वाला काम हो जाएगा, अब उससे बचने के लिए यू कह सकते हैं कि अर्नब जैसे एक राष्ट्रवादी छवि के व्यक्ति को चुना गया, जो आर्मी की बैकग्राउंड से है या फिर जिसको कहने को आज मोदी का समर्थक माना जाता है और वही अगर आज कानून की गिरफ्त में है तो सभी लोग इस की आस लगाए बैठे हैं कि मोदी जी कुछ क्यों नहीं करते.. अमित शाह कुछ क्यों नहीं करते.. भाजपा धरातल पर क्या कर रही है.. तो इसका सीधा सा जवाब है कि अर्नब बिल्कुल सुरक्षित है, उसके साथ कुछ बुरा नहीं हो रहा उसको एक खेल के तहत समझ लो कि उसको पकड़वाया गया है ताकि कल को जब असली भेड़ियों को मीडिया के पकड़ा जाए तो उस उनके समर्थन में जो हमारे लिब्रेंडू और पत्रकारिता के नाम पर कलंक लोग हैं उनकी बोलती बंद हो जाए और वह यह ना कह पाए कि मोदी जी ने बदले की भावना से कुछ किया है क्योंकि बात तो फिर यह यह बन जाएगी ना कि मोदी जी या भाजपा ने अपने राष्ट्रवादी पत्रकार के लिए कुछ नहीं किया तो उनके लिए क्या करेंगे.. इससे उस विपक्ष का, उन पत्रकारिता के दलालों का मुंह बंद हो जाएगा और फिर मीडिया का सफाई अभियान अच्छे से चल पाएगा.. आज मीडिया में कुछ ऐसे रसूखदार लोग बैठे हैं जो यह समझते हैं कि कानून देश प्रशासन और सरकार उनके हाथ में है.. वह सब भी बेनकाब होंगे बॉलीवुड के कुछ बड़े नाम जल्दी सामने आने वाले हैं और उसके बाद क्रिकेट के अंदर हड़कंप मच आएगा और फिर मीडिया अपना मुंह छुपाता घूमेगा.. आज देश को वाकई इस बहुत बड़े सफाई अभियान की जरूरत है.. यह वह दीमक है जो हमारे देश को अंदर ही अंदर खोखला कर रही है.. इसके लिए हमें कीटनाशक जड़ों तक डालना पड़ेगा तभी जाकर हम आने वाली अपनी पीढ़ियों को एक स्वच्छ सुंदर और सुरक्षित भारत दे पाएंगे.. इस सब के लिए हमें CAA NRC, धारा 370 इन सब का समर्थन करना होगा तभी हम देश को एक बड़े बदलाव की ओर लेकर जा सकते हैं.. भरोसा तो रखो... सब अच्छा ही होगा.. एक बदलाव की बयार है...बहने तो दो...

03 अक्टूबर, 2020

हाथरस की बलात्कारी राजनीती

 देश मे हर साल औसतन 32000 बलात्कार होते हैं किंतु विडंबना ये है कि केवल इक्का दुक्का ही उनमें से 'निर्भया" बन पाती है, बाकी केवल कागज़ों में दफन होकर रह जाती हैं.. बलात्कारी की घृणित मानसिकता जाति, धर्म, या उम्र नही देखती किन्तु उंस विक्षिप्त तार तार हो चुके शरीर मे कुछ राजनीतिक गिद्ध एवं भेड़िए अपने लिए जाति, धर्म एवं उम्र सबका आंकलन करके उसका सामाजिक, राजनीतिक एवं मानसिक बलात्कार करते हैं, रोज़ करते हैं... 'मेरा दलित तेरे दलित से भी घनघोर दलित है"... ये क्या है ? बलात्कारी हिन्दू है या मुसलमान ? क्यों ? बालिग है या नाबालिग ? कैसे ? क्या है ये सब, अरे बलात्कारी एक विकृत मानसिकता का अपराधी है, बस.. किन्तु हाथरस की घटना दोबारा सोचने पर मजबूर करती है, यहां मानसिकता उस लड़की के परिवार वालो की सोचनीय है, यहां मानसिक बलात्कार हुआ, मीडिया एवं राजनीतिक पार्टी ने सियासी बलात्कार किया, दुर्भावना है, द्वेष है, रंजिश है, वो सब दरकिनार करके परिवार भी उसी का शिकार हो रहा है, बच्ची जान से गयी तो चलो अब गयी तो गयी किन्तु उसके नाम पर दुकानदारी शुरू हो गयी, बोलियां लग रही है, 25 लाख, 50 लाख, पर मीडिया की टीआरपी करोड़ो की है और राजनीतिक नफा नुकसान अरबों का... कुछ दिन ये मंडी लगेगी, फिर सच सामने आएगा.. ये सियासी "प्रोडक्ट" किसके लिए फायदेमंद होगा... "पिपली लाइव" है.. देखते जाओ...


14 सितंबर, 2020

हिंदी दिवस

 हिंदी दुनिया की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली एवं सबसे उन्नत भाषा है। हमारे देश की संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी। सरकारी काम काज हिंदी भाषा में ही होगा । इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन् 1953 से संपूर्ण भारत में 14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है। अंग्रेजी भाषा के मूल शब्द लगभग 10,000 हैं, जबकि हिन्दी के मूल शब्दों की संख्या 2,50,000 से भी अधिक हैं। संसार की उन्नत भाषाओं में हिंदी सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है। हिंदी दुनिया की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। हिंदी दुनिया की सर्वाधिक तीव्रता से प्रसारित हो रही भाषाओं में से एक है। वह सच्चे अर्थों में विश्व भाषा बनने की पूर्ण अधिकारी है। हिंदी का शब्दकोष बहुत विशाल है और एक-एक भाव को व्यक्त करने के लिए सैकड़ों शब्द हैं जो अंग्रेजी भाषा में नहीं है। हिन्दी लिखने के लिये प्रयुक्त देवनागरी लिपि अत्यन्त वैज्ञानिक है। हिन्दी को संस्कृत शब्दसंपदा एवं नवीन शब्द-रचना-सामर्थ्य विरासत में मिली है। लेकिन अभी तक हम इसे संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा नहीं बना पाएं। आज मैकाले की वजह से ही हमने अपने आप को मानसिक गुलामी बना लिया है कि अंग्रेजी के बिना हमारा काम चल नहीं सकता। छोड़िए ना, अंग्रेज़ी हमारी कामवाली है, उसे रहने दो, हिंदी तो हमारी घर की है हमें हिंदी भाषा का महत्व समझकर उसका सर्वाधिक उपयोग करना चाहिए। जिस प्रकार बूँद-बूँद से घड़ा भरता है, उसी प्रकार समाज में कोई भी बड़ा परिवर्तन लाना हो तो किसी-न-किसीको तो पहला कदम उठाना ही पड़ता है और फिर धीरे-धीरे एक कारवा बन जाता है व उसके पीछे-पीछे पूरा समाज चल पड़ता है। हमें भी अपनी राष्ट्रभाषा को उसका खोया हुआ सम्मान और गौरव दिलाने के लिए व्यक्तिगत स्तर से पहल चालू करनी चाहिए। एक-एक मति के मेल से ही बहुमति और फिर सर्वजनमति बनती है। हमें अपने दैनिक जीवन में से अंग्रेजी को तिलांजलि देकर विशुद्ध रूप से मातृभाषा अथवा हिन्दी का प्रयोग करना चाहिए। राष्ट्रीय अभियानों, राष्ट्रीय नीतियों व अंतर्राष्ट्रीय आदान-प्रदान हेतु अंग्रेजी नहीं राष्ट्रभाषा हिन्दी ही साधन बननी चाहिए। आज सारे संसार की आशादृष्टि भारत पर टिकी है । हिन्दी की संस्कृति केवल देशीय नहीं सार्वलौकिक है क्योंकि अनेक राष्ट्र ऐसे हैं जिनकी भाषा हिन्दी के उतनी करीब है जितनी भारत के अनेक राज्यों की भी नहीं है। इसलिए हिन्दी की संस्कृति को विश्व को अपना अंशदान करना है। राष्ट्रभाषा राष्ट्र का गौरव है। इसे अपनाना और इसकी अभिवृद्धि करना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है। यह राष्ट्र की एकता और अखंडता की नींव है। आओ, इसे सुदृढ़ बनाकर राष्ट्ररूपी भवन की सुरक्षा करें। आजादी मिले 70 वर्ष से भी अधिक समय हो गया, बाहरी गुलामी की जंजीर तो छूटी लेकिन भीतरी गुलामी, दिमागी गुलामी अभी तक नहीं गया.. आइये हिंदी को अपनाएं, अनेक स्थानीय बोलियों की जननी को उसका सम्मान दें.. हिंदी दिवस की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं...

31 जुलाई, 2020

अच्छा व्यक्ति (You are very nice)

आज बैठे बैठे सोच ही रहा था कि आखिर अच्छा व्यक्ति कैसा होता है और अच्छा व्यक्ति बने रहने के क्या खतरे हैं, तभी आदरणीय बब्बर जी का इसी संदर्भ में एक लेख पढ़ा तो सोचा ऐसा अनुभव तो अपने को भी बहुत है, किन्तु ऐसे अनुभव से सीख अंततः क्या मिलती है वो मेरे लिए ढाक के तीन पात के समान ही है , चलो खैर, हम अक्सर सुनते हैं कि आप बहुत अच्छे व्यक्ति हैं या you are very nice..  अक्सर ही किसी से भी यह सुनकर मुझे बहुत ख़ुशी होती थी, मुझे लगता था कि यह किसी भी व्यक्ति से मिलने वाली सबसे बढ़िया प्रशंसोक्ति है.. फिर मुझे अपने और अन्य “अच्छे व्यक्तियों” के जीवन को ध्यान से देखने पर यह अनुभव होने लगा कि इस लेबल का लग जाना अमूमन ही कोई बहुत प्रतिष्ठा या महत्व की बात नहीं है.. अब तक कुछ अनदेखे रह गए पैटर्न मेरे सामने उभरकर आने लगे और मैं यह समझने लगा कि दूसरों की नज़रों में “अच्छा” बने रहना किसी आदमी के लिए कितना तकलीफदेह हो सकता है.. और फिर मैंने ये कोशिश की कि मेरे ऊपर चढ़ चुका अच्छाई का मुखौटा कुछ उतरे और मैं भी दूसरों की तरह बेफिक्री से सांस ले सकूं.. सच बताऊं तो अपने साथ मैंने कभी कोई बेहतरीन चीज़ की है तो वह यही है.. कम्युनिकेशन कोच के तौर पर मैंने दूसरों को भी यह सिखाना शुरू कर दिया कि बहुत अच्छे बने बिना कैसे जियें.. जब कभी हम किसी व्यक्ति को किसी और व्यक्ति से यह कहते हुए सुनते हैं कि आप बहुत अच्छे आदमी हैं या वह बड़ी सज्जन महिला हैं तो हम समझ जाते हैं कि जिस व्यक्ति के बारे में बात की जा रही है वह दूसरों की दृष्टि में भला और अच्छा बने रहने के लिए हर तरह की दिक्कतें झेलता है और दूसरे उसका जमकर फायदा उठाते हैं.. अच्छा आदमी बनने का क्या अर्थ है ? मुझे लगता है कि जब कभी कोई आपको “अच्छा आदमी”, “नाइस गर्ल”, या “सज्जन पुरुष” कहता है तो इसके दो मतलब होते हैं.. कभी-कभी यह होता है कि सामनेवाले व्यक्ति के पास आपको कहने के लिए कोई उपयुक्त और सटीक पौज़िटिव शब्द नहीं होता। वे आपसे यह कहना चाहते हैं कि आप रोचक, या मजाकिया, या दयालु, या प्रभावशाली वक्ता हैं, पर ऐसे बेहतर शब्द नहीं सोच पाने के कारण वे कामचलाऊ अभिव्यक्ति के तौर पर आपको अच्छा, बढ़िया, या ओके कहकर काम चला लेते हैं.. यदि ऐसी ही बात है तो आप इसमें कुछ ख़ास नहीं कर सकते और आपको परेशान होने की ज़रुरत भी नहीं है। आपके बारे में कुछ पौज़िटिव कहने के लिए अच्छा या नाइस बहुत ही साधारण विकल्प हैं.. इन्हें सुनकर यदि आप बहुत अधिक खुश नहीं होते तो इसमें कोई बुरा मानने वाली बात भी नहीं है.. अब मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि अच्छा या नाइस का लेबल ऐसी चीज़ को दिखता है जो बाहरी तौर पर तो आपके बारे में पौज़िटिव बात कहती है पर सही मायनों में यह आपके खिलाफ जाती है.. दूसरों की बात बड़ी आसानी से मान जानेवाले और दूसरों के लिए खुद को तकलीफ में डालने के लिए हमेशा तैयार बैठे हुए आदमी को सभी भला मानस और नाइस कहते हैं.. तो ये शब्द सुनने में भले ही अच्छे लगें पर ये आपको मनोवृत्तियों और स्वभाव को दर्शाते हैं जिनसे आपको आगे जाकर बहुत नुक्सान भी उठाना पड़ सकता है.. अब बताता हूँ कि अच्छा आदमी बने रहने के खतरे क्या हैं.. हम लोगों में से अधिकतर यह मानते हैं कि हमें भले बने रहना चाहिए, दूसरों की सहायता के लिए तत्पर होना चाहिए भले ही इसके कारण कभी कुछ कष्ट भी उठाना पड़ जाए.. इससे समाज में हमारी छवि भी बेहतर बनी रहती है.. लेकिन यदि आप दूसरों की नज़र में हमेशा ही हद से ज्यादा भले बने हुए हैं तो यह इस बात का संकेत है कि आपने स्वयं की इच्छाओं का सम्मान करना नहीं सीखा है.. मैं दूसरों के प्रति उदारता बरतने और किसी की सहायता करने का विरोधी नहीं हूँ.. लेकिन मैं यह भी मानता हूँ कि कुछ लोग इस नीति के पालन के चक्कर में अपनी सुख-शांति को हाशिये पर रख देते हैं, मैं भी करता था.. वे यह मानते हैं कि उनके इस व्यवहार से दूसरे उनसे हमेशा खुश रहेंगे और ऐसा करने से उनकी समस्याएँ भी सुलझ जायेंगीं.. दुर्भाग्यवश, इस बात में बहुत कम सच्चाई है.. मनोविज्ञान के क्षेत्र में इस विषय पर हाल में ही बहुत शोध हुआ है और इसे nice guy syndrome के नाम से जाना जाता है..भलामानस बने रहने के नुकसान धीरे-धीरे सामने आने लगे हैं। इनमें से कुछ ये हैं, जैसे कि दूसरों को खुश रखने के लिए खुद को हलकान कर लेना, या स्वयं को नज़रंदाज़ करना, क्योंकि यह स्पष्ट है कि यदि आप हमेशा दूसरों का ही ध्यान रखते रहेंगे तो आपको अपनी देखरेख और आराम के लिए समय नहीं मिलेगा। यही कारण है कि ज्यादातर भलेमानस थकेमांदे, तनावग्रस्त, और बुझे-बुझे से रहते हैं। उनमें से कई अवसाद के शिकार हो जाते हैं.. इसी तरह दूसरों द्वारा आपका अनुचित लाभ उठाना, एक बहुत खतरनाक झूठ है जिसमें हम लोगों में से ज्यादातर यकीन करते हैं और वह यह है कि यदि हम दूसरों के लिए अच्छे बने रहेंगे तो वे भी हमसे अच्छा बर्ताव करेंगे। व्यवहार में ऐसा कभी-कभार ही होता है.. अधिकांश मौकों पर आपकी अच्छाई के कारण आपका गलत फायदा उठाया जाता है.. लोग आपसे बिना पूछे या जबरदस्तीआपकी चीज़ें मांग लेते हैं आप संकोचवश ना नहीं कहते, यहाँ तक कि आपसे अपनी ही चीज़ें दोबारा मांगते नहीं बनता क्योंकि आप किसी को नाराज़ नहीं करना चाहते और फिर हम इसी छवि में सिमटकर रह जाते हैं.. किन्तु अच्छी बात यह है कि ‘सज्जन पुरुष’ की छवि से बाहर निकला जा सकता है.. इसका सबसे अच्छा तरीका यह है कि आप अपनी बेहद विनीत और मुलायम छवि में परिवर्तन लायें.. ऐसा करने के ये तीन तरीके हैं.. जैसे.. अपनी ज़रूरतों को पहचानें, उसके लिए यह ज़रूरी है कि आपको उनका पता चले.. दूसरों के प्रति हमेशा अच्छे बने रहने वाले व्यक्तियों की यह मानसिकता होती है कि हमेशा औरों के मनमुताबिक चलकर सबकी नज़रों में भले बने रहते हैं पर यह सच है कि उनकी भी बहुत सी भावनात्मक और दुनियावी ज़रूरतें होतीं हैं। उनके लिए यह बहुत ज़रूरी है कि वे अपनी ज़रूरतों की कद्र करें और खुद से बेहतर सम्बद्ध होकर जियें.. अपना आत्मविश्वास को जगाएं.. मेरे अनुभव में यह देखने में आया है कि बहुत ‘भलेमानुषों’ में आत्मसम्मान और आत्मविश्वास की कमी होती है.. उन्हें अपने बंधनकारी विचारों को तोड़कर संकोच और चिंताओं से उबरना चाहिए.. यदि आपके साथ ऐसा हो रहा हो अपने भीतर घट रहे परिवर्तनों का ध्यानपूर्वक अवलोकन करें और आत्मविश्वास जगाएं.. फिर अपने काम को प्राथमिकता दें, अपने काम में व्यस्त रहे,  आपको जो कुछ भी करना अच्छा लगता हो उसे करने में भरपूर समय लगायें और दूसरों के लिए समय नहीं होने पर उन्हें खुलकर मना कर दें.. ऐसे में यदि आपके और दूसरों के बीच संबंधों में खटास भी आती हो तो इसमें कोई हर्ज़ नहीं है क्योंकि आप दूसरों को हद से ज्यादा अपना फायदा नहीं उठाने दे सकते.. शुरू में यह सब करना आसान नहीं होगा लेकिन आपके बेहतर निजी जीवन के लिए यह सब करना ज़रूरी है.. हर समय लोगों को खुश रखने के बजाय जब आप ज्यादा निश्चयात्मक (assertive) रुख अख्तियार कर लेते हैं तो आपके आसपास मौजूद लोग आपके समय और काम की कद्र करना सीख जाते हैं और आपसे अपना काम निकलवाने के लिए सोचसमझकर ही प्रयास करते हैं.. अब हो सकता कि लोग आपको परोपकारी या देवता स्वरूप संबोधनों से नवाज़ना कम कर दें.. लोग आपको रूखा या स्वार्थी भी कह सकते हैं, पर यह तय है कि इन सभी लेबलों से अलगआपके औरों से संबंध अधिक परिपक्व व प्रोफेशनल होंगे और आपके जीवन में सुधार होगा.. वैसे मैं भी कोशिशें कर रहा हूँ, आप भी करके देखो, अब खुद को बेहतरीन बनाते हैं...

22 जुलाई, 2020

String of Flowers भारत की कूटनीति

कुछ लोगों को भारत चीन के रिश्ते को लेकर मतिभ्रम है तो उन्हें कुछ तथ्यात्मक बात बताना एवं समझाना चाहता हूँ, अब ये फिजिक्स है या जियोग्राफी ये आप स्वयं निर्णय करना.. कुछ लोग विशेषकर एक लुप्तप्राय प्रजाति के चमचे मोदी की काबिलियत को कमतर आंकते हैं, तो सुनो ये नरेन्द्र मोदी है, जिसके दिमाग को विश्व के चुनिन्दा, चतुर नेता भी नहीं समझ पा रहे हैं और देश में बैठी तथाकथित वामपंथियों और उनके साथियों की फ़ौज गरियाती डोल रही है.. ये ऐसी जगह ले जाकर छोड़ेगा, जहाँ से वापसी भी संभव नहीं होगी... अब सुनो, मोदी ने हिंद महासागर में बसाए हैं, भारत के दो '''सीक्रेट आइलैंड'''.. इस खबर के बारे में हमारे देश में, ज्यादातर लोगों को पता नहीं है, दरअसल यह भारत का एक सीक्रेट मिशन है, जिसने चीन और पाकिस्तान जैसे दुश्मन देशों की नींद उड़ा रखी है.. भारत की समुद्री सीमा से दूर हिंद महासागर में 2 फौजी अड्डे स्थापित किए जा चुके हैं, मतलब यह कि भारतीय सेना ने दो द्वीपों पर अपना मिलिट्री बेस बनाया है, दुनिया के नक्शे में, इन दोनों द्वीपों की लोकेशन इतनी ज़बर्दस्त है कि चीन और पाकिस्तान दोनों परेशान हैं.. इनके नाम हैं '''अगालेगा''' और '''अजंप्शन आइलैंड'''.. इन द्वीपों पर भारतीय सेना आधुनिक हथियारों और साज़ो-सामान के साथ मौजूद है, बेहद खुफ़िया तरीके से, यहां भारतीय सेना खुद को मजबूत बनाने में जुटी है.. अगालेगा आइलैंड पर तो भारत ने बाकायदा एयरपोर्ट भी बना लिया है, जबकि अज़ंप्शन आइलैंड पर आने जाने के लिए हवाई पट्टी बनाई गई है, इन दोनों आइलैंड्स को भारत को सौंपे जाने पर चीन और यहां तक कि भारत के वामपंथी पत्रकारों ने बहुत अड़ंगेबाजी की थी.. इस सैनिक समझौते के खिलाफ़ कई झूठी खबरें उड़वाई गईं, आज इन दोनों द्वीपों पर क्या चल रहा है, इसका बाकी दुनिया सिर्फ अंदाजा ही लगा सकती है, क्योंकि यहां भारतीय सेना के अलावा और किसी को जाने की परमिशन नहीं है.. नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद संभालने के फौरन बाद, जिन देशों की यात्रा की थी, उनमें मॉरीशस और सेशेल्स भी थे.. सरकार ने औपचारिक तौर पर बताया कि ये दौरा दोनों देशों के आपसी रिश्ते सुधारने और काले धन पर बातचीत के लिए है, लेकिन असली मकसद कुछ और ही था.. इस यात्रा में मोदी ने सेशल्स और मॉरीशस को इस बात के लिए मना लिया गया कि वो अपने 1-1 द्वीप भारत को लीज़ पर देंगे, इसी दौरे में शुरुआती समझौते पर, दस्तखत भी कर लिए गए.. अगालेगा आइलैंड, मॉरीशस में पड़ता है, जबकि अजंप्शन द्वीप सेशेल्स देश का हिस्सा है, हिंद महासागर में ये वो लोकेशन थी, जिसके महत्व की चीन को भी कल्पना नहीं थी, डील पर दस्तखत होने के कुछ दिन बाद जब मामला मीडिया में आया, तो भारत में चीन के लिए प्रोपेगेंडा करने वाले पत्रकार और खुद चीन सरकार बुरी तरह बौखला गए.. यही वो समय था, जब मीडिया ने पीएम मोदी की विदेश यात्राओं की खिल्ली उड़ानी शुरू कर दी थी, क्योंकि उन्हें लग गया था कि पीएम मोदी इन यात्राओं के जरिए कुछ ऐसा कर रहे हैं, जिसे वो नहीं चाहते कि मीडिया को पता चले.. इन दोनों द्वीपों के लिए की गई संधियों को रद्द कराने के लिए, वहां के विपक्षी दलों के ज़रिए भी दबाव बनाए गए, इन्हीं का नतीजा था कि अज़ंप्शन आइलैंड के लिए आखिरी समझौते पर दस्तख़त जनवरी 2018 में हो सका.. अगालेगा आइलैंड मॉरीशस के मुख्य द्वीप से 1100 किलोमीटर दूर उत्तर में यानि भारत की तरफ़ है, ये सिर्फ 70 वर्ग किलोमीटर दायरे में है, इसी तरह सेशल्स का अज़ंप्शन आइलैंड, वहां के 115 द्वीपों में से एक है, ये सिर्फ़ 11 वर्ग कि.मी. की जमीन है, जो कि मेडागास्कर के उत्तर में हिंद महासागर में है.. अब ये भी समझो कि भारत अरब देशों से कच्चा तेल खरीदता है, ये तेल हिंद महासागर के रास्ते ही आता है, कच्चा तेल जिस रूट से आता है, वो उन जगहों से काफ़ी क़रीब है, जहां पर चीन बीते कुछ साल में अपना दबदबा बना चुका है, वो इन जगहों पर बैठे-बैठे जब चाहे भारत की तेल की सप्लाई लाइन काट सकता है.. ऐसे में भारत को समंदर में एक ऐसी लोकेशन की जरूरत थी, जहां से वो न सिर्फ़ अपने जहाजों को सुरक्षा दे सके, बल्कि ज़रूरत पड़ने पर, चीन की सप्लाई लाइन पर भी वार कर सके, ये वो रणनीति थी, जिसकी कल्पना चीन भी नहीं कर सका था.. उसे भरोसा था कि भारत की सरकारें, हिंद महासागर पर कब्जे की चीन की रणनीति को कभी समझ नहीं पाएंगी, चीन के रणनीतिकार अपने इस प्लान को '''स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स''' (मोतियों की माला) कहते हैं.. ये वो रणनीति है, जिससे उसने एक तरफ़ भारत को घेर लिया था, साथ ही अमेरिका के लिए भी मुश्किल हालात पैदा कर दिए थे.. पीएम मोदी ने इस ख़तरे को भांपते हुए, चीन के जवाब में '''स्ट्रिंग ऑफ फ्लावर्स''' (फूलों की माला) नाम से रणनीति बनाई, इसी के तहत सबसे पहले अज़म्प्शन और अगलेगा आइलैंड को लीज़ पर लिया गया.. ये दोनों द्वीप, आज चीन की आंखों में किरकिरी बने हुए हैं, क्योंकि वहां से भारत ने पूरे हिंद महासागर पर घेरा बना लिया है, फ़िलहाल इन द्वीपों पर बुनियादी ढांचा विकसित करने का काम तेजी से चल रहा है, दोनों द्वीपों पर कुछ लोग रहते भी थे, जिन्हें भारतीय सेना ने ही दूसरी जगहों पर घर बनाकर बसा दिया है, अब इन दोनों द्वीपों पर भारतीयों के अलावा अन्य किसी को जाने की इजाज़त नहीं है.. पिछले दिनों अमेरिका ने भारत को 22 गार्जियन ड्रोन देने पर, रज़ामंदी जताई है, इन ड्रोन से इस पूरे इलाके के समुद्र पर निगरानी रखी जाएगी, अमेरिका भी चाहता है कि हिंद महासागर के इस इलाके में चीन को बहुत ताकतवर न होने दिया जाए, लिहाज़ा वो भारत के साथ सहयोग कर रहा है.. दरअसल भारत से दूर दुनिया भर में मिलिट्री बेस बनाने का आइडिया पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का था, उनकी सरकार के वक्त इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू भी किया गया था। लेकिन इसी दौरान 2004 में वो चुनाव हार गए, इसके बाद आई मनमोहन सरकार ने इस पूरे प्रोजेक्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया.. 10 साल तक इस पर एक क़दम भी काम आगे नहीं बढ़ा, 2014 में जब नरेंद्र मोदी की सरकार बनी, तो उन्होंने सबसे पहले जो फाइलें क्लियर कीं, उनमें से एक इसके बारे में भी थी, वाजपेयी की सोच थी कि दुनिया में ताकतवर मुल्क बनना है, तो कुछ ऐसा करना होगा, जिससे कोई दुश्मन आंख उठाकर देखने की भी हिम्मत न करे.. अमेरिका, रूस, ब्रिटेन जैसे देशों ने पूरी दुनिया में ऐसे द्वीपों पर मिलिट्री बेस बना रखे हैं, वाजपेयी के वक्त ही ताज़िकिस्तान के फारखोर में भारत ने अपना पहला एयरफोर्स बेस स्थापित किया था, लेकिन हिंद महासागर पर दबदबे का उनका सपना अधूरा ही रह गया था, जिसे अब मोदी जी ने पूरा किया है.. अगालेगा और अज़ंप्शन आइलैंड पर फ़िलहाल सिर्फ भारतीय सेना को जाने की छूट है, ये दोनों द्वीप बेहद खूबसूरत हैं, चारों तरफ नीले समुद्र से घिरे इन द्वीपों पर अब तक बहुत कम आबादी रही है। सेना की कोशिश है कि यहां की कुदरती खूबसूरती को बनाए रखते हुए, यहां के बुनियादी ढांचे का विकास किया जाए... अबभी कुछ समझ नही आया हो तो थोड़ा दिमाग लगाओ और गूगल करो, किंचित उसका कहा समझ आ जाये और हाँ व्हाट्सएप्प से या यहाँ वहाँ से कुछ कॉपी पेस्ट मत उठा लाना, राष्ट्रहित में लिए फैसलों के सम्मान करना सीखो, राष्ट्र को सम्मान दो.. दुश्मन पड़ोसी या अपने यहां के किसी अनारकिस्ट की गुलामी से कुछ नही मिलेगा...
जय भारत...