ये भी एक विडम्बना है की नक्सालियों के द्वारा देश के कुछ नेताओं की हत्या की गयी और उसके लिए सभी छोटे से लेकर बडे नेताओं की प्रतिक्रिया फ़ौरन आ गयी, लेकिन तीन वर्ष पूर्व दंतेवाडा मै तीस सी आर पी ऐफ जवानो की नृशंस हत्या की गई किसी काग्रेसी या सोनिया गांधी के मुह से ऐक शब्द साहनभूति का कभी नही निकला। और तब क्या ये लोग देश के नागरिक या ईंसान नही थे? नेता की मौत लोकतंत्र पर हमला नहीं है लोकतंत्र पर हमला तो रोज होता है बलात्कार की हर घटना लोकतंत्र पर हमला है, हर एक घोटाला लोकतंत्र पर हमला है !क्या दिल्ली में में 7000 बेक़सूर सिखों का हुआ नसंहार लोकतंत्र पर हमला नहीं था? लोकतंत्र बचा कहाँ है लहूलुहान पड़ा हैअपनी अंतिम साँसे गिनता हुआ। एक नेता की मौत लोकतंत्र पर हमला बिलकुल नहीं है, हमारे देश के दिग्गज नेताओं की निष्ठां क्या सिर्फ उनकी पार्टी तक सीमित है ? उनकी पार्टी पर हमला देश की अस्मिता पर हमला है और स्वयं प्रधान मंत्री और सोनिया गाँधी तक जाकर उनसे मिलते हैं, ४ दिन पहले कश्मीर मैं भी आतंकी हमला हुआ और ४सैनिक मार दिए गए लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं, नक्सली हमले लगभग रोज़ होते हैं लेकिन आज वो आतंकी हमला क्यूँ हो गया ? जब खुद को लगती है न दर्द सिर्फ तभी होता है और महसूस भी होता है ...
27 मई, 2013
देश की अस्मिता पर हमला
ये भी एक विडम्बना है की नक्सालियों के द्वारा देश के कुछ नेताओं की हत्या की गयी और उसके लिए सभी छोटे से लेकर बडे नेताओं की प्रतिक्रिया फ़ौरन आ गयी, लेकिन तीन वर्ष पूर्व दंतेवाडा मै तीस सी आर पी ऐफ जवानो की नृशंस हत्या की गई किसी काग्रेसी या सोनिया गांधी के मुह से ऐक शब्द साहनभूति का कभी नही निकला। और तब क्या ये लोग देश के नागरिक या ईंसान नही थे? नेता की मौत लोकतंत्र पर हमला नहीं है लोकतंत्र पर हमला तो रोज होता है बलात्कार की हर घटना लोकतंत्र पर हमला है, हर एक घोटाला लोकतंत्र पर हमला है !क्या दिल्ली में में 7000 बेक़सूर सिखों का हुआ नसंहार लोकतंत्र पर हमला नहीं था? लोकतंत्र बचा कहाँ है लहूलुहान पड़ा हैअपनी अंतिम साँसे गिनता हुआ। एक नेता की मौत लोकतंत्र पर हमला बिलकुल नहीं है, हमारे देश के दिग्गज नेताओं की निष्ठां क्या सिर्फ उनकी पार्टी तक सीमित है ? उनकी पार्टी पर हमला देश की अस्मिता पर हमला है और स्वयं प्रधान मंत्री और सोनिया गाँधी तक जाकर उनसे मिलते हैं, ४ दिन पहले कश्मीर मैं भी आतंकी हमला हुआ और ४सैनिक मार दिए गए लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं, नक्सली हमले लगभग रोज़ होते हैं लेकिन आज वो आतंकी हमला क्यूँ हो गया ? जब खुद को लगती है न दर्द सिर्फ तभी होता है और महसूस भी होता है ...
04 मई, 2013
बोर्ड मेंबर का धन्दा
ये पैसा लेकर बोर्ड मेंबर बनाना कोई नयी बात नहीं है। ये सब काफी पहले से चलता आ रहा है। मैं भी कुछ ऐसे बोर्ड मेंबर्स को जानता हूँ जो यही काम करते हैं की कुछ पैसा लेकर लोगों को बेवकूफ बनाते हुए उन्हे किसी भी मंत्रालय मैं बोर्ड मेम्बर बनवा देते हैं जो की एक तरह से laisining करना ही है . आपको ढूँढने पर ऐसे ढेरों दलाल मिल जाएंगे जो की आपको लुभावने सपने दिखाते हैं जो दरअसल नेताओं के दलाल ही होते हैं। ये भी नेताओं का अपने चमचों को रिझाने और उनके द्वारा कमी करने का एक कहा जाए तो approved तरीका है। हर मंत्रालय में एक बोर्ड बनाया जाते था जिसका अर्थ था की जनता से लिए गए या समाज के कुछ प्रठिस्तित प्रतिनिधि लाकर उनके द्वारा सम्बंधित मंत्रालय के काम काज को सुधर जा सके और उनके सुझावों को लिया जा सके लेकिन अब ये सब न होकर ये एक हाई क्लास धन्दा बन गया है और अब बोर्ड मेम्बर बनानी के नाम पर सरेआम ये सब कुछ होता है, और हिंदुस्तान मैं सभी कुछ होता है और हमारी अंकों के सामने ही होता है लेकिन अगर कोई पकड़ा जाए तो चोर नहीं तो साहूकार तो है ही।
22 अप्रैल, 2013
समाज का बलात्कार
दिल्ली एक ऐसी जगह है जहां सभी धर्म, सम्प्रदाय, जाति, समाज, प्रान्त और प्रदेश के लोग आकर बसते हैं और दिल्ली इन सभी को सहर्ष अपना लेती है। लेकिन ये सभी लोग जो विभिन्न सम्प्रदाय और प्रान्त के होते हैं शायद इसको नहीं अपनाते और इसको अपनी कर्मभूमि न मान कर इसके साथ अन्याय करते हैं। आये दिन होने वाली घटनायें, अपराध, बलात्कार और कितने ही और जघन्य अपराध जो यहाँ आये दिन होते हैं उनका सूत्र हमेशा किसी दूसरे प्रान्त या प्रदेश से जुड़ता है और खासकर वो लोग जो अपने परिवार को छोड़ कर काम काज की तलाश में दिल्ली मे रहते हैं अपने घर परिवार से दूर और अपनी सेक्स के प्रति कुंठा के परिणामस्वरूप ऐसे किसी अपराध का हिस्सा बन जाते हैं और अपनी दबी हुई कुंठित भावनाओं को एक विभत्स रूप दे बैठते हैं जिसका शायद वो परिणाम नहीं जानते। अक्सर ये लोग समाज के उस वर्ग से आते हैं जिनको क़ानून या सामजिक सोच से कोई लेना देना नहीं होता और ये अपराध की वो श्रेणी होती है जिसमे कोई पढाई लिखाई या सज़ा का उनके लिए कोई महत्व भी नहीं रह जाता। यही हाल यहाँ की सुरक्षा व्यस्था और पुलिस का है, क्यूंकि इस महकमे के अधिकतर अफसर और कर्मचारी भी दूसरे प्रान्त प्रदेश के होते हैं और उनमे भी लोगों के प्रति और समाज के प्रति एक अलग दृष्टिकोण होता है। और विभिन्न प्रान्त के होने के कारण उनमे आपसी सामंजस्य की कमी रहती है जिसका खामियाजा एक आम इंसान को भुगतना पड़ता है। इस सबके लिए व्यस्था बदलाव की ज़रुरत है निचले और बडे दोनों स्तर पर लेकिन जो बदलाव करने बैठे हैं वो भी इसी मिश्रित व्यस्था का हिस्सा है जो अपने आप को एक भारतीय न मान कर विभिन्न जाती और धर्म मैं अपने को बांधे बैठे हैं और जब तक ये सिलसिला चलेगा तब तक रोज़ यूँ ही बलात्कार होते रहंगे। बलात्कार समाज का भी, कमज़ोर व्यस्था का भी, और इंसान का भी ....
16 मार्च, 2013
सरकार की प्रतिक्रिया
कितने कमाल की बात है की भारत सरकार ने एक बार फिर पाकिस्तान की कडे शब्दों मैं निंदा की है संसद में भी सर्वदलीय पाकिस्तान को कडे शब्दों में जवाब दिया गया है और लोक सभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने तो ये भी कहा है की कश्मीर पूरा हमारा है पाक अधिकृत कश्मीर भी, कमाल की बात है न की हम बातें तो करते हैं, दावे भी करते हैं लेकिन अन्तराष्ट्रीय नक्शों में कश्मीर आज भी पाकिस्तान के पास है और इसका कोई विरोध नहीं करता, यहाँ तक की अरुणाचल भी चीन के अधीन दिखाया जाता है लेकिन हम सिर्फ कागजों में ही विरोध कर सकते हैं क्यूंकि हम असल में कागज़ी शेर ही हैं। पाकिस्तानी हम पर बार बार हमला करते हैं, हमारे सैनिकों के सर काट कर ले जाते हैं, हमारे घर मैं बैठे हुए उनके चमचे उनका खुल कर साथ देते हैं लेकिन हमारे नेता उन सैनिकों की शहादतों की चाँद रुपियों में कीमत लगा कर बात को दबा देते हैं और येही इस देश की विडम्बना है की एक चूहा सा देश जिसका अपना कोई अस्तित्व नहीं है वो भी हमारे कंधे पैर हाथ रख कर हमारे कान मैं मूत जाता है और हम न्यूज़ चैनलों पर बैठ कर बड़ी बड़ी बातें कर लेते हैं और बयां दे देते हैं और घर बैठ कर अपने कश्मीर को अपने नक्शों मैं देख कर खुश हो लेते हैं घर बैठ कर और खुद नक्शा बना कर तो मैं पूरी दिल्ली का मालिक हूँ पर दरअसल मैं कश्मीर वो त्रिशंकु बन गया है जो कहीं का भी नहीं रहा है ...
15 मार्च, 2013
16 की उम्र मैं सेक्स
ये भी बदनसीबी है इस देश मैं की आपको वोट डालने का अधिकार, ड्राइविंग करने का अधिकार, शादी करने का अधिकार ,शराब पीने का अधिकार और यहाँ तक की एक वयस्क फिल्म देखने का अधिकार भी 18 साल की उम्र के बाद मिलता है लेकिन सरकार ये समझती है की इन सभी से ज़याद जल्दी और ज़रूरी सेक्स करना है जिसके लिए आप सिर्फ 16 साल के होने चाहियें ... यानी एक 16 साल के बच्चे को सेक्स की समझ और ज़रूरत बाकी सभी चीज़ों से पहले है, सरकार के पास ये रोज़ रोज़ के बलात्कारों का ये जवाब है। अब ये समझ नहीं आता की हम लोग किस भारत मैं रहते हैं और इसकी सभ्यता और संस्कृति का बेडा गर्क क्यूँ होता जा रहा है ..
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