माँ बाप जाने कितने सपने संजोये और कितने अरमानो के साथ अपने बच्चे के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए उसे बड़ा अफसर बनाने के लिए अपने से सकड़ों हज़ारो मील दूर भेजते हैं वो बच्चा अपना भरा पूरा आंगन छोड़ कर दिल्ली जैसे शहर मे आकर 10×10 फुट के कमरे का 12-15 हज़ार किराया भरते हैं, जहां मकान मालिकों का कार्टेल किराया बढ़ाए रखता है और फिर चाहे वहां पढ़ते रूम पर बैठकर ऑनलाइन वीडियो से ही हैं.. जिनके बच्चे आईएएस बनने आए थे वो आज लाश बन गए.. उन माता पिता का दर्द ये नेता क्या समझेंगे .. दिल्ली में सरकार आम आदमी पार्टी की.. एमसीडी आम आदमी पार्टी के पास.. दिल्ली को पेरिस और वेनिस ना जाने क्या क्या बना देने का वादा इनका, न्यूयॉर्क टाइम्स में छपे फर्जी आर्टिकल के जरिए क्रेडिट सारा इनका लेकिन जब आम आदमी के बच्चे मर गए...तो जिम्मेदारी इनकी नहीं है। राहुल गांधी मुश्किल से एक ट्वीट कर पाए लेकिन आम आदमी पार्टी की सरकार या नेताओं से एक सवाल नहीं पूछ पाए.. अभी यही घटना किसी बीजेपी शासित राज्य में हो जाती तो इंडी और उनकी चिंदी मीडिया दोनों छाती पीट लेते.. और कितने उदाहरण चाहिए आपको ये समझने के लिए कि इनके लिए किसी की मौत, किसी के साथ हुआ बलात्कार, किसी के साथ हुई दुर्घटना तब तक मायने नहीं रखती जब तक ये इन नेताओं के काम ना आ सके। दो दिन बाद सब भूल जाएंगे.. केजरीवाल जी जेल से दिल्ली वालों का बेटा होने का सर्टिफिकेट खुद को दे देंगे... प्रेस कॉंफ़्रेंस मिनिस्टर फिर से मीडिया के सामने टेढ़ा मुँह बना कर पल्ला झाड़ देगी, उनकी चिंता आपका बच्चा नही केजरीवाल की शुगर है.. दिल्ली वाले तो फिर से फ्री पानी, फ्री बिजली के चक्कर में फिर उनकी सरकार बना देंगे.. सब फ्री फ्री में मस्त हो जाएंगे लेकिन जिनके बच्चे चले गए वो ना लौटने वाले... ऐसे ही कितने बच्चे ऐसी ही हालत में पढ़ने को मजबूर हैं.. दिल्ली की सरकार कुछ नहीं करती तो दिल्ली के एलजी ही करें, वो क्यों नहीं कुछ करते.. अगर सरकार निकम्मी है तो कोई तो कुछ करे.. सरकारें आएंगी जाएंगी.. जिनका बच्चा चला गया वो आएगा क्या..? इसे आपदा भी तो नही कह सकते, कुछ ही दिन पहले दिल्ली की मेयर ने छाती ठोक कर कहा था की हज़ारो मेट्रिक टन स्लिट निकाल दी है, दिल्ली वाले मॉनसून एंजॉय करेंगे.. लेकिन दिल्ली वालों के भाग्य मे तो रोना ही लिखा है, आरोप प्रत्यारोप के चलते कहीं किसी विभाग में लोग नहीं हैं, साधन नहीं है, शिकायत के बाद भी तीन घंटे तक कोई नहीं आया..इसीलिए नहीं आया होगा कि सूचना मिलने पर रिएक्ट करने की व्यवस्था और लोग नहीं होंगे.. बैसेमेंट् अवैध है तो भी विभाग को पता तो है किंतु एक दो को निलंबित कर दिया जाएगा उससे क्या होगा.. जिसका काम लाइसेंस देना है, निरीक्षण करना है, पूछ लीजिए दिल्ली या कहीं के लोगों से, बिना घूस के काम नहीं होता.. देश ने केवल फ़र्ज़ी बहस में एक दशक गुज़ार दिया.. किसी भी शहर का यही हाल है.. यह नागरिक को भी पता है कि उसके जीवन की क्या हालत है। करंट लग गया, छात्र की मौत हो गई। नाला भर गया तो छात्र मर गए। क्या बीत रही होगी परिवारों पर.. आप आवाज़ भी नही उठा सकते, आप तभी तक सुरक्षित हैं जब तक फ़र्ज़ी केस न हो,अस्पताल की नौबत न आए। जाँच होगी तो क्या हो जाएगा? ये हुआ कैसे? इसी का जवाब मिलने में मुख्यमंत्री बनाम एलजी होता रहेगा। इस मामले में भी किसी की ज़िम्मेदारी तय नहीं होगी। कोचिंग सेंटर में पहली बार दुर्घटना नहीं हुई है.. और आगे भी होती रहेंगी.. किंतु चिंता का विषय ये नही केजरीवाल की शुगर है...
29 जुलाई, 2024
22 सितंबर, 2021
श्राद्ध, आस्था एवं पर्यावरण संगरक्षण
एक कहानी सुनी थी एक भटके हुए नौजवान के द्वारा कि एक पंडितजी को नदी में तर्पण करते देख एक फकीर अपनी बाल्टी से पानी गिराकर जाप करने लगा कि.. "मेरी प्यासी गाय को पानी मिले।" पंडितजी ने कहा कि ऐसा करने से क्या होगा, तब उस फकीर ने कहा कि... जब आपके चढाये जल और भोग आपके पुरखों को मिल जाते हैं तो मेरी गाय को भी मिल जाएगा... इस पर पंडितजी बहुत लज्जित हुए।"
17 अगस्त, 2021
अटल बिहारी वाजपेयी "सदैव अटल"
"अटल" सरीखे व्यक्तित्व मरा नही करते, वो अ-टल हैं, अमर हैं, अनंत हैं.. भारत की राजनीति के वो युग प्रवर्तक नेता जिन्होंने गुलामी से लेकर आज़ादी से होकर आज के नए भारत के सूर्योदय तक को देखा और इसके सृजन में अपना अतुलनीय योगदान दिया। अटल जी की राजनीति में विपक्ष तो था किंतु उनका विरोधी कोई नही था, उनके राजनीतिक मतभेद थे किंतु किसी से मनभेद नही थे, ऐसे विरले ही होते है जिनके व्यक्तित्व की सराहना उनके प्रतिद्वंदी भी करते थे, मेरे हिसाब से तो भारतीय राजनीति में केवल अटल बिहारी बाजपाई जी और लाल बहादुर शास्त्री जी, ये दो प्रखर नेता ही ऐसे हुए है जिनको दिल से सम्मान मिला, उनका अनुसरण किया गया और शायद चाह कर भी कोई उनका विरोध नही कर सका। विलक्षण प्रतिभा के धनी, जिनका हर शब्द अपने आप मे एक कविता होता था, थोड़े में बहुत कुछ कहने वाले ...
मैं भी लिखने बैठा तो जाने क्या क्या उमड़ा था मन मे किन्तु सब शून्य से हो गया है, स्तब्ध और निशब्द सा हो गया हूँ, अटल जैसी शख्शियत मरा नही करती, वो दिलो में जिंदा रहती है, एक विचारधारा बन कर मन मष्तिष्क पर सदियों राज करती है...
विनम्र श्रद्धांजलि ...
15 जुलाई, 2021
जी ले ज़रा...
ज़रा सा ही फ़र्क़ होता है, लोगों के जिंदा रहने में और एक दिन ना रहने में... अभी कुछ ही दिनों में इतने सारे लोग जो गए हैं, क्या कभी इनको देखकर ऐसा लगा था कि ये यूंही चले जायेंगे, बिना कुछ कहे, बिना कुछ बताए.. उन सब से हमें कुछ ना कुछ लगाव था, कुछ शिकायतें थीं, कुछ नाराज़गी भी थी,जो कभी कही नहीं हमने और... कहा तो वो भी नहीं था जो इन सब इंसानों में बेहद पसंद था हमें.. फिर अचानक एक दिन खबर आती है, ये नहीं रहे, वो नहीं रहे... नहीं रहे मतलब, कैसे नहीं रहे ? कैसे एक पल में सब बदल जाता है.. वही सारे लोग जिनसे हम मिले थे अभी कुछ समय पहले, वे इतनी जल्दी गायब कैसे हो सकते हैं कि दोबारा मिलेंगे ही नहीं.. जैसे वे कभी कुछ बोले ही न थे, ना जिये,जैसे कोई बेजान खिलौना, जिसकी चाबी खत्म हो गयी हो.. कितना कुछ कहना रह गया उन सब को, कहीं घूमने फिरने जाना था उन सब के साथ, खाना भी खाना था, पार्टियां भी करनी थीं.. कुछ बताना था, कुछ कहना भी था उन सब को, बहुत सी बातें करनी थी फ़िज़ूल की ही सही, वो भी कहाँ हो पाया... सब रह गया,वो सब चले गए,न हम सब तैयार थे उन्हें रुख़सत करने के लिए, न वो सब तैयार थे रुख़्सती के लिए.. फिर ऐसे ही एक दिन हमारी भी खबर आनी है, एक सुबह कि वो फलाने नहीं रहे.. लोग अरे! कह के एक मिनिट खामोश होंगे फिर जीवन बढ़ जाएगा आगे.. इसलिए आओ तैयारी कर लेते हैं, सब नाराज़गी, शिकायतों और तारीफों का हिसाब चुका के रख लेते हैं... और ये आज ही कर लें क्योंकि कल भी कल के भरोसे और अनिश्चित है.. कल तक जाने और क्या क्या हो जाए.. ज़िंदगी हल्की हो जाएगी, तो आखिरी सांस पर मलाल का वज़न नहीं रहेगा... क्योंकि... ज़रा सा ही फ़र्क़ होता है, लोगों के जिंदा रहने में और एक दिन ना रहने में...
15 जून, 2021
श्री राम जी का मंदिर
उत्तरप्रदेश में चुनाव का शंखनाद हो चुका है, और इस चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा बनाकर श्रीराम मंदिर और योगी आदियत्यनाथ की साख पर सबसे ज़्यादा प्रहार किए जाएंगे क्योंकि दोनों ही हिंदुत्व के गौरव का प्रतीक हैं, और विपक्षी भेड़िए इन पर हिंदुओ को बांटे बिना जीत नही सकता... ये राजनीति की बिसात है, इसमें साम दाम दंड भेद के अलावा धार्मिक तुष्टिकरण भी महत्वपूर्ण है, और किंचित विपक्ष के पास यही एक मुद्दा बचा है.. जातीय व धार्मिक वोटो की जोड़ तोड़.. अब इसे यूँ समझिए कि यदि आप राम मंदिर के लिए भूमि अधिग्रहण को लेकर आपियों और साँपियों के झूठ के 24 घंटे में नंगा होने पर खुश हो रहे हैं तो थोड़ा रुक जाइये.... और उनके अगले स्टेप को भी जानिए.. अब जल्दी ही इस मामले में एक आत्ममुग्ध वकील भी कूदने वाला है जो भाजपाई भी है.. नाम को ही सही.. साथ ही वामी टीम यानी योगेंद्र यादव व प्रशांत भूषण भी कूदेंगे... राजनीतिक ज़मीन तो ये भी तलाश रहे हैं.. ये मामले को जमीन का विवाद बना वक्फ बोर्ड बनाम कोई अन्य का मुकदमा खड़ा किया जाएगा और अधिग्रहण के काम रोकने का प्रयत्न होगा या ट्रस्ट द्वारा जमीन की खरीद को अवैध बताया जाएगा... और कोर्ट के जरिये निर्माण कार्य को रोकने का प्रयत्न होगा... याद रहे निर्माण उस जमीन से कहीं ज्यादा हिस्सों पर होना है जिसपर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है, क्योंकि अयोध्या में केवल मंदिर निर्माण ही नही हो रहा, पूरी अयोध्या नगरी को सजाया जा रहा है.. अब सैफई के टीपू सुल्तान, केजरी टीम और पूरा वामपंथी गैंग किसी भी तरह हर हाल में 2022 से पहले चाहे एक दिन को रुके मंदिर निर्माण रोकना चाहते हैं ताकि अपने वोट बैंक को यक़ीन दिला सकें के सरकार बनने पर वे मंदिर नहीं बनने देंगे... इसी क्रम में अयोध्या में कोई हिंसक घटना भी होती है तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा...परंतु आप केवल और केवल अपने प्रभु श्रीराम पर आस्था बनाये रखिये, उन्होंने सही लोगों को चुना है अयोध्या के जीर्णोद्धार के लिए.. बाकी विपक्ष जो करे वो करने दीजिए, ये उनके राजनीतिक अस्तित्व का सवाल है और उसके लिए ये किसी भी हद तक जाएंगे सत्ता के लिए.. लिख लीजिए... जय श्रीराम