03 नवंबर, 2017

हिन्दू आतंकवाद की राजनीती

अभिनेता कमल हासन दरअसल अपने राजनितिक जीवन में एक ब्लॉकबस्टर शुरुआत चाहते हैं, दरअसल वो असमंजस में हैं की इसको मसालेदार कैसे बनाया जाये, इसीलिए जब वो कांग्रेस के नेताओं से मिलते हैं तो "GST और नोटबंदी" के खिलाफ बोलते हैं, जब केजरीवाल से मिलते हैं तो "भ्रष्टाचार" के खिलाफ लड़ाई बताते हैं, और अब कम्युनिस्टों से मिले तो उन्हें "हिन्दू आतंकवाद" याद आ गया .... हासन साहब फ़िल्मी किरदार और असल जीवन में फर्क होता है, आप लोगों के लिए एक आइडियल हो, जो आप कहते हो उसका लोगों पर प्रत्यक्ष या परोक्ष असर होता है, तो अपने थोड़े से राजनितिक फायदे के लिए आप देश, जनता और धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ ना करें। तालमेल बैठा कर बयानबाज़ी करें, राजनीती करो किसने रोका है लेकिन घटिया राजनीति मत करो...
आपको हिन्दू आतंकवाद दीखता है तो दुनिया भर में फैले असल आतंकवाद का क्या धर्म है वो भी बताओ, औकात पता चल जाएगी ....

12 जुलाई, 2017

आस्था की राजनीति

हम लोग उस देश में राम मंदिर बनाने का सपना देखते हैं जिसमे बनाना तो दूर मंदिर जाना भी कठिन है .... सवा सौ करोड़ की आबादी में से सौ करोड़ लोगों की आस्था पर बीस करोड़ लोगों के लिए की जाने वाली राजनीति हावी है। बहुसंख्यक होते हुए भी इस देश में अल्पसंख्यकों से भी बदतर धार्मिक हालात है, आस्था की एक डुबकी से लेकर अमरनाथ यात्रा तक सब आतंक के साये में रहता है और वो भी उस आतंक के जिसका आजतक धर्म या मज़हब नहीं पता चल सका। धर्म के नाम पर राजनीतिकरण उन्माद की स्थिति पैदा कर देता है। गाय को लेकर राजनीति धर्म को गर्त में लेकर जा रही है। मंदिर मस्जिदों की राजनीति आस्था पर प्रश्न खड़ा कर देती है। क्यों देश के राजनेताओं को विकास और तरक्की के रस्ते छोड़ कर धर्म के नाम पर की गयी राजनीति फायदेमंद दिखाई देती है ? कभी दही हांड़ी, कभी जलीकट्टू, कभी लाउड स्पीकर, कभी मंदिरो में प्रवेश के अधिकारों को लेकर और तो और भगवान् के अस्तित्व को लेकर लड़ाइयां लड़ी जा रही हैं। ये सब हमारी आस्था को तोड़ती हैं, धर्म के प्रति भी और लोकतंत्र के प्रति भी। विभिन्न प्रकार की सैकड़ों हज़ारों मान्यताओं वाले इस देश में आतंकवाद से बड़ा खतरा धर्म को अधर्म में बदलने का है।

16 जून, 2017

आओ चलो भीगें

बारिशों का मौसम है, नाव बनाओ और निकल पदों खुद को ढूंढ़ने, किसने रोका है... थोड़ा सा भीगने का मज़ा लो, हिचकोले खाने दो ज़िंदगी को... बारिशों के मज़े भी लेना चाहते हो तो छाता लेकर क्यूँ निकलते हो... कुछ बूंदे गिरेंगी भी तो ये मिटटी की काया गाल नहीं जाएगी, ब्रांडेड कपड़ो की कीमत काम नहीं हो जाएगी ... कूदो पानी में छपाक ... छींक आएगी तो घर पर एक कप अदरक और तुलसी की चाय पी लेना ... क्यों चिंता करते हो ....मौज लो ना ....

09 जून, 2017

शिवराज सरकार की नाकामी

सरकार को ये समझना चाहिए की राज करने की निति ही राजनीती कहलाती है, अपने मेनिफेस्टो के हिसाब से मत चलो, कई बार आउट ऑफ़ सिलेबस भी पेपर आ जाता है, सबको पता था की कांग्रेस जिसको सत्ता का खून मुह लग चूका है वो सत्ता जाने पर कितना बिलबिलाएगी, और आजकल तो सोशल मीडिआ पर बैठे सारी जानकारी मिल जाती है पर आपने तो अपनी सोशल मीडिया टीम में जबरदस्त जासूस बैठा रखे हैं जो बस दिन भर नेता जी का गुणगान करते रहते हैं.... माना ये विपक्ष या कांग्रेस की साजिश है अरे भाई विपक्ष का तो काम ही साजिश करना है लेकिन आप क्या झुनझुना बजा रहे हो .... कम से कम विपक्ष की साजिश का प्रो एक्टिव जवाब तो सोचो, ये मोदी जी के नाम पर इधर उधर से लाइक लेने छोड़ो और उनसे कुछ सीख लो क्यूंकि उन्ही के नाम पर तुम्हारी सरकार और देश चल रहा है ....

07 जून, 2017

मंदसौर किसान आंदोलन

मेरे एक मित्र ने लिखा की 5 किसानो को गोली मार दी वो क्या कोई दैवीय प्रकोप है या सरकार की साजिश तो मैने कहा दैविक प्रकोप से तो केवल 45 ट्रको में आग लगी है, लोगों और दुकानदारों को पीटा गया है, सरकारी सम्पत्ति को नुक्सान पहुँचाया है और ये सब तो वो बेचारा गरीब किसान कर रहा है जिसके घर में खाने को भी नहीं है और वो अपना क़र्ज़ भी नहीं चूका पा रहा, हाँ फसल को दिन रात अपने हांथो से सींच कर खुद ही वो उसको सड़क पर फेंक रहा है, उसके बच्चो को दूध मिले न मिले लेकिन वो सड़को पर दूध बहा रहा है, वो गाड़ी में बैठ कर आता है और मीडिया चैनल्स को इंटरव्यू देता है ....ये सब दैवीय प्रकोप से होता है हाँ जो 6 (किसान) मरे हैं वो पुलिस की ही गोली से मरे हैं .... दरअसल ये सेना नहीं थी ना जो चुपचाप पत्थर खा कर आ जाती ...
दोस्त जिस गरीब किसान की बात कर रहे हो न वो हमारा अन्नदाता है और उस बेचारे को तो फुर्सत भी नहीं है की वो इन सब बातों को जान सके, वो तो आजतक भी सरकारी योजनाओं के बारे में नहीं जानता और इसीलिए वो अपने क़र्ज़ से परेशान है लेकिन ज़रा सोच कर देखो की अगर ये अन्नदाता रूठ गया तो क्या होगा ....
ये गरीब किसान है और इस किसान का नाम "अमिताभ बच्चन" नहीं है ....