02 जुलाई, 2020

चीन पाकिस्तान और बुद्धिजीवी

देश आज अपने पड़ोसियों के कुकर्मो से त्रस्त है, एक तरफ आतंकवाद और एक तरफ ज़मीनी विवाद, सैकड़ों निर्दोष इसका शिकार हुए हैं, हमारी सेना ने सालों तक अपने हाथ बांध कर इसका सामना किया, आरोप झेले, शहादत दी पर उफ्फ तक नही की.. बड़े हमले हुए, आतंकी हमारे घरों तक घुस आए, लेकिन हमने सिर्फ अपने बचने की दुआ मांगी और सैनिकों की शहादत पर मोमबत्तियां जलायीं, पल भर की देशभक्ति जागी, वन्दे मातरम.. भारत माता की जय.. जय हिंद के नारे लगाए,चीनी समान का बहिष्कार किया, धरना प्रदर्शन किया फिर चाय समोसा खाये, हाथ झाड़े और अपने सुरक्षित घरों में वापस आ गए, पल भर के लिए हिन्दू, मुसलमान, जाट गुर्जर, सवर्ण दलित, उत्तर भारत दक्षिण भारत सब एक हो गया.. अच्छा लगा.. और फिर आया सबूत का कीड़ा, जो सब किये कराए पर पानी फेर देता है, जो काटता है, ज़हर उगलता है, पीड़ा देता है और फिर ज़ख्म का नासूर बना देता है.. ये राजनीति भी बड़ी कुत्ती चीज़ है, किसी की सगी नही होती, निहित स्वार्थ राष्ट्रहित से भी ऊपर और अवसरवादिता शहादत के सीने पर पैर रख कर सफलता की सीढ़ी बनती है, हमारे स्वाभिमान और अस्मिता को कुचलने वाले दुश्मन से भी गलबहियां की जाती है, अपनी ही सरकार, सेना और सुरक्षा प्रणाली से सवाल किया जाता है, उनकी गरिमा को चोट पहुंचाई जाती है, उनके सामर्थ्य पर प्रश्नचिन्ह लगाया जाता है.. और देश की जनता किंकर्तव्यविमूढ़ सी असमंजस की स्थिति में ठगी सी रह जाती है, एक विशेष नस्ल और भी है, अभी कुछ समय पहले जब देश के सैनिकों पर हमला किया जा रहा था.. तब ओ गॉड...ये क्या हो रहा था... नागरिकों का गुस्सा सातवें आसमान पर, सभी जगह सिर्फ बदला,पड़ोसी देश को सबक सिखाने और आतंकियों को जड़ से ख़त्म होने की चर्चा, पान और नाइ की दुकानों पर रक्षा नीति विशेषज्ञ अचानक उग आए थे, फेसबुक,ट्विटर और वाट्सएप अचानक युद्ध की मांग से गूंज उठा, ललकार, हूंकार,तलवार सब एक साथ खिंच गए नीली घाटी के मैदान में की अब पड़ोसी देश को सबक सिखाना होगा.. बहुत हुई शांति वार्ता, अब सिर्फ जंग ही उपाय है.. सेना...मोर्चा सम्भालो. टूट पड़ो दुश्मन पर, कर दो खात्मा एक एक का, हमें तुम पर गर्व है। मैंने कहा- "तुम लोग तो एक सैनिक के दुश्मन द्वारा पकड़े जाने या किसी सैनिक की शहादत पर भी इतने दुखी हो जाते हो, उनके परिवार की चिंता में तुमसे रोटी नहीं खाई जाती, उनके बच्चों के रोते चेहरे देखकर तुम्हें रातों को नींद नहीं आती युद्ध में तो हज़ारों सैनिक कुर्बान होंगे, तुम कैसे चैन से रह पाओगे?" "भगाओ साले को, देशद्रोही है कमीना, हमें जंग चाहिए, हम कुछ नहीं जानते।" क्योंकि वे सचमुच नहीं जानते कि यह वाक्य वे सत्य बोल रहे हैं, वे न सेना के बारे में कुछ जानते ,न आतंकवाद के बारे में और न रक्षा या विदेश नीति के बारे में, लेकिन ये हर विषय मे PhD हैं क्योंकि सोशल मीडिया विश्विद्यालय के पास-आउट हैं... युद्ध...युद्ध...युद्ध, बस युद्ध... आखिर जनता की चुनी हुई सरकार थी, जनता की आज्ञा शिरोधार्य, लेकिन अगर सरकार ने निर्णय लिया कि युद्ध किया जाएगा, औऱ साथ में आदेश निकाला कि- "सेना में सैनिकों की संख्या अपर्याप्त है और युद्ध में जीत हासिल हो इसके लिए अनिवार्य रूप से प्रत्येक घर से एक वयस्क व्यक्ति को सेना में सिर्फ युद्ध के लिए आना होगा, युद्ध के बाद उन्हें वापस घर भेज दिया जाएगा, अगर जीवित लौटे तो सबको मेडल मिलेंगे और मर गए तो शहीद का दर्जा, राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार भी होगा, सबको यह छूट होगी कि दुश्मनों के जितने सर काटकर लाना हो,ला सकते हैं। " आँयं... ये क्या ? लोगों ने आंखें मल-मल कर दोबारा आदेश को पढा, लेकिन दस बार आंखें रगड़ने पर भी इबारत नहीं बदली, अब हर घर से एक वयस्क सेना में अनिवार्य रूप से भर्ती होगा, एक साल के कठोर प्रशिक्षण के बाद युद्ध पर जाएगा, बस एक छोटी सी शर्त थी जो लोगों को घोर अंधेरे में आशा की किरण बनकर राह दिखा रही थी- सेना में उन्हीं लोगों को लिया जाएगा जो मेडिकली फिट होंगे, इसके लिए सरकारी डॉक्टर से फिटनेस सर्टिफिकेट लेना होगा । बस फिर तो अगले दिन से ही वीर जवानों का देश अचानक से लूलों, लंगड़ों, अपाहिजों, अंधों, रोगियों का देश बन गया, 18 साल के जिम जाते लड़के अचानक अस्थमा, दिल के रोग,हड्डी रोग,डायबिटीज,मिर्गी के पेशेंट बन गए, सरकारी डॉक्टरों के दिन एक दिन में फिर गए, हर एक को सी ए की आवश्यकता पड़ने लग गयी, प्राइवेट डॉक्टरों ने याचिका दायर की कि उन्हें इस नेक कार्य से वंचित न रखा जाए शांति का टापू कहलाने वाले परिवारों में भाई-भाई के झगड़े हो गए, "तू जा भाई सेना में ,अभी तेरी शादी नहीं हुई। मेरे बच्चे पढ़ रहे हैं।  "जा बे भाईसाब, तेरी @##$$$ ...शादी नहीं हुई तो मर जाऊं क्या ?'तू जाएगा, नहीं ,तू जाएगा खून खच्चर मच गया, लठ्मलट्ठी , चिल्लमचिल्ली हो गई , घमासान हो गया, फेसबुक हाथ मे पिस्तौल तमंचे और असलाह लिए वीरों से भरा पड़ा था और अभी अभी 18 पूरे कर समस्त एडल्टोचित कार्य करने का लाइसेंस पाए नौजवान कलेक्ट्रेट के चक्कर काटने लगे कि कैसे भी ले-देकर दूसरा बर्थ सर्टिफिकेट बन जाये, अचानक सब गांधी भक्त हो गए, तभी एक संकट मोचक फेसबुक पोस्ट और ट्विटर पोस्ट आयी- " युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं, #SayNoToWar शांति से बैठकर हल निकाला जाए तो ही जड़ से समस्या दूर होगी। " दस हज़ार लाइक,बीस हज़ार कमेंट और शेयर की संख्या लाखों में, जिव्हा वीर फुस्स हो गए, सोशल मीडिया पर सनाका खिंच गया, इस वीरता परीक्षण के तीसरे दिन सरकार ने आदेश वापस ले लिया और आतंकवाद से निपटने पर मंथन करने लगी... दरअसल युद्ध को लेकर सरकार की अपनी योजनायें है, सेना की अपनी, विपक्ष की अपनी, सोशल मीडिया के जांबाज़ वीरों की अपनी, और हमारी अपनी, क्योंकि हमें अपनी सरकार और सेना पर भरोसा है... देश नही झुकने दूंगा.. किन्तु जनता की भी अपनी मजबूरी है, भक्ति और चमचागिरी की भी अपनी एक मजबूरी है और वैसे भी जनता का क्या है उसे तो बस सब्ज़ी के साथ धनिया मुफ्त मिलना चाहिए..