15 दिसंबर, 2018

दिल्ली की मजबूरी

एक मित्र को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, आज कुछ किन्नर आये वहां नाचने, यूँ ही बात चल निकली तो मैंने पूछा क्यों करते हो ये सब, इमोशनल हो गए और कहा, ईश्वर की मार है हम खुद तो बच्चे पैदा कर नही सकते इसीलिए दूसरों की खुशी में खुश हो लेते है और चंदा भी मिल जाता है, मैंने कहा "चंदा" ? तो बोले अब साहब उगाही भी तो नही कह सकते, कोई मंथली थोड़ी है जो मन बेमन देनी ही पड़ेगी.. दूसरों की खुशियों में नाचते गाते है और चंदा मांग कर अपनी मंडली चलाते हैं.. मैंने कहा लेकिन तुम लोगों का तो एरिया होता है तो बोले नही साहब हम तो एरिया चला कर शो करते हैं और फिर बेच देते है, लेकिन दिल्ली में अपना फिक्स एरिया है, और फिर खर्चे भी तो बहुत सारे है, ये गहने, सजना संवरना, घूमना फिरना, बीमारी का इलाज करवाने बाहर भी जाना पड़ता है, वैसे तो हमारे पास अपना भी डॉक्टर है लेकिन हम कुछ खास गुप्त रोग के इलाज के लिए बाहर भी जाते है.. तो साहब इस सबके लिए चंदा तो ज़रूरी है ना... फिर पूछा लेकिन लोग तुम्हे पैसा क्यों दें तो बोले साहब बदले में हम कितने सपने, कितनी दुआएं और कुछ मुफ्त की सलाह भी तो देते है बस लोग उसी में खुश हो जाते हैं , मैंने कहा लेकिन अगर कोई ना दे तो ? वो बोले साहब फिर हम तो नंगे हैं ही, उसे ऐसा बदनाम कर देते हैं कि वो याद रखे और फिर वो दे दे तो माफी मांग लेते है ... मैंने उस बारे में गौर से सोचा फिर ध्यान आया कि ऐसा ही तो है हमारी राजनीति में.. लेकिन अब कृपया इसको केजरीवाल से मत जोड़ना, वो बेचारा तो बीवी वच्चों वाला "मर्द" है...