22 अप्रैल, 2019

भगवा आतंकवाद एवं साध्वी प्रज्ञा

साध्वी प्रज्ञा ने ठीक कहा या गलत इसका आंकलन आप स्वयं करें, किसी महिला को आतंकवादी का तमगा दे कर पुरुष पुलिस वालों के द्वारा एक कट्टर अपराधी की तरह पीटना, प्रताड़ित करना और गाली गलौच एवं अभद्र भाषा का प्रयोग करना। फिर उस पर अनेक धाराओं में झूठे केस दर्ज करना, 9 साल शारीरिक एवं मानसिक प्रताड़ना देना, केवल इसलिए कि वो एक संगठन विशेष राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ी हुई थी और एक पार्टी विशेष कांग्रेस को अपनी साख बचाने के लिए एवं हिंदुत्व को नीचा दिखाने के लिए भगवा आतंकवाद की थ्योरी गढ़नी थी। अशोक चक्र विजेता शहीद हेमन्त करकरे जो इस केस पर काम कर रहे थे, जिनकी बनाई चार्जशीट पर स्वयं न्यायपालिका ने सवाल उठाया था, जो खुद इस हिन्दू आतंकवाद की थ्योरी पर काम कर रहे थे, जो खुद इस संबंध में ग्रह मंत्रालय को रिपोर्ट ना करके स्थानीय नेता दिग्विजय सिंह को रिपोर्ट कर रहे थे वो खुद इन षड्यंत्र का शिकार हुए। आश्चर्य की बात ये है कि जो ATS मालेगांव ब्लास्ट की जांच करते हुए गुजरात से होकर मध्य प्रदेश पहुंच गई वो अपनी नाक के नीचे बैठे मुम्बई हमले में गुनहगारों को नही सूंघ पाई, क्योंकि वो ISI ओर भारत मे उनके सहयोगियों के षड्यंत्र का शिकार हो चुके थे, क्योंकि वो पूरी ताकत से भगवा आतंकवाद की थ्योरी गढ़ने में लगे हुए थे, वो तो भला हो अशोक चक्र विजेता शहीद तुकाराम ओम्बले का जिन्होंने अजमल कसाब को ज़िंदा पकड़ा वरना टी ये भगवा आतंकवाद गढ़ा गया था, शहादत ये थी। रही बात मालेगांव ब्लास्ट की तो हमले का सूत्र एक स्कूटर जो साध्वी प्रज्ञा के नाम पर था, किन्तु क्या कोई साजिशकर्ता बम्ब ब्लास्ट में अपने नाम का रेजिस्टर्ड स्कूटर का इस्तेमाल करेगा, कोई मज़ाक है या किसी जासूसी उपन्यास की कहानी, हेमंत करकरे जो अपना डिनर कर रहे थे, शराब भी पी हुई थी अचानक मुम्बई हमले की जानकारी मिली, चल दिये और मारे गए, हो गयी शहादत, ठीक है, किन्तु उस महिला का क्या जिसने 9 साल सब कुछ झेला, वो उस पुलिस वाले को गाली भी ना दे, कोसे भी ना, उसकी व्यक्तिगत क्षति के बारे में सोचो, कोई कश्मीरी उस सेना के जवान को सल्यूट नही करता जिसने उसके आतंकी बेटे को मारा हो, ये उनकी व्यक्तिगत पीड़ा है, साध्वी प्रज्ञा ने तो ये सब झेला है वो तो बोलेगी फिर चाहे वो करकरे हो, दिग्विजय हो या फिर चिदंबरम...