कमाल की राजनीति है, अहम, अहंकार और महत्वकांक्षाओं के चलते नेता, इंसान और इंसानियत से परे एक परालौकिक सी दुनिया गढ़ लेते हैं, हर किसी को ये भ्रम हो जाता है कि वो ही राजनीति का किंग मेकर है, आम जनता अपने बीच से ही आम लोगो को अपना प्रतिनिधि चुनती है किन्तु यही प्रतिनिधि जीतते ही स्वयं को उसी जनता का भाग्यविधाता समझ बैठते है, फिर होता है लोकतंत्र के नाम पर खेल, सत्ता का खेल, राजनीतिक उठा पटक सत्ता की मलाई का, कीमत लगाई जाती है, बड़े बड़े पांच सितारा होटलों में, रिसोर्ट में अय्याशी के अड्डे खोले जाते है, बड़ी बड़ी लक्सरी गाड़ियां तो छोड़ो बस भी मर्सेडीस की लायी जाती हैं, कौन क्या पद लेगा, कौन सा कमाई वाला मंत्रालय कौन लेगा, किसका घोटाला दबाया जाएगा, किसका चिट्ठा खोला जाएगा.. भाजपा सत्ता प्राप्त कर नहीं पाई मुझे उसके दुःख से ज्यादा भाजपा ने अंत तक सत्ता गलत हाथों में न जाये उसके लिए जो संघर्ष किया उसका गर्व है.. शरद पवार ने अजित पवार के द्वारा डील करने की ही कोशिश की थी कि 37000 करोड़ के सिचाई घोटाले, सुप्रिया सुले ओर पवार की जांच एजेंसियों के द्वारा जांच को रोका जाए, लेकिन मोदी ने जांच एजेंसियों पर दबाव बनाने से मना कर दिया, इसीलिए अजित मीटिंग में नही गया, सोशल मीडिया में अफवाह उड़वाई गयी कि केस में क्लीन चिट दी गई है, लेकिन फिर स्वयं ED ने साफ कर दिया कि ऐसा कुछ नही होगा, जांच अपने तरीके से आगे बढ़ेगी, उसी के बाद अजित पवार ने इस्तीफा दिया और उसी मर्यादा को रखते हुए फडणवीस ने भी इस्तीफा दे दिया ये नैतिकता है... कूटनीति को कुत्तानीति कहकर उसका उपहास उड़ाने वालों की नैतिकता आज पुनः हिलोरे मारने लगी है आज सबको नैतिकता, आदर्श व् शुचिता जैसे शब्द अचानक से बड़े प्रिय लगने लगे हैं, रामायण में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम द्वारा बाली पर बाण चलाने के बाद यही सब कुछ बाली को भी याद आया था और उसने भी भगवान श्रीराम से नैतिकता की दुहाई देकर उनके आचरण पर प्रश्न किया था, तब श्रीराम का उत्तर था कि तुमने कब नैतिकता का पालन किया जो आज तुम उस नैतिकता की दुहाई दे रहे हो तुमने अपने भाई का राज्य छीन लिया उसकी पत्नी तक छीन ली और उसे राज्य से विस्थापित होने के लिए विवश कर दिया इसके बाद तुम्हारे द्वारा नैतिकता की बात करना पाखंड से अधिक कुछ नहीं.. फिर महाभारत में भी युद्ध की समाप्ति के बाद जब भीष्म बाणों की शैया पर थे और कृष्ण उनसे मिलने आए तो भीष्म से भी रहा ना गया और उन्होंने कृष्ण से प्रश्न कर ही दिया कि जिस प्रकार से मुझे, गुरु द्रोण, कर्ण और दुर्योधन को रणभूमि से हटाया गया क्या वह उचित था.. तब कृष्ण का उत्तर था आप अपनी प्रतिज्ञा की डोर से बंधे हुए हस्तिनापुर सिंहासन के साथ खड़े रहकर कौरवों द्वारा भीम को विष देने पर, लाक्षागृह में पांडवों को जलाकर मारने का षड्यंत्र रचने पर, द्यूतक्रीड़ा में छल से पांडवों का सब कुछ छीन लेने पर, कुलवधू द्रौपदी को भरी सभा में अपमानित करने पर और पांडवों को जबरन अज्ञातवास भेजने पर आप नैतिकता की अवहेलना कर उन्हें कौरवों के संग खड़े रहे अपनी प्रतिज्ञा से बड़े होने के कारण युद्ध भी आपने उसी अनैतिकता के प्रतीक कौरवों की ओर से किया ऐसे में नैतिकता के पालन का भार केवल पांडवों के शीश पर ही क्यों हो ? ऐसे अनेको उदाहरणो से इतिहास भरा पड़ा है, अटल बिहारी वाजपेई ने भी नैतिकता का पालन करते हुए मात्र 1 वोट से अपनी सरकार गिरते हुए देखी थी और भाजपा ने तो उसके बाद कई राज्यों और छेत्रिय दलों व् उनके नेताओं से धोखे खाए.. परंतु भाजपा जहां पर सत्ता में आई वहां विकास किया, केंद्र में आई तो राष्ट्र हित के कार्य किए, अटल बिहारी वाजपेई की सरकार हो या नरेंद्र मोदी की, एक भी घोटाले का दाग नहीं लगा, जबकि अन्य सरकारों ने घोटाले कर देश के खजाने लूटने में कीर्तिमान रच दिये, वहीं भाजपा में पूरे देश का विद्युतीकरण किया 10 करोड़ शौचालय बनवा दिए, सस्ते इलाज की सुविधा उपलब्ध कराई, गरीबों को आवास दिया, उनके घर गैस के चूल्हे लगवाए, आतंकवाद पर लगाम लगाई शत्रु पाकिस्तान को आर्थिक कंगाली की ओर धकेल दिया, पिछली सरकारों में 10% से अधिक रहने वाली महंगाई दर को नियंत्रित कर 4% तक लेकर आए, 11वें नंबर की अर्थव्यवस्था रही भारत को पांचवें नंबर पर ले आये, विदेशी मुद्रा भंडार अपने अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंचा दिया, नोटबंदी और जीएसटी जैसे कड़े व् सकारात्मक निर्णय लिए, 370 जैसा कलंक हटाया, राम मंदिर के निर्माण हेतु अपना अटॉर्नी जनरल सुप्रीम कोर्ट में उतार दिया और 500 सालों से संघर्ष कर रहे हिंदूओं के लिए राम मंदिर प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त किया, परंतु आज भी इन सभी सकारात्मक कार्यों की अवहेलना कर नैतिकता की बीन बजा रहे लोग भाजपा द्वारा पीडीपी संग गठबंधन पर छातियों पीटते दिख जाते हैं, और आज उन्हें वो शिवसेना नैतिक लग रही है जो भाजपा संग गठबंधन में चुनाव लड़ने के बाद मुख्यमंत्री पद की हवस में कांग्रेस और एनसीपी संग सरकार बना रही है, परंतु वह भाजपा अनैतिक लग रही है जिसने उसी एनसीपी संग गठबंधन कर सरकार बना ली, ऐसी दोहरे मापदंड वाली "नैतिकता" कहाँ से लाते हो महाराज ? जब सुभाष चंद्र बोस ने जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर से हाथ मिलाया था तब कांग्रेस और गांधी समेत कई अन्य लोगों ने भी ऐसे ही नैतिकता के प्रश्न उठाए थे, सुभाष चंद्र बोस का उत्तर था "अनैतिक रूप से भारत पर कब्जा कर बैठे अंग्रेजों से लड़कर भारत को स्वतंत्र कराने हेतु और भारत के हित के लिए तो मैं शैतान से भी हाथ मिला सकता हूं.... आज नैतिकता की दुहाई दे रहे उन महान विश्लेषकों, राजनीतिक विचारकों, बुद्धिजीवियों और ज्ञानियों को मेरा सुझाव है कि सत्ता में रहने पर भाजपा सरकार द्वारा किए गए कामों को देख लो, और अन्य सरकारों के किये कृत्यों से उनकी तुलना कर लो, उसके पश्चात ही नैतिकता की बीन बजाओ...