07 दिसंबर, 2019

बलात्कारियों को फांसी दो

हर साल औसतन 32000 बलात्कार देश मे होते है, उनमें से कुछ ही बदनसीब हैं जिनकी लड़ाई हमारे सामने आ पाती है, अनेक केस ऐसे हैं जिनमे बलात्कार की शिकार महिला का कानूनी प्रक्रिया से भी बलात्कार होता है, मानसिक शोषण होता है, शरीर के साथ साथ आत्मा तक छलनी हो जाती है, हमारी लचर औऱ लाचार कानूनी प्रक्रिया, न्याय प्रणाली, पैसे के लिए बिकते गवाह, सबूत, वकील, पुलिस सब मिलकर न्याय प्रक्रिया पर हमारा विश्वास तोड़ देते है, देश के इतिहास में आजतक केवल एक बलात्कारी को फांसी दी गयी थी, जानते हो कब ? 15 साल पहले 2004 में धनंजय चटर्जी को, क्या उससे पहले या बाद में बलात्कार नही हुए ? जिस निर्भया के नाम से सरकार ने महिला सुरक्षा के लिए विशेष कानून बनाया, निर्भया फण्ड बनाया आज भी वो निर्भया स्वयं अपने लिए न्याय के इंतज़ार में बैठी है, फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट बनाई गई किन्तु केवल न्याय प्रणाली अपने आप मे क्या करेगी, जब राज्य सरकारें बलात्कारियों के मानवाधिकारों के नाम पर फ़ाइल रोक के बैठ जाये, अपराध के मामले में पीड़ित से ज़्यादा अपराधी आश्वस्त होता है कि वो कानून की पेचीदगियों से बच जाएगा। आज जब पुलिस किसी अपराधी का एनकाउंटर करती है तो देशव्यापी खुशियां मनाई जाती है, देश की जनता अपराधी की धर्म, जाति को छोड़कर उसकी विकृत मानसिकता के कारण उससे घृणावश अपने आक्रोश को खुशियों में व्यक्त करती है, ऐसा ही तब जब किसी नेता को थप्पड़ पड़ता है तो होता है, आखिर क्यों ? क्योंकि अपराधियो का ऐसे सरे आम मारा जाना और नेताओं का थप्पड़ खाना दोनो ही आम जनता के आक्रोश को दर्शाते हैं, और इसके लिए हमारी कानूनी प्रक्रिया का दुरुस्त होना ज़रूरी है, जब एक आतंकवादी के लिए, या लोकतंत्र खतरे में होने की दुहाई देकर गठबंधन की सरकारें बनाने के लिए आधी रात को भी मिलार्ड को उठा कर कोर्ट खुलवाई जा सकती है तो न्याय पर भरोसा बनाये रखने के लिए आम लोगों के लिए भी इस प्रक्रिया को बदलने की ज़रूरत है, तभी समाधान होगा, अन्यथा देश को तालिबानी कानून की ज़रूरत महसूस होने लगेगी और सरकारों व न्यायपालिका से भरोसा उठ जाएगा। आज यदि एक निर्भया, या एक प्रियंका का विभत्स बलात्कार और हत्या हमारा इतना खून उबाल सकती है, सरकार के खिलाफ विरोध और विद्रोह प्रदर्शन करवा सकती है, तो सोचो देश के बंटवारे के समय लाखो निर्भया और प्रियंकाओं का बलात्कार हुआ, उन्हें नोचा गया, लूटा गया और ज़िंदा जला दिया गया... उंस समय के लोगों का भी खून खौला था और फिर भी लोग पूछते हैं नाथूराम गोडसे को गुस्सा क्यों आया था ? गांधी की हत्या क्यों हुई थी...