2019 के लोकसभा चुनाव के समय सातों सीटें जीतने का दावा करने वाले केजरीवाल ने हारने के बाद एक बयान दिया था कि " हम 48 घंटे पहले तक सातों सीटें जीत रहे थे लेकिन अचानक मुस्लिम वोट कांग्रेस की तरफ बंटने से सीन बदल गया" ये जो आज दिल्ली में भटके हुए नौजवान दंगा और आगजनी कर रहे हैं ये उसी ध्रुवीकरण का नतीजा है, इसकी शुरुआत इन्होंने संसद में कैब का विरोध करके की, इसकी एक अलग रूपरेखा तैयार की और फिर साजिशन दिल्ली चुनाव से पहले मुसलमानों को आप नेताओ द्वारा भड़काना, बरगलाना और दंगे करवा कर उनके समर्थन में आना ये सब उसी साजिश के तहत हुआ... प्लान तो इनका ये है कि इस दंगे में कुछ विशेष वर्ग के लोग हताहत हो और फिर उन्हें भी मुआवजे और सरकारी नौकरी के साथ पुचकारा जाए, ताकि मुस्लिम वर्ग का सिम्पथी वोट हांसिल किया जा सके.. यूँ तो कांग्रेस भी इसमें उनके साथ ही है क्योंकि चाहे कितना भी केजरीवाल अपनी सूरत दिखा दिखा कर या मुफ्तखोरी का लालच देकर दिल्ली वालों को लुभाने की कोशिश कर ले या फिर अब प्रशांत किशोर जैसे चुनावी रणनीतिकार का सहारा ले ले किन्तु अंतर्मन में वो भी जानता है कि इस बार सरकार में वापसी इतनी आसान नही है, इसीलिए वो एक बार फिर दबे पांव कांग्रेस के कंधे पर चढ़ने की कोशिश में लगा हुआ है और इस समय तो उसकी धुर विरोधी शीला दीक्षित भी अब नही है... यानी कांग्रेस और केजरीवाल दिल्ली में भाजपा को दूर रखने और अपना राजनीतिक अस्तित्व बनाये रखने की कवायद में लगे हुए है। अब ये दिल्ली की जनता को समझना है कि ये दंगो की राजनीति हमे कहाँ लेकर जा रही है, साम, दाम, दंड, भेद की राजनीति में पारंगत कांग्रेस भी केजरीवाल की आड़ में अपनी खोई ज़मीन तलाश रही है, अमानतुल्ला खान, इसहाक खान, मतीन अहमद, आसिफ खान जैसे लोग तो केवल इनका मोहरा हैं, और इनके प्यादे ये दंगाई जिनको लड़ने के लिए आगे किया जा रहा है और पकड़े जाने पर जमानती वकीलों की फौज दी जा रही है, किन्तु दिल्ली का अपना एक कल्चर है... "सानू की" और "सब चंगा सी"...