14 अगस्त, 2018

#WeAreWithArmedForces

हमारे देश की न्यायपालिका आज लगभग हर मुद्दे पर निर्णय ले रही है, कुछ सही तो कुछ गलत, कुछ राज हित मे तो कुछ राष्ट्र हित मे, सही है किंतु बात जब राष्ट्र की सुरक्षा की आती है तो क्या सेना की कार्यप्रणाली को जाने और समझे बिना उस पर भी उंगली उठाना सही है ? सेना अपनी कार्यवाही करते समय किसी राजनीतिक दल, धर्म, सम्प्रदाय या दुश्मन को नही देखती बल्कि अपने पीछे खड़े देशवासियों के प्रति समर्पित होती है। तो क्या अब ये निर्णय भी हमारी न्यायपालिका लेगी की किसको गोली मारनी है, किसको डंडा मारना है, किसको पत्थरबाजी करने देनी है या किसके हाथों पिटना है ? हर वो व्यक्ति जो देशद्रोही है वो इस देश का ओर इस सेना का दुश्मन है, और वो परिणाम भुगतेगा, ये न्यायपालिका नही बताएगी की कौन "भटके हुए नौजवान" है और कौन "आतंकवादी" , आज देश के इतिहास में पहली बार सेना के 300 कार्यरत अधिकारी न्यायपालिका से ये सवाल पूछेंगे की उनका अधिकार क्षेत्र क्या है ? वो किसके कहने पर कार्यवाही करेंगे ? वो मासूम पत्थरबाजों की और आतंकियों की पहचान कैसे करेंगे ? क्यों वो अपने ही देश मे विरोधाभास झेलते है , क्यों उनको कुछ दो कौड़ी के कश्मीरियों के हाथों बेइज़्ज़त होना पड़ता है, आज हो सके तो जज साहब को भी एक बार बा-इज़्ज़त किसी जीप में बैठा कर एक चक्कर लगवा ही देना और पूछना की क्या कार्यवाही होनी चाहिए ...
तिरंगे ने भी मायूस होकर सियासत से पूछा - ये क्या हाल हो रहा है....
मेरा लहराने में कम और कफन में ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है...

02 अगस्त, 2018

घुसपैठ का दर्द

मेहमान नवाज़ी में एक बुनियादी फर्क है, एक होते हैं मेहमान, जिनके लिए हम आज भी "अतिथि देवो भवः" कहते हैं.. फिर एक होते हैं शरणार्थी जो परिस्तिथि वश अपना सब कुछ खो कर शरण मांगते है और मानवता के नाते हम उन्हें अपनाते हैं.. और फिर होते है घुसपैठिये, जो गैर कानूनी तरीके से बॉर्डर पार करके या फिर तारों के नीचे से चोरी छुपे आकर हमारे बीच बस जाते हैं, उनकी मानसिकता मांगने की ना होकर छीनने की होती है, जो हम पर और हमारे संसाधनों पर कब्ज़ा करना चाहते हैं, उनका देश के प्रति देश वासियों के प्रति कोई लगाव या कृतज्ञता नही होती, वो हमारे देश की ओछी राजनीति के चलते हमारे भूभाग, संसाधनों एवं सरकारी योजनाओं तक का लाभ लेते है किन्तु राष्ट्र निर्माण में उनका योगदान केवल एक फर्जी वोटर के तौर पर होता है, वो भली भांति अपनी इस एहमियत को समझते है, ये इतना बड़ा राजनीतिक मुद्दा है जिसको हल करने के बजाए सालों तक पाला पोसा जाता है। यूँ भी कह सकते हैं कि ये एक बहुत बड़ी राजनीतिक इंडस्ट्री है, लेकिन क्या ये देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा नही हैं, इसी तरह के घुसपैठियों ने जो केवल 10% से शुरू हुए थे, कालांतर में पर्शिया जैसे देश को 100% इस्लामिक देश ईरान बना दिया, हमारे कुछ नेता राजनीतिक द्वेष के चलते सुरक्षा को ताक पर रख कर इन घुसपैठियों के समर्थन में गृहयुद्ध की धमकी देते है ताकि उनका वोट बैंक कायम रहे, राजनीतिक रोटियां सिकती रहे, ओर बंदरबांट चलती रहे...

26 जुलाई, 2018

दिल्ली और भुखमरी

भूख से तीन मासूम बच्चियों की मौत, ये सुन कर ओर सोच कर भी मन सिहर उठता है.. मतलब, ये समझ ही नही आता कि दुनिया की छटी सबसे बड़ी अर्थव्यस्था की राजधानी दिल्ली में भूख और कुपोषण से मौत हो रही है, आंकड़ो के अनुसार दिल्ली में 31% बच्चे कुपोषण का शिकार है, यानी लगभग 20 लाख बच्चे, लेकिन वो शायद किसी का वोट बैंक नही होते, तभी दिल्ली की सरकार जो वर्ल्ड क्लास सुविधाओं के दावे करते नही थकती, चिकित्सा और शिक्षा को लेकर बड़े बड़े दावे करती है उसी की नाक के नीचे दिल्ली का बचपन भूख से दम तोड़ रहा है, सिसोदिया का विधानसभा क्षेत्र, घटनास्थल उसके घर से केवल 4 किलोमीटर दूर, क्या वो 2 रु की रोटी से लेकर 20 लाख रु तक कि गाड़ी से इस दूरी को पाट पाएंगे, केंद्र सरकार जो 1रु किलो चावल, 2 रु किलो गेंहू देती है वो किसके गोदाम में जाता है वो ढूंढ पाएगी, दिल्ली को पेरिस तो बना दोगे, लेकिन पेरिस की इन गलियों में दम तोड़ती राजनीति का क्या करोगे? ऐसी दूर-घटनायें सोचने पर मजबूर करती है कि हम आखिर किस और जा रहे हैं, कहाँ है अन्नपूर्णा योजनायें, फ़ूड सिक्योरिटी, आम आदमी किचन, शर्म आती है कि हम क्या सपने देखते है और हकीकत से मुँह छुपाते है, रोज़ दिल्ली शर्मसार होती है, राजनीतिक बयानबाज़ी होती है, मेरे जैसे लिख कर रोष प्रकट करते है, लेकिन फिर से दिल्ली उसी ढर्रे पर लौट आती है, क्यों दिल्ली की चुनी हुई सरकार और दिल्ली का मालिक आरोप प्रत्यारोप व द्वेष की राजनीति छोड़ करअपनी जिम्मेदारियों का सही ढंग से वहन नही करता? या फिर मौत की ज़िम्मेदारी भी उसकी कीमत ओर राजनीतिक हैसियत से तय होती है..#HungerDeathsInDelhi 

25 जुलाई, 2018

पेट्रोल पंप का गड़बड़ झाला

कई बार हम लोग परिस्तिथि के हिसाब से समस्या का सही या गलत आंकलन कर लेते हैं, मेरे साथ भी हुआ, अभी 21 तारीख को ही मैंने जनक पुरी डिस्ट्रिक्ट सेण्टर स्थित पेट्रोल पंप से अपनी बाइक में 200 रु का पेट्रोल डलवाया, अब दरसल हीरो हौंडा पैशन है तो इतना ही पीती है, और वहां से निकल पड़ा, कुछ दूर चलते ही वो झटके खाने लगी लगा जैसे उसको हार्ट अटैक हुआ है लेकिन आम आदमी की समस्या है ना की हम अपने दिल पर हाथ रख कर समझा लेते हैं "All is Well" वही मैंने भी सोचा और समझया कुछ नहीं गैस बन रही होगी, आखिरकार उसने मुझे मेरी मंज़िल मेरे घर तक मुझे पहुंचा दिया, मैंने भी उसे छोड़ कर धन्यवाद किया और लगा बारिश का आनंद लेने, अगले दिन बिटिया को लेकर जाना था तो बाइक महारानी का हाल चाल पुछा तो लगा ठीक है, तो लेकर निकल लिए, लेकिन कुछ दूर चलते ही फिर वही दौरा पड़ा और अब हालत नाज़ुक हो चली, फ़ौरन लेकर मेकानिक के पास ICU में भर्ती करवाया, जांच हुई और मेडिकल रिपोर्ट में आया की पेट में पानी भरा हुआ है, चिंता हुई की बाइक महारानी ने तेल की जगह पानी पीना कब से शुरू कर दिया, कोई बात नहीं, इलाज की प्रक्रिया शुरू हुई और थोड़ी ही देर में तकरीबन 1 लीटर पानी बाहर आ गया, और मेरे साथ साथ इनकी जान में जान आ गयी, ICU का बिल चुकाया 780 रु, बड़ा दुःख हुआ और फिर मेकानिक से कारण पुछा तो दंग रह गया, पता चला की पेट्रोल पंप पर कुछ गड़बड़ झाला हुआ है, बस आग बबूला हो गया, और सीधा शिकायत इंडियन आयल और तेल मंत्रालय को कर दी, सौभाग्य मेरा की सुनवाई भी फ़ौरन हुई और कार्यवाही शुरू, अगले ही दिन बुलावा भी आ गया की घटनास्थल यानि पेट्रोल पंप पर पहुंचिए, हम भी फ़ौरनफ़ौरन सेसे पहले बाइक महारनी को लेकर पहुँच गए, अधिकारीयों ने जांच की प्रक्रिया शुरू की और विस्तार पूर्वक मेरी सभी शंकाओं को सुना और जांचा गया, मैं भी अचंभित सा और विस्मय की स्थिति में, कुछ सवाल जवाब करते हुए उस प्रक्रिया का हिस्सा रहा, खैर शिकायत के अनुसार वैसा तो कुछ नहीं निकला किन्तु जानकारी का इजाफा हुआ, और अधिकारीयों और पेट्रोल पंप मालिकों के व्यवहार एवं ग्राहक की संतुष्टि तक की गयी कार्यवाही अतुलनीय थी, पता लगा प्रदुषण को नियंत्रित करने के लिए सरकार द्वारा अब पेट्रोल में मिलाये जाने वाले एथीनोल की मात्रा 10% कर दी गयी है और वो पानी के संपर्क में आने से खुद पानी बन जाता है, ये मेरे लिए शोध का विषय है जो ज़रूर करूँगा, किन्तु सारी बातें ख़त्म होने के बाद जब वहां से विदा ली तो मन में ये शंका खड़ी रही की 10% अगर पानी होता भी है तो मेरी बाइक में तकरीबन सवा लीटर कहाँ से आया ? ये तो निकटवर्ती दुकानों पर मिलने वाला (खुला तेल) फास्टफूड भी नहीं खाती, चलो खैर मैंने भी इसके कान मरोड़े और घर को लौट आये, लौट के बुद्धू घर को आये नहीं कहूंगा क्यूंकि कुछ ज्ञान लेकर ही वापस आया था... खैर 780रु तो लगे मगर कुछ सीख भी लिया....

24 जुलाई, 2018

Mob Lynching (भीड़तंत्र)

लोकतंत्र और भीड़तंत्र, ज़्यादा फर्क नही है, बस भीड़तंत्र की पहचान नही है, और अक्सर होती भी नही है, भीड़ किसी भी रूप में हो सकती है, संगठित भी और छितरी हुई भी, और जैसे हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया होती है वैसे ही भीड़तंत्र है, बिना सत्य को जाने-पहचाने या विवेचना के ये तुरंत प्रतिक्रिया करती है, सभ्य भाषा मे इसे #MobLynching कहा जाता है, सदियों से ये होती रही है, कभी संगठित और कभी देखा देखी, ज़्यादा पुराने इतिहास में नही जाऊँगा, आज़ादी के बाद से ही ले लो, महात्मा गाँधी की हत्या की प्रतिक्रिया में ही सैकड़ों लोगों को कत्ल कर दिया गया, कश्मीर से पंडितों को मार कर निकाला गया, हत्याएं हुई, बलात्कार हुए, और संगठित भीड़तंत्र के द्वारा हुए, इंदिरा की हत्या के बाद हज़ारों सिखों का संगठित भीड़ तंत्र के द्वारा कत्ले आम हुआ, फिर वैसे ही गुजरात मे गोधरा की प्रतिक्रिया के स्वरूप दंगे हुए, लगभग हर माह देश के किसी ना किसी हिस्से में संगठित भीड़तंत्र द्वारा आगजनी, लूटपाट, हत्याएं जैसे जघन्य अपराध होते हैं जिन्हें हम आंदोलन का नाम देकर सभ्यता के दायरे में लाने का प्रयत्न करते हैं, आखिर क्यों हम और हमारी सरकारें इतनी चयनात्मक तरीके से भीड़तंत्र का विश्लेषण करते हैं ? क्यों हम जाति, धर्म, राजनीतिक मेहत्वाकांगशा, पार्टी पॉलिटिक्स, गाय, अंतरजातीय विवाह, बच्चाचोरी, अंधविश्वास और झूटी खबरों के नाम पर की जाने वाली हत्याओं को लेकर चयनित बयानबाज़ी, मीडिया कवरेज, या राजनीतिक मुद्दा बनाते रहेंगे, क्यों नही कानून और अदालतों को इस पर सख्ती से कदम उठाने चाहिए, क्यों सरकारों का लचर रवैया हमे उग्र होने या सोचने पर मजबूर करता है कि सरकार कहीं ना कहीं इसके लिए दोषी होने के दायरे में आती है, फिर क्यों हम किसी राज्य विशेष या सरकार विशेष के विषय मे चयनात्मक प्रतिक्रिया देते हैं, कानून का डर और सम्मान दोनो समान रूप से सभी के लिए ज़रूरी है, फिर वो चाहे कोई नेता हो, अभिनेता हो, आम नागरिक या फिर कोई भीड़तंत्र का हिस्सा...