हम लोग समस्याओं का अपनी सुविधानुसार वर्गीकरण कर लेते हैं, जैसे गुड टेररिज्म और बैड टेररिज्म की श्रेणी है। बेड टेरेरिज्म उस आतंकवाद को कहा जाता हैं, जब आतंकी हमले अमरीका और यूरोपियन देशों पर हो। तब समस्त दुनिया आतंक के खिलाफ एकजुट हो जाती हैं। जहाँ उन हमलों के सूत्र मिलते हैं, उन संगठनों एवं पोषक देशों पर तत्काल प्रतिबंध लगा दिये जाते हैं। तथा बिना किसी किन्तु परंतु के उन हमलों को मानवता के विरुद्ध मानकर उनपर कठोर कदम उठाए जाते है। क्योंकि वो "बेड टेरेरिज्म" हैं। इसके उलट गुड टेरेरिज्म से आशय उस आतंकवाद से है, जिसमें पीड़ित देश भारत और एशियन, अफ्रीकन जैसे देश हो। अतः इन देशों पर हुए आतंकी हमलों पर दुनिया तत्काल प्रतिक्रिया नही करती। खासतौर से भारत जैसे देशों में इन हमलों को जस्टिफाई किया जाता हैं। मसलन बुरहान गरीब था जैसे किन्तु परन्तु किये जाते हैं। क्योंकि ये "गुड टेरेरिज्म" हैं। और इसी दोगलेपन की वजह से आज भी आतंकवाद जयों का तयों कायम है।
अब ऐसा ही होता हैं "गुड पॉल्यूशन" और "बेड पॉल्यूशन".. जिसके कारण लगातार तीसरे वर्ष भी दीपावली के पटाखों पर बैन होने तथा इस वर्ष दीपावली पर फूटने वाले पटाखों में 40% कमी होने के बाबजूद प्रदूषण घटने की बजाए और बढ़ गया। गुड और बेड में आप समस्या की जड़ पर प्रहार नही करते अपितु टहनियों पर वार करके समय और संसाधन दोनो ही बर्बाद करते हैं। समस्याओं का वृक्ष सदैव हरा भरा रहता हैं। पिछले तीन वर्षों से भारत मे प्रदूषण के नाम पर यही गुड पॉल्यूशन, बेड पॉल्यूशन वाला खेल खेला जा रहा हैं। जिसमें प्रदूषण चिंतक, पर्यावरण प्रेमी से लेकर पूरा तंत्र शामिल हैं। उदाहरणार्थ दीपावली के पटाखो से होने वाला प्रदूषण बेड पॉल्यूशन हैं। अतः दीपावली आते ही समस्त प्रदूषण चिंतकों, पर्यावरण प्रेमियों द्वारा कोर्ट मे याचिकाएं लग जाती हैं। देशभर में दीपावली पर पटाखे न फोड़े के अभियान चलने लगते हैं। समस्त जनता और सूचना तंत्र भी एकजुट हो जाते हैं। अतः मिलार्ड भी सभी मुकदमे छोड़ तत्काल दीपावली पर पटाखे बैन कर देते हैं। क्योंकि ये "बेड पॉल्यूशन" हैं। इसके ठीक विपरीत क्रिसमस, नए साल पर फूटने वाले पटाखे एवँ दीपावली के आसपास खेतो में जलने वाली पराली से होने वाला प्रदूषण "गुड पॉल्यूशन" हैं। अतः इन्हें जस्टिफाई किया जाता हैं। मसलन क्रिसमस आस्था का सवाल हैं। पराली जलाना मजबूरी हैं इत्यादि।उल्लेखनीय हैं कि बेड पॉल्यूशन पर तर्क दिया जाता हैं:- जान ही नही रहेगी तो दीपावली क्या मनाओगे। लेकिन गुड पॉल्यूशन पर ये तर्क गायब हो जाता हैं। गुड और बेड के इस खेल में मूल समस्या कही खो जाती हैं। जैसे ठीक दीपावली पर दिल्ली मे प्रदूषण बढ़ने का एक बड़ा कारक पराली भी था। अतः पटाखे और पराली दोनो पर बैन होना चाहिये था। पराली जलाने के विकल्प खोजने थे। लेकिन पराली गुड पॉल्यूशन हैं। अतः सरकार द्वारा हलफनामे मे दिल्ली प्रदूषण इमरजेंसी का कारण पराली बताये जाने के बाबजूद, मिलार्ड तीन दिन से कानो में रुई और मुँह में दही ठूँस कर बैठे है। क्योंकि यह गुड पॉल्यूशन हैं।
प्रदूषण पर कैसे नियंत्रण किया जाता हैं ये चीन से सीखिए। एक समय चीन के शहर सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में गिने जाते थे। लेकिन चीन ने प्रदूषण को गुड और बेड में नही बांटा। उन्होंने जड़ पर प्रहार किया। शंघाई जैसे सर्वाधिक प्रदूषित शहर में उद्योगों को शहर से बाहर किया। फैक्ट्रीज में फिल्टर युक्त चिमनिया लगाई। पुराने वाहनों को तत्काल बन्द किया। साथ ही टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर शहर मे कुतुबमीनार से भी ऊँची चिमनी बनाई। जिससे धुंआ बाहर निकल गया। जिसका नतीजा ये निकला कि आज बीजिंग, शंघाई जैसे शहरों में प्रदूषण में आश्चर्यजनक रूप से कमी आ चुकी हैं। वही दूसरी औऱ दिल्ली मे प्रदूषण रोकथाम के नाम पर हम मात्र दीपावली के पटाखे बैन कर,अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर प्रसन्न हो रहे है। नतीजा आज दिल्ली गैस का चेम्बर बन चुकी हैं। अतः यदि सच मे हम दिल्ली के प्रदूषण के प्रति गम्भीर हैं, हम उसे कम करना चाहते है, तो सबसे पहले हमें राजनीतिक उठा पटक छोड़ कर प्रदूषण को "गुड पॉल्यूशन" और "बेड पॉल्यूशन" में बांटना बन्द करना होगा। दीपावली के साथ बिना किसी किन्तु-परन्तु के सभी त्योहारों क्रिसमस, नए साल, शब ए बारात पर पटाखे बेन करना होंगे। शीघ्र-अतिशीघ्र पराली जलाने का विकल्प ढूंढ जलाने पर बैन लगाना होगा। तथा चीन जैसे कोई टेक्निकल उपाय अपनाना होगा। अन्यथा प्रदूषण चिंतकों, पर्यावरण प्रेमियों के गुड पॉल्यूशन और बेड पॉल्यूशन के एजेंडे में उलझे रहे तो दिल्ली हमारे हाथ से निकल जायेगी...दिल्ली मर रही है....
अब ऐसा ही होता हैं "गुड पॉल्यूशन" और "बेड पॉल्यूशन".. जिसके कारण लगातार तीसरे वर्ष भी दीपावली के पटाखों पर बैन होने तथा इस वर्ष दीपावली पर फूटने वाले पटाखों में 40% कमी होने के बाबजूद प्रदूषण घटने की बजाए और बढ़ गया। गुड और बेड में आप समस्या की जड़ पर प्रहार नही करते अपितु टहनियों पर वार करके समय और संसाधन दोनो ही बर्बाद करते हैं। समस्याओं का वृक्ष सदैव हरा भरा रहता हैं। पिछले तीन वर्षों से भारत मे प्रदूषण के नाम पर यही गुड पॉल्यूशन, बेड पॉल्यूशन वाला खेल खेला जा रहा हैं। जिसमें प्रदूषण चिंतक, पर्यावरण प्रेमी से लेकर पूरा तंत्र शामिल हैं। उदाहरणार्थ दीपावली के पटाखो से होने वाला प्रदूषण बेड पॉल्यूशन हैं। अतः दीपावली आते ही समस्त प्रदूषण चिंतकों, पर्यावरण प्रेमियों द्वारा कोर्ट मे याचिकाएं लग जाती हैं। देशभर में दीपावली पर पटाखे न फोड़े के अभियान चलने लगते हैं। समस्त जनता और सूचना तंत्र भी एकजुट हो जाते हैं। अतः मिलार्ड भी सभी मुकदमे छोड़ तत्काल दीपावली पर पटाखे बैन कर देते हैं। क्योंकि ये "बेड पॉल्यूशन" हैं। इसके ठीक विपरीत क्रिसमस, नए साल पर फूटने वाले पटाखे एवँ दीपावली के आसपास खेतो में जलने वाली पराली से होने वाला प्रदूषण "गुड पॉल्यूशन" हैं। अतः इन्हें जस्टिफाई किया जाता हैं। मसलन क्रिसमस आस्था का सवाल हैं। पराली जलाना मजबूरी हैं इत्यादि।उल्लेखनीय हैं कि बेड पॉल्यूशन पर तर्क दिया जाता हैं:- जान ही नही रहेगी तो दीपावली क्या मनाओगे। लेकिन गुड पॉल्यूशन पर ये तर्क गायब हो जाता हैं। गुड और बेड के इस खेल में मूल समस्या कही खो जाती हैं। जैसे ठीक दीपावली पर दिल्ली मे प्रदूषण बढ़ने का एक बड़ा कारक पराली भी था। अतः पटाखे और पराली दोनो पर बैन होना चाहिये था। पराली जलाने के विकल्प खोजने थे। लेकिन पराली गुड पॉल्यूशन हैं। अतः सरकार द्वारा हलफनामे मे दिल्ली प्रदूषण इमरजेंसी का कारण पराली बताये जाने के बाबजूद, मिलार्ड तीन दिन से कानो में रुई और मुँह में दही ठूँस कर बैठे है। क्योंकि यह गुड पॉल्यूशन हैं।
प्रदूषण पर कैसे नियंत्रण किया जाता हैं ये चीन से सीखिए। एक समय चीन के शहर सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में गिने जाते थे। लेकिन चीन ने प्रदूषण को गुड और बेड में नही बांटा। उन्होंने जड़ पर प्रहार किया। शंघाई जैसे सर्वाधिक प्रदूषित शहर में उद्योगों को शहर से बाहर किया। फैक्ट्रीज में फिल्टर युक्त चिमनिया लगाई। पुराने वाहनों को तत्काल बन्द किया। साथ ही टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर शहर मे कुतुबमीनार से भी ऊँची चिमनी बनाई। जिससे धुंआ बाहर निकल गया। जिसका नतीजा ये निकला कि आज बीजिंग, शंघाई जैसे शहरों में प्रदूषण में आश्चर्यजनक रूप से कमी आ चुकी हैं। वही दूसरी औऱ दिल्ली मे प्रदूषण रोकथाम के नाम पर हम मात्र दीपावली के पटाखे बैन कर,अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर प्रसन्न हो रहे है। नतीजा आज दिल्ली गैस का चेम्बर बन चुकी हैं। अतः यदि सच मे हम दिल्ली के प्रदूषण के प्रति गम्भीर हैं, हम उसे कम करना चाहते है, तो सबसे पहले हमें राजनीतिक उठा पटक छोड़ कर प्रदूषण को "गुड पॉल्यूशन" और "बेड पॉल्यूशन" में बांटना बन्द करना होगा। दीपावली के साथ बिना किसी किन्तु-परन्तु के सभी त्योहारों क्रिसमस, नए साल, शब ए बारात पर पटाखे बेन करना होंगे। शीघ्र-अतिशीघ्र पराली जलाने का विकल्प ढूंढ जलाने पर बैन लगाना होगा। तथा चीन जैसे कोई टेक्निकल उपाय अपनाना होगा। अन्यथा प्रदूषण चिंतकों, पर्यावरण प्रेमियों के गुड पॉल्यूशन और बेड पॉल्यूशन के एजेंडे में उलझे रहे तो दिल्ली हमारे हाथ से निकल जायेगी...दिल्ली मर रही है....