11 अगस्त, 2024

सावन एवं शिव

 भगवान शिव का एक नाम नीलकंठ भी है.. समुद्र मंथन के समय निकले विष को लोक कल्याणार्थ भगवान शंकर पान कर गए। यहाँ पर एक बात बड़ी विचारणीय है कि भगवान शिव ने विष को न अपने भीतर जाने दिया और न ही मुख में रखा अपितु अपने कंठ में रख लिया। जीवन को आनन्दपूर्ण बनाने के लिए आवश्यक है कि जो बातें आपके लिए अहितकर हों आप उन्हें न अपने मुख में रखें और न अपने भीतर जाने दें अपितु भगवान नीलकण्ठ महादेव की तरह पचाना सीखें... यदि विषमता रुपी विष आपके भीतर प्रवेश कर गया है तो यह आपके जीवन की सारी सुख-शांति एवं खुशियों को जलाकर भस्म कर देगा.. यह विष आपके जीवन के सारे आनंद को नष्ट कर देगा। इसलिए जीवन में विषमता रूपी अथवा विषय रूपी जो भी विष है, इसे कंठ तक ही रहने देना, चित्त तक मत ले जाना,यही नीलकण्ठ महादेव प्रभु के आनंदमय स्वरूप का रहस्य है...  हर हर महादेव..

29 जुलाई, 2024

दिल्ली के बदनसीब UPSC छात्र

 माँ बाप जाने कितने सपने संजोये और कितने अरमानो के साथ अपने बच्चे के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए उसे बड़ा अफसर बनाने के लिए अपने से सकड़ों हज़ारो मील दूर भेजते हैं वो बच्चा अपना भरा पूरा आंगन छोड़ कर दिल्ली जैसे शहर मे आकर 10×10 फुट के कमरे का 12-15 हज़ार किराया भरते हैं, जहां मकान मालिकों का कार्टेल किराया बढ़ाए रखता है और फिर चाहे वहां पढ़ते रूम पर बैठकर ऑनलाइन वीडियो से ही हैं.. जिनके बच्चे आईएएस बनने आए थे वो आज लाश बन गए.. उन माता पिता का दर्द ये नेता क्या समझेंगे .. दिल्ली में सरकार आम आदमी पार्टी की.. एमसीडी आम आदमी पार्टी के पास.. दिल्ली को पेरिस और वेनिस ना जाने क्या क्या बना देने का वादा इनका, न्यूयॉर्क टाइम्स में छपे फर्जी आर्टिकल के जरिए क्रेडिट सारा इनका लेकिन जब आम आदमी के बच्चे मर गए...तो जिम्मेदारी इनकी नहीं है।  राहुल गांधी मुश्किल से एक ट्वीट कर पाए लेकिन आम आदमी पार्टी की सरकार या नेताओं से एक सवाल नहीं पूछ पाए.. अभी यही घटना किसी बीजेपी शासित राज्य में हो जाती तो इंडी और उनकी चिंदी मीडिया दोनों छाती पीट लेते.. और कितने उदाहरण चाहिए आपको ये समझने के लिए कि इनके लिए किसी की मौत, किसी के साथ हुआ बलात्कार, किसी के साथ हुई दुर्घटना तब तक मायने नहीं रखती जब तक ये इन नेताओं के काम ना आ सके। दो दिन बाद सब भूल जाएंगे.. केजरीवाल जी जेल से दिल्ली वालों का बेटा होने का सर्टिफिकेट खुद को दे देंगे... प्रेस कॉंफ़्रेंस मिनिस्टर फिर से मीडिया के सामने टेढ़ा मुँह बना कर पल्ला झाड़ देगी, उनकी चिंता आपका बच्चा नही केजरीवाल की शुगर है.. दिल्ली वाले तो फिर से फ्री पानी, फ्री बिजली के चक्कर में फिर उनकी सरकार बना देंगे.. सब फ्री फ्री में मस्त हो जाएंगे लेकिन जिनके बच्चे चले गए वो ना लौटने वाले... ऐसे ही कितने बच्चे ऐसी ही हालत में पढ़ने को मजबूर हैं.. दिल्ली की सरकार कुछ नहीं करती तो दिल्ली के एलजी ही करें, वो क्यों नहीं कुछ करते.. अगर सरकार निकम्मी है तो कोई तो कुछ करे.. सरकारें आएंगी जाएंगी.. जिनका बच्चा चला गया वो आएगा क्या..? इसे आपदा भी तो नही कह सकते, कुछ ही दिन पहले दिल्ली की मेयर ने छाती ठोक कर कहा था की हज़ारो मेट्रिक टन स्लिट निकाल दी है, दिल्ली वाले मॉनसून एंजॉय करेंगे.. लेकिन दिल्ली वालों के भाग्य मे तो रोना ही लिखा है, आरोप प्रत्यारोप के चलते कहीं किसी विभाग में लोग नहीं हैं, साधन नहीं है, शिकायत के बाद भी तीन घंटे तक कोई नहीं आया..इसीलिए नहीं आया होगा कि सूचना मिलने पर रिएक्ट करने की व्यवस्था और लोग नहीं होंगे.. बैसेमेंट् अवैध है तो भी विभाग को पता तो है किंतु एक दो को निलंबित कर दिया जाएगा उससे क्या होगा.. जिसका काम लाइसेंस देना है, निरीक्षण करना है, पूछ लीजिए दिल्ली या कहीं के लोगों से, बिना घूस के काम नहीं होता.. देश ने केवल फ़र्ज़ी बहस में एक दशक गुज़ार दिया.. किसी भी शहर का यही हाल है.. यह नागरिक को भी पता है कि उसके जीवन की क्या हालत है। करंट लग गया, छात्र की मौत हो गई। नाला भर गया तो छात्र मर गए। क्या बीत रही होगी परिवारों पर.. आप आवाज़ भी नही उठा सकते, आप तभी तक सुरक्षित हैं जब तक फ़र्ज़ी केस न हो,अस्पताल की नौबत न आए। जाँच होगी तो क्या हो जाएगा? ये हुआ कैसे? इसी का जवाब मिलने में मुख्यमंत्री बनाम एलजी होता रहेगा। इस मामले में भी किसी की ज़िम्मेदारी तय नहीं होगी। कोचिंग सेंटर में पहली बार दुर्घटना नहीं हुई है.. और आगे भी होती रहेंगी.. किंतु चिंता का विषय ये नही केजरीवाल की शुगर है...

22 सितंबर, 2021

श्राद्ध, आस्था एवं पर्यावरण संगरक्षण

 एक कहानी सुनी थी एक भटके हुए नौजवान के द्वारा कि एक पंडितजी को नदी में तर्पण करते देख एक फकीर अपनी बाल्टी से पानी गिराकर जाप करने लगा कि.. "मेरी प्यासी गाय को पानी मिले।" पंडितजी ने कहा कि ऐसा करने से क्या होगा, तब उस फकीर ने कहा कि... जब आपके चढाये जल और भोग आपके पुरखों को मिल जाते हैं तो मेरी गाय को भी मिल जाएगा... इस पर पंडितजी बहुत लज्जित हुए।"

यह मनगढंत कहानी सुनाकर वो इंजीनियर मित्र जोर से ठठाकर हँसने लगे और कहने लगा कि-.
"सब पाखण्ड है जी..!"
शायद मैं कुछ ज्यादा ही सहिष्णु हूँ... इसीलिए, लोग मुझसे ऐसी बकवास करने से पहले ज्यादा सोचते नहीं है क्योंकि, पहले मैं सामने वाली की पूरी बात सुन लेता हूँ... उसके बाद ही उसे जबाब देता हूँ... चलो खैर... मैने कुछ कहा नहीं... बस, सामने मेज पर से 'कैलकुलेटर' उठाकर एक नंबर डायल किया... और, अपने कान से लगा लिया. बात न हो सकी... तो, उस इंजीनियर साहब से शिकायत की.. इस पर वे इंजीनियर साहब भड़क गए. और, बोले- " ये क्या मज़ाक है...??? 'कैलकुलेटर' में मोबाइल का फंक्शन भला कैसे काम करेगा..???" ️तब मैंने कहा.... तुमने सही कहा... वही तो मैं भी कह रहा हूँ कि.... स्थूल शरीर छोड़ चुके लोगों के लिए बनी व्यवस्था जीवित प्राणियों पर कैसे काम करेगी ???
इस पर इंजीनियर साहब अपनी झेंप मिटाते हुए कहने लगे- "ये सब पाखण्ड है , अगर ये सच है... तो, इसे सिद्ध करके दिखाइए"... इस पर मैने कहा.... ये सब छोड़िए और, ये बताइए कि न्युक्लीअर पर न्युट्रान के बम्बारमेण्ट करने से क्या ऊर्जा निकलती है ?
वो बोले - " बिल्कुल ! इट्स कॉल्ड एटॉमिक एनर्जी।"
️फिर, मैने उन्हें एक चॉक और पेपरवेट देकर कहा, अब आपके हाथ में बहुत सारे न्युक्लीयर्स भी हैं और न्युट्रांस भी...! अब आप इसमें से एनर्जी निकाल के दिखाइए... साहब समझ गए और तनिक लजा भी गए एवं बोले- "जी , एक काम याद आ गया... बाद में बात करते हैं " और निकल लिए, कहने का मतलब है कि... यदि, हम किसी विषय/तथ्य को प्रत्यक्षतः सिद्ध नहीं कर सकते तो इसका अर्थ है कि हमारे पास समुचित ज्ञान, संसाधन वा अनुकूल परिस्थितियाँ नहीं है , परंतु इसका मतलब ये कतई नहीं कि वह तथ्य ही गलत है... अब क्योंकि, सिद्धांत रूप से तो हवा में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन दोनों मौजूद है.. फिर , हवा से ही पानी क्यों नहीं बना लेते ? वैसे ये भी संभव हुआ है.. पर यदि अब आप हवा से पानी नहीं बना रहे हैं तो... इसका मतलब ये थोड़े ना घोषित कर दोगे कि हवा में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन ही नहीं है... उसी तरह... हमारे द्वारा श्रद्धा से किए गए सभी कर्म दान आदि भी आध्यात्मिक ऊर्जा के रूप में हमारे पितरों तक अवश्य पहुँचते हैं...
सत्य और श्रद्धा से किए गए कर्म श्राद्ध और जिस कर्म से माता, पिता और आचार्य तृप्त हो वह तर्पण है। वेदों में श्राद्ध को पितृयज्ञ कहा गया है। यह श्राद्ध-तर्पण हमारे पूर्वजों, माता, पिता और आचार्य के प्रति सम्मान का भाव है। यह पितृयज्ञ सम्पन्न होता है सन्तानोत्पत्ति और सन्तान की सही शिक्षा-दीक्षा से.. इसी से 'पितृ ऋण' भी चुकता होता है...इसीलिए, व्यर्थ के कुतर्को मे फँसकर अपने धर्म व संस्कार के प्रति कुण्ठा न पालें..और हाँ.. जहाँ तक रह गई वैज्ञानिकता की बात तो.... क्या आपने किसी भी दिन पीपल और बरगद के पौधे लगाए हैं...या, किसी को लगाते हुए देखा है? क्या फिर पीपल या बरगद के बीज मिलते हैं ? इसका जवाब है नहीं... इसका कारण यह है कि प्रकृति ने यह दोनों उपयोगी वृक्षों को लगाने के लिए अलग ही व्यवस्था कर रखी है... जब कौए इन दोनों वृक्षों के फल को खाते हैं तो उनके पेट में ही बीज की प्रोसेसिंग होती है और तब जाकर बीज उगने लायक होते हैं... उसके पश्चात कौवे जहां-जहां बीट करते हैं, वहां वहां पर यह दोनों वृक्ष उगते हैं. और... किसी को भी बताने की आवश्यकता नहीं है कि पीपल जगत का एक ऐसा वृक्ष है जो round-the-clock ऑक्सीजन (O2) देता है और वहीं बरगद के औषधि गुण अपरम्पार है... अब हम श्राद्ध पक्ष में पीपल को भी सींचते हैं एवं साथ ही आप में से बहुत लोगों को यह मालूम ही होगा कि मादा कौआ भादो महीने में अंडा देती है और नवजात बच्चा पैदा होता है. तो, इस नयी पीढ़ी के उपयोगी पक्षी को पौष्टिक और भरपूर आहार मिलना जरूरी है.. शायद, इसलिए ऋषि मुनियों ने कौवों के नवजात बच्चों के लिए हर छत पर श्राघ्द के रूप मे पौष्टिक आहार की व्यवस्था कर दी होगी. जिससे कि कौवों की नई जनरेशन का पालन पोषण हो जाये...इसीलिए.. श्राघ्द का तर्पण करना न सिर्फ हमारी आस्था का विषय है बल्कि यह प्रकृति के रक्षण के लिए नितांत आवश्यक है.. साथ ही... जब आप पीपल के पेड़ को देखोगे तो अपने पूर्वज तो याद आएंगे ही क्योंकि उन्होंने श्राद्ध दिया था इसीलिए यह दोनों उपयोगी पेड़ हम देख रहे हैं... अतः.... सनातन धर्म और उसकी परंपराओं पे उंगली उठाने वालों से इतना ही कहना है कि.... उस समय भी हमारे ऋषि मुनियों को मालूम था कि धरती गोल है और हमारे सौरमंडल में 9 ग्रह हैं और उनका हमारे जीवन पर क्या प्रभाव है, साथ ही... हमें ये भी पता था कि किस बीमारी का इलाज क्या है... कौन सी चीज खाने लायक है और कौन सी नहीं...? आप आधुनिक बनिये अच्छी बात है परन्तु अपनी संस्कृति और आस्था को भी बनाये रखिये...

17 अगस्त, 2021

अटल बिहारी वाजपेयी "सदैव अटल"

 "अटल" सरीखे व्यक्तित्व मरा नही करते, वो अ-टल हैं, अमर हैं, अनंत हैं.. भारत की राजनीति के वो युग प्रवर्तक नेता जिन्होंने गुलामी से लेकर आज़ादी से होकर आज के नए भारत के सूर्योदय तक को देखा और इसके सृजन में अपना अतुलनीय योगदान दिया। अटल जी की राजनीति में विपक्ष तो था किंतु उनका विरोधी कोई नही था, उनके राजनीतिक मतभेद थे किंतु किसी से मनभेद नही थे, ऐसे विरले ही होते है जिनके व्यक्तित्व की सराहना उनके प्रतिद्वंदी भी करते थे, मेरे हिसाब से तो भारतीय राजनीति में केवल अटल बिहारी बाजपाई जी और लाल बहादुर शास्त्री जी, ये दो प्रखर नेता ही ऐसे हुए है जिनको दिल से सम्मान मिला, उनका अनुसरण किया गया और शायद चाह कर भी कोई उनका विरोध नही कर सका। विलक्षण प्रतिभा के धनी, जिनका हर शब्द अपने आप मे एक कविता होता था, थोड़े में बहुत कुछ कहने वाले ...

मैं भी लिखने बैठा तो जाने क्या क्या उमड़ा था मन मे किन्तु सब शून्य से हो गया है, स्तब्ध और निशब्द सा हो गया हूँ, अटल जैसी शख्शियत मरा नही करती, वो दिलो में जिंदा रहती है, एक विचारधारा बन कर मन मष्तिष्क पर सदियों राज करती है...

विनम्र श्रद्धांजलि ...

15 जुलाई, 2021

जी ले ज़रा...

 ज़रा सा ही फ़र्क़ होता है, लोगों के जिंदा रहने में और एक दिन ना रहने में... अभी कुछ ही दिनों में इतने सारे लोग जो गए हैं, क्या कभी इनको देखकर ऐसा लगा था कि ये यूंही चले जायेंगे, बिना कुछ कहे, बिना कुछ बताए.. उन सब से हमें कुछ ना कुछ लगाव था, कुछ शिकायतें थीं, कुछ नाराज़गी भी थी,जो कभी कही नहीं हमने और... कहा तो वो भी नहीं था जो इन सब इंसानों में बेहद पसंद था हमें.. फिर अचानक एक दिन खबर आती है, ये नहीं रहे, वो नहीं रहे... नहीं रहे मतलब, कैसे नहीं रहे ? कैसे एक पल में सब बदल जाता है.. वही सारे लोग जिनसे हम मिले थे अभी कुछ समय पहले, वे इतनी जल्दी गायब कैसे हो सकते हैं कि दोबारा मिलेंगे ही नहीं.. जैसे वे कभी कुछ बोले ही न थे, ना जिये,जैसे कोई बेजान खिलौना, जिसकी चाबी खत्म हो गयी हो.. कितना कुछ कहना रह गया उन सब को, कहीं घूमने फिरने जाना था उन सब के साथ, खाना भी खाना था, पार्टियां भी करनी थीं.. कुछ बताना था, कुछ कहना भी था उन सब को, बहुत सी बातें करनी थी फ़िज़ूल की ही सही, वो भी कहाँ हो पाया... सब रह गया,वो सब चले गए,न हम सब तैयार थे उन्हें रुख़सत करने के लिए, न वो सब तैयार थे रुख़्सती के लिए.. फिर ऐसे ही एक दिन हमारी भी खबर आनी है, एक सुबह कि वो फलाने नहीं रहे.. लोग अरे! कह के एक मिनिट खामोश होंगे फिर जीवन बढ़ जाएगा आगे.. इसलिए आओ तैयारी कर लेते हैं, सब नाराज़गी, शिकायतों और तारीफों का हिसाब चुका के रख लेते हैं... और ये आज ही कर लें क्योंकि कल भी कल के भरोसे और अनिश्चित है.. कल तक जाने और क्या क्या हो जाए.. ज़िंदगी हल्की हो जाएगी, तो आखिरी सांस पर मलाल का वज़न नहीं रहेगा... क्योंकि... ज़रा सा ही फ़र्क़ होता है, लोगों के जिंदा रहने में और एक दिन ना रहने में...