देश पर एक बड़ा लोकतांत्रिक खतरा मंडरा रहा है, इसको थोड़ा ऐसे समझना पड़ेगा कि विपक्ष आज अपने राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है, वर्तमान सरकार के ताबड़तोड़ निर्णय और राष्ट्र निर्माण के लिए उठाए गए निर्णायक फैसलों की वजह से भारत का गौरव बढ़ा है और भारतवासियों का सरकार के प्रति विश्वास भी, अब हुआ यूं कि विपक्ष ने देश को तोड़ने और गुमराह करने की भरपूर कोशिश की किन्तु सफल नही हो सकी तो अब उनके निशाने पर देश की लोकतांत्रिक व्यस्था है जिसको तोड़ने ओर सरकार की कार्यप्रणाली को नुकसान पहुंचाने के लिए अब लामबंद तरीके से देश की ब्यूरोक्रेसी और न्यायप्रणाली पर हमला किया जा रहा है, जिसके लिए पहले केंद्र में मंत्री और उनके विभागों पर हमला किया गया जो अच्छे परिणाम दे रहे थे, फिर देश की सेना पर तो हमले होते ही रहते हैं और विपक्ष के आंतरिक हमलों से ज़्यादा नुकसान होता है, देश की अर्थव्यस्था को तोड़ने, gst और नोटबन्दी को झुठलाने की भरसक कोशिश की गई, पेट्रोल डीसल के रेट बढ़वाए गए, रुपये की अंतराष्ट्रीय बाजार में गिरावट को निशाना बनाया गया, न्यायपालिका भी इसमें एक अहम रोल अदा कर रही है, इसका प्रमुख कारण है हमारी वर्तमान नौकरशाही जो कांग्रेस के ज़माने से ही उन्हीं की तर्ज़ पर काम कर रही है, और इन पर मोदी सरकार ने लगाम लग दी, परिणाम स्वरूप अब वो भी विपक्ष के समर्थन में आने लगे है, जो नही वो विपक्ष के निशाने पर है, आने वाले समय मे अजित डोवाल को भी सीबीआई ओर देश की सुरक्षा व्यस्था ओर देश की सुरक्षा एजेंसी से जोड़ दिया जाएगा, यानी देश के लोकतंत्र को तोड़ने के लिए प्रमुखतया न्यायपालिका, सुरक्षा एजेंसी, और नौकरशाही तीनो पर चौतरफा हमला किया जा रहा है, आने वाला संसद का शीत कालीन सत्र भी विपक्ष प्लान बनाकर ध्वस्त करना चाहता है। दरसअल, मोदी सरकार से एक बड़ी गलती ये हुई कि सरकार बदलने के बावजूद कई बड़े अधिकारी अपने स्थान पर बने रहे. मोदी सरकार ने उन्हें हटाया नहीं. अब यही लोग नासूर बनकर सरकार के खिलाफ काम कर रहे हैं. इसकी वजह ये है कि यूपीए के दौरान “Exchange Traded Currency Futures” की व्यवस्था को मजबूत बना दिया गया था जो अब भी चालू है. इस सिक्रेट गैंग की लुटियन मीडिया से काफी नजदीकियां है. ये सब एक ही थाली के चट्टेबट्टे हैं. इसलिए अखबारों में आर्टिकल के जरिए ये फैलाया जा रहा है कि देश की आर्थिक स्थिति बहुत खऱाब है. रिपोर्ट के मुताबिक रुपया को लेकर अफवाह फैलाने के काम में दिल्ली का एक थिंक टैंक सक्रिय है. मतलब साफ है कि यूपीए के समर्थित दिल्ली के नार्थब्लॉक और मुंबई के मिंट रोड में बैठे अधिकारी.. अपने आकाओं के कहने पर देश को आर्थिक संकट में फंसाने में जुटे हैं. इसका मकसद साफ है कि रुपये को गिराकर और स्टॉक एक्सचेंज में भूचाल लाकर ये साबित करना है कि मोदी सरकार फेल हो गई. ताकि, विपक्ष इसका फायदा उठा सके. भारत की तबाही पर राजनीतिक रोटी सेंकने में विपक्ष विदेश में भी खेल कर रहा है. कश्मीर पर मानवाधिकार संगठनों के रिपोर्ट बनाए जा रहे हैं. यूएन ह्यूनराइट कमीश्नर ऑफिस द्वारा कश्मीर रिपोर्ट एक उसका उदाहरण है. इस रिपोर्ट पाकिस्तानियों के साथ मिल कर नक्सली गैंग ने निकलवाया था. इस रिपोर्ट के फुटनोट में साफ साफ लिखा था कि सारी जानकारियां नक्सलियों और कश्मीरी अलगाववदियों के मानवाधिकार संगठन द्वारा मुहैया कराई गई थी. कांग्रेस पार्टी की मदद से पनपने वाला लेफ्ट लिबरल गैंग अब यूरोप और अमेरिका के सांसदों के बीच लॉबी कर रहा है. कुछ दिन में ये सांसद भारत के खिलाफ बयान देंगे. बताया जा रहा है कि कुछ सांसदों को पैसे भी दिए गये हैं. इन्हें मीडिया में खूब छापा और दिखाया भी जाएगा. इतना ही नहीं, विदेश के अखबारों में भारत के खिलाफ आर्टिकल लिखवाया जाएगा. मोदी सरकार एक दमनकारी सरकार है, प्रजातंत्र विरोधी सरकार है ये बात दुनिया भर में फैलाई जाएगी. देश और दुनिया में सरकार की छवि ऐसी बना दी जाएगी कि नरेंद्र मोदी सरकार नहीं चला पा रहे हैं. इसके बाद कोहराम शुरु होगा. जतीय दंगा, बंद, हड़ताल के साथ साथ नक्सलियों के हमले होंगे. झूठे आऱोप लगा कर संसद चलने नहीं दिया जाएगा. सरकार पर हिटलरशाही का आरोप लगाया जाएगा. जो लोग सबसे ज्यादा सरकार के खिलाफ बोलते हैं वो देश को बताएंगे कि कैसे बोलने की आजादी छिन गई है. विपक्ष ने देश को अस्त व्यस्त करने की तैयारी में जुटी है, और तो ओर अभी कुछ दिन पहले ही राहुल गांधी और कांग्रेस के कोर कमेटी मेंबर ट्वीटर के फाउंडर जैक से मिले और अब आगे की कार्यवाही बरखा दत्त और उसके गैंग को सौंपी गई है ताकि मोदी समर्थकों पर सोशल मीडिया में कैंची चलवाई जा सके और धड़ाधड़ उनके समर्थकों के एकाउंट बंद किये जा सकें, ये सब केवल साजिशन किया जा रहा है, सवाल ये है कि इसके जवाब में सरकार क्या करेगी? तो जवाब ये है कि सरकार इसका नीतिगत जवाब देगी किन्तु हमे देश के नागरिकों को सतर्क रहने की ज़रूरत है और इन विघटनकारी साजिशों से बचने की ज़रूरत है, विश्वास कीजिये और आंखें बंद करके मोदी पर भरोसा रखिये क्योंकि केवल यही विश्वास ही अब मोदी के साथ है और वो देश को झुकने नही देगा...
20 नवंबर, 2018
19 नवंबर, 2018
पंजाब, खालिस्तान और देश की राजनीती
पंजाबी भाषी लोगों के लिए एक अलग राज्य की मांग की शुरुआत पंजाबी सूबा आंदोलन से हुई थी. कह सकते हैं कि ये पहला मौका था जब पंजाब को भाषा के आधार पर अलग दिखाने की कोशिश हुई. अकाली दल का जन्म हुआ और कुछ ही वक्त में इस पार्टी ने बेशुमार लोकप्रियता हासिल कर ली. अलग पंजाब के लिए जबरदस्त प्रदर्शन शुरू हुए और अंत में 1966 में ये मांग मान ली गई. भाषा के आधार पर पंजाब, हरियाणा और केंद्र शाषित प्रदेश चंडीगढ़ की स्थापना हुई. 'खालिस्तान' के तौर पर स्वायत्त राज्य की मांग ने 1980 के दशक में जोर पकड़ा. धीरे-धीरे ये मांग बढ़ने लगी और इसे खालिस्तान आंदोलन का नाम दिया गया. अकाली दल के कमजोर पड़ने और 'दमदमी टकसाल' के जरनैल सिंह भिंडरावाला की लोकप्रियता बढ़ने के साथ ही ये आंदोलन हिंसक होता गया.जरनैल सिंह भिंडरावाला के बारे में कहा जाता है कि वो सिख धर्म में कट्टरता का समर्थक था. सिखों के शराब पीने, बाल कटाने जैसी चीजों के वो सख्त खिलाफ था. भिंडरावाले ने पूरे पंजाब में अपनी पकड़ बनानी शुरू की और फिर शुरू हुआ अराजकता का दौर.. ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद सिख समुदाय के लोग इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ जबरदस्त गुस्से में थे, कैप्टन अमरिंदर सिंह समेत कई सिख नेताओं ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया. खुशवंत सिंह समेत कई लेखकों ने अपने अवॉर्ड वापस कर दिए.. अगले दो सालो में इस ऑपरेशन से जुड़े इंदिरा गांधी, जनरल ए एस वैद, और तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या कर दी गयी.. अब आते हैं वर्तमान राजनीती और खालिस्तान के सम्बन्ध पर, वर्तमान में खालिस्तान ने अपनी जड़ें कनाडा,ब्रिटैन और जर्मनी मेंं जमाई हुई हैं, आम आदमी पार्टी जिसने पंजाब का चुनाव ही इनके दिए पैसों से लड़ा था इनका खालिस्तान को समर्थन जग जाहिर है, क्या कोई आपिया मेरी किसी बात को झुटला सकता है ? क्या सीसोदिअ के यूरोप ट्रिप के दौरान समीर ने खालिस्तानियों से पैसे का लेन देन नहीं किया था ? 2015 में गुरदासपुर हमला पंजाब चुनाव से पहले खालिस्तान की आपियों को समर्थन देने की शुरुआत थी, अपनी फ़िनलैंड यात्रा के दौरान सीसोदिआ खुद एक खालिस्तानी समर्थक के साथ रहा था, खालिस्तान की कनाडा की राजनीती में अच्छी पकड़ है और यहाँ तक की इनके दो मिनिस्टर तक है, इसीलिए इनके समर्थक कनाडा के प्रधान मंत्री जस्टिन तारदेओ का भारत आगमन पर विरोध हुआ था, क्यों पंजाब के ड्रग माफिया, खालिस्तान समर्थक गुट जिनका सीधा सम्बन्ध पाकिस्तान के लश्कर और जैश जैसे संगठनो से है क्यों वो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से चाहते हैं की किसी भी तरह पंजाब में आम आदमी पार्टी का संगठन खड़ा हो जाये, कुछ समय पहले जब आशुतोष अपनी "प्राइवेट" छुटियों पर यूरोप में था तब वो भी वो खालिस्तानियों के संपर्क में था, वो दबिंदर जीत सिंह सिंधु और रेखि से नीदरलैंड में क्यों मिला था? क्या लेन देन हुआ था ? याद है पंजाब चुनाव के समय केज्रीवाल ने खालिस्तानी आतंकी भुल्लर के माफीनामे के लिए राष्ट्रपति तक को पत्र लिखा था, क्यों ? अभी कल अमृतसर में निरंकारी मिशन पर हुए ग्रेनेड के पीछे भी खालिस्तान का ही हाथ है और इसका ध्यान भटकाने के लिए तुरंत आप के विधायक एच एस फुल्का इसका सम्बन्ध सीडी भारतीय सेना और सेना प्रमुख से जोड़ते हैं और पाकिस्तान, आई एस आई, और खालिस्तान को सेना के खिलाफ बोलने का मौका देते हैं, क्या कोई बताएगा की ये फुल्का अगर आम आदमी पॉर्टी से इस्तीफ़ा दे चूका ये है तो केज्रीवाल के साथ दुबई किस लिए गया था ? बहुत परतें खुलनी हैं इन देशद्रोहियों की .....
29 अक्टूबर, 2018
बेचारे श्री राम
कभी कभी इस देश के न्यायप्रणाली और न्यायपालिका दोनो पर संदेह होता है, क्योंकि कुछ मुद्दों को हम तोड़ मरोड़ देते हैं। जब सुप्रीम कोर्ट आधी रात को उठ कर एक आतंकी के लिए भी सुनवाई करता है तो न्यायपालिका पर भरोसा बढ़ जाता है, यही न्यायपालिका कुछ महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दों को छोड़ कर दीवाली के पटाखे, सबरीमाला, दही हांडी, जैसे मुद्दों पर भी तुरंत फैंसले लेती है किंतु तीन तलाक, जनसंख्या नियंत्रण, कॉमन सिविल कोड जैसे मुद्दे पर अलग रुख अख्तियार करती है और फिर राम मंदिर जैसे अति संवेदनशील मुद्दे को धार्मिक आस्थाओं से ऊपर ले जाकर राजनीतिक रंग दे देती है तो दर्द होता है, जिस राम नाम ने सरकारें पलट दीं, जो राम दुनिया को चलाते है आज वो स्वयं हिंदुत्व की उंगली पकड़ कर चल रहे हैं। दरअसल इस मुद्दे को उलझने ओर गरमाये रखने का काम जितना मीडिया, न्यायपालिका और हमारी बाबूगिरी ने किया है ये उतना ज्यादा पेचीदा हो गया है, अब ये बड़ी चालाकी से राम के अस्तित्व और जन्म स्थान की लड़ाई ना होकर केवल एक ज़मीन की लड़ाई बना दिया गया है, इसको न्यायपालिका भी चाहती है कि ये आने वाले चुनाव में चुनावी मुद्दा ना बने और इसीलिए बड़ी चालाकी से इसको आगे खिसकने में लगी हुआ है, क्योंकि फैंसला यदि मंदिर के पक्ष में आया तो कोलोजियम सिस्टम के पुचकारे हुए माननीय न्यायाधीश अपने आकाओं के प्रति वफादारी नही रख पाएंगे और यदि मोदी सरकार ने अध्यादेश के तरीके से मंदिर निर्माण की कोशिश की तो मोदी के किये हुए सभी कामों और उनकी छवि पर दाग लग जायेगा, दरअसल राम मंदिर बनाने का एक आसान तरीका भी है वो ये की मोदी सरकार मीडिया, न्यायपालिका और बाबूगिरी में थोड़ा सख्त हो जाये और देश की जनता आने वाले चुनाव में विपक्ष को धराशायी कर दे , बस फिर सभी रास्ते खुले हैं, लेकिन उसके लिए जितना भरोसा प्रभु श्री राम पर किया है उतना ही भरोसा नरेन्द्र मोदी पर भी करना होगा... जय श्री राम
12 अक्टूबर, 2018
#MeToo की सच्चाई
मैं महिलाओं का विरोधी नहीं हूँ किन्तु महिला सशक्तिकरण के दौर में अपने को एक अबला नारी के तौर पर पेश करना, या फिर उम्र के एक पड़ाव पर आकर जब आप मानसिक और शारीरिक रूप से कमज़ोर होने लगते हो तब अपनी दबी हुई कुंठा को निकाल लेना और उसे सार्वजनिक करके चरित्र हनन करने का मैं समर्थक नहीं हूँ। "तुम मेरे लिए ये कर दो और मैं तुम्हारे लिए ये करती हूँ" और फिर अचानक 20-30 साल बाद आपका आत्मसम्मान आपको झझकोर देता है और आपकी अंतरात्मा चीत्कार कर उठती है और आप #MeToo #MeToo चिल्लाने लगती हो तो ये गलत है। एक शशक्त महिला अपने ऊपर हुए अत्याचार का तुरंत जवाब देती है, वो 10-20 साल इंतज़ार नहीं करती। अगर ऐसा है तो आप अपनी कमज़ोरी को छुपा रहे हो, गुड टच और बाद टच का फर्क अगर आपको नहीं पता तो आप अपने आप से धोखा कर रही हो, तब डर कर अगर आपने समझौता किया या अपना काम निकाला तो उसका रोना आज क्यों ? शायद अपने स्टेटस या काम से समझौता नहीं करना चाहती थी आप, बल्कि आपने अपने चरित्र से समझौता किया और वहां पहुंची जहाँ आप पहुंचना चाहती थीं, अपने को अबला नारी बनाना आसान है लेकिन शक्ति स्वरुप में आकर कठोर निर्णय के साथ अन्याय का विरोध करना शायद मुश्किल। वैसे इस #MeToo कैम्पेन को हलके में नहीं लेना चाहिए, अब इसके पीछे की राजनीती को समझिए, दरअसल ये आंदोलन 2006 में एक अश्वेत महिला तराना बुर्के ने शुरू किया था, और इस चिंगारी को आग का रूप हॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री अली मिलानो ने एक साल पहले अक्टूबर 2017 में दिया, लेकिन इसे भारत आते आते एक साल लग गया, अब आप समझो की देश में एक अस्थिरता का माहौल बनाया जा रहा है, आप इसके समर्थन में लिखिए तो आप महिला सशक्तिकरण में सहयोगी हैं अन्यथा आप पर राष्ट्रवादिता का लेबल लगा दिया जायेगा और ब्लैकमेल किया जायेगा। याद रखिये ''ताड़का, शूर्पणखा, पूतना '' भी नारियाँ ही थी, जिन्हे मारने मे ईश्वर ने भी देर न लगाई, हालीवुड और विदेशों का चलन #MeToo का भसड़ अब भारत भी आ गया ..लेकिन निशाने पर कौन है ये सोचिये.. एमजे अकबर अपनी पत्रकारिता के 13 सालो तक नरेन्द्र मोदी और बीजेपी के सबसे बड़े आलोचक थे, मोदी के खिलाफ खूब जहर उगलते थे तब उन पर किसी भी महिला ने कोई आरोप नही लगाय ... लेकिन जैसे ही वो मोटा भाई के आबे जमजम से पवित्र हो गए और केंद्रीय मंत्री बन गए तो अब चुनावी वर्ष में 5 महिला पत्रकार उनके ऊपर आरोप लगा रही हैं कि उन्होंने कई बार उन्हें गलत तरीके से छुआ था, मतलब जब इन महिलाओं को छुआ था तब उन्हें नहीं पता चला कि उन्हें सही तरीके से छुआ जा रहा है कि गलत तरीके से लेकिन 20 साल 25 साल बाद अचानक इन महिलाओं को याद आने लगा फलाने ने उन्हें गलत तरीके से छुआ था, अब नाना पाटेकर और विवेक अग्निहोत्री जैसे लोगों को देख लीजिए यह लोग ट्विटर पर और दूसरे माध्यमों में वामपंथियों को जमकर एक्सपोज़ करते हैं तो उनके खिलाफ अचानक दो तीन महिलाएं सामने आती हैं और कहती है 25 साल पहले मेरे साथ ही उन्होंने गलत व्यवहार किया था, क्या कोई विपक्षी पार्टी का कोई नेता या अभिनेता इसमें सम्मिलित है, जिन कोंग्रेसियों के चर्चे और वीडियो दुनिआ ने चटकारे लगा कर देखे वो सब भीष्म पितामह हो गए, न मायावती का गेस्ट हाउस कांड, ना राहुल का सुकन्या देवी कांड, बॉलीवुड के शीर्ष अभिनेताओं के खिलाफ कोई है क्या ? संजय दत्त ने खुद अपने इंटरव्यू में कबूला की वो इंडस्ट्री के 300 से अधिक महिलाओं के साथ सम्बन्ध रखता है, कोई आयी? सलमान, शाहरुख़, जैसे अभिनेता क्या दूध के धुले हैं ? अभिनेत्रियां जब तक पैसा मिलता है तो हर प्रकार के सीन करती हैं, और समझौते करती हैं, राजनीती, पत्रकारिता, व्यापार, खेल जगत कुछ भी तो अछूता नहीं है इन सब से, किन्तु सोचनीय ये है की आज आपका किया गया खेल किसी के घर परिवार को उजाड़ सकता है, किसी का करियर ख़त्म कर सकता है, और इस सबके लिए आपको जो प्रसिद्धि मिलेगी भी वो दो कौड़ी से ज़्यादा की नहीं होगी..... माफ़ी चाहूंगा अगर मैंने किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाई तो.... किन्तु मर्द हूँ सही को सही और गलत को गलत लिखूंगा....
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