कल से देख रहा हूँ कि कुछ नमूने जो मोदी जी के राष्ट्र के नाम संबोधन पर टीवी पर लार टपकाते बैठे थे उनको अब कुछ मरोड़ उठ रही है, पहली रात तो करवटों में इसलिए कट गई की समझ ही नही आया कि 20 लाख करोड़ में शून्य कितने होते हैं, यहां तक कि प्रोफेसर गौरव वल्लभ भी भावशून्य हो गए, फिर ये समझ नही आया कि भूरी काकी के राज में जब इतने घोटाले कर दिए थे तो इतना पैसा कहां से आया, विस्तार पूर्वक समझूंगा तो भी किंचित समझ नही आएगा, क्योंकि मोदी जी इनकी नज़र में कोई अर्थशास्त्री तो है नही, किन्तु मेरी नज़र में वो एक मंझे हुए राजनीतिक अर्थशास्त्री हैं, अब ये इस बात पर बहस कर रहे हैं कि "Make in India" और "आत्मनिर्भर भारत" मे क्या अंतर है, तो सुनो चमचागणो, मेक इन इंडिया विदेशों से बड़े उद्योगों एवं मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स को भारत मे सशर्त लाने की एक पहल थी, जिसमे 80% तक क्षेत्रीय रोजगार को बढ़ावा देने का प्रावधान है, जिसमे क्षेत्रीय निर्माण कंपनियों से खरीदी का प्रावधान है, जिससे MSME सेक्टर को बढ़ावा दिया जा सके, रोजगार पैदा किया जा सके और आर्थिक विकास हो, औऱ अब आत्मनिर्भर भारत की ज़िम्मेदारी हम नागरिकों पर इसीलिए है कि हम भी अपने देश मे बनने वाली स्वदेशी वस्तुओं को अपने रोजमर्रा के जीवन मे उपयोग होने वाली सामग्रियों को अपने क्षेत्रीय निर्माता से लें ताकि क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीट उद्योगों को नई ऊर्जा मिले, उन्हें बढ़ावा मिले, उनको आर्थिक संकट से उबार सके एवं देश की अर्थव्यवस्था में सुधार हो सके, यहां क्षेत्रीय उद्योग से मेरा तात्पर्य MSME सेक्टर से ही है जो हमारा सूक्ष्म, लघु, कुटीर एवं ग्रह उद्योग है, किन्तु नासमझ लोग इसे बड़ी गाड़ियों, मोबाइल फ़ोन, इम्पोर्टेड ब्रांड्स से जोड़ रहे हैं, वैसे इन सभी चीज़ों की एहमियत शायद आप सभी को इस लॉकडाउन के दैरान समझ आ गयी होगी, रोलेक्स पहनने से भी आपका टाइम बदला नही, मेरसीडीज़ या ऑडी आपकी खड़ी ही रह गयी, महंगे ब्रांडेड कपड़े जूते वार्डरोब में ही पड़े रहे, किन्तु जीवित रहने के लिए ज़रूरी चीज़े सीमित ही थी, वो सभी हमे हमारे आसपास ही मिली, इसे समझो, अपने जीवन मे थोड़ा सा बदलाव लाओ, ज़रूरत एवं विलासिता के फर्क को समझो, अपने देश मे बनी वस्तुएं भी उतनी ही अच्छी है, और वो और भी अच्छी हो सकती है यदि हम उन्हें अपने जीवन मे अपना लें, हम स्वयं भी आत्म निर्भर बने, अपने देशवासियों को भी बनायें एवं देश को स्वावलंबन की और ले चले... आओ कदम बढ़ाएं...
14 मई, 2020
06 मई, 2020
दिल्ली की कोरोना राजनीती
दिल्ली पूरी तरह रेड ज़ोन में होते हुए भी लॉकडाउन में छूट के नाम पर जो मज़ाक दिल्ली वालों के साथ दिल्ली के मालिक अरविंद केजरीवाल ने किया है उसकी कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी ये समझना अभी मुश्किल है, केजरीवाल का कहना है कि दिल्ली वालों को कोरोना के साथ जीना सीखना होगा, किन्तु किंतनी जानो की कीमत पर इसका आंकलन किंचित उन्होंने नही किया.. सही भी है, पूर्व में भी अनेकों बड़ी महामारियों के खिलाफ हमने ज़िंदा रहने की लड़ाइयां लड़ी हैं, और उसकी बहुमूल्य कीमत भी चुकाई है... किन्तु ये महामारी अभी जाँच के दायरे में ही है, पूरी दुनिया इससे लड़ रही है.. किन्तु यहाँ राजनीति का अलग ही स्वाद एवं अलग ही स्तर है.. दिल्ली जैसे छोटा सा शहर आंकड़ो में अपने पड़ोसी प्रतिद्वंदियों से पिछड़ रहा है, बस किंचित यही बात केजरीवाल को खाये जा रही है... और फिर ऊपर से प्रधानमंत्री की अंतराष्ट्रीय बनती छवि उसके सीने पर ज़ख्म दे रही है, इसीलिए जनाब अब अपनी इटालियन ताई के कहने पर दिल्ली को आग में झोंकने को तैयार है, कीमत वो भूरी ताई स्वयं तय करेगी.. अब दिल्ली में काम काज, दुकानें, व्यवसाय एवं शराब के ठेके खोलने के बाद जो अफरा तफरी का माहौल बन गया है उसकी कीमत कौन चुकाएगा.. अब ये अपनी द्वेष की आग को बुझाने के लिए जल्दी ही यूपी एवं हरियाणा के मुख्यमंत्री को उनके राज्यों की सीमाएं खोलने को कहेगा ताकि दिल्ली में काम करने वाले सीमा पार से आ जा सकें.. और उसकी आड़ में ये इन दोनों राज्यों का कोरोना के आंकड़ों का गणित बिगाड़ सके.. दिल्ली में मुफ्त राशन एवं लाखो लोगो को मुफ्त भोजन के नाम पर करोड़ो का घोटाला कर चुके केजरीवाल को पैसे के लिए अब केंद्र सरकार पर दबाव बनाना है जिसके लिए उसने हर हथकंडे अपना लिए हैं... यहां तक कि बिजली कम्पनी को दी जा के वाली सब्सिडी का पैसा भी ये खा गया है जिसकी भरपाई अब वो bses लोगो को प्रोविजनल बिल भेज कर कर रही है, और इसकी आड़ में खुल कर धांधली हो रही है, ये दिल्ली की बिगड़ती हालात के लिए दोषारोपण की कहानियां भी तैयार कर चुका है, मरकज़ के खिलाफ खुल कर कुछ नही बोला, रमज़ान में नाम पर पुरानी दिल्ली में कानून व्यवस्था की धज्जियां खुद इसके विधायक उड़ा रहे हैं और तो और मौलाना साद को भी अमानतुल्ला के पास ज़ाकिर नगर या शाहीन बाग़ में ही छुपाया हुआ है, इसकी ओछी राजनीति की बलि दिल्ली वाले ही चढ़ेंगे... टीवी पर बोलते हुए इसकी उंस कुटिल मुस्कान को मुस्कान को महसूस करना और सोचना क्या ये सही है...
हंदवाड़ा और पुलवामा हमला
कश्मीर में हमारे अपने नौ जांबाज़ योद्धा वीरगति को प्राप्त हो गए, दिल दुखता है.. दिल और ज़्यादा दुःखता है जब कुछ लोग इस बलिदान को अन्यथा लेते हैं, अपनी ओछी राजनीति करते हैं, अपनी पत्रकारिता की दुकान चलाते हैं, कुछ तो मुठभेड़ में मारे गए आतंकियों की पैरवी करते हुए उन्हें गरीब मास्टर का भटका हुआ नौजवान बताते हैं.. करो जी भर के करो... पर इसका जवाब तुम्हारे आकाओं को दिया जाएगा, क्योंकि यदि चार दिन पहले तीनो सेनाध्यक्ष, CDS, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोवाल एवं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह मिलते हैं, विचार विमर्श करते हैं तो वो केवल तीनो सेनाओं द्वारा कोरोना वारियर्स को सम्मान देने के लिए फूल बरसाने, सेना द्वारा बैंड बजाने, नौसेना द्वारा आतिशबाजी करने के लिए ही नही होता, बल्कि इसके पीछे की रणनीति को समझने की ज़रूरत है... वायु सेना ने देशव्यापी फ्लाई पास्ट किया जो कि एक रिहर्सल थी, या फिर यूँ कहूँ की पड़ोसी सूअर से रिश्तों में जमी बर्फ तो नही पिघली किन्तु पहाड़ो की बर्फ पिघलने लगी है, अब लोहा भी गरम होने लगा है, बस सही समय, सही जगह, सही ताकत से सही प्रहार करना है... मार दो हथौड़ा... जय हिंद, जय भारत..
25 अप्रैल, 2020
राजनीति के मच्छर (World Malaria Day)
आज World Malaria Day है, मलेरिया एक आपदा से कम नही है, हर साल लाखों लोग आज भी मच्छरों द्वारा मारे जाते हैं, दुनिया भर में इन मच्छरों की अनेक प्रजातियां पाई जाती है जो विभिन्न प्रकार की समस्याओं की जड़ हैं.. उन प्रजातियों में एक प्रजाति राजनीतिक मच्छरों की भी है, ये भिनभिनाते भी है और काटते भी हैं, अक्सर इन मच्छरों से लड़ते लड़ते हम अपना ही नुकसान कर बैठते हैं, बॉलीवुड के एक मशहूर अभिनेता का एक डायलॉग भी है कि "एक मच्छर साला आदमी को हिजड़ा बना देता है".. इसका संदर्भ आपकी शारीरिक नपुंसकता से नही बल्कि उसको मारने के लिए किए गए आपके प्रयास के पीछे की मानसिक नपुंसकता के लिए है, केवल ताली बजाने, आल आउट या कछुआ अगरबत्ती जलाने से ये मच्छर नही मरता, इन मच्छरों को दरअसल हमने ही अपना खून पिला पिला कर इनकी इम्युनिटी इतनी बढ़ा दी है कि इनको कोई अस्त्र शस्त्र का कोई असर नही होता.. ये अक्सर भिनभिनाते है और मौका देखकर काट भी लेते है, आपको इनसे बचना होता है, शालीनता से, क्योंकि इसके काटने की क्रिया की प्रतिक्रिया में आप अंततः अपने को ही मार बैठते हैं.. ये मच्छर अपने पराए के भेद बिना उसी को अक्सर ज़्यादा काटते हैं जो इन्हें पानी पिलाता है, इन्हें अपने आस पास फलने फूलने का मौका देता है.. अब अगर खून पीना मच्छर का अधिकार है, भिनभिनाना उसकी अभिव्यक्ति की आज़ादी है तो उसको मारना यूँ तो मेरा भी नैतिक अधिकार है किंतु असहिष्णुता का हवाला देकर मुझसे लड़ने वाले बद्दुजीवी गैंग का क्या करूँगा, कहीं ये भी एक्सट्रीम देशद्रोह की श्रेणी में ना जाये, वैसे मच्छरों की भी अपनी मेहत्वकांगषाएँ है, सूक्ष्म जीवनकाल में ऊंची उड़ान के सपने हैं, हमारा क्या है हम तो एक सामान्य नागरिक है जिसको इन मच्छरों ने चूसना है, दरअसल इन पैरासाइट को पलने के लिए हमारे ही सहारे की ज़रूरत है, आम जनता आखिर कब तक सरकारों को उलाहना दे, अपने आस पास सफाई तो हमे ही रखनी है ना, इनको पालन पोसना नही है, नही तो मलेरिया देते देते ये कब डेंगू धारी बन जाते है पता नही चलता, फिर वो एक महामारी बन जाते हैं जिसका निदान शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक प्रताड़ना ही है... विश्व मलेरिया दिवस है, प्रण करते हैं साफ सफाई का, अपने क्षेत्र को, प्रदेश को, राज्य को और देश को मलेरिया मुक्त करने का...
18 अप्रैल, 2020
रामायण के वामपंथी असुर
अभी रामायण देखते हुए यकायक एक विचार आया, ये असुर शक्तियां प्राचीन काल से ही विपरीत एवं विध्वंसक वामपंथी मानसिकता एवं विचारधारा रखती थीं, इतनी वामपंथी की ना केवल राम रावण युद्ध मे बल्कि जितने भी असुर युद्ध मे आये सभी के तीर भी टीवी स्क्रीन पर लेफ्ट से ही आते थे, यूँ तो राइट विंग के राम लक्ष्मण उनके सभी वार प्रहारों को काट देते थे, किन्तु ये भी देखा कि कई बार यही आसुरी शक्तियां कुछ बाहरी शक्तियों का सहारा लेकर प्रबल होकर स्क्रीन के उसी लेफ्ट साइड से जोरदार प्रहार करने में भी सफल हो जाती हैं.. और यहां तक कि राम और लक्ष्मण सरीखे श्री जी अवतारों तक को आघात दे देती हैं... यही वामपंथी आसुरी शक्तियां चिरकाल से ही कुछ शरूपनखा एवं सुरसा रूपी राक्षसियों के अपने सायबर सेल की मदद से मायाजाल बुनती हैं.. यूँ तो ये वामपंथी असुर शिक्षा एवं अस्त्र शस्त्र विभाग में अक्सर प्रकांड पंडित होते है किंतु इनकी यही शिक्षा अक्सर इनको कंस्ट्रक्टिव माइंडसेट से डिस्ट्रक्टिव माइंडसेट की ओर ले जाती है, रावण ने सीता का हरण किया और बौद्धिक क्षीणता का शिकार हो गया, और उसी के चलते ये वामी राक्षस अपने निहित स्वार्थ एवं लोलुपता में अपने राष्ट्र के साथ साथ अपने कुल का भी विनाश करने पर आतुर हो जाता है... वर्तमान परिपेक्ष में भी यही वामपंथी राक्षस अपने साम दाम दंड भेद सभी का उपयोग करके राष्ट्र के अहित और अपनी कुंठित मानसिकता के चलते राष्ट्राध्यक्ष के विरुद्ध अपनी कुटिल चालो से आघात करने में लगे है, इन्हें आज कुछ और जिहादी शक्तियों का भी समर्थन प्राप्त है, कुछ विपक्षी आसुरी शक्तियां भी इस कोरोना युद्ध मे एकजुट होकर हमारा मनोबल तोड़ने में लगी है किंतु हम राष्ट्रवादी राइट विंग वाले भी कम नही है, हम अपने राष्ट्रधर्म के मार्ग पर चलते हुए घर बैठे ही इनके तीखे बाणों का रुख वापस मोड़ देंगे और अंततः विजय श्री प्राप्त करेंगे... यही तो नियति है, यही तो धर्मयुद्ध है...
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