छत्तीसगढ़ में हुए नक्सली हमले में 22 जवान शहीद हुए हैं, 30 घायल है एवं कुछ लापता भी हैं.. कुछ कहते हैं ये इंटेलीजेंस फेलियर है, कुछ राज्य सरकार को तो कुछ केंद्र को दोषारोपण कर रहे हैं.. अंततः कुछ समय के वाद विवाद के बाद ये भी इतिहास में दर्ज हो जाएगा और फिर इसे गाहे बगाहे किसी चुनावी रैली में सरकार की नाकामियों के संदर्भ में भुनाया जाएगा.. क्यों इन सुरसा रूपी समस्याओं का हल नही निकलता, नक्सलवाद आतंकवाद से भी विभत्स है, ये राजनीतिक संगरक्षण में पलने वाले मानवाधिकार की दुहाई देकर मानव की हत्या करने वाले क्रूर मानसिकता के लोग है, जंगली नक्सल एवं अर्बन नक्सल दोनों ही रूप में खतरनाक है, वरवरा राव अभी कुछ दिन पहले जेल से छुटा और ये उसने जश्न मनाया, एक पहलू और भी है, CRPF की 45 कंपनियां बंगाल में तैनात हैं, दीदी को चुभ रहा है, और काँग्रेस और लेफ्ट को भी, मोदी और अमित शाह ने बंगाल की हवा बदल रखीं है, तो क्या ये हमला साजिशन हुआ, या चुनावी रणनीति की भेंट चढ़ गए ये जवान.. क्यों निज स्वार्थ के लिए, किसी की राजनीतिक मेहत्वकांगशाओ के लिए, किसी गधे को घोड़ा बनाने के लिए ये बलि ली जाती है... हज़ारों लोग हर साल प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में राजनीतिक बलि चढ़ाए जाते हैं.. राजनीतिक स्थिरता के लिए देश मे अस्तिर्था बनाये रखी जाती है... नक्सलियो का समर्थन करने वाले उन्हें कमज़ोर दर्शाते हैं जिनके पास आधुनिक हथियार, राकेट लांचर, ड्रोन तक हैं... देश आतंकवाद से त्रस्त है, सैकड़ों निर्दोष इसका शिकार हुए हैं, हमारी सेना एवं अर्ध सैनिक बलों ने सालों तक अपने हाथ बांध कर इसका सामना किया, आरोप झेले, शहादत दी पर उफ्फ तक नही की। बड़े हमले हुए, आतंकी हमारे घरों तक घुस आए, लेकिन हमने सिर्फ अपने बचने की दुआ मांगी और सैनिकों की शहादत पर मोमबत्तियां जलायीं, पल भर की देशभक्ति जागी, वन्दे मातरम.. भारत माता की जय.. जय हिंद के नारे लगाए, चाय समोसा खाये, हाथ झाड़े और अपने सुरक्षित घरों में वापस आ गए, पल भर के लिए हिन्दू, मुसलमान, जाट गुर्जर, सवर्ण दलित, उत्तर भारत दक्षिण भारत सब एक हो गया। अच्छा लगा.. और फिर आता है सबूत का कीड़ा, जो सब किये कराए पर पानी फेर देता है, जो काटता है, ज़हर उगलता है, पीड़ा देता है और फिर ज़ख्म का नासूर बना देता है। ये राजनीति भी बड़ी कुत्ती चीज़ है, किसी की सगी नही होती, निहित स्वार्थ राष्ट्रहित से भी ऊपर और अवसरवादिता शहादत के सीने पर पैर रख कर सफलता की सीढ़ी बनती है, हमारे स्वाभिमान और अस्मिता को कुचलने वाले दुश्मन से भी गलबहियां की जाती है, अपनी ही सरकार, सेना और सुरक्षा प्रणाली से सवाल किया जाता है, उनकी गरिमा को चोट पहुंचाई जाती है, उनके सामर्थ्य पर प्रश्नचिन्ह लगाया जाता है। और देश की जनता किंकर्तव्यविमूढ़ सी असमंजस की स्थिति में ठगी सी रह जाती है, किन्तु जनता की भी अपनी मजबूरी है, भक्ति और चमचागिरी की भी अपनी एक मजबूरी है और वैसे भी जनता का क्या है उसे तो बस सब्ज़ी के साथ धनिया मुफ्त मिलना चाहिए...
05 अप्रैल, 2021
27 मार्च, 2021
अरविन्द केजरीवाल, दिल्ली का मालिक या दिल्ली का किरायेदार
अभी कुछ दिन पहले ही मैंने दिल्ली में लागू GNCTD एक्ट के संबंध में लिखा था जिसके अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट के द्वारा उपराज्यपाल की प्रशासनिक शक्तियों की नीतिगत व्याख्या की गई है.. इसका फायदा क्या होगा इसको कुछ ऐसे समझिए कि पहले दिल्ली पुलिस अगर किसी क्रिमिनल , दंगाई या आतंकवादी को गिरफ़्तार करती थी तो chargesheet कोर्ट में दायर करने के लिए दिल्ली सरकार की पर्मिशन अनिवार्य थी , दिल्ली सरकार जानबूझकर बड़े केस में पर्मिशन नहीं देती थी जिस कारण समय पर चार्जशीट दायर न होने के कारण आरोपी को बेल मिल जाता था.. इसका उदाहरण जैसे JNU प्रकरण में हुआ, शाहीन बाग और फिर अभी पिछले साल हुए दिल्ली दंगे में पकड़े गए ज़्यादातर दंगाई के ख़िलाफ़ केजरीवाल सरकार के पर्मिशन न मिलने के कारण पुलीस चार्जशीट दायर नहीं कर पायी है और दंगाई को बेल मिल रही है , आप समझ सकते है केजरीवाल के द्वारा किसी धर्मविशेष को इसमें फ़ायदा पहुँचाया जा रहा है.. GNCTD amendment Bill पास होने के बाद अब केजरीवाल सरकार ऐसा नहीं कर पाएगी, अब दिल्ली पुलिस को गुंडे , आतंकवादी और दंगाई के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर करने के लिए केजरीवाल सरकार से पर्मिशन नहीं लेनी पड़ेगी, इसलिए केजरीवाल जी को मिर्ची लगना स्वाभाविक है... एक और उदाहरण देता हूँ, जैसे ये जनाब काम कम और उसका ढोल ज़्यादा पीटते हैं तो अब यूँ समझो कि केजरीवाल दिल्ली में एक गली में सीवरेज डालने का विज्ञापन युगांडा के अखबारों में नहीं दे सकेगा... ये भाईसाहब अवसरवादिता के कीड़े के शिकार हैं, पहले जब इसने दिल्ली में मोहल्ला क्लीनिक खोले थे तो वो सभी इन्होंने अपने क्षेत्रीय नेताओ, पार्षदों या विधायको की प्रॉपर्टी किराए पर लेकर उन्हें ऊंचे किराए दे कर खोले थे, उसी तर्ज पर इसने अब दिल्ली के हर मंडल स्तर पर 3-3 प्राइवेट शराब के ठेके खोलने की अनुमति दी है पर शर्त ये है कि वो दुकान या प्रॉपर्टी भी किसी पार्षद, विधायक या मंत्री की होगी ताकि आने वाले चुनावों में इसका भरपूर फायदा भी उठाया जा सके.. ये अपने वोट बैंक के लिए दिल्ली की महिलाओं को मुफ्तखोरी की लत लगा रहा है, और जब दिल्ली का युवा अब इसके फ्री wifi के झांसे से निकल गया तो उसको शराब की लत लगाना चाहता है, इसने दिल्ली में महिलाओं के लिए भी प्राइवेट पिंक बार खुलवाए हैं.. ये नक्सली सोच का व्यक्ति देश की महिला शक्ति एवं युवाओं की जड़ो में मट्ठा डाल रहा है ताकि अपनी राजनीति की आड़ में विदेशी एजेंडा को चलाता रहे... पर अभी सिर्फ लगाम लगाई है, उसे कसना बाकी है.. जो अपने आप को दिल्ली का मालिक कहता था वो अब दिल्ली का किरायेदार बन कर रह गया...
25 मार्च, 2021
दिल्ली का असली मालिक
दिल्ली के स्वयंभू मालिक अरविंद केजरीवाल को समस्या केंद्र सरकार की नीतियों से नही बल्कि केंद्र सरकार से है, क्योंकि वो स्वयं भी जानता है कि नीति निर्माण पूर्णतया संवैधानिक तरीके से ही किया जाता है किंतु उसकी बेचारी मुफ्तखोर पलटन नही जानती और शायद जानना भी नही चाहती.. बेचारे अपने बिजली पानी मे पैसे बचा कर खुश हैं.. इसको अब ऐसे समझो कि ये जनाब जिस NCT_Act संशोधन बिल को लेकर शोर मचा रहे हैं कि हमारी शक्तियां छीन ली, LG को दिल्ली का मालिक बना दिया, वो बिल तो लोकसभा से और राज्यसभा से पास हो जाएगा और इस केजरीवाल को पता है कि ये संसोधन सुप्रीम कोर्ट में भी valid ही रहेगा क्योंकि इसमें संविधान की अवहेलना नही की गई है इसीलिए केजरीवाल परेशान है... अब इसको इस तरह से समझिए... तकनीकी रूप (संवैधानिक) से केंद्र में जो मोदी सरकार है वो राष्ट्रपति की ही सरकार है और उनके नाम से चलती है, इसीलिए तो संसद सत्र से पूर्व राष्ट्रपति जी का भाषण होता है जिसमे वो अपनी सरकार के काम काज के बारे में बताते है.. अब उसी तरह से सभी राज्य सरकार भी उंस प्रदेश के राज्यपाल के नाम से चलती हैं और विधान सभा का सत्र राज्यपाल के अभिभाषण से ही शुरू होता है.. इसी तरह केन्द्रशशित प्रदेशो में भी यही स्तिथि होती है.. वहां की सरकार उपराज्यपाल की सरकार कही जाती है.. दिल्ली की स्थिति देश की राजधानी भी होने के कारण थोड़ी से भिन्न है.. कुछ दिनों पूर्व सुप्रीमकोर्ट ने NCT एक्ट की धारा 239 AA में दिल्ली सरकार के अधिकार स्पष्ट कर दिए थे पर 239AA स्पष्ट ना होने के कारण उपराज्यपाल के अधिकारों की व्याख्या नही हुई थी जिसकी वजह से संवैधानिक भ्रम बना हुआ था.. जिसके परिणाम स्वरूप जो राज्यो और राज्यपालों के तथा केन्द्रशशित राज्यों में सरकार और उपराज्यपालो के सम्बंध थे वो दिल्ली में गायब हो गए थे.. इसी विसंगति को सरकार ने दूर किया है.. तकनीकी रूप से जैसे और केन्द्रशशित सरकार ,उपराज्यपाल की सरकार होती है अब दिल्ली में भी वो ही व्यवस्था लागू होगी... इसलिए केजरीवाल परेशान है, क्योंकि उसे अब वो सब करना होगा जो हर राज्य की विधानसभा गवर्नर के साथ करती है या उन सभी केन्द्रशासीत प्रदेशो में वहां की विधासभा उपराज्यपाल के साथ करती है... इसीलिए इन भाईसाहब के पेट मे मरोड़ उठ रही है कि अब इनकी मनमर्ज़ी की गुंडागर्दी, लूटखसोट, बंदरबाट और मुफ्तखोरी पर लगाम लगेगी... चमचों गुलाम मत बनो, थोड़ी समझदारी भी रखो...
12 मार्च, 2021
बंगाल में खेला होबे
आज सुबह 4-5 वामपंथी मच्छरों ने मेरे पैर पर हमला कर दिया, जिससे मेरे पैर में गंभीर सूजन आ गई है और मेरे सीने में भी दर्द हो गया है,अब मुझे भी पैर में टूटी हुई हड्डियों के माहिर सलीम पहलवान से पैर पर प्लास्टर चढ़वाना पड़ेगा तभी क्षेत्र के लोगों को मुझ से सहानुभूति होगी. ये विपक्ष की साजिश है क्योंकि मैं अपने मोहल्ले के RWA का चुनाव जीत रहा हूँ और विपक्ष मुझे मिलने वाले समर्थन से बौखला गया है.. इसीलिए ये उन्होंने मेरे खिलाफ साजिश की है.. . मेरी सुरक्षा में लगे आल आउट और काला हिट भी चुनाव आयोग ने बदल दिये.. मैं इसकी मलेरिया विभाग में शिकायत करूंगा... ई ना चोलबे...
09 मार्च, 2021
सोशल मीडिया की खेती
मैं भी सोशल मीडिया का किसान ही तो हूँ, मैं भी सारा दिन हल चलाता हूँ, अलग अलग विषयो पर सृजन के बीज बोता हूँ, सींचता हूँ... अपनी अभिव्यक्ति की, विचारों की फसल बोता हूँ.. मौका मिलते ही विपक्षियों की राष्ट्रवाद में घुन लगाने वाली फसलों में मट्ठा भी डाल आता हूँ.. लोग आते हैं मेरे विचारों की फसल देखने.. कोई ठेंगा दिखा जाता है, कोई मुस्कुरा के चला जाता है.. कोई कोई प्रेम भी बरसाता है.. पर कुछ विशिष्ट प्रजाति के प्राणी भी हैं जो नाक भों सिकोड़ कर जाते है, कुछ लोग बातें भी करते हैं, अपने विचार साझा करते हैं.. अच्छा लगता है.. मज़े की बात तो ये है कि मुझे मेरी फसल का MSP भी नही चाहिए, मैं इसके लिए लालकिले पर चढ़ाई नही करता, ना सड़क पर धरना देता हूँ..कभी कभी तो फसल चोरी भी हो जाती है, पर मैं अपनी फसल राजनीति की मंडियों में नही बेचता.. मैं विचारों की फसल बोता हूँ, सच कहता हूँ, कड़वा कसैला भी होता है, कुछ जानवर मुँह मारते हैं पर थूक कर चले जाते हैं.. मेरी फसल दरअसल बिकाऊ नही है.. मैं यूँ ही बांट देता हूँ.. जिसे चाहिए, जैसी चाहिए.. ले जाये..